कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-5) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा……

अपनी वंदना दीदी के विवाह में शामिल होने आई उर्वशी को अपने जीजाजी का एक मित्र जो कि बहुत अच्छा गीत गा रहा था, पसन्द आ जाता है, अपनी शिमला की ड्यूटी वापस जॉइन करने के लिए ट्रैन में सफ़र करते हुए अतीत की यादों में खो जाती है…

अब आगें..

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पिछले कुछ दिनों से उर्वशी के सीनियर बॉस उसे बहुत प्रभावित करने की कोशिश कर रहें थे, मगर वह यह बात कहां समझतें थे कि पैसा और पोजीशन ही सबकुछ तो नहीं होता न किसी से भी प्यार करने के लिए…

सुबह हो चली थी, आगरा स्टेशन पर चाय-चाय की आवाजों से उर्वशी की नींद खुली। उबले पानी सी वह घटिया चाय पीकर उवर्शी का मूड फ्रेश होने की जगह और चढ़ गया।

अब तो नई दिल्ली स्टेशन पर ही फ्रेश होकर चाय नाश्ता करके वहीं से टैक्सी लेकर शिमला पहुचेंगी।

अब तक “आगरा पेठा ” “आगरा पेठा” बोलकर चीखने वालों का शोर थम चुका था।

किन्नर भी अपनी “मोहक अदाओं” के दम पर वसूली कर चुके थे।

जैसे जैसे दिल्ली नज़दीक आ रहा था, सहयात्रियों की हलचल तेज़ होती जा रही थी, लोग सामान पैक करके गेट के नजदीक वाली खाली सीटों पर अपना सामान रखने की जल्दबाजी में थे, हालांकि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन उस ट्रेन का आखिरी स्टॉपेज था।

दिल्ली आते ही उर्वशी के यात्री प्रतीक्षालय में अपना सामान रखा और फ्रेशअप होने चली गई… वहीं के एक स्टॉल में चाय नाश्ता करके अपना सामान लेकर नई दिल्ली स्टेशन  के “पहाड़गंज साइड” से एक टैक्सी पकड़ी और शिमला के लिए रवाना हो गई।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से टैक्सी पकड़े अभी लगभग 2 घण्टे हो चुके थे मग़र टैक्सी अब तक दिल्ली सीमा से बाहर नहीं निकल सकी थी।

चंडीगढ़ हाइवे पकड़ते ही खुशनुमा ठंडक का अहसास होने लगा था, उर्वशी ने ड्राइवर से कार की सभी खिड़कियों को खोलने और कोई अच्छा सा संगीत लगाने को कहा।

थोड़ी ही देर में  उस टैक्सी में “कानफोड़ू संगीत” बजने लगा,

“अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का…

यार ने लूट लिया घर यार का..”

टैक्सी ड्राइवर से इस तरह का संगीत की कैसेट लगा देखकर उर्वशी झुंझला उठी, मध्यप्रदेश हो या दिल्ली, पता नहीं इन टैक्सी ड्राइवर की पसन्द एक जैसी क्यों होती हैं।

उर्वशी ने गुस्से से ड्राइवर से कहा भाईसाब, मैने आपको अच्छा संगीत लगाने को कहा था मग़र आप तो यह “गर्दभ राग” सुनाने को तुले हो…

कोई पुराने गाने नहीं है क्या..रफ़ी किशोर या लता जी के?

ड्राइवर ने कहा “शब्बीर कुमार” के लगा दूँ क्या?

भाई इस कार में कोई बड़ा सा “पाना” होगा क्या? ..उर्वशी ने खीझकर कहा…

ड्राइवर ने कहा जी हाँ दीदी… पीछे डिकी में रखा है, कुछ काम था क्या उस पाने से?

ड्राइवर के भोलेपन पर उर्वशी को हँसी आ गई, मग़र उसने अपनी हँसी दबाते हुये कहा, हाँ उस पाने को अपने सिर पर मारकर खुद का सिर फोड़ना था।

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ड्राइवर को अब महसूस हो चुका था कि उससे कुछ ग़लती हुई है, इसलिए उसने टैक्सी किनारे लगाते हुए, हाथ जोड़कर उर्वशी से लगभग रुआंसे होते हुये कहा.. दीदी जी हमसे कुछ गलती हो गई हो तो बता दो, हमें आपकी “अंग्रेजी” नहीं समझ आवे.. कम पढ़े लिखे हैं न इसलिए..

