कैसा हक़ – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

हक़,किस हक़ की बात कर रही हो तुम , हक़ पाने के लिए हक़ जताना भी पड़ता है, हक़ के साथ साथ कुछ जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती है तब जाकर मिलता है । ऐसे हक़ हक़ चिल्लाने से नहीं मिलता हक़ आलोक जी बोले।जाओ तुम यहां से जिससे शादी की है उस पर हक़ जताओ मुझपर नहीं ।

और पैसा देखकर ही तुमने शादी की है सक्षम से ,,,,,,,। इससे आगे कुछ न बोलकर शांत हो गए ।तुम लोगों के रोज़ रोज़ के झगडे से मम्मी किरण की तबीयत खराब हो जाती है तो तुम कहती हो नाटक करती है मम्मी। उनकी शुगर कम हो जाती है ज्यादा बीमार हो जाएगीं तो कौन देखेगा

तुमसे तो कोई उम्मीद है नहीं । बड़ी आई है हक़ जताने वाली ।अपना सा मुंह लेकर रह गई बहू जूही।बहू ने सोंचा था इस बार भी मेरी जीत होगी लेकिन दांव उल्टा पड़ गया । आलोक जी ने अच्छी लताड़ लगाई जूही की ।

                   आलोक और किरण की इकलौती संतान है सक्षम। बड़े नाजों से पार पोस कर बड़ा किया था। अच्छी शिक्षा दीक्षा दी।बेटे ने आईं आई टी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग किया और अब एक अच्छी नौकरी पर है ।सक्षम की नौकरी लगते ही किरण और आलोक जी बेटे की शादी का सपना देखने लगे जैसा कि

हर मां बाप करते हैं।बेटे से शादी के लिए कहा तो उसने ये कहकर टाल दिया कि अभी शादी नहीं करनी है। एक लड़की थी आलोक जी की नज़र में लेकिन बेटा तैयार न था तो चुप होकर बैठ गए आलोक जी।

                 सक्षम के आफिस में टीम वर्क में काम होता था । सक्षम के टीम में पांच लोगों का ग्रुप था जिसको सक्षम देख रहा था । उसमें चार लड़के और एक लड़की जूही थी ।दुबली पतली सी ,गोरा रंग, सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी ।सक्षम और जूही संग संग काम करते करते कब एक दूसरे के करीब आ गए पता ही न चला ।और फिर एक दिन सक्षम ने प्रपोज कर दिया जूही को। जूही शायद इसी पल का इंतजार कर रही थी।

                सक्षम के पिता जी आलोक की दो फैक्टियां चलती थी ,एक में ग्लोसाइन बोंड और दूसरे में सीमेंट के प्रोडक्ट्स बनते थे ।जिसको आलोक  और उनके बड़े भाई मिलकर चलाते थे। कुछ साल पहले आलोक जी के बड़े भाई के गुजर जाने के बाद अकेले आलोक जी से दोनों फैक्ट्री संभालना मुश्किल हो रहा था ।

और फिर स्वास्थ संबंधी परेशानियां भी थी आलोक जी के साथ।सक्षम भी अब नौकरी करने लगा था तो सक्षम ने कहा पापा अब काम बंद करो और आराम करों अब आपसे होता नहीं है तो क्यों परेशान होना ।सब मिलाकर आर्थिक रूप से मजबूत थे आलोक जी। अच्छी कालोनी में दो मंजिला मकान था जिसमें एक किराएदार भी रख रखा था।

                      धीरे धीरे जूही ने सक्षम के घर के बारे में सबकुछ पता कर लिया इकलौती संतान है तो सबकुछ इसी का है बढ़िया मौज रहेगी ।जब सक्षम पूरी तरह जूही के प्यार में पड़ गया तो सक्षम ने जूही से कहा कुछ अपने घर के बारे में बताओ । जूही ने कहा मेरे पापा लैब में काम करते हैं हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है हम तीन भाई बहन हैं,

मेरी एक शादी टूट चुकी हैं सबकुछ तय हो गया था इंगेजमेंट भी हो गई थी लेकिन वो लोग बाद में अच्छे खासे दहेज की मांग करने लगे पिता जी के वश में था नहीं तो शादी टूट गई ।सक्षम मेरे पापा दहेज नहीं दे सकते थे । घबरआओ नहीं मैं तो दहेज के बिल्कुल खिलाफ हूं ।यही तो चाहिए था जूही को।

