कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-7) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा……

उर्वशी अपने नए नवेले पंकज जीजाजी और वंदना दीदी से मिलने उनके शिमला के होटल में जाती है, उनके साथ डिनर करते समय अगले दिन यानी रविवार को कुफ़री घूमने प्लान बनाती है।…

अब आगें..

===================

अगले दिन सुबह लगभग 10 बजे वंदना दीदी ने ने फ़ोन करके उवर्शी को अपने दिन भर की प्लानिंग का ब्यौरा दिया, आज का लंच और डिनर दोनों ही उर्वशी को वंदना दीदी और जीजाजी के साथ ही करना था, हाँ शाम को लगभग 5 बजे वह सब चाय के लिए उसके घर आयेंगे।

आज शिमला हाउस घूमकर दिनभर कुफ़री में बर्फबारी का मज़ा लेना है, शाम की चाय के बाद मॉल रोड घूमकर शॉपिंग वगरैह करने का प्रोग्राम है।

लगभग 11.15 पर उवर्शी होटल स्नो-लैंड में पहुँच गई, जहाँ पंकज जीजाजी और वंदना दीदी पहले से ही तैयार थे, उन्होंने एक रेंटल कार दिन भर के लिए किराये पर बुक कर ली थी।

30 मिनट में ही कार शिमला हाउस पहुँच गई,  ब्रिटिश साम्राज्य की भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी की इंजीनियरिंग कला देखते ही बनती थी।

उस जमाने में जब “वाटर पंप” का अविष्कार नहीं हुआ था, तब भी इस इमारत में “फायर सेफ़्टी” उपकरण एवम स्व-अग्निशमन क्षमता की इंजीनियरिंग तकनीकी विकसित की गई थी, जो आज भी चालू हालत में थी।

आसपास के पेड़, गार्डन एवम भव्यता उर्वशी के लिये बिल्कुल भी नयी नहीं थी, वह तो लगभग हर महीने ही किसी न किसी परिचित या रिश्तेदार के साथ घुमाने के लिए आ जाया करती थी, मग़र पंकज जीजाजी और वंदना दीदी तो हनीमून पर आये थे,  लिहाजा उनके लिये हर एक स्मारक, बगीचा, सीनरी बहुत खास थी.. पंकज जीजाजी के “वीडियोकॉन कैमरे” की जवाबदारी अब उर्वशी के ऊपर थी, “नवदम्पति” हर जगह अलग-अलग पोज़ बनाकर खड़े हो जाते थे, जिनको कैमरे में सुरक्षित करने का काम उर्वशी कर रही थी।

शिमला हाउस से बाहर निकलते निकलते 1 बज रहा था, पास के ही एक रेस्टोरेंट में जीजाजी ने खाने का ऑर्डर किया, खाना खाते ही वह सब निकल पड़े अगले पड़ाव कुफ़री की बर्फ़बारी का आनंद लेने के लिए।

                                 ★

शिमला से कुफ़री लगभग 16 किलोमीटर दूर ही होगा, मगर दोनों ही जगहों के बीच जमीन आसमान का फ़र्क था, शिमला में तापमान अभी 8 डिग्री था पर कुफ़री में तो तापमान 0 से भी नीचे था, नियत स्थल तक पहुँचने के बाद आगें की चढ़ाई के लिए टट्टू पर चढ़कर जाना था।

तीनों ही टट्टू पर सवार होकर उस स्थान पर पहुँच गये जहां से बर्फबारी का आनंद लिया जाता था।

पंकज जीजाजी और वंदना दीदी बहुत रोमांटिक हो रहे थे, हम सभी एक दूसरे पर बर्फ के गोले बना बना कर फेंक रहें थे, जब ठंड ज्यादा लगने लगी तो सबने पास की ही दुकान से गर्मा-गर्म मैगी का आनंद लिया, वंदना दीदी और जीजाजी ने शिमला की ट्रेडिशनल पहाड़ी वेशभूषा में फोटोग्राफर से फोटोज़ खिचवाये, फिर याक के ऊपर बैठकर कई फोटोज खींचवाये, दोपहर कब खत्म हो गई, वक्त का तो पता ही न चला।

