कलंक की आँच – अर्चना कोहली ‘अर्चि’ : Moral Stories in Hindi

“इस बीना की यह आदत बहुत ही खराब है। जब मन किया घर बैठ जाती है। कभी फोन कर देती है तो कभी फोन स्विच ऑफ करके चुपचाप बैठ जाती है एकाध महीने को छोड़ दें तो हर महीने सात-आठ छुट्टी तो पक्का होती ही हैं। काम तो बहुत अच्छा करती है, इसलिए इतना सहन करती हूँ नहीं तो निकाल बाहर करती। तीन दिन की छुट्टी लेकर गई थी, हरिद्वार जाना है, सात दिन हो गए।” शुभ्रा ने मन ही मन गुस्से से बुदबुदाते हुए कहा।

“किस पर इतना गुस्सा कर रही हो?” अखबार से नजरें उठाते हुए महेश ने शुभ्रा से पूछा।

“जी वही कामवाली बीना और कौन। जब देखो घर बैठ जाती है। मैं तो तंग आ गई।”

“ओह! मैं तो समझा पता नहीं आज किस बात पर मुझपर ये फूल बरसाए जा रहे हैं। ठंड कर यार।” 

आपको घर का सारा काम करना पड़े तो पता चले। आप तो सुबह बैठ जाते हैं अखबार लेकर। आज आपकी छुट्टी है तो काम में कुछ तो हाथ बँटा दीजिए। मेरी तो कमर टूट गई काम करते-करते।” शुभ्रा ने कहा।

“ये क्या छुट्टी बीना लेती है पर मुसीबत मेरी आती है। अरे भई। सुबह-सुबह रोमांस की भी कुछ बात कर लिया करो। कहा ही था कि तभी शुभ्रा के मोबाइल की घंटी बजती है।” बीना का फोन था। 

“मेमसाहब मैं बीना। ” धीरे-से एक आवाज़ आई।

कहाँ है रे तू? इतनी धीरे क्यों बोल रही है, क्या तबियत खराब है। बहुत परेशान करती है। फोन तो कर दिया कर।” एक ही साँस में शुभ्रा ने कहा।

“मेमसाब परेशान तो मैं हो गई हूँ। छोटे बेटे-बहू के बच्चों को सँभालते-सँभालते।”

“क्यों तेरी बहू कहाँ है। मायके गई है क्या।”

 “वो तो माथे पर कलंक लगाकर किसी के साथ भाग गई। पता नहीं कहाँ गुलछर्रे उड़ा रही होगी। नाम कल्याणी पर काम ऐसा ।‌ मैं कुछ दिन काम पर नहीं आ पाऊँगी, इसलिए फोन किया।” बीना ने कहा। 

“क्या! कब हुआ ये और हरिद्वार से कब वापस आई?”

“मेमसाब। हरिद्वार तो मैं जा ही कहाँ पाई, जिस दिन जाना था, उसी दिन तो कांड हुआ, अभी और ज्यादा नहीं बता सकती। घर पर सारे लोग हैं। पड़ोसी भी इकट्ठे हैं। इस कल्याणी के कारण तो मुँह छिपाकर रहना पड़ता है। कहीं निकल भी नहीं सकती बच्चे सँभल जाएँ तो काम पर आती हूँ। फिर बताती हूँ सारी राम कहानी।”

ठीक है बीना। अपना ध्यान रखना कहकर मैंने फोन रख दिया और सोच में पड़ गई, इसने भी क्या किस्मत पाई है। पति के गुजरने के बाद इसे एक पल का भी चैन नहीं मिला। पति ने तो इसे रानी बनाकर रखा था। उसके जाते ही सबकी आँखों की किरकिरी बन गई। कभी बड़ी बहू और बेटा तो कभी छोटा बेटा। अब छोटी बहू। पता नहीं कब इसे विश्राम मिलेगा। तभी पतिदेव की आवाज़ से तंद्रा टूटी,कब आ रही है तेरी बीना।”

“पता नहीं कब आएगी। शायद हफ्ते बाद। उसके घर में कोई मुसीबत आ गई है।” 

“उसका तो चलता ही रहता है। पता नहीं कौन- सा जादू करती है, जो उसकी बातों में आ जाती हो।”

“उससे मेरे दिल का रिश्ता है। आखिर बीस साल हो गए काम करते। अब तो मुझे घर की सदस्या ही लगती है। आप नहीं समझोगे।”

“ठीक है भई। मैं तो नहाने जा रहा हूँ। फिर नाश्ता ले आता हूँ। तुम्हें भी कुछ आराम मिल जाएगा।”

“जी ठीक है। वैसे भी बीना की बात सुनकर आज नाश्ता बनाने का मन नहीं हैं।”

“तुम भी न । बहुत जल्दी भावुक हो जाती हो। अच्छा नहाकर आता हूंँ। साथ ही बाहर चलते हैं। नाश्ता बाहर ही कर लेंगे।”

“नहीं जी । घर पर बहुत काम फैला हुआ है। फिर कभी।”

 

इस बात को चार दिन गुजर गए। चार दिन बाद बाद सुबह दस बजे के करीब घर के बाहर एक ई-रिक्शा रुका। महेश ऑफिस जा चुके थे। देखा तो बीना थी। शुभ्रा ने उसे चाय दी। फिर उससे कहा, अब बता, क्या हुआ? 