              आज सक्षम ने मम्मी से बात की कि मैं जूही से शादी करना चाहता हूं।किरण ने कहा पर बेटा लड़की के बारे में थोड़ी जानकारी तो होनी चाहिए परिवार कैसा है और फिर वो हमारी जाति बिरादरी की भी तो नहीं है। क्या मम्मी किस ज़माने की बात कर रही हो क्या रखा है जात बिरादरी में।और मैं उसे अच्छे से जान गया हूं हम लोग साथ साथ ही काम करते हैं और मैं उसी से शादी करूंगा।

              और फिर बेटे की जिद से शादी हो गई । दोनों की नौकरी दिल्ली में थी तो घर पर एक हफ्ता रहकर वापस चलें गए। शादी के चार महीने बीत गए इस बीच एक बार भी बहू जूही का घर पर किरण या आलोक जी के पास फोन नहीं आया कि कभी हार चाल पूछं ले ।किरण ने सोंचा कि एक बार चलकर देखा जाए कि बहू बेटा कैसे रह रहे हैं । फिर एक हफ्ते का प्रोग्राम बना कर किरण और आलोक जी चले गए दिल्ली।

             घर पहुंचने पर खाना बनाने वाली मेड चाय बना कर दें गई और खाना बनाकर रख कर चलीं गईं। दूसरे दिन सुबह नौ बजे गए लेकिन जूही कमरे से बाहर ही नहीं आई । शनिवार था आफिस की छुट्टी थी बहुत देर होने पर किरण जी ने ही चाय नाश्ता बनाया। दोपहर हो गई तो बेटा तो बाहर आया

लेकिन जूही बाहर नहीं निकली फिर खाना भी किरण जी ने बनाया क्योंकि शनिवार को बाई ने छुट्टी ली थी और रविवार को बहू बेटा दोनों बाहर खाते हैं तो उस दिन भी नहीं आती।दो दिन तो किरण जी ने खाना बनाया फिर तीसरे दिन बाई का फोन आ गया कि मेरा बच्चा बीमार है मैं तीन चार दिन नहीं आऊंगी।

              अब जबतक किरण जी रही वहीं अकेले रसोई संभाले रही ।बेटे ने अकेले में जूही से कुछ कहा होगा तो जूही बोली क्या हो गया तुम्हारी मम्मी घर पर भी खाना बनाती है न यहां बना दिया तो क्या हो गया ,कौन सा बड़ा काम कर दिया। फिर ऐसे ही दस दिन बाद आलोक और किरण जी वापस आ गए

बहू का रवैया कुछ ठीक नहीं था। पीछे से बहूं ने किरण के मोबाइल पर मैसेज कर दिया कि क्यों आईं थीं आप यहां हमारा घर तुड़वाने आई थी , अपने बेटे का कान भर गई मेरे खिलाफ अरे खाना ही तो बनाया था और क्या किया था। पढ़कर किरण जी के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई ‌‌‌‌‌सोंचने लगी मैंने तो बेटे से कुछ कहा ही नहीं कि बेकार में लडाई झगडे हो। इसलिए चुप रही।

            फिलहाल बेटे से तो बात हो जाती थी लेकिन बहू से नहीं, ऐसे ही आठ महीने गुजर गए। दीवाली पर घर आए दोनों तो पूजा निपटा कर जूही अपने घर चली गई उसका मायका भी इसी शहर में डेढ़ घंटे के दूरी पर था ।एक हफ्ते मां के यहां पर ही रही फिर एक हफ्ते बाद दोनों वापस चलें गए।

             शादी के डेढ़ साल बाद बेटे का फोन आया कि मम्मी तुम दादी बनने वाली हैं अच्छा कहकर किरण खुशी से फूली नहीं समा रही थी अच्छा बेटा जरा जूही से बात करा बधाई दे दूं, बधाई हो बेटा अपना ध्यान रखना बस फोन कट हो गया।

             इसी तरह प्रेग्नेंसी के दौरान जब भी किरण जी फोन करती तो कभी थोड़ी बहुत बात कर लेती जूही और कभी फोन ही नहीं उठाती । सातवे महीने में बेटे का फोन आया कि मम्मी डिलीवरी वहीं घर पर करवाएंगे आप लोग वहां पर हो तो सुविधा रहेगी मुझे आफिस से ज्यादा छुट्टी नहीं मिलेगी मैं अकेले परेशान हो जाऊंगा।

और सातवां महीना पूरा होते होते बहू बेटा घर आ गए।किरण जी ने खूब अच्छे से ध्यान रखा पुरानी बातें भूलकर। पूरा इंतजाम कर रखा था डिलीवरी के बाद में फुल टाइम के लिए मेड की भी व्यवस्था कर ली थी। लेकिन  साढ़े आठ महीने में ही डिलीवरी हो गई। अस्पताल में बहू की मां और भाई आ जाते थे दिनभर रहते थे ।रात में भी रूक जाती थी मां।

