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अब तक आपने पढ़ा- वेलेंटाइन डे पर प्यार का इज़हार करने के माह भर बाद ही उर्वशी और मेज़र बृजभूषण पांडे के परिजन मिलकर विवाह के लिए अपनी सहमति दे देतें हैं, पंकज गौतम की पहल पर उन दोनों की सगाई का कार्यक्रम भोपाल में सम्पन्न हो जाता है।
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अब आगे..
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सगाई की अंगूठी पहनने के बाद तो मेज़र पांडे और उर्वशी को वैधानिक लाइसेन्स मिल गया था एक दूसरे से मिलने-जुलने और खुल्लमखुल्ला प्यार का इजहार करनें के लिए.. अब वह दोनों ही जिस दिन भी छुट्टी होती तो कभी पहाड़ों की सैर पर चल देते, क़भी चंडीगढ़ जाकर जी भर कर शॉपिंग करते, तो क़भी किसी नदी किनारे शांत बैठकर सिर्फ एकदूसरे को निहारते रहतें, ज़माने से बेख़बर उन दोनों का रोमांस चरम पर था।
पिताजी ने 28 मई की शादी की तारीख़ तय कर दी थी, विवाह उमरिया में ही होना तय हुआ, लिहाजा “बांधवगढ़ के आलीशान रिसोर्ट” को विवाह कार्यक्रम के लिए 3 दिन के लिए बुक कर लिया गया था। केटरिंग वाले को भी एडवांस दिया गया था, लग्न लगाने वाले पुरोहित को भी 28 मई के लिए पहले से ही बुक कर लिया गया था..
20 अप्रैल तक तो शादी के कार्ड भी छप चुके थे, वर-वधु के विवाह के ड्रेस की पसन्दी के लिए एक बार उर्वशी और मेज़र पांडे को दिल्ली के प्रसिद्ध ड्रेस डिज़ाइनर से मिलकर ऑर्डर करना था, इसलिए यह कार्य अब तक लंबित था, वरना विवाह की लगभग 80% तैयारियां पूरी हो चुकी थी।
तिवारी परिवार, पांडे परिवार और गौतम परिवार बड़े ही उत्साह के साथ 28 मई को उर्वशी और मेजर पांडे के विवाह की तैयारियों में व्यस्त था, अप्रैल महीने ख़त्म होते ही विवाह के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी।
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सबकुछ बिल्कुल प्लानिंग के अनुसार ही चल रहा था कि अचानक टीवी पर आई इन खबरों से पूरा देश स्तब्ध रह गया।
3 मई 1999: कारगिल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थानीय चरवाहों ने कई हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को देखा. उन्होंने सेना के अधिकारियों को इसकी सूचना दी.
5 मई 1999: कारगिल के इलाके में घुसपैठ की खबरों के जवाब में भारतीय सेना के जवानों को वहां पर भेजा गया. इस दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की जाट रेजिमेंट की पेट्रोलिंग टीम के 5 जवानों का अपहरण कर लिया..
जिसमें से 4 जाट रेजिमेंट के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया, सिपाही अर्जुनराम बासवान, मुलाराम बिदियासर, नरेश सिंह सिनसिनवार, भंवरलाल बगाडि़या और भिखाराम मुध के साथ पाक सैनिकों की बर्बरता देखने को मिली थी।
पेट्रोलिंग के दौरान पाक सेना ने इनका अपहरण कर लिया और टॉर्चर करके हत्या कर दी। कैप्टन कालिया और उनके साथियों के साथ ऐसी बर्बरता हुई थी कि सुनकर दिल दहल जाए। उनके कानों में गर्म लोहे का रॉड डाला गया था, आंखें फोड़ दी गई थीं और उनके जनन अंग काट दिए गए थे। उनको सिगरेट से दागा गया था, दांत टूटे हुए थे और सिर फटे हुए थे। इतना ही नहीं, होठ और नाक भी काट दिए गए थे।
(सन्दर्भ लाइव हिंदुस्तान न्यूज़ e पेपर 2 मई 2017)
पूरे देश पाकिस्तान की इस कायराना हरक़त का बदला चाह रहा था। देश में आपातकाल की स्थिति निर्मित हो जाती है।
सभी सैनिकों की छुट्टियां रद्द की जाती हैं, सारे गोला-बारूद हथियार रेल मार्ग, सड़क मार्ग और वायु मार्ग से कश्मीर के पास तक पहुंचाये जा रहे थे, भारत और पाकिस्तान दोनो ही देशों के दूतावास एक दूसरे से खाली करवा लिये गये थे, पूरा विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी तो परमाणु सपन्न शक्तियों से सब्र करने को कह रहा था।
