Moral Stories in Hindi
मेरे जीवन की वह रात “काली रात “बन गई थी मेरे लिए ।स्मृति के पन्ने बिखरने लगे थे।क्या क्या याद करूँ? उसदिन रात से ही विनय की तबियत बहुत खराब हो गई थी ।रात भर सो नहीं पा रहे थे ।बेचैनी और उल्टियाँ हो रही थी ।मैंने दिलासा दिया “अस्पताल चलते हैं,सब ठीक हो जाएगा “। सुबह के चार बजे उनको लेकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था ।बहुत बेचैन थे वह।फिर भैया भाभी को फोन
लगाया ” भैया,इनकी तबियत बहुत खराब हो गई है ।अस्पताल ले जाया गया है ।”तुरंत आ रहा हूँ “कहकर भैया ने फोन रख दिया ।मेरे पास भी बहुत समय कहाँ था बात करने के लिए ।इमरजेन्सी वार्ड में दौड़ धूप होने लगी थी।नर्स डाक्टर दौड़ रहे थे ।मेरे आँसू थमते ही न थे।थोड़ी देर बाद ही भैया
भाभी आ गये माँ को लेकर ।विनय की बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।मैंने देखा उनके आखों से दिखना बंद हो गया ।कयोंकि वे बार बार अपना चश्मा मांग रहे थे ।हमने चश्मा लाकर दिया तो भी उनका हाथ लहराते रहा जैसे वह कुछ देख नहीं पा रहे हों ।न जाने कितने सूई , कितने बोतल स्लाइन लगता
रहा ।पर कुछ फायदा नहीं हो रहा था ।विनय के घर के भी सारे लोग,उनके भाई,माँ बहन सभी दौड़ रहे थे ।माँ तो एकदम गुमसुम सी हो गई थी ।फिर उनके लिए केबिन मिल गया ।सभी ने राहत की सांस ली ।अब अच्छी तरह सभी लोग इन्तजाम कर सकते हैं ।तय हुआ कि छोटा सा गैस का चूल्हा ले
आते हैं ताकि मरीज को डाक्टर के हिसाब से कुछ बना कर खिला सकते हैं ।काफी बड़ा रूम मिला था ।विनय की दीदी ने सबको कहा कि थोड़ा बहुत रोटी सबलोग खा लें तभी तो मरीज की देख भाल ठीक से कर पायेंगे ।और दीदी ने रोटी के बीच सब्जी रखकर सबको थमा दिया था ।फिर भैयाभाभी
लौट गये ।माँ को छोड़ कर ।माँ मेरे पास रह गई थी ।सबने राहत की सांस ली ।अब सबकुछ ठीक हो जाएगा ।मैंने रोटी का पहला कौर तोड़ा ही था कि बेटा चिल्लाने लगा ” मम्मी,पापा को देखो”सबलोग दौड़ पड़े थे बोतल का पानी रुका हुआ था ।विनय की आखे खुली हुई सी किसी की चाह में ।लेकिन
सबकुछ समाप्त हो चुका था ।दीदी ने उनकी पलकों को बंद कर दिया ।रात गहराने लगी थी ।सबकुछ निश्चिन्त करके भैया भाभी घर लौट गये कि कल सुबह आठ बजे तक आता हूँ ।लेकिन मेरे लिए तो वह रात “काली रात “मे तब्दील हो गई थी ।मेरा सबकुछ लुट गया था ।मुझे होश ही कहां था ।मैं तो विनय के उपर गिर पड़ी थी।तुरंत खबर पाते ही मेरे भाई भाभी आधे रास्ते से लौटे ।तुरंत दौड़
धूप कर सारी कार्रवाई पूरी करके उन्हे घर ले आये सबलोग ।ईश्वर ने कैसी सजा दी थी।आखों के आगे अंधेरा छा गया “अब अकेली क्या करें? कैसे बेटे की परवरिश,शिक्षा पूरी करें? कौन सहारा देगा? तमाम सवाल मुझे घेर रहे थे।मायके में पिता नहीं थे।माँ भी क्या कर सकती थी ।रूपये पैसे तो दूर की बात थी भाई भाभी का स्नेहिल हाथ ही बहुत था मेरे लिए ।विनय को ले जाया गया ।किसी ने घर में मेरे
माथे पर एक लोटा पानी डाल दिया जिससे मेरा सिन्दूर धुल कर माथे पर बिखर गया ।मै अकेली हो गई थी ।पन्द्रह दिन तक माँ मेरे पास रूक गई थी ।फिर वह भी अपने घर चली गई ।अब जीवन रूपी नौका में सवार होकर मै माँ बेटा चल पड़े थे ।सबकुछ समाप्त हो गया ।मैंने स्कूल में नौकरी ज्वाइन
