कैसा ये इश्क है ( भाग – 7) – संगीता अग्रवाल : hindi stories with moral

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वक़्त बीतता गया पर केशव को नौकरी नही मिली कही मिलती भी तो सैलरी कम होने के कारण केशव इंकार कर देता। हर दिन के साथ केशव का व्यवहार मीनाक्षी के प्रति खराब होता जा रहा था । मीनाक्षी केशव से प्यार करती महज इसलिए वो सब कुछ ठीक करने की कोशिश करती प्यार केशव भी करता था पर उस प्यार पर उसका इगो भारी पड़ रहा था। लड़ाई झगड़े से शुरु होती उनकी बातचीत कई कई दिन के अबोले पर आ जाती। अमीर घर की कमाऊ बीवी उसकी आँख मे खटकती अपनी नाकामी का गुस्सा वो मीनाक्षी को दर्द दे निकालता मीनाक्षी अकेले मे आंसु भी बहाती पर अपने माता पिता तक को कुछ ना बताती क्योकि अपनी पसंद के लड़के से शादी की थी उसने।

कहते है ना खाली दिमाग़ शैतान का घर यही केशव के साथ हो रहा था । उसे नौकरी पर जाती बीवी अब दुश्मन नज़र आती यहां तक की मीनाक्षी का किसी आदमी से बात करना भी खटकने लगा था उसे।

” हेल्लो केशव ऑफिस मे आज अचानक एक मीटिंग आ गई इसलिए मुझे जरा देर हो जाएगी तुम जरा माँ को बता देना !” एक दिन मीनाक्षी ने ऑफिस से फोन करके कहा।

” हाँ यही तो औकात रह गई मेरी एक संदेशवाहक की । तुम वहाँ ऐश करो और मैं तुम्हारे संदेश देता रहूँ । कुछ दिन खाली क्या बैठ गया तुमने तो मुझे निकम्मा ही समझ लिया !” केशव उखड़ कर बोला।

” केशव मैने सिर्फ तुमसे एक बात कही है वो भी इसलिए क्योकि माँ का फोन नही लग रहा इसमे इतना उखड़ने वाली क्या बात है । रही मेरे देर से आने की बात मैं यहां कोई ऐश नही कर रही एक मीटिंग है मेरी । खैर मुझे देर हो रही है रखती हूँ मैं फोन !” मीनाक्षी आहत हो बोली।

” हाँ हाँ जाओ तुम्हारा इंतज़ार हो रहा होगा ना !” केशव गुस्से मे बोला और फोन काट कर उसे बिस्तर पर पटक दिया । इधर मीनाक्षी नम आँखों से थोड़ी देर फोन को देखती रही फिर खुद को संभाल मीटिंग के लिए चली गई।

” आ गई मैडम बड़े ठाठ हो गये तुम्हारे तो गाड़ियाँ आने लगी है अब तो छोड़ने तुम्हे !” रात को जब मीनाक्षी घर मे घुसी केशव व्यंग्य से बोला।

” वो केशव असल मे देर हो रही थी तो सर ने कहा वो हमें ड्राप कर देंगे कार मे रीमा भी साथ थी मेरे !” मीनाक्षी बोली।

” मैने तुमसे पूछा ही नही गाडी मे और कौन था साथ मे तुम सफाई क्यो दे रही हो !” केशव बोला ।

” नही सफाई नही दे रही तुम्हे बता रही हूँ !”

” बता रही हो या छुपा रही हो !” केशव एक एक शब्द पर जोर देता बोला।

” तुम्हे जो समझना है समझते रहो मेरे पास तुम्हारे शक का कोई इलाज नही है थकी हूँ मैं आराम करना चाहती हूँ !” मीनाक्षी दुखी स्वर मे बोली।

” अच्छा जी अब हमें ये जताया जा रहा है तुम काम करती हो । वैसे ऑफिस तो मैं भी जाता था मुझे तो थकान नही होती थी कहीं ये थकान किसी ओर चीज की तो नही है बोलो बोलो !” केशव ने कहा और जिस तरह कहा मीनाक्षी उसका मतलब समझ गई।

” बकवास मत करो केशव खाली बैठे बैठे तुम्हारे दिमाग़ मे गंद भरता जा रहा है सारा दिन दिमाग़ मे बेवजह की बाते घूमती है तुमने समझा क्या है मुझे । काम करने जाती हूँ घर से बाहर अय्याशी करने नही समझे तुम !” आख़िरकार मीनाक्षी के सब्र का बाँध टूट गया और वो चिल्ला पड़ी । आखिर सहती भी कब तक वैसे भी प्यार दोनो ने किया था एक दूसरे से फिर उस प्यार के लिए केवल मीनाक्षी ही क्यो सहती रहे वो भी उस बात के लिए जिसका कोई औचित्य ही नही । अपने घर के ऐशो आराम छोड़ केशव को दिल से अपनाया उसने पर उसकी कीमत उसे हर दिन जलील होकर चुकानी पड़ रही थी।

