Moral Stories in Hindi
6 जून 1991 की वो काली रात तीन साढ़े तीन दशक बाद भी मुझे खूब अच्छे से याद है । एस के मेडिकल हॉस्पिटल का आई सी यू वार्ड रात के साढ़े आठ बजे होंगे पापा आक्सीजन सिलिंडर से सांस ले रहे थें । स्लाइन की बोतल टंगी हुई थी । मैं बाबू और भाभी बगल वाले बेड पर बैठें हुए थें । कहीं दूर से धीमे-धीमे गाने की आवाज़ आ रही थी गौर करके गीत के बोल सुनना चाही तो बंद हो गई बिजली गुल हो गई । कुछ देर बाद एक जोरदार धमाका हुआ और स्लाइन की बोतल टूट कर गिरी
…गिर कर नहीं टूटी यही हैरानी की बात हुई कि हमारे आंखों के सामने स्टैंड पर लटकी हुई बोतल दो टुकड़ों में बंट कर जमीन पर गिरी और तब जोरदार धमाका हुआ तभी एक और हैरानी की बात हुई पापा के बेड से एक जुगनू जैसी रौशनी निकल कर खिड़की से बाहर जाने लगी भाभी ने मुंह से
ओफ्फ… शब्द निकले तभी दौड़ते भागते हुए डॉ , नर्स और कम्पाउन्डर सब आ गए । टार्च जलाकर पापा के पास खड़े होकर चारों तरफ से घेर लिया सभी ने । अफ़रा-तफ़री मच गई । जेनरेटर स्टार्ट करने के लिए डॉ चिल्ला रहें थें मगर स्टार्ट नहीं हो रहा था शायद कोई खराबी आ गई थी । कुछ देर बाद बिजली आई तब तक पापा जा चुके थें । डॉक्टरों ने देखकर बताया कि फेमिली को घर भेज
दीजिए कुछ बाकी कागज़ी कारवाई के बाद इन्हें भेजने का इंतजाम कर दिया जाएगा । जीजाजी ने भाभी से कहा कि दोनों बहनों के लेकर घर जाइए हम लोग मामा जी को पटना लेकर जा रहे हैं । मैं इतना तो समझ ही गई थी कि हमसे झूठ बोला जा रहा है । फिर भी मैं पटना जाने के ज़िद में बैठ गई
फिर डॉक्टर ने आकर कहा कि तुम्हारे पापा को पटना भेजा जा रहा है एयर एंबुलेंस से उसमें दो ही सीट है इसलिए तुम लोग अभी घर जाओ बाद में कार से जाना । तभी एक टैक्सी आई और जबरदस्ती हमें कोंच कर बैठा दिया गया । हम वहां से घर आ गए । भाभी ने कहा कि पानी पीकर लेट जाओ दोनों बहन कल सुबह चलेंगे । मेरा मन बेचैन था , समझ में नहीं आ रहा था कि क्या सच है और क्या झूठ …?
ख़ैर… पानी पी-पीकर मैंने आंखें मूंद ली और बीते हुए लम्हों को रिवाइन करके सोचने लगी … । याद आया कि पहले पापा की सांसें तेज़ होने लगी थी मैं उनके पास जाकर खड़ी हुई तो लगा कि वो बेफिक्र होकर सो रहे हैं तो वापस दूसरे बेड पर आ गई जहां भाभी और बाबू बैठी थी । तभी दूर से एक गाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी कुछ जानी पहचानी सी जिसे ध्यान से सुनने की कोशिश की तो वो बंद हो
गई । बिजली कट गई और बोतल कड़कने की आवाज आई और फिर गिर कर बिखरने की झ..न….झन … उसके बाद पापा की तरफ़ देखा तो एक जुगनू जैसा कुछ उड़ा और खिड़की से पार करता हुआ आसमान की ओर चला गया … भाभी ने देखकर कहा ओफ्फ ……. कुछ हलचल मची और एक साथ दस बारह लोग दौड़ते भागते अंदर दाखिल हुए ……. कुछ शोर शराबा डांटना चीखना
चिल्लाना हुआ उसके बाद बिजली आई …मैंने देखा सब के सब ख़ामोश थें । गिनती की तेरह लोग थे मेरे पर्स में तीस पैंतीस हज़ार रुपए थें । उस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से जान-पहचान थी । वहां पर डॉक्टर पी सी वर्मा मेरे भैया थें । एयर एंबुलेंस आ चुका था मगर …….. वो काली रात मेरे पापा को लील चुकी थी … हां मेरे पापा नहीं बचाएं जा सकें । हम अनाथ हो चुके हैं । तीन वर्ष पहले मां का
