कपड़ों से नहीं विचारों से आधुनिक हूँ मै

चेतना और मनोज दिल्ली के एक कंपनी में CA थे. दोनों की कुर्सी अगल-बगल थी तो धीरे-धीरे एक दूसरे से दोस्ती हो गई और यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई इन दोनों को भी पता नहीं चला ऐसे करते-करते 2 से 3 साल गुजर गए.

1 दिन सुबह मनोज  ऑफिस पहुंचा तो बिल्कुल उदास था, उसको उदास देखकर चेतना ने पूछा क्या हो गया मनोज आज उदास क्यों हो.  मनोज ने कहा कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही। चेतना ने कहा नहीं कुछ तो बात है वरना तुम सुबह सुबह इस तरह से उदास तो नहीं होते हो.

मनोज ने  चेतना से बता दिया, उसके घर वालों ने उसके लिए एक लड़की पसंद किया है और व्हाट्सएप पर फोटो भेजा है लेकिन वह  तो चेतना से प्यार करता है किसी और लड़की से शादी कैसे कर सकता है लेकिन मनोज में इतनी हिम्मत नहीं थी वह अपने घर वालों से चेतना के बारे में बताएं।

मनोज ने कहा चेतना मैं चाहता हूं कि तुम अपने पापा को मेरे घर भेजो शादी की बात करने के लिए बाकी मैं देख लूंगा।

चेतना बोली ठीक है मैं आज जाकर शाम को अपनी मां से बात करूंगी।  चेतना ऑफिस से शाम को जब घर पहुंची मनोज के बारे में वह अपनी माँ से बताई।  वह मनोज से प्यार करती है और शादी करना चाहती है मनोज के घर वाले उसकी शादी की बात चला रहे हैं। अपनी माँ से कहा  पापा को एक बार उसके घर भेज दो शादी की बात करने के लिए. चेतना की बातें सुनकर चेतना की मां ने कहा, “देखो बेटी मैं तुम्हारी बात समझ सकती हूं, तुम उसे बहुत प्यार करती हो, मनोज एक अच्छा लड़का है मुझे उससे कोई समस्या नहीं है पर तुम खुद ही सोचो, मनोज अमीर घर का लड़का है हमने तो तुम्हें कैसे भी करके इतना पढ़ा के CA बना दिया है।  लेकिन अब हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम तुम्हें दहेज दे पाएंगे और फिर मनोज का परिवार बिल्कुल ही आधुनिक है उनके घर की सारी स्त्रियां भी मॉडर्न कपड़े पहनती हैं मुझे नहीं लगता है उस घर मे अपने आप को सेट कर पाओगी। हम ठहरे मध्यम वर्ग के लोग.

तुम कहती हो तो मैं तुम्हारे पापा को बात करने के लिए भेज दूंगी लेकिन अगर वह ज्यादा दहेज की मांग करेंगे तो हम कहां से दे पाएंगे।  चेतना ने कहा मम्मी तुम एक बार पापा को भेजो तो सही.



चेतना के पापा, मनोज के घर में शादी की बात करने के लिए गए.  चेतना के पापा ने मनोज के पापा से बताया कि चेतना और मनोज दोनों एक ही ऑफिस में जॉब करते हैं और एक दूसरे को जानते भी है अच्छा यही होगा हम दोनों को शादी कर दें बाकी आप लोगों की रजामंदी जरूरी है.

तभी मनोज की मां बीच मे बोल पड़ी देखो भाई साहब हमें शादी करने में कोई दिक्कत नहीं है।  हमें भी आपके लड़की के बारे में थोड़ा बहुत तो पता ही है और हमें आपकी लड़की भी पसंद है लेकिन हमारे बेटे को 10 लाख  और एक फोर व्हीलर गाड़ी तो मिल ही रहा है आपकी बेटी जानने वाली है तो हम यह करेंगे 10 लाख के बदले 8 लाख कर देंगे और फिर गाड़ी  तो आपको देनी ही पड़ेगी।

चेतना के पापा ने कहा बहन जी आप कैसी बात कर रहे हैं मैं इतने पैसे कहां से दे पाऊंगा मैंने जो भी पैसा जमा कर रखा था। मैंने अपनी बेटी को यह CA बनाने में खर्च कर दिया। मनोज के पापा ने कहा भाई साहब अगर आपने खर्च किया है तो हमने भी खर्च किया है हमने बचपन से अपने बेटे पर किसी भी चीज के लिए रोक नहीं लगाई है उसने जो कहा हमने सब कुछ किया जो मांगा वह सब कुछ दिया अब एक बेटे की मां बाप होने की नाते इतना तो हक बनता है कि अपने बेटे की धूमधाम से शादी करें।  अगर हम दहेज नहीं मिलेंगे तो आपको पता है हमारे समाज में कितनी जग हंसाई होगी।

चेतना के पापा ने कहा भाई साहब कैसी बात कर रहे हैं दहेज नहीं लेने से जग हँसाई नहीं बल्कि और आपकी समाज में इज्जत बढ़ेगी कि आपने  अपने बेटे की शादी बिना दहेज के किया। मनोज की मां बोली भाई साहब आपको किसने कहा कि हम आपसे दहेज मांग रहे हैं हम तो सिर्फ शादी का खर्चा मांग रहे हैं.

