मैं स्वर्णा अपने माता- पिता की लाडली बेटी थी ….हम तीनों बहुत खुश थे गाँव में सब मेरी ख़ूबसूरती को लेकर बहुत तारीफ़ करते थे । सब कहते थे कि ……. मैं अपनी माँ के समान बला की खूबसूरत हूँ । विधाता को शायद हमारी खुशी मंजूर नहीं थी …….. अचानक माँ की मृत्यु हो गई थी ….. वह हमें बेसहारा छोड़ कर चली गई….. मेरी तो दुनिया उजड़ गई थी …….उस समय मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ रही थी ।
जब भी मैं उदास होती थी…. नीरजा टीचर मुझे अपने पास बिठाकर सांत्वना देती थी । वहाँ स्कूल में नीरजा टीचर के साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी …….. माँ के बाद इतने क़रीब मैं नीरजा टीचर के साथ ही थी ।
रिश्तेदार पिता जी के पीछे पड़ गए थे कि शादी कर लो बिटिया के लिए माँ मिल जाएगी ……. पापा ने एक रात मुझसे कहा बिटिया सब तुम्हारे लिए दूसरी माँ लाने के लिए कह रहे हैं ……. तुम क्या कहती हो ? मैंने कुछ नहीं कहा ……. जब दूसरे दिन मैंने नीरजा टीचर से पिता की बात बताया तो उन्होंने कहा पापा को दूसरी शादी के लिए मना कर दो ……. लेकिन वहाँ हमारी बात को कौन सुनेगा …….पापा पर जोर डाला गया ……..जिसके कारण उन्होंने शादी कर ली और मेरे लिए नई माँ लेकर आ गए ।
मेरी माँ के गुजर जाने के बाद से मैं पापा के पास ही सोती थी ……..जिस दिन से नई माँ आई तब से मुझे अकेले दूसरे कमरे में सोना पड़ा ……. पहली बार काली रात को अकेले झींगुरों की आवाज सुनते हुए सोना मुझे नींद नहीं आ रही थी……..मेरी नींद आँखों से उड़ गई थी ।
मैं दूसरे दिन उठी तो देखा पापा अभी तक सो रहे हैं………जबकि रोज वे मुझसे पहले ही उठ कर मेरे लिए नाश्ता और लंच बॉक्स तैयार करके स्कूल भेजते थे ……. उस दिन पहली बार ऐसा हुआ कि मैं बिना नाश्ता और लंच के स्कूल गई थी ।
नीरजा टीचर ने मेरे चेहरे को देखकर ही पहचान लिया था और अपने लंच बॉक्स से मुझे रोटी खिलाई ।
उन्हें मालूम था कि नई माँ के आते ही पिताजी सौतेले बन जाते हैं । अब यह रोज का सिलसिला हो गया था नई माँ कुछ बनाकर नहीं देती थी और पिता जी नई माँ पर विश्वास करके मेरी ज़िम्मेदारी उन्हें सौंप दी थी ….. नीरजा टीचर ही मेरे लिए अपने घर से लंचबॉक्स लाकर देती थी ।
माँ को मैं कभी पसंद नहीं आई थी…… मेरी सुंदरता ही मेरी दुश्मन बन गई थी । नई माँ पापा के ऑफिस जाने और आने तक मुझे प्यार करती थी बाद में जब भी मुझे देखती कहती थी कि तुम इतनी खूबसूरत क्यों हो ? उनकी आँखों में जलन दिखाई देती थी वह तब और ज़्यादा बढ़ गई जब उसकी दोनों बेटियां कुरूप निकलीं ।
मेरा दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था इसलिए जैसे ही मैंने दसवीं की परीक्षा पास की पापा ग़ुजर गए बस मेरी मुश्किलें बढ़ गईं ।
इस बीच मैं देख रही थी कि पांडे जी आजकल माँ से मिलने के लिए बहुत आ रहे थे …… वे माँ के मुँह बोले भाई हैं ….दोनों कमरे में जाकर अकेले में खुसुर फुसुर करते रहते थे……. एक दिन माँ ने मुझे अच्छे से तैयार किया और कहा तुझे देखने के लिए लड़का आ रहा है …… उसने तुम्हें पसंद कर लिया तो जैसे तैसे मैं तेरी शादी करा दूँगी बाद में तेरी बहनों के बारे में भी सोचना है ।
मुझे लगता था कि मैं चली गई तो माँ अकेली दोनों बहनों के साथ कैसे रहेगी मैं और आगे की पढ़ाई करते हुए नौकरी भी कर लूँगी परंतु उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी ।
कुमार मुझे देखने आया …… उसे देख मैं हैरान रह गई थी …… वह बेहद हैंडसम था उसे देखकर लग रहा था जैसे वह बहुत बड़े घर से है।
मैं खुश हो गई थी कि चलो ससुराल में तो खुश रहूँगी।
यह क्या? माँ और पांडे मामा हमें मंदिर ले गए पंडित जी भी नहीं थे और भगवान के सामने कुमार ने मेरी माँग भरी और वहीं से माँ ने मुझे कुमार के साथ भेज दिया ।
मैं कुमार के साथ उसके घर पहुँची वह दो कमरों का छोटा सा घर था । उसने मुझसे बात नहीं की सिर्फ़ एक बार कहा तुम बहुत खूबसूरत हो बस । शाम को अभी आया कहकर गया और रात को खूब पीकर आया और सो गया फिर वही काली रात और झींगुरों की आवाज़ के साथ मैं अकेली डरते हुए जाग रही थी ।
मैंने देखा कुमार नौकरी नहीं करता है उससे मिलने के लिए बहुत सारी लड़कियाँ आती हैं मेरे पूछने पर उसने मुझे कुछ बताया तो नहीं परंतु पहली बार मुझ पर हाथ उठाया और कहा कि मैंने तुम्हारी माँ से तुम्हें ख़रीदा है इसलिए मुझसे कुछ भी पूछने का कोई हक तुम्हें नहीं है।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर रह गई समझ नहीं पा रही थी कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है ?