देहांत और अब पापा भी अलविदा कह गए ….. । मैंने थोड़ा और पीछे रिवाइन किया जब सुबह में हम घर से हॉस्पिटल के लिए निकलें थें । मामू जान की सफ़ेद एम्बेसडर कार जिसे दाक्षी भैया चला रहे थें । स्टार्ट करने के बाद मामू जान ( यह मामू जान एक ऐसा शख्स जिनकी शक्ल मेरे खोए हुए मामा से मिलती जुलती थी इसलिए इन्हें हम स्नेहवश मामू जान कहते थें ये हमारी बिरादरी के हमारे घर के ठीक सामने वाले घर में रहते थें ) आएं और नोटों की गड्डी थमाते हुए कहा कि अभी इतना लेकर चलों
बाकी मैं इंतज़ाम करके आ रहा हूं । मैंने एक बार सिर उठाकर उन्हें देखा कि इसकी ज़रूरत नहीं है … लेकिन उन्होंने कहा अभी रखो कल वापस कर देना । मैंने रख लिया और कार चल पड़ी । पापा को लिटाकर रखा था हमने । मेरे गोद में पापा का सिर था और पांव की तरफ़ बाबू बैठी थी । उसकी सिसकियां बंध गई थी । शायद उसकी आंखों से बहते हुए आंसूओं की वजह से पापा को होश आ गया था । पापा ने एक नज़र हम सबको देखा फिर उन्होंने मेरा हाथ लेकर बोला कि मैं जानता हूं तुम बहुत
बहादुर हो तुम संभाल लोगी खुद को लेकिन बाबू बहुत कमजोर है मां के जाने से आधी हो गई थी और आज तो टूट ही जाएगी । तुम वादा करो कि उसे संभालोगी । बोलो बोलो तुम संभालोगी न ???? मैंने कहा था जी पापा मैं सबको संभाल लूंगी आप बिल्कुल चिंता नहीं कीजिए । पापा ने तभी आंखें मूंद ली और उनके आंखों से गर्म गर्म दो बूंद टपके थें जिसे मैंने महसूस किया और निश्चिंत होकर बाहर देखने लगी । कुछ देर बाद हम एस के मेडिकल कॉलेज पहुंच गए । डॉ पी सी वर्मा का नाम बताया उसके बाद बिना किसी औपचारिकता के एडमिट कर लिया गया । आई सी यू में बेड मिल गया
आक्सीजन लगाया गया दो इंजेक्शन और तुरंत स्लाइन की दो बोतलें लाकर रखी गई जिसमें से एक स्टैंड पर टांग कर चढ़ाना शुरू कर दिया गया और हम तीनों को दूसरे बेड पर बैठने के लिए कहा गया । मुझे खास हिदायत दी गई कि मैं पापा को तंग नहीं करूं क्योंकि उन्हें सख्त आराम की जरूरत है । अब जैसे रील पूरी हुई मुझे वस्तुस्थिति का अंदाजा लग गया । मैं उठकर बाबू के पास गई और
उससे कहा मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी तुम चिंता नहीं करना । मैंने मन को मजबूत कर लिया था और हर विषम परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार करने लगी । पापा की हर छोटी-बड़ी बातों को नोट किया और तैयार हो गई पापा की विदाई के लिए , बाबू को संभालने के लिए और उस काली रात का
मुकाबला करने के लिए पूरी हिम्मत से …। कुछ ही घंटों में पापा का पार्थिव शरीर लाया गया बरामदे में जमीन पर बिस्तर लगाया गया और पापा को सुलाया गया । सारी रात मैं , बाबू और भाभी पापा के पार्थिव शरीर के आस-पास बैठें रहें। 6 जून की वो काली भयानक रात , चलती तेज़ हवाएं , गहरा सन्नाटा और खामोशी …एक एक पल को बहुत गहराई से महसूस किया मैंने ।
आत्मानुभूति ( संस्मरण )
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना । इसे किसी भी मंच पर प्रेषित , प्रकाशित एवं प्रसारित नहीं किया गया है ।
लिटरेरी जनरल सरिता कुमार , फरीदाबाद ,