शिवचरण बाबू अपने पोते के जन्मदिन के उपलक्ष्य में अपने घर में पार्टी दे रहें थें।अपने नाते-रिश्तेदारों के साथ-साथ उन्होंने अपने सभी मित्रों को भी आमंत्रित किया था।मित्र आश्चर्यचकित थें कि हमेशा कम खर्च करने वाला ये कंजूस आज पार्टी कैसे दे रहा है।
केक कट जाने के बाद शिवचरण बाबू के मित्र जब भोजन-स्थल पर पहुँचे तो देखा कि आधी से अधिक कुर्सियों पर तो गरीब-भिखारी और अपंग लोग बैठे हुए हैं।उन्होंने अपने नाक-भौं सिकोड़ लिए और एक किनारे होकर आपस में खुसुर-फुसुर करने लगे।कुछ कहने लगे कि शिवचरण ने भिखमंगों के साथ हमें बुलाकर हमारा अपमान किया है तो कुछ का कहना था कि बुढ़ापे में शिवचरण सठिया गए हैं जो इन भूखों-नंगों को पार्टी दे रहे हैं।एक ने तो चिढ़कर यहाँ तक कह दिया, “शिवचरण मरेगा तो क्या सारी दौलत अपनी छाती पर लादकर ले जाएगा।”
पास खड़ा एक बाईस वर्षीय लड़का जो सब कुछ सुन रहा था, बोला, “नहीं ले जाएँगे तभी तो ….।” “क्या मतलब? ” सभी ने एक स्वर में पूछा तो उसने जवाब दिया, ” कोई आठ बरस पहले की बात है, एक सुबह शिवचरण बाबू सुबह की सैर से लौट रहें थें तो उन्होंने एक बच्चे को कूड़े के ढ़ेर में कुछ बीनते देखा।पूछने पर बच्चे ने बताया कि वह दो दिनों से भूखा है।पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया है,शायद इसमें कुछ मिल जाए।बच्चे की बात सुनकर उनका हृदय रो उठा, वे उस बच्चे को घर ले आये और नहला-धुलाकर उसे भरपेट खाना खिलाया जब उसे उसके घर छोड़ने गए तो वहाँ उन्होंने खाने के लिये बच्चों को आपस में लड़ते देखा, तभी उन्होंने ‘भूखों को भोजन कराना ‘ अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।अपने जीवन के सुखों को त्यागकर उन्होंने दूसरों के दुखों को दूर करना ही अपना सुख मान लिया।” थोड़ा रुककर वह भोजन-स्थल की ओर संकेत करते हुए कहा, “और हाँ,आज उनके पोते का जन्मदिन नहीं है।इनमें से किसी एक का केक खाने का मन हुआ तो उन्होंने अपने पोते के नाम पर पार्टी दे दिया।”
सुनकर सभी मित्र चकित रह गए।उन्होंने शिवचरण बाबू की ओर देखा जो अपने अज़ीज मेहमानों को प्रेमपूर्वक भोजन परोस रहें थें।एक मित्र ने उस लड़के से पूछा, “अच्छा, ये तो बताओ कि तुम कौन हो? तुम्हें ये सारी बातें कैसे मालूम है?” वह बोला, “कचरे में से खाना ढूंढने वाला वह बच्चा मैं ही हूँ।मैं आप लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने आया था।” “ओह, आप चलिए, हम अभी आते हैं।” एक मित्र ने कहा तो वह ” जी अच्छा!” कहकर शिवचरण बाबू की मदद करने के लिए चला गया।
शिवचरण बाबू के मित्र जो कुछ देर पहले उन्हें कंजूस कहकर हँसी उड़ा रहें थें,अब वे उनके सद्कर्म की प्रशंसा करने लगे।
——– विभा गुप्ता