कजली – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

नौंवी में पढ़ती थी कजली।साधारण नैन नक्श वाली कजली घर का सारा काम निपटा कर विद्यालय आती थी।पांचवीं में थी,तब पिता चल बसे थे।मां को घर खर्च चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी।ठेकेदारी में काम पर जाते हुए जवान विधवा औरत का जीना हराम हो गया था।उसी के साथ काम करने वाले एक मजदूर ने चूड़ी पहना दी थी।

कजली को अब नया पिता मिल गया था।पढ़ाई में बहुत अच्छी ना होने पर भी ,आगे बढ़ने की ललक थी उसकी।कक्षा में अपनी सहेलियों के साथ बतियाती ही रहती थी।नौंवीं कक्षा में आकर काफी बदलाव आ गया था ,उसमें।सविता ने  पहले दिन ही कक्षा में कह दिया था”देखो बच्चों,अगले साल बोर्ड परीक्षा होगी।अब तक हंसी -मजाक में ज़िंदगी बिताई होगी तुम लोगों ने।अब अपने सपनों को पूरा करने का समय आ गया है।जिसने जो भी सोचा है,अब सच साबित करना होगा।सरकार ने इतनी सुविधाएं दी हैं,बस तुम सब मन लगाकर पढ़ाई करो।मोबाइल से ज़रा दूरी बना कर रखना।बिना मेहनत के कभी फल नहीं मिलता।”

बच्चों को सविता के बारे में पता था कि कैसी है? बड़ी-बड़ी आंखों का डर था ,पर पढ़ाई में रुचि भी लेते थे बच्चे।पढ़ाई के साथ-साथ कजली खेलकूद में भी हिस्सा लेती थी।किशोर अवस्था में आकर बच्चे भ्रमित तो होतें ही हैं,बाहरी चमक-दमक के प्रति भी आकर्षित हो जातें हैं जल्दी।कक्षा में नैतिक मूल्यों पर रोज कुछ ना कुछ कहानी बताती थी सविता।बच्चे मन लगाकर सुनते,फिर क्या सीखा लिखकर देते थे सविता को।सविता नियमित बच्चों के पेपर पढ़ती और अगले दिन निष्कर्ष निकालती सभी बच्चों के साथ।

अर्ध वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी।परीक्षा के दौरान सविता ने देखा,कजली बहुत डरी हुई लग रही थी।एक दिन परीक्षा के बाद उसे बुलाकर पूछा”,कजली,आजकल तुम अलग ही दिख रही हो।कुछ हुआ है क्या?”

कजली ने कहा”नहीं मैम,मां की तबीयत ठीक नहीं रहती,आजकल।मुझे सब काम करना पड़ता है।थक जाती हूं।”

“क्या हुआ है मां को?”जैसे ही सविता ने पूछा,वह हकबका कर बोली”मां बनने वाली हैं।”

ओह! तो यह बात है।नए भाई या बहन के आने की खबर से घबरा गई है शायद।सविता ने सोचा।अगले पेपर के दिन कजली अनुपस्थित थी।सविता को बहुत गुस्सा आया।घर लौटते समय सोचा कजली के घर चलकर देख ले,क्या हुआ है? कच्चे रास्ते से निकालकर मंजू लेकर गई उसके घर।बाहर से ही कजली के घर के अंदर से पुरुष स्वर सुनाई दिया”बंद कर अपना ये नाटक।मैं सब समझता हूं।पढ़ाई का बहाना बनाकर कामचोरी करती है।मुझे खाना कौन देगा बनाकर?तेरी मां तो पड़ी रहती है खाट पर।अधमरी सी हुई पड़ी है।अब तेरे भी नखरे देख-देख कर मेरा माथा सनक रहा है।”

मंजू ने बताया ,ये कजली के बापू हैं।सविता ने दरवाजे से आवाज लगाया तो वहीं आवाज आई “कौन है?”सविता ने उत्तर दिया”मैं सविता मैम हूं।कजली से मिलने आई हूं।”कुछ ही देर में असभ्य से लगने वाले एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला।अंदर जाकर कजली पर नजर पड़ी तो,हूक सी उठी मन में।ये क्या हालात हो गई है इसकी? तीन-चार दिनों में इतनी कमजोर कैसे हो गई।

कजली की आंखों में उसे देखकर जो खुशी देखी,सविता ने अपना आना सार्थक लगा।कजली दौड़कर पानी ले आई।उसके बापू अपने आप ही कहने लगे”देखिए मैडम जी,कब से कह रहा हूं,काम होता रहेगा।तू स्कूल जा, पर्चा लिख।ये मानती ही नहीं। रोज-रोज नया नाटक करती है।फीस भरता हूं,क्या फायदा?इससे ना होगी पढ़ाई -लिखाई।इसकी मां‌ को बोला था मैंने,शादी कर दे।वह मानती ही नहीं।”इतने में ही एक बीमार सी महिला दूसरे कमरे से निकल कर आई।सविता के पैर में झुकने ही वाली थी कि सविता ने रोक दिया।उन्हीं से कहा “तुम तो मां हो।क्यों नहीं भेजती समय पर स्कूल अपनी बेटी को?पहले ही इसकी हाजिरी बहुत कम है।सालाना परीक्षा देने को नहीं मिली,तब क्या होगा?”