मुझे नीरजा टीचर की बातें याद आई उन्होंने हमेशा मुझे बताया कि कैसी भी परिस्थिति तुम्हारे सामने आए तुम डटकर उसका सामना करना डर गई तो लोग तुम्हें और डराएँगे ।
मैंने एक फ़ैसला कर लिया और रात को जब कुमार सो रहा था ……. मैं धीरे से उसकी जेब से कुछ पैसे निकालकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ी ।
कहाँ जाना है ? क्या करना है ? यह सोचा ही नहीं था ।
जैसे ही स्टेशन पहुँची सामने प्लेटफार्म पर एक गाड़ी खड़ी थी……वहीं खड़े एक दंपति को देखकर सोचा इनके साथ ही ट्रेन चढ़ जाती हूँ ………ये लोग जहाँ उतरेंगे वहीं उतर जाऊँगी ………बाद की बाद में सोचूँगी ।
उनको देखती रही …….जब वे ट्रेन चढ़ रहे थे ……… मैं भी उनके पीछे ट्रेन में चढ़ कर उनके साथ ही बैठ गई …… उन्हें मुझ पर शक नहीं हुआ । उन्होंने ना मुझसे कुछ पूछा ना मैंने उनसे कुछ पूछा ।
मैंने देखा कि शाम हो गई और एक स्टेशन आने वाला है…….उन्होंने अपना सामान एक जगह रख लिया था ।
वह ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और उन दोनों ने कुली के सहारे स्टेशन पर अपना सामान उतारा और खुद भी उतर गए ……… मैं भी उनके साथ ही वहीं उतर गई ।
उसी समय दीदी कहकर एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई पड़ी …….मैंने पलटकर देखा तो नीरजा टीचर मेरी नीरजा टीचर भाग कर आती हुई दिखाई दी ।
नीरजा जी ट्रेन से उतरी महिला के गले लग गई दीदी कैसी हो ? मैं बड़बड़ा रही थी नीरजा टीचर उन्होंने मुझे देखते ही पहचान लिया और मुझे गले लगाकर कहा स्वर्णा तुम यहाँ ? नीरजा टीचर को देख मेरी जान में जान आई और मैं उनके गले लग कर रोने लगी ! उन्होंने कहा चल मेरे साथ घर में बैठकर बातें करेंगे और हम सब नीरजा टीचर के घर पहुँचे ।
उनके घर पहुँचने के बाद उन्होंने मेरे बारे में सबको बताया ……. सबने मुझे समझा……..नीरजा टीचर को मैंने सब कुछ बताया और यह भी बताया कि कैसे नई माँ ने शादी कराई और वह निकम्मा शराबी है कैसे वह भाग कर आ गई है ।
नीरजा टीचर और उनके पति ने मुझे अपने घर में पनाह दी । यहाँ आकर मुझे पता चला कि नीरजा टीचर के कोई बच्चे नहीं हैं । उन्होंने मुझे अपनी बच्ची बनाकर घर में रखा मैं उन्हें ही माँ- पापा कहकर पुकारने लगी …… उन्होंने मेरे लिए एक अलग कमरा दिया ….. जब मैं रात को अपने कमरे में सोने गई कालीरात थी …… झींगुर की आवाज सुनाई तो दे रही थी ……. लेकिन मुझे डर नहीं लग रहा था शायद नीरजा टीचर का साथ पाकर मेरे मन का डर दूर भाग गया था ।
नीरजा माँ ने मुझे पढ़ाया लिखाया। मैंने पढ़ाई पूरी करके एक अच्छी कंपनी में नौकरी पा लिया …… और उनका सहारा बन गई जिन्होंने मुझे सहारा दिया था ।
के कामेश्वरी
कालीरात ( साप्ताहिक विषय)