चेतना के पापा ने बोला ठीक है मैं घर जाकर आपको बताता हूं.  चेतना के पापा वापस अपने घर आ गए और मनोज के घर वालों की सारी बातें चेतना और चेतना की मां से बताया।  चेतना की मां ने भी कहा चेतना बेटी अब तुम ही बताओ कैसे हम कर सकते हैं तुम्हारी शादी उस घर में हमारे पास इतने पैसे कहां है.

चेतना भी मनोज के प्यार में पागल हो चुकी थी उसने अपने पास जो पैसे इकट्ठे कर रखे थे वह भी अपने पापा को दे दिया और बोली पापा कहीं से और पैसे इकट्ठा करके शादी कर दो।  मैं बाद में आपको पैसे दे दूंगी और वह चुका देना।



ऐसे करके चेतना और मनोज की शादी तय हो गई.  शादी तो तय हो गई लेकिन दोनों परिवारों में अभी भी दूरियां बरकरार थी. रोज नए-नए लड़के  वाले के तरफ से दहेज की फरमाइश आते रहते थे लेकिन चेतना के घर वाले ने भी अब तो इग्नोर करना शुरू कर दिया था।  उनको भी पता चल गया था कि जितनी भी डिमांड पूरा करो और बढ़ता ही जा रहा है.

कुछ दिनों के बाद चेतना की शादी हो गई और चेतना अपने ससुराल चली गई।  थोड़े दिनों के बाद सारे मेहमान भी वापस चले गए। चेतना के ससुराल में चेतना से बड़े दो जेठानी और एक छोटी ननद और एक छोटे देवर और सास-ससुर रहते थे.  चेतना के ससुराल वाले अपने आप को आधुनिक कहते थे वह इसलिए कहते थे कि वह उनके कपड़े आधुनिक होते थे लेकिन विचार नहीं। यहां तक की चेतना की सास भी जींस और टॉप पहनती थी.  चेतना की दोनों जेठानी भी जॉब करती थी तो वह दोनों भी जींस और टॉप ही पहनती थी। ऐसा लगता था कि यह परिवार इंडिया में नहीं इंडिया के बाहर का हो। घर में तो जैसे भारतीय कपड़ों के लिए जगह ही नहीं था लेकिन वही चेतना साड़ी पहनती थी.  चेतना जब तक घर में रहे तब तक तो किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन 1 सप्ताह बाद जब चेतना सुबह उठकर ऑफिस जाने लगी। चेतना की सास ने कहा यह किस ड्रेस में ऑफिस जा रही हो। साड़ी पहनकर क्या कोई ऑफिस जाता है तुम हमारे परिवार की नाक कटवा दोगी क्या ?

यह बात चेतना को बहुत बुरा लगा. क्योंकि चेतना के परिवार में यह रिवाज था कि शादी के 1 महीने तक शादी की चूड़ियां भी नहीं खोलना होता है और यहां तो ससुराल में कह रहे हैं कि सब कुछ उतार कर जींस टॉप पहनकर ऑफिस जाओ।  चेतना ने शादी से पहले भी कभी जींस टॉप नहीं पहना था वह तो हमेशा सलवार सूट पहनती थी इसलिए वह अपने आप को जींस टॉप में अनकंफरटेबल महसूस करती थी.

चेतना की ननद भी बोल  पड़ी हां भाभी मम्मी ठीक ही तो कह रही है ऐसे कोई ऑफिस जाता है सब लोग आपके मजाक उड़ाएंगे।

चेतना ने कहा मजाक क्यों बनाएंगे मैंने क्या गलत पहना है तुमको पता भी है भारतीय नारी का साड़ी एक प्रमुख वस्त्र होता है।  स्त्री जितनी सुंदर साड़ी में लगती है उतना और दूसरे कपड़ों में नहीं और फिर इससे क्या फर्क पड़ता है कि कोई क्या पहना हुआ है इंसान विचारों से आधुनिक होता है ना कि कपड़ों से.

चेतना ने किसी की नहीं सुनी और वह साड़ी में ही ऑफिस चली गई.



