कल किसने देखा है – रश्मि प्रकाश

हर साल गर्मी की छुट्टियों में हम बच्चों के साथ कहीं ना कहीं घूमने जाते थे और इस बार  हमने शिमला जाने का प्लान बनाया।  शिमला का नाम आते ही मुझे याद आया कि वहां मेरी कॉलेज की बेस्ट फ्रेंड सुहानी भी रहती है।  मैंने अपने पति से कहा,  “हम शिमला जाएंगे तो  तो मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड सुहानी के घर भी जाऊंगी लेकिन उसे फोन करके नहीं बताऊंगी बिल्कुल सरप्राइज दूंगी।    

 हम शिमला पहुंच चुके थे पहले तो हमने  चार-पांच दिनों तक शिमला और उसके आसपास के इलाके को घुमा फिरा फिर लौटने  के आखिरी दिन हमने सोचा कि सुहानी से चलकर मिल आते हैं। 

 सुबह-सुबह ही हम सुहानी के घर पहुंच चुके थे  घंटी बजते दरवाज़ा उसके पति ने खोला ,मैं  जल्दी से अंदर जाकर  चिल्लाने लगी सुहानी कहाँ हैं  ,बाहर आओ ना। जब मैं  अंदर जा रही थी तो सुहानी के पति ने कुछ बोला तो था ,पर कहते है ना, जो ज्यादा अजीज होते है उनसे मिलने के लिये हम दूसरों को अनदेखा कर जाते है।

शिवानी अपनी धुन में एक कमरे से दूसरे कमरे में घुमने लगी कि तभी उसकी नजर एक तस्वीर पर पङी। वो एक पल को उस तस्वीर को देखकर अनदेखा कर दी और जोर से चिल्लाई – नहीं,ऐसा नही हो सकता है।

फिर वो सोफे के पास आकर चुपचाप बैठ गई । वो उस तस्वीर को देखकर अनदेखा कैसे कर दे। तभी सुहानी के पति   प्रताप उसके पास आकर बोले  अब नहीं रही तुम्हारी  सहेली  सुहानी। घर में घुसते ही   सुहानी  पति के सर पर बाल नहीं दिखें तो विनोद(शिवानी के पति) ने पूछा  बालों को क्या हुआ

और वो  धीमे शब्दों में बोले वाइफ नहीं रही …यही वो बात शिवानी बिना सुने अंदर चली गई थी। अब वक्त था ये जानने का कि अचानक ये हुआ कैसे? बस उनके पति इतना ही  बोले  बहुत बीमार हो गई थी और अपने अंतिम समय में आपसे बात करना चहती थी पर आपलोगों का फोन ही नहीं लग रहा था,

हमने बोला  फोन तो पास में ही था फिर क्यो नही लगा। फिर हमें अचानक याद आया कि उन दिनों हम भारत से बाहर भ्रमण पर गये हुये थे,और जो नम्बर उनके पास था उससे बाहर बात नहीं हो सकती थी। जिस उल्लास के साथ शिवानी अपनी सुहानी को मिलने आई थी वो सब काफूूूर हो गया ।


    मै  होटल  आकर चुपचाप बैठ गई और अतीत में खो गई। 25  साल पहले जहाँ हम रहते थे उसके सामने  वाले फ्लैट में  मिश्रा जी और उनका परिवार रहने आया  मेरे पापा रेलवे में टीटी थे  और मिश्रा जी रेलवे में ही गार्ड थे ।  मिश्रा जी का छोटा सा परिवार था पति पत्नी और उनकी एक बेटी सुहानी।  सुहानी को देखने के बाद मैंने सोचा चलो कोई तो पड़ोस में आया जिसके साथ आराम से खेलेंगे।  औपचारिकता के लिए,   मेरे मम्मी पापा उनसे मिलने गए  ।

अगले सप्ताह से सुहानी का एडमिशन भी मेरे ही क्लास में हो गया।  अब हम दोनों सहेलियां एक साथ ही स्कूल पढ़ने जाती थी कभी मेरे पापा हम दोनों को स्कूल छोड़ आते तो कभी सुहानी  के पापा बस यह क्रम चलता रहा और कब हम धीरे-धीरे बेस्ट फ्रेंड हो गए हमें पता ही नहीं चला।  हमें देखने के बाद कोई यह नहीं कह सकता था कि सुहानी और मैं दोनों सहेलियां हैं बल्कि लोग हम दोनों को बहने समझते थे ।  बाजार से कोई ड्रेस भी खरीदना हो तो हम दोनों एक जैसे ही खरीदी थी। 

 धीरे-धीरे हम बड़े हुए और एक साथ ही एक ही कॉलेज में दाखिला लिया।  और हम दोनों ने मिलकर यह भी वादा किया था कि शादी भी एक साथ ही करेंगे लेकिन रुकिए रुकिए हमने यह वादा नहीं किया था कि एक ही लड़के से करेंगे बल्कि शादी हम अलग लड़के से करेंगे लेकिन एक ही मंडप में करेंगे। 

 शादी हुई और हम दोनों अपने अपने ससुराल आ गए।  शादी के बाद भी हम दोनों सहेलियां रोजाना  अगर फोन पर बात ना करें तो जैसे पेट का खाना  ही नहीं पचता था।  दिन भर की बातें हम दोनों एक दूसरे से शेयर करते थे। 


 मेरे पति थोड़े घुमक्कड़ प्र्वृती के थे इसीलिए हर साल कहीं ना कहीं घूमने जरूर जाते थे।  लेकिन वही सुहानी के पति हमारे पति से विपरीत  थे।  उनको घूमने जाना बिल्कुल ही पसंद नहीं था।  उनका मानना था कि छुट्टी के दिन घर में रहकर इंजॉय करो।  पूरे साल ऑफिस में काम करो और दो-चार दिन की छुट्टी मिली उसमें भी भागम दौड़ी  ना बाबा ना यह मेरे बस की नहीं है। 

सुहानी को मैंने  कितनी बार समझा दी थी कि तुम अपने पति को क्यों नहीं समझाती हो हम साथ में ही घूमने जाते तो कितना मजा आता।  सुहानी का बस एक ही जवाब होता था अगले साल पक्का चलेंगे और यह अगले साल फिर कभी नहीं आया धीरे-धीरे बच्चे हुए बच्चे बड़े भी हो गए लेकिन वह अगला साल कभी नहीं आया।  अब अगर सुहानी से मैं  कहीं जाने को पूछती   तो उसका जवाब होता पहले  बच्चे कुछ बन जाऐ फिर घुमते रहेगे बस यही बोलती। कुछ गहने लेने का मन भी हो तो बोलती बच्चे कुछ बन जाऐ फिर ….मैं उससे कहती अरे  घुम आओ ना जो लेना लो इतना क्यो सोचती हो। पर वो बच्चों के  भविष्य के लिए सब छोड़ती और त्याग करती चली गई । 

मैं सोफे पर बैठे बैठे यही सोच रही थी कभी भी सपने में नहीं सोचा कि सुहानी इतनी जल्दी इस दुनिया को छोड़ कर चली जाएगी। बच्चों के पीछे अपनी खुशियों का त्याग करना और यह सोचते रहना कि बाद में करेंगे ये सोच, उस दिन मुझे एहसास हुआ, जो है  जैसा है, कैसी भी परिस्थिति हो, हमे उस पल को जी लेना चाहिए। तभी विनोद आकर शिवानी से  बोले “-इतना क्यो सोच रही हो। “शिवानी यादों से  बाहर निकल बस इतना ही बोल पायी “अब हमे जीना है,बस हर पल को जीना है”। 

    “कल किसने देखा है ,  

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