अब तक आपने पढ़ा- आखिरकार उर्वशी को संयोग से वहीं युवक मिल जाता है, जिसने उसकी वंदना दीदी की शादी में मधुर गीत गाया था, मेजर बृजभूषण पांडे, यह भारतीय सेना में मेजर पड़ पर अम्बाला में पोस्टेट हैं, वंदना दीदी और पंकज जीजाजी ने आज उनको डिनर पर बुलाया है।
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थकान की वजह से उर्वशी लगभग 4.30 बजे तक सोई, जब वह उठी तो देखा कि किचिन में बड़े जोरशोर से खाने की तैयारी हो रही थी, उर्मिला ने छोले पूरी, कश्मीरी पुलाव, पाइनएप्पल रायता और मालपुआ के बनाने का प्लान रखा था।
उर्वशी ने उठते ही गर्मागर्म चाय की फरमाइश रख दी, चाय पीते ही वह भी वंदना दीदी और मेड की किचिन में हेल्प करने लग गई।
शाम के लगभग 7 बजे तक सारा खाना बन चुका था। इसलिए उर्वशी और वंदना दीदी दोनों ही तैयार होने चली गई।
उर्वशी ने चटक लाल रंग की शर्ट और जीन्स पहना था, जिससे वह बिल्कुल मॉर्डन लग रही थी…
लगभग आठ बजे सिक्युरिटी से फोन आता है कि कोई ब्रजभूषण पांडे आपसे मिलने के लिए आये हैं। पंकज जीजाजी के भेजने का निर्देश मिलते ही 10 मिनट में मेजर पांडे दरवाजे की डोरबेल बजाते हैं।
उर्वशी की बेसब्री चरम पर थी मगर वह किसी तरह वह अपने मनोभावों को छुपा सकने में कामयाब हो ही गई
महरून रंग की शर्ट और ट्राउजर में मेजर ब्रजभूषण पांडे किसी फिल्मी हीरो की तरह दिख रहे थे।
तो यह है मेरी श्रीमती वंदना और यह है उनकी छोटी बहन उर्वशी जो शिमला में जॉब करती हैं, और उर्वशी यह मेज़र पांडे ही हैं जो उस दिन मेरी शादी में गाना गाये थे.. कहते हुये पंकज जीजाजी ने सभी का औपचारिक परिचय करवा दिया।
थोड़ा बहुत हँसी मजाक से शुरू हुआ दौर जल्द ही खाने की टेबल तक पँहुचते पँहुचते ठहाकों के दौर तक पहुँच चुका था। कॉलेज के दिनों की बातों से जो चर्चा शुरू हुई, वह उनके टीचर्स से लेकर उन सुंदरियों तक भी पहुँच गई जिन्हें यह दोनों उस समय अपने ख्वाबों की मल्लिका समझतें थे।
अरे आप पुलाव लीजिए न, शर्माइये बिल्कुल भी नहीं, इसे अपना ही घर समझिए.. कहकर मेजर पांडे में वंदना भाभी को जब खाना परोसा तो एक बार फिर से किसी की भी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
बड़ा ही विनोदी स्वभाव था मेजर पांडे का और घमंड तो बिल्कुल भी नहीं था।
उर्वशी जितना मेज़र पांडे से परिचित हो रही थी, उसका मेजर पांडे पर उतना ही ज़्यादा प्रेम बढ़ता जा रहा था।
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तो मिस उर्वशी जी आपको क्या क्या पसन्द है? मेज़र पांडे ने इंटरव्यू लेने के अंदाज़ में उर्वशी से सवाल किया…
जी मुझे घूमने का बहुत शौक है, उर्वशी ने छूटते ही कहा, मैं बर्फ़ीली वादियों, देवदार के वृक्षों को और गहरी घाटियों को देखकर उनमें खो जाती हूँ।
मेजर पांडे को लगा कि या तो उसने गलत सवाल कर दिया, या उर्वशी उसके सवाल को समझ ही नहीं पाई है, इसलिए उसने सीधा सवाल किया.. उस दिन तो आपने मुझसे तो मेरी पसन्द का गीत तो आपने सुन लिया था, क्या आपको भी गाना वगैरह आता है या सिर्फ़ सुनने का ही काम करती हो आप?