मगर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अटल इरादों के सामने किसी की एक न चली।
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मेज़र पांडे को भी दो दिन के अंदर ही अपनी पूरी टीम के साथ श्रीनगर पहुँचने के आदेश थे.. उसने सबसे पहले उर्वशी के पिता तिवारी जी से फ़ोन पर ही युद्ध की आपातकालीन परिस्थितियों का हवाला देकर, विवाह की तारीख 6 महीनों के लिए आगे बढ़ाने का आग्रह किया, तिवारी जी की बेटी के भविष्य का प्रश्न था, मगर होने वाले जवान के अंदर राष्ट्रप्रेम देखकर वह उसे कैसे मना कर सकते थे।
वह अगले ही दिन वह सुबह उर्वशी से मिलने शिमला पहुंच जाते हैं, मेज़र पांडे को उसी रात ट्रेन से अम्बाला स्टेशन से पूरी टीम के साथ कटरा के लिए निकलना था, लिहाज़ा वह जंग में उतरने से पहले अपनी मंगेतर को आखिरी बार जी भरकर देखना चाहतें थे।
उर्वशी देखो हमें तो कल्पना भी न थी कि इतनी जल्दी ही जंग के ऐसे हालात बन जायेंगे, मगर मैने कहा था न कि हम फौजियों की पहली बीबी उनकी वर्दी होती है। आज हमारे लिये उसी वर्दी की लाज बचाने का समय आ गया है, हम पाकिस्तान से अपने साथियों की मौत का बदला जरूर लेंगे…मेज़र पांडे देशप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत हो रहें थे..
वहीं उर्वशी मेज़र पांडे से बिछुड़ने के गम से व्यथित हो रही थी।
मेजर पांडे ने उर्वशी को अपनी बाहों में भर लिया और कहा.. मैं तुम्हें बाहों में इसलिए भरकर बात कर रहा हूँ क्योंकि वह बात मैं तुमसे आँखों मे आँख डालकर नहीं कह सकता।
मैं अपनी पूरी शक्ति और दमख़म के साथ युद्ध लड़ूंगा, दुश्मन को पीठ दिखाकर भागना तो भारतीय फ़ौज ने कभी सीखा ही नहीं है। इसलिए ऐसे में कहीं मुझे कुछ…..
मेज़र पांडे के कुछ कहने से पहले ही उर्वशी ने उनके मुँह पर हाथ रखकर उन्हें बीच में ही रोक दिया…
कुछ नहीं होगा तुम्हें, मैने जो तुम्हें सगाई की अंगूठी पहनाई है, यह हमारे प्रेम की निशानी है, देखना यह अंगूठी ही तुम्हें सारे संकटो से निकलकर वापस मुझ तक जरूर लाएगी..
कहते कहते उर्वशी की आँखों से अश्रु की धार निकल पड़ती हैं, वह जानती थी कि युद्ध के ऐसे भयावह वातावरण में किसी को भी कुछ भी हो सकता है, परन्तु वह ख़ुद को कमजोर दिखाकर मेज़र पांडे का हौसला कमजोर नहीं करना चाहती थी।
उर्वशी और मेज़र पांडे लगभग 10 मिनट तक एक दूसरे को बाहों में समेटे हुये थे, दोनों ही पल के सौवें हिस्से को भी महसूस कर रहें थे, मानों उतने ही पलों की जी जिंदगी बची हो उनकी…
सहसा उर्वशी ने अपने गले में लगा एक भगवान का लॉकेट जो उसकी माँ ने बचपन मे उसे पहनाया था, को निकालकर चैन सहित मेज़र पांडे को पहना दिया और कहा कि यह लॉकेट मेरी जिंदगी की सबसे कीमती वस्तु थी क्योंकि यह मुझे मेरी माँ के अपने हाँथों से मिली पहली और अंतिम निशानी थी, तुमसे मिलकर अब लगा कि तुम इससे भी कीमती हो, इसलिए आज मैं इसे तुम्हें ही पहना रही हूँ, यह देवी माँ हर संकट से तुम्हारी रक्षा करेंगी।
उर्वशी और मेजर पांडे ने आखिरी बार एक दूसरे को आलिंगन किया, उसके बाद मेज़र पांडे ने कहा उर्वशी हमें आज रात की ट्रेन से ही कटरा तक पहुँचना.. इसलिए मैं अब तुमसे विदा लेता हूँ …..
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उर्वशी भरी आँखों से मेज़र पांडे को जाते हुए तब तक देखती रही, जब तक कि वह आँखों से ओझल न हो गये… उर्वशी को आज समझ आ रहा था कि एक फ़ौजी से प्रेम करना कितना कठिन होता है।
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अविनाश स आठल्ये
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