चेतना के ऑफिस जाने के बाद ही ससुराल में खुसुर फुसुर  होना शुरू कर दिया। दोनों जेठानी और ननद आपस में बात करने लगे कि हम तो शुरु से ही कह  रहे थे ऐसे गंवार से शादी ना करें ऐसी लड़की तो हमारे घर की बदनामी करके ही रखेगी। सोसाइटी में हमारा कितना नाम है पापा जी को सब कितना जानते हैं सब लोग हमारे परिवार को कितना मोटर कहते हैं और यह लड़की हमारी नाक कटवा कर रहेगी।

यहां बात चेतना के पति  मनोज ने सुन लिया और उसने कहा अभी आप सब लोग अपने आप को मॉडर्न कहते हैं लेकिन आप लोग मॉडर्न नहीं बल्कि पुरातन पंथी हो आधुनिक सिर्फ कपड़ों से नहीं होते हैं. विचारों से होते हैं जब चेतना के पापा  शादी करने के लिए आए तो सबको दहेज चाहिए था। जो अपने आप को आधुनिक आदमी कहते हैं वह दहेज नहीं लेते हैं बल्कि हर चीज में आधुनिक होते हैं लेकिन आपको दहेज भी चाहिए।

 पहले अपने आप को आधुनिक बनाइए तब  किसी और की बुराई कीजिये। अभी आप लोग चेतना के बारे में जानते ही क्या हो चेतना अपने तनख्वाह की हर महीने ₹5000 सरकारी हॉस्पिटल में जाकर बेसहारा लोगों को जिनके पास दवाई खरीदने के पैसे नहीं है उनको दवाई खरीदने मे मदद करती  है ऐसे बहुत सारे सामाजिक कार्य करती है लेकिन आप लोगों ने कभी इस बारे में सोचा भी हैं.

याद रखिए जब आप एक उंगली किसी और पर उठाते हैं कि  आपकी चार उंगली आपके तरफ ही होती है.

थोड़ी देर बाद ही मनोज की मां ने कहा वह बेटा हमने तुम्हें 30 साल तक के पोस पाल कर  बड़ा किया उसका कुछ नहीं। चेतना 7 दिन में ही तुमको अपने जोरू का गुलाम बना लिया सही है बेटा सही है.  हमें नहीं पता था कि तुम इतना जल्दी उसके गुलाम हो जाओगे।

मनोज ने कहा मां इसमें गुलाम होने वाली कोई बात नहीं है बल्कि सच को सच कहना और झूठ को झूठ कहना यह मेरी आदत है और मैं हमेशा कहता  रहूंगा। तुम्हें पता भी है चेतना के पापा पर शादी के लिए कितने कर्जे हो गए हैं लेकिन मैंने तब कुछ नहीं बोला चलो कैसे भी करके शादी हो जाए।



चेतना जब शाम को ऑफिस से  घर आई तो सबके लिए गिफ्ट लेकर आई थी क्योंकि अभी तक वह घर से बाहर नहीं निकली थी इसलिए वह किसी के लिए गिफ्ट नहीं खरीद पाई थी.

अगले दिन चेतना जींस टॉप पहन कर ऑफिस जाने लगी और अपने सासू मां से कहा सासु मां आप नाराज मत हो अगर आपको यह पसंद है कि मैं जींस टॉप पहन कर ही ऑफिस जाऊं तो मैं यही करूंगी।  लेकिन मेरी एक शर्त है आप सब लोगों को भी साड़ी पहनना पड़ेगा। रोजाना ना सही कभी-कभी ही. चेतना समझ गई थी कि अगर उसे ससुराल में तालमेल बिठाना है तो सबके साथ मिलकर रहना होगा और धीरे-धीरे चेतना ने सब को साड़ी पहनना सिखा दिया था.

चेतना ने जब अपनी जेठानी को  साड़ी पहनाकर आईने के सामने खड़ा किया तो जेठानी ने कहा अरे वाह हम लोग तो वाकई में पहले से ज्यादा सुंदर लगाने  लगे हैं हमें तो पता ही नहीं था कि साड़ी में औरत और खूबसूरत हो लगने लगती थी फिर क्या था अब धीरे-धीरे इस घर में भी साड़ी का प्रचलन हो गया था.

चेतना हर रविवार को अपने घर के आगे सुबह सुबह गरीबों को खाना बांटती  थी और वह खाना अपनी ननद सास और दोनों जेठानियों के साथ मिलकर बनाती थी और सब लोग मिलकर खाना बांटते थे उसके बाद जो उन लोगों को सुकून मिलता था वही जानते थे.

धीरे-धीरे चेतना को जितना लोग नापसंद करते थे वह अब  सबकी हीरो बन गई थी अब घर में कुछ भी होता था तो बिना चेतना के सलाह लिए नहीं होता था.  चेतना ने सबको सिखा दिया था कि सही में आधुनिक होना क्या होता है. अब इस बात को सारे घर वाले समझ चुके थे कि हमें अपने विचारों से आधुनिक होना होता है ना कि कपड़ों से.

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