उसकी मासूमियत देखकर उवर्शी का गुस्सा शांत हो गया था। उसने ड्राइवर के कैसेट्स के डब्बे से किशोर कुमार के सदाबहार नगमें की कैसेट निकाली और उसे लगाने को कहा..

रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना..

भूल कोई हमसे न हो जाये….

किशोर के मस्त गीत हों और ऐसा खुशनुमा मौसम तो भला सफ़र में दूरी किसे महसूस होती है। कब अम्बाला पहुँच गये महसूस ही न हुआ….

दूरी तो अभी मात्र 150 किलोमीटर के लगभग थी मग़र पहाड़ी रास्ता होने की वज़ह से लगभग 4 घण्टे और लगना था, ड्राइवर ने अपने किसी परिचित ढाबे पर कार रोकी और बोला दीदी जी भूख लग रही है, थोड़ा खाना खा लेते हैं..

उर्वशी ने ड्राईवर को 50 रुपये देते हुये कहा..

नहीं तुम खाना खा लो, मुझे भूख नहीं है।

वाकई में उर्वशी को उस वक़्त पर खाना खाने की इच्छा नहीं थी, मगर जैसे ही उस ढ़ाबे वाले ने दाल में बटर का हरी मिर्च, टमाटर, प्याज और लहसुन का तड़का लगाया, उसकी खुशबू से न जाने कैसे अचानक उर्वशी की भूख जागृत हो गई..

उसने भी एक दाल फ़्राई और जीरा राइस का ऑर्डर किया। गर्मागर्म खाना खाकर उर्वशी को बड़ा सुकून मिला।

कार दुबारा शुरू हो चुकी थी, बादलों की तेज गड़गड़ाहट के साथ अब बरसात भी शुरू हो गई थी, उर्वशी ने उस ड्राइवर को कार के काँच बन्द करने को कहा और कार ने अब धीमे धीमे  पहाड़ी रास्ता चलना शुरू कर दिया था।

ड्राइवर ने न जानें उस कैसेट बॉक्स से कौन सी कैसेट निकाली, और टेप पर गीत शुरू हो गया….

तू मेरी जिंदगी है…

तू मेरी जिंदगी है..

तू मेरी हर ख़ुशी है

तू ही प्यार, तू ही चाहत

तू ही आशिकी है

तू मेरी ज़िन्दगी है…

पहली मोहब्बत का एहसास है तू

बुझके जो बुझ ना पाई, वो प्यास है तू

तू ही मेरी पहली ख्वाहिश, तू ही आखिरी है

तू मेरी ज़िन्दगी है…

हर ज़ख्म दिल का तुझे, दिल से दुआ दे

खुशियाँ तुझे, गम सारे मुझको खुदा दे

तुझको भुला ना पाया, मेरी बेबसी है

तू मेरी ज़िन्दगी है…

                                 ★★

उर्वशी का रोम रोम खड़ा हो गया था यह गीत सुनकर, ऐसा नहीं था कि वह यह गीत पहली बार सुनी हो.. मग़र जिस शिद्दत से उवर्शी ने  अपनी दीदी वंदना की शादी में आये उस “युवक” से यह गीत सुना था… न जानें उसे यह अहसास हो रहा था कि यह गीत उसी के लिए गाया गया है… इस गीत का एक एक लफ़्ज़ उर्वशी के दिल को छू कर निकल रहा था।

उसे यह गीत इसके मूल “गायक कुमार शानू”  की तुलना में” बिना पर्याप्त म्यूज़िक” के वंदना दीदी की शादी में गाया उस युवक का गीत “ज़्यादा बेहतर” लग रहा था ।

जब इंसान प्यार में होता है तो उसे अपने प्रेमी का सबकुछ अच्छा लगता है,  फिर ऐसे बरसाती मौसम में प्रेमी की यादों के संग सफ़र करना कितना खुशनुमा हो सकता है, उसकी कल्पना भी नहीं कि जा सकती..

उर्वशी बार बार उस कैसेट को रिवाइंड करवाकर इसी गीत को अब तक 4 बार सुन चुकी थी।

तो क्या उर्वशी सचमुच ही उस युवक के प्यार में थी..? जो क्या काम करता है? किस जाति का है? कहीं शादीशुदा तो नहीं है..? उसका नाम क्या है.. कुछ भी तो नहीं जानती थी उर्वशी..

मग़र फिर भी सिर्फ़ उसकी रूहानी सी आवाज़ में सदा के लिए खो जाना चाहती थी उर्वशी।

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अविनाश स आठल्ये

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