वह महिला कुछ बोली नहीं बस आंखों से आंसू उसकी बेबसी बताने लगे।उसके हाथों में खंरोच के निशान साफ दिख रहे थे।सविता औरत थी आखिर,मां भी थी।कजली की मां की मौन वेदना समझ सकती थी।इस दौरान कजली ने एक शब्द भी नहीं कहा।काली चाय बनाकर लाई और चुपचाप खड़ी हो गई।सविता अब और नहीं रुकना चाहती थी,बाहर निकल आई।अभी कजली के घर से कुछ दूर ही पहुंची थी कि कजली हांफती हुई आई और एक कागज थमा गई उसके हांथ में।कजली की कॉपी का ही पन्ना था।

सविता की छठी इंद्री सही निर्देश दे रही थी।उसका बापू कजली को बेचने की साज़िश कर रहा था,शादी के नाम पर।मां जब-जब विरोध करती, मार-पीट करता था।कजली ने यहां तक लिखा था कि उसकी गंदी नजर है कजली पर।अगले ही दिन प्रिंसिपल के पास जाकर कजली का लिखा खत दिखाया सविता ने।दोनों ने मिलकर थाने में रिपोर्ट करवाई कजली के पिता के खिलाफ।पुलिस जब पहुंची ,वह साफ मुकर गया।कुछ सुबूत भी तो नहीं था।उल्टा वह कजली पर ही इल्ज़ाम लगाने लगा”साहब,ये लड़की अपने लच्छन दिखा रही है।हमारी चिंता नहीं है।आजादी चाहती है।पढ़ाई -लिखाई के नाम पर बेवकूफ बना रही है हमें।आप चाहें तो पूछ लीजिए कमली (कजली की मां)से।पुलिस के सामने एक मां झूठी बन गई और एक बीवी जीत गई।

पुलिस ने अपने हांथ खींच लिए।सविता को भी काफी शर्मिंदगी हुई, प्रिंसिपल सर के सामने। सहकर्मियों ने भी समझाया”मैडम,आप जानते नहीं हो,ऐसे लोगों को।इनका ये नाटक रोज का है।जैसा बाप,वैसी मां और बेटी भी वैसी।

इस घटना के बाद कजली स्कूल आई ही नहीं।सविता को भी सब ने मना किया घर जाने को।अच्छे आदमी नहीं थे  उसके पिता। वार्षिक परीक्षा के पहले सविता को फिर चिंता हुई कजली की।मंजू के हांथ संदेश भिजवाया।अगले दिन कजली आई।छुट्टी के समय उसके पिता ने आकर फिर हंगामा किया”मैडम जी,आपकी शय पाकर यह अब घर में मुझसे लड़ाई करने लगी है।मार -पीट भी करती है।जल्द ही इसे इसकी नानी के घर भेज दूंगा।अब बस ,और नहीं पढ़ाना इसे।”कहते-कहते मगरमच्छी आंसू निकलने लगे उस मक्कार की आंखों से।

सविता आज फिर शर्मिंदगी महसूस कर रही थी।नहीं अब वह बेवकूफ नहीं बनेगी।एक रोशनी को समय से पहले नहीं बुझने दिया जा सकता।कजली को पढ़ने से रोकने नहीं देगी,वह।

वार्षिक परीक्षा जैसे -तैसे देकर कजली अब स्कूल छोड़ने वाली थी।मंजू ही खबरी थी ,सविता की।उसी ने बताया कि कजली के बापू एक दो दिन में कजली को कहीं भेज रहें हैं।मंजू की मदद से कजली की मां को समझाया सविता ने।रात में कजली को किसी आदमी के साथ बेच कर कहीं और भेजने वाला था वह पापी।कजली की मां ने पुलिस को पहले ही बुलवा लिया था।उस आदमी से एडवांस में लिए पैसे भी संदूक से निकालकर दिए उन्होंने।पुलिस को सामने देखकर कजली के पिता ने फिर एक झूठी कहानी गढ़ी”देखिए साहब जी,इस लड़की ने फिर गुल खिलाया है।इसकी मां भी शामिल हैं।”

तभी कजली की मां का झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा उसके गाल पर।शेरनी की तरह दहाड़कर बोली”,बेशरम,बंद कर अपना नाटक।मेरी फूल सी बच्ची को डरा-धमकाकर क्या हाल कर दिया है?तेरी बीवी बनकर मेरी बेटी की खुशी छीन ली मैंने।साहब जी,इसकी ख़ुद की नजर है कजली पर।वो तो मैडम जी पुलिस के पास चली गई तो डर गया।हमेशा खुद नाटक करता रहा ।पैसों की तंगी बताता रहा।अब मेरी बेटी को बेचना चाहता है।”

कजली दौड़कर बाहर निकली और दूर खड़ी सविता के पैर से लिपटकर रोनै लगी।ऐसा लगा जैसे मातम हुआ हो।अपने मन का सारा गुबार निकाल‌ लिया उसने।अपनी मैडम के पैर में‌अपनी कमजोरी बहा रही थी कजली। पुलिस ने कजली के पिता‌को‌अरेस्ट कर‌लिया ।सजा तो होगी।कजली ही गवाही देगी,बालिग नहीं‌ है वह,फिर कैसे शादी कर‌सकता है।

कजली कल से अब फिर से स्कूल आएगी,रोज़ आएगी।उसे तो किसानी‌पढ़नी है। एग्रीकल्चर पढ़ेगी।विदेश जाएगी पढ़ने।सविता‌ को‌खुशी‌हुई  कि कजली के जीवन का रावण दूर हो‌चुका‌ था अब।

शुभ्रा बैनर्जी

2 thoughts on “कजली – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi”

  1. बहुत लंबी लड़ाई लड़ी सविताजी ने ,उनके इस जज्बे को सलाम।

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