सूर्यास्त के शानदार दृश्य को तस्वीरों में कैद करते हुये सभी वापस अपनी उसी कार से उर्वशी के घर पहुँचते हैं, उर्वशी और वंदना दीदी किचिन से चाय नाश्ता बनाकर उसका आनंद लेते हैं।

बर्फ़ में खेलने से उनके कपड़े भीग चुके थे, इसलिए उन सभी ने अपने साथ लाये कपड़े चेंज करके मॉल रोड के लिये निकल पड़ते हैं।

                               ★★

मॉल रोड पहुँचते ही पंकज जीजाजी ने टैक्सी वाले का बिल चुकता करके उसे रवाना कर दिया। मॉल रोड पर उससे आगे का सफर पैदल ही तय करना था।

वन्दना दीदी को वूलन की शॉप से कुछ खरीदारी करने की इच्छा हुई, लिहाज़ा तीनों ही उस छोटी सी शॉप में अपनी अपनी पसन्द का सामान देखने लगे , वंदना दीदी ने वूलन स्टोल, उर्वशी ने कार्डिगन और पंकज जीजाजी ने अपने लिए एक जैकेट पसन्द किया।

बाहर आकर कुछ दुकानें घूमने के बाद उर्वशी ने देखा कि एक बूढ़ा “वायलिन” बजाते हुये उसकी धुन पर अपनी मधुर आवाज में “आवारा हूँ” गीत गा रहा था.. उवर्शी स्तब्ध सी उसे सुनती रही और सहसा उसे वंदना दीदी के विवाह में “तू मेरी जिंदगी है” गाना गाने वाले उस शक़्स की याद आई..

उर्वशी ने थोड़ा सहमते सकुचाते हुये पंकज जीजाजी से पूछा… जीजाजी…

अरे! आपको याद है न आपकी शादी में आपका कोई दोस्त एक गाना गाया था, “तू मेरी जिंदगी है..”

कौन था वह?

अरे!  कैसा मज़ाक कर दिया….मैं अग़र उस वक्त तुम्हारी बहन के अलावा किसी और पर नज़र भी रखता तो मेरा मर्डर कर देती मेरी “वन्दू” पंकज जीजाजी ने खींसे निपोरते हुये पल्ला झाड़ लिया…

प्रथम प्रयास ही असफ़ल हो गया किंतु उवर्शी ने हार न मानी, वह बेताब सी थी, उस युवक के बारें में अधिक से अधिक पता करनें के लिए।

अरे जीजाजी… भूल गये क्या दोपहर को खाना खाते समय आपके बग़ल में ही तो बैठा था वह…

जीजाजी शायद समझ चुके थे कि उर्वशी किसकी बात कर रही है, मग़र वह सीधे -सीधे ही यह राज बता दें इतने तो सीधे पंकज गौतम जी तो बचपन में भी न थे, फिर तो अब साली साहिबा को सताने का मौका हाथ लगा था, ऐसे कैसे सब सच बता देतें वह।

पंकज जीजाजी फिर से बोले, अरे बुद्धू, जिसके बगल में तुम्हारी वंदना दीदी जैसी विश्व सुंदरी खाना खा रही हो, वह पागल तो नहीं कि दूसरी तरफ़ ध्यान भी दे सके कुछ।

उफ़्फ़! ” इन्हें तो कुछ याद ही नहीं रहता”, वंदना दीदी ने यह “बीबियों वाला ” डायलॉग यूँ मारा जैसे शादी हुये सालों बीत गये हों, जबकि अब तक तो एक सप्ताह भी न बीता था।

उर्वशी को मायूस होते देख पंकज जीजाजी बोले, अरे, निराश मत हो, अगले हफ़्ते तक हमारी शादी का एलबम बनकर तैयार हो जाएगा, तुम गुड़गांव आओ तो जिस शक़्स पर उंगली रखोगी मैं उसकी पूरी कुंडली बता दूँगा..  जीजाजी ने चुटकी लेते हुए कहा।

अब तक सर्द हवाओं फिर से बहने लगी थी, इसलिए उन सबने मॉल रोड के ही रेस्टोरेंट में डिनर किया, और सभी अपने अपने गंतव्य की तरफ़ निकल गये।

=====================

अगला भाग

कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-8) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

स्वलिखित

सर्वाधिकार सुरक्षित

अविनाश स आठल्ये

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!