” चिल्लाने की जरूरत नही है वरना …!” केशव दुगनी आवाज़ मे चिल्लाया।

” वरना क्या …क्या करोगे तुम बोलो मारोगे मुझे या और कोई गंदा इल्जाम लगाओगे !” मीनाक्षी रोते हुए चिल्लाई। बात बढ़ती देख केशव के घर वाले आये और बीच बचाव करने लगे।

” क्या कर रहा है तू बहू पर हाथ उठाएगा क्या ये संस्कार है हमारे !” कैलाश जी उसके थप्पड़ मारते हुए बोले।

” क्या कर रहे हो आप जवान बेटे पर हाथ उठा रहे हो !” सरला जी ने उन्हे समझाया।

 

” माँ इससे कहो ये यहाँ से चली जाये मुझे नही चाहिए ये अपने कमरे मे निकालो इसे यहाँ से !” केशव अपना गाल सहलाता हुआ बोला।

” मुझे भी शौक नही तुम्हारे कमरे या तुम्हारे घर मे रहने का । अब तक इसे हम दोनो का कमरा समझती थी इस घर को अपना समझती थी क्योकि लगता था तुम भी मुझसे प्यार करते हो पर नही तुम किसी से नही बस अपने ईगो से प्यार करते हो तो रहो अपने ईगो के साथ ही मैं अब और अपने आत्मसम्मान को छलनी नही कर सकती ।” रोते हुए मीनाक्षी बोली।

” बेटा ये तो पागल हो गया है तू तो समझदारी से काम ले ये इस वक़्त गुस्से मे है बस तू शांत हो जा और चल मेरे कमरे मे !” सरला जी मीनाक्षी को समझाते हुए बोली।

” नही माँ ये कोई आज की बात तो नही और ये गुस्से मे कब नही रहते हर वक़्त तो गुस्से मे होते है और अब मैं भी तंग आ गई हूँ मुझे माफ़ करना पर अब मैं भी ये सब नही सह सकती। अब तक सब सह रही थी जब तक बात मेरी नौकरी को लेकर थी पर आज हद हो गई एक औरत सब सह सकती है पर अपने चरित्र पर ऊँगली नही !” मीनाक्षी उनके आगे हाथ जोड़ती बोली और बाहर निकल गई कमरे से।

” हाँ हाँ जाओ जाओ बड़ी आई चरित्रवान !” केशव पीछे से बोला।

” अरे रोक ले बहू को तुझे उससे अच्छी पत्नी नही मिल सकती जो अपने मायके के ऐशोआराम छोड़ तेरे लिए आ गई क्यो अनादर कर रहा है उसके प्यार का !” सरला जी बोली पर केशव कुछ सुनने को तैयार ना था और आख़िरकार मीनाक्षी कैब बुला निकल गई। कैब मे बैठे हुए उसके आँसू लगातार बह रहे थे । उसे बिल्कुल उम्मीद नही थी केशव उससे इस तरह से भी बात कर सकता है । उसकी चिड़चिड़ाहट उसका गुस्सा समझ आता है पर उसका शक ये कहाँ तक जायज था । और सब कुछ सहती मीनाक्षी अपने चरित्र पर ऊँगली कैसे बर्दाश्त कर लेती आखिर वो भी इंसान है और एक औरत है जिसके लिए उसका चरित्र बहुत मायने रखता है । मीनाक्षी सब कुछ सोचते हुए रोती जा रही थी। कितने शान से उसने पापा से केशव के साथ रिश्ते की बात की थी अपने प्यार की दुहाई दी थी पर अब अब क्या कहेगी वो अपने मम्मी पापा से बाकी सबसे ये सब सोच सोच उसका सिर फटा जा रहा था।

” मेम आपकी लोकेशन आ गई !” अचानक ड्राइवर की आवाज से वो अपनी सोच से बाहर आई। ड्राइवर को पैसे दे थके कदमो से वो अपने घर की तरफ जा रही थी उसके लिए एक एक कदम बढ़ाना मुश्किल हो रहा था मानो किसी ने पैरो के साथ वजनी पत्थर बाँध दिये हो ।

क्या होगा अब इन दोनो के प्यार और केशव के व्यवहार का अनजाम । जब किसी रिश्ते मे शक आता है वो कमजोर होने लगता है वैसे भी मीनाक्षी ने सब बर्दाश्त किया किन्तु अपने चरित्र पर दाग़ कोई औरत नही बर्दाश्त करती ।

दोस्तों एक पारिवारिक शादी मे व्यस्त होने के कारण कहानी लिख नही पा रही हूँ ज्यादा जल्द ही नियमित भाग मिलेंगे आपको

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