बीना ने बैठते हुए कहा, ” मेमसाहब आपसे क्या छिपा है। जिस लड़की ने भागकर शादी की हो उसका क्या चरित्र। बचपन से ही घाट-घाट का पानी पिया हुआ है उसने। पहले भी दो बार किसी के साथ पकड़ चुके हैं। माफ कर दिया था। अब तो हद हो गई। उसकी यही बात गलत है। बाकी उसमें कोई कमी नहीं। कभी मिल जाए तो उस चुडैल को नहीं छोडूँगी।”

“बीना कितनी बार कहा है, मेरे घर ऐसी बातें नहीं चलेंगी।” शुभ्रा ने गुस्से से कहा।

“गलती हो गई मेमसाब। पर क्या करूंँ? मेरा घर तो उसने बरबाद कर दिया। बच्चे तो बिलकुल मुरझा गए हैं। पूरा घर भी खाली करके गई है। और तो और पोती के लिए जो सोने की बालियांँ मैंने बनवाई थीं, वो भी ले गई। कहाँ-कहाँ नहीं खोजा हमने। फोन भी बंद आ रहा है।”

ओह! पुलिस में शिकायत की या नहीं।”

“जी मेमसाब। कल्याणी के घर में भी खबर की। वो भी उसकी करनी पर बहुत शर्मिंदा है। कह रहे थे, उसे घर नहीं आने देंगे। उन्होंने भी बहुत खोजा। दो घर बरबाद कर दिए इस कल्याणी ने। इसके कारण घर से निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चों से भी लोग बातें करते हैं, तेरी माँ भाग गई। अब बताओ क्या बच्चों से इस तरह की बातें करना सही है।”

“सही तो नहीं है। तू समझा लोगों को बच्चों से इस तरह की बातें न करें।” बच्चों पर गलत असर पड़ता है।”

“लोग कहाँ समझते हैं। स्कूल में भी बताया। कहीं बच्चों को न ले जाए। जिसका चरित्र नहीं, उसके साथ बच्चों का क्या भविष्य।”

“सही किया। वैसे क्या बहुत सुंदर है वो आदमी।”

अरे कहांँ मेरे बेटे से उन्नीस भी नहीं है। शराबी भी है। जहाँ मैं रहती हूंँ, उससे तीन गली छोड़कर रहता है। पता किया है वह गुर्जर है, इसलिए कुछ नहीं कर पा रहे। काटकर फेंक देगा। बस बहुत अमीर है। उसकी बीवी भी बीमारी से गुजर चुकी है।”

तेरी बड़ी बहू कुछ मदद करती है या नहीं।”

अरे कहांँ। जो अपने बच्चों का नहीं करती, वो क्या करेगी! फिर ये बच्चे तो देवरानी के हैं। देवरानी-जेठानी में तो वैसे भी नहीं बनती थी। हाँ बड़ा बेटा और उसकी छोटी बेटी बच्चों का ध्यान बहू से छिप-छिपकर रखते हैं।”

“आगे क्या सोचा है बीना।”

“अभी तो कुछ नहीं। बस पोती की चिंता है। अभी पाँच साल की तो है। हमारे माथे पर कल्याणी ने जो कलंक लगाया है उसकी आग से हम झुलस रहे हैं। क्या कमी थी इस घर में। कहकर उठ खड़ी हुई, मेमसाब काम कर लूँ। अब बच्चों की भी ज़िम्मेदारी मुझ पर है। इस बुढ़ापे में यह देखना और बाकी था। देखना मेमसाब आम की गुठली की तरह वह उसे चूसकर छोड़ देगा।” भरे कंठ से बीना बोली।

” चिंता न कर, नहीं तो तेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा।” शुभ्रा ने सहानुभूति से कहा।

कोई दो महीने बाद एक दिन बीना खुशी-खुशी आई। बताया, मेमसाहब जो मुझे लग रहा था, वही हुआ। वो न घर की रही न घाट की। जिसके साथ वो भागी थी, वो तो घर वापस आ गया। बहू का पता नहीं कहाँ है। जहाँ काम करती थी, पैसे लेने भी नहीं गई। मालकिन बनना चाहती थी, अब तो भिखारी बन गई। बच्चे भी अब उसके साथ नहीं रहना चाहते। एक बार पूछा था, अगर तुम्हारी मम्मी आ गई तो उनके साथ रहोगे तो मना कर दिया।”

“तेरे पोता-पोती तो बहुत समझदार निकले।”

वो तो हैं, पर पोते ने कुछ तो देखा है, तभी तो उसका नाम लेते ही भड़क उठता है। वैसे भी 

कोई माँ ऐसी होती है क्या! आखिर उसके किए कलंक की आँच उस तक भी पहुँच गई। मुझे उसके लिए दुख तो है, पर खुद ही उसने यह जिंदगी चुनी थी।”

“क्या होगा बच्चों का अब?” शुभ्रा ने पूछा।

“मैं हूँ न। कह बीना काम करने उठ खड़ी हुई। उस समय एक आत्मविश्वास की झलक उसके चेहरे पर नजर आ रही थी।

 

अर्चना कोहली ‘अर्चि’ ( नोएडा)

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