                    एक हफ्ते बाद अस्पताल से बहूं घर आईं तो मां और भाई भी आए साथ में ।जब मां छोड़कर जाने लगी तो बहू रोने लगी यहां कौन करेगा मम्मी, किरण बोली अरे मैं हूं न करेंगे देखभाल अच्छे से ।पर मां के जाने के बाद बहू मुंह फुलाकर बैठ गई ।किरण जी कुछ खाने के लिए पूछती तो जवाब ही न देती ।

रात में दो तीन बार उठ उठकर बच्चे को देखा और फिर जब वो सो गया तो किरण जी भी हो गई तो दूसरे दिन बहू बेटे से कहने लगी तुम्हारी मम्मी तो रातभर सोती रही मैं अपनी मम्मी को बुला लेती हूं और दूसरे दिन बहू ने अपनी मम्मी को बुलवा लिया ।

पंद्रह दिन साथ में रहकर जब जाने लगी तो अपने साथ बेटी और बच्चे को भी ले गई ।और बेटे से कहने लगी जूही मैं तो तुम्हारी मम्मी को अपने बच्चे का मुंह भी न देखने दूंगी तुम्हारी मम्मी ने तो कुछ नहीं किया हमारी मम्मी ने किए हैं मैं उनके साथ जा रही हूं।

                   इस तरह बेटा अपने घर से आफिस का काम करता रहा और छुट्टी वाले दिन बच्चे से मिल आता । फिर एक दिन जूही सक्षम से बोली जब तक बच्चा सालभर का नहीं हो जाता है वापस नहीं जाऊंगी तुम मेरे लिए अलग से एक किराए का मकान लेकर दो उसमें हम और तुम रहेंगे।

सक्षम को गुस्सा आ गया और वो बोला एक घर दिल्ली में है और एक घर मम्मी पापा का है और एक घर और लेकर तुमको दे दूं । मेरे मम्मी पापा के घर नहीं रहना तो न रहो रहो अपने मायके में अलग घर नहीं लूंगा।दादा दादी भी तरसते रहे बच्चे को देखने को।

               सभी आस पड़ोस के कह रहे थे क्या किरण जी पोते होने की खुशी में लड्डू भी नहीं खिलाएं ।तो किरण जी ने सोंचा पोता तो अपना है क्यों न एक दिन घर में पूजा रख लें और लोगों में लड्डू भी बांट दें थोड़ी देर को बुलवा लेते हैं बच्चे और बहू को।

              पूजा वाले दिन थोड़ी देर को घर आई जूही जब पूजा निपट गई तो जूही किरण से कहने लगी एक लाख रूपया महीना चाहिए खर्च को आखिर घर में इतना पैसा है तो मेरा भी तो हक़ है । तभी आलोक जी चिल्ला पड़  हक़ किस हक़ की बात कर रही हो कभी एक कप चाय तो पिलाई नहीं

कभी एक वक्त का खाना तो खिलाया नहीं और यहां तक मेरे पोते को भी हमलोगों से दूर कर दिया है कभी आजतक पूछा तो है नहीं कि आप लोग मर गए कि जिदां है हक़ की बात करती है।सक्षम पर हक़ जताओ अपना मुझपर नहीं ।एक पैसा न दूंगा तुम्हें ।मैं तो सारे पैसे किसी आश्रम या टस्ट में दे दूंगा पर तूझे न दूंगा बड़ी आई हक़ जताने।

            अब घर पर बेटा तो आता है लेकिन बहू नहीं । पोता थोड़ा बड़ा हो गया है तो सक्षम उसको भी साथ लाता है ।किरण और आलोक जी अब एक दूसरे का ध्यान रखते हैं जब मर्जी हो डाइवर बुलाकर इधर उधर घूम  आते हैं । अपने मन की खाते पीते हैं मौज मस्ती में जीते हैं ।जब सहारे इस तरह बेसहारा कर दें

तो बुढ़ापे में भी इंसान कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेता है। हक़ जताने से पहले कुछ जिम्मेदारियों का भी पालन करना पड़ता है। ऐसे ही नहीं हक़ मिल जाता।और मां बाप का तो सबकुछ बेटे बहू का ही होता है। लेकिन ऐसा होने पर कुछ कठोर निर्णय भी लिए जाते हैं । जैसा आलोक और किरण जी ने लिया ।

पाठकों बताए क्या ये निर्णय सही था ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

4 अगस्त  

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