—- सुबह सुबह गेट का ताला खोल कर मैं वहीं भोर का मनमोहक नजारा देखने में खोई हुई थी, तभी देखती हूँ कि छोटे छोटे बच्चे नादान,मासूम लगभग 5-7वर्ष की उम्र के दौडते हुए तेजी से आए और सड़क के किनारे पर बने कूड़ेदान में सब के सब घुस गये ।
सभी बच्चे मैले कुचैले कपड़े पहने हुए थे, किसी के पैर में चप्पल था कोई खाली पैर ही थे वे सभी कचड़े के ढेर को इस तरह उलट पलट करनें लगे जैसे इनका कुछ महत्वपूर्ण समान इस कूड़ेदान में खो गलती से फेंक दिया गया हो ।
देखकर मुझे आश्चर्य हुआ, आखिर ये बच्चे क्यों घुसे होंगे इसमें।
तभी एक बच्चे के हांथ में कांच की एक बाॅटल मिल गई,पा कर वह बच्चा इतना खुश हुआ जैसे उसे अनमोल हीरा मिल गया हो । वह उसे अपने पहने हुए कपड़े में रगड़ रगड़ कर साफ करने लगा ।
भोर का यह दृश्य मेरी आत्मा को कचोट गया मुझे समझते अब देर न लगी कि रात को काॅलोनी के रईस कहे जाने वाले लोग शराब पीकर बाॅटल फेंके होंगे जिससे ये मासूम बच्चे ढूंढ ढूंढ कर निकाल रहे हैं, और जैसा कि चलन है कि कांच की बाॅटल के बदले ब्रेड वाले जो सुबह सुबह बेचने के लिए घुमते रहते हैं; वो इन बाॅटलों के बदले ब्रेड का पैकेट देते हैं।
और जैसे ही एक ब्रेड वाले आये उन बच्चों ने उसे रोक लिया ; ब्रेड वाला सब को बाॅटल के बदले ब्रेड का पैकेट देकर आगे बढ गया।
स्थिति को देखकर मैें दिल से दुखी हो गई।
जिन बच्चों के कंधे पर इस वक्त स्कूल बैग होना चाहिए था वो पेट की भूख मिटाने के लिए इतना जोखिम कार्य कर रहे हैं।
सरकार तो गरीबी उन्मूलन के अनेक योजनाएं निकालते रहती है फिर भी गरीबी जड़ से क्यों नहीं खतम हो रही है ???
कारण है भ्रष्टाचार सरकार से आम जनता के बीच काम करने वाले लोग जो अपनी जेब भर लेते हैं और इन गरीबों की नहीं सोंचते। ” साहित्य समाज का दर्पण होता है ” और ये चेहरा है समाज का। और समाज से ही देश बनता है ।तो आओ ये संकल्प लेते हैं कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाने में सहयोगी बनें। और निहायत ही गरीब बच्चों के कंधों पर स्कूल बैग तक का सफर पूरा करें।
-गोमती सिंह
छत्तीसगढ़
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित रचना आप सभी के समक्ष