अरे नहीं इसे गाना वाना तो बिल्कुल भी नहीं आता.. कोई कुछ कह पाता उसके पहले ही पंकज जीजाजी बोल पड़े।
नहीं नही उर्वशी भी शास्त्रीय संगीत में “विशारद” हैं, बहुत अच्छा गाती हैं.. वंदना दीदी ने उर्वशी का पक्ष लेकर कहा।
ऐसे कैसे मान लूँ मैं, आता है तो गाकर दिखाये न, मैं भी तो समझूँ की मेरा दोस्त ज्यादा अच्छा गाता है या मेरी साली .. पंकज जीजाजी ने उर्वशी को बातों में फंसा ही लिया ।
उर्वशी ने उस घर में नज़र दौड़ाई की कोई वाद्ययंत्र दिख जाये, मगर ऐसा कुछ न था, इसलिए उसने किचन से एक बड़ी थाली लेकर उसी को ढपली की तरह ताल देते हुये गाना शुरू किया।
“गुमसुम गुमसुम गुपचुप गुमसुम गुपुचुप
गुमसुम गुमसुम गुपचुप गुमसुम गुपुचुप
गुमसुम गुमसुम गुपचुप गुमसुम गुपुचुप
हलचल हलचल हो गयी तेरी होंठ हैं क्यों चुप
हलचल हलचल हो गयी तेरी बैठे हैं गुपचुप
प्यारे प्यारे चेहरे ने करते हैं इशारा
देखा तेरी आँखों ने हैं सपना कोई प्यारा
हमसे गोरी ना तू शर्मा कहदे हमसे ज़रा
हमसे गोरी ना तू शर्मा कहदे हमसे ज़रा
कहना ही क्या ये नें एक अनजान से जो मिले
चलने लगे मोहब्बत के जैसे ये सिलसिले
अरमान नये ऐसे दिल मैं खिले
जिनको कभी में ना जानून
वो हमसे हम उनसे कभी ना मिले
कैसे मिले दिल ना जानून
अब क्या करें क्या नाम लें
कैसे उन्हें में पुकारूँ
बॉम्बे फ़िल्म का यह गीत हूबहू के एस चित्रा जी की आवाज़ में.. इतना सुंदर गाया की रोंगटे खड़े हो गये थे सभी के.. वही दर्द, वही मिठास सब कुछ तो था उर्वशी की आवाज़ में।
मेज़र पांडे तो यूँही उर्वशी पर फिदा था, अब उर्वशी की यह शानदार गीत गाने की कला ने उसे उर्वशी का दीवाना बना दिया।
अब आप भी सुना दीजिए न वही गीत “तू मेरी जिंदगी है” उर्वशी ने मेजर पांडे से अपने दिल की बात कहते हुए कहा….
“क्यों कल ही सुना तो था न आपने शताब्दी एक्सप्रेस में”?…
मेजर पांडे ने बोल तो दिया लेकिन बाद में पंकज और वंदना भाभी की सशंकित नज़रो से उसे अपनी चोरी पकड़े जाने का अहसास होता है।
ओह हो…कैसे मेजर हो, इतनी सी बात न छुपा सके, तो दुश्मन के सामने क्या अपने देश के ख़ुफ़िया राज छुपा पाओगे? उर्वशी ने चोरी पकड़े जाते ही शिकायती लहजे में कहा।
यदि ऐसा वक्त आ भी गया तो मैं देश के लिए जान देना पसन्द करूँगा, लेकिन मुँह न खोलूंगा।
मेजर पांडे को उर्वशी का यह उलाहना शायद पसन्द नहीं आया था।
ओये होये, तुम दोनों तो बड़े ही तेज़ निकले, पहले ही मिल लिए थे, और मै बेवकूफ तुम दोनों का इंट्रोडक्शन करवा रहा था, पंकज जीजाजी के ऐसा कहते ही थोड़ा सा गम्भीर होता माहौल फिर से मस्ती भरा हो गया।
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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-12) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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