कर ली थी ।बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए ।लेकिन उतने से काम नहीं चलता तो घर में पन्द्रह बच्चों का टयूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।माँ मेरी हिम्मत बढ़ाते रहती ।”बेटा,किसी के जाने के बाद भी जीवन नहीं रुकता है,हिम्मत से आगे बढ़ती रहो।”मैंने अपने को भुला दिया ।कहने को सारे परिवार थे।लेकिन जीवन के जरूरत के लिए मुश्किल था।कहानी और पीछे चली गई थी ।शादी होकर आई तो
दहेज कम देने का ताना सुनती रही ।माँ ने चाहे दहेज कम दिया था लेकिन संस्कार पुरे दिया था ।”बेटा, बड़ो का आदर सम्मान करना ।उनकी छोटी छोटी बातें दिल से न लगाना ।कभी जवाब नहीं देना “और माँ की इन बातों और नसीहतों को मैंने गांठ बांध ली थी ।कभी आखों में आंसू आ जाते ।
पति से कहती तो वह भी नसीहतों का पुलिंदा थमा देते ” जैसा परिवार के लोग चाहे वैसा ही रहो” फिर मैंने अपने वजूद को भुला दिया ।परिवार के लिए समर्पित हो गई ।और अब?अपने बेटे के लिए जीना था। समय भागता रहा ।दिन गुजरने लगा ।बेटा बड़ा हो गया ।शिक्षा पूरी हुई ।अब शादी की चिंता हुई
।घर बसा दूं तो चैन की नींद सो जाउंगी ।एक अच्छी कम्पनी में लग गया था बेटा ।लड़की के परिवार आने लग गए ।एक तरफ बेटे की चिंता तो थी।लेकिन विनय भी खयालातों में आ जाते ।दोनों किडनी खराब हो गई थी ।पहले तो बताया ही नहीं ।फिर परेशानी बढ़ती गई तो डाक्टर से मिलकर सलाह लिया ।अकेले ही जाते और कहते “अरे वैसा कुछ खास बात नहीं है मैं मै भी मै भी
।डाक्टर तो ऐसे ही कुछ कह देता है ” लेकिन उनकी हालत दिन पर दिन खराब हो रही थी ।डाक्टर ने सलाह दी “डायलिसिस करना पड़ेगा “हाथ खाली था।घर से मदद का सवाल ही नहीं था।लाचार और बेबस विनय ने अपने को हालात पर छोड़ दिया ।मैं भी क्या कर सकती थी ।दो साल ऐसे ही बीत गया
था ।विनय को लगने लगा था की अब समय आ गया है जाने का ।वह हर जगह मुझे ले जाते ।बैंक , एल आइ सी आफिस सब जगह ।सारी जानकारी बताते “अब तुम को अकेले ही सब संभाल लेना है ।बेटे की अच्छी परवरिश करना है”।मै सोचती जीवन में क्या पाया,क्या खोया? पाया तो कुछ नहीं खोया ही अधिक है “सबदिन परिवार में दबती रही ।कभी दहेज,कभी रूप रंग को लेकर ।”माँ के यहाँ बहुत
होशियार,ससुराल में बेवकूफ बन गई जिसे माँ ने कुछ सिखाया ही नहीं ।कुछ दिया ही नहीं ।रंग रूप भी अच्छा ही था।फिर यहाँ बदसूरत कैसे हो गई? कुछ समझ में नहीं आता ।और उसदिन का सूरज मेरे लिए डूब गया था ।विधवा का लेबल लग गया मुझपर ।कितना तकलीफ दायक होता है यह लेबल
।इसे मैं ही समझ रही थी ।अब बेटे की शादी करनी चाहिए ।मै एक अच्छी बहू के सपने संजोये खुश होने की कोशिश करती रही ।फिर एक समय आया कि बहू भी आ गयी ।बेटा बहू अपनी गृहस्थी में मगन हो गये ।अपनी दुनिया में व्यस्त ।और मेरे लिए कभी न खत्म होने वाली काली रात सदा के लिए मेरी मित्र बन गई ।जीना यहाँ,मरना यहाँ,इसके सिवा जाना कहाँ—-?
उमा वर्मा ।राँची ।झारखंड ।स्वरचित ।मौलिक ।
#काली रात