कहो कैसी रही? – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“शेखर, पता है मेरी फ्रेंड्स कल चार दिनों के लिए ऊटी जा रही हैं|” शिखा अपने हस्बैंड से बोली|

“तो तुम भी चल जाओ, तुम्हें किसने रोका है|” शेखर ने छूटते ही कहा|

“हाँ, मन तो मेरा भी बहुत है| चली भी जाती, अगर तुम अकेले मैनेज कर पाते तो| तुम तो एक गिलास पानी भी खुद से नहीं लेते हो|”

“क्या मतलब है तुम्हारा? मैं अकेले मैनेज नहीं कर सकता? बिल्कुल कर सकता हूँ| अपने ना जाने का ठीकरा प्लीज मेरे ऊपर तो मत फ़ोड़ो|”

“तो ठीक है, मैं चली जाती हूँ और राधाबाई को शाम को आने को बोल देती हूँ| सुबह-सुबह तुम्हें दिक्कत होगी|”

“नहीं, नहीं तुम राधाबाई को मना ही कर दो| तुम भी चिल करो और अपनी कामवाली को भी मजे करने दो| उसे चार दिन की छुट्टी दे दो| मैं अपने आप मैनेज कर लूँगा|”

“ओके एज़ यू विश|” शिखा ने अपनी पैकिंग करते हुए कहा|

“हैलो, सुमित सुन शिखा चार दिनों के लिए ऊटी जा रही है| अब तो चार दिन ऐश ही ऐश| खूब पार्टी-शार्टी करेंगे| कल शाम सात बजे डिस्को में मिलते हैं|”

दूसरे दिन शिखा ट्रिप पर निकल गई| देर रात तक शेखर ने अपने दोस्तों के साथ डिस्को में बहुत मस्ती की| रात में लेट हो जाने के कारण सुबह नींद भी लेट खुली| घड़ी की ओर देखते हुए उसने सोचा “शिखा होती तो जैसे-तैसे जगा ही देती| आज तो इंपॉर्टेंट मीटिंग है| लेट नहीं कर सकता| ऐसा करता हूँ

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चाय पीकर चेंज कर निकल जाता हूँ|”जैसे ही उसने चाय के लिए दूध चढ़ाया, रात में फ्रिज में नहीं रखने के कारण वह फट गया और उसे बिना चाय ही निकलना पड़ा| हड़बड़ी में उसका हेलमेट भी घर में ही छूट गया जिसे शिखा रोज ध्यान से उसके हाथ में पकड़ाती थी| जैसे ही वह हाईवे पर पहुंचा वहां पुलिस की चेकिंग लगी थी|

ना सिर्फ, उसका हजार रुपए का चालान कटा बल्कि ऑफिस भी लेट पहुंचा जिस कारण उसे बॉस की डांट भी खानी पड़ी| एकबार को तो उसे शिखा की बहुत याद आई। लेकिन, फिर ‘ब्लू हैवन पब’ में दोस्तों के साथ शाम को होने वाली पार्टी का ध्यान आते ही वह सुबह की सारी परेशानियाँ भूल गया और (वीरू) चपरासी को एक बढ़िया चाय लाने के लिए बोल अपना काम करने लगा|

अभी उसने चाय का एक ही घूँट लिया था कि तभी उसका मोबाइल बजा| “हैलो, मुन्ना कैसा है? तूने बताया नहीं कि शिखा बाहर गई है| तू अकेले कैसे मैनेज करेगा? यह तो अच्छा हुआ शिखा ने फोन करके बता दिया| मैं और तेरे जीजाजी आज शाम की बस से पहुँच रहे हैं| तू चिंता मत कर शिखा के वापस आने तक हम तेरे साथ ही रहेंगे|”

“दीदी,आप लोग नाहक ही परेशान होंगे|”

“नहीं-नहीं मुन्ना परेशानी कैसी? शाम को मिलते हैं|”

ना चाहते हुए भी उसने अपने दोस्त सुमित को फोन किया “यार,आज शाम को दीदी-जीजाजी आ रहे हैं| तीन-चार दिन तो रुकेंगे ही तो मैं तो नहीं आ पाऊँगा| तुम लोग एंजॉय करो|” उसने बुझी हुई आवाज में कहा|

शाम को ऑफिस से वह सीधा घर भागा| घर का हुलिया भी तो ठीक करना था| तभी ध्यान आया कि घर में तो दूध ही नहीं है| दूध और कुछ नमकीन लेकर वह घर पहुँचा और फटाफट सफाई की|

तभी डोरबेल बजी सामने दीदी-जीजाजी खड़े थे| “अरे मुन्ना, कितना परेशान लग रहा है| चिंता मत कर अब मैं आ गई हूँ| अभी तेरी फेवरेट अदरक वाली चाय बना लाती हूँ और रात में तेरी पसंद की बड़ियाँ बनाऊँगी| लाई हूँ मैं|”

शेखर उनकी बातों पर ऊपरी मन से हाँ-हूँ कर रहा था| अंदर से वह गुस्से से उबल रहा था|” शिखा की बच्ची, शैतान, छोड़ूँगा नहीं तुझे| सारा प्लान चौपट कर दिया|”

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दीदी ने उसका बहुत ध्यान रखा| पर,उसकी हालत पिंजरे में बंद पक्षी जैसी हो गई थी| टाइम पर ऑफिस और ऑफिस से घर| पार्टी-शार्टी, मौज-मस्ती के सारे प्लान धरे के धरे रह गए थे|

चौथे दिन शिखा वापस आई बहुत ही खुश और रिलेक्स लग रही थी| आते ही दीदी के गले मिली “थैंक्यू दीदी,आपके आ जाने से मुझे इनकी कोई चिंता नहीं रही|” शेखर को तिरछी नजरों से देखते हुए शिखा बोली|

“अरे! थैंक्यू कैसा?”

“दीदी मैं ऊटी की फेमस कुकीज लाई हूँ| अभी चाय के साथ लाती हूँ|” यह कहते हुए शिखा किचन में चली गई|

शेखर भी उसके पीछे-पीछे किचन में पहुँचा “शिखा,ये क्या मजाक है? जब मैंने कहा था कि मैं मैनेज कर लूँगा तो तुमने दीदी को क्यों बुलाया? दोस्तों के बीच मेरा मजाक बनाकर रख दिया| मैं क्या छोटा बच्चा हूं जो अकेले नहीं रह सकता|”

“शांत, जानेमन शांत|” इतना गुस्सा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता| मुझे तो बस आपकी चिंता हो रही थी| ठीक उसी तरह, जिस तरह आपको पिछले साल मेरी हो रही थी जब आप दुबई ट्रिप पर गए थे| तब आप भी तो मांजी को बुलाकर मेरे पास छोड़कर गए थे ना कि मैं अकेली हफ्ता भर कैसे रहूँगी|

मैंने कहा भी था कि मैं मैनेज कर लूँगी। लेकिन, आपने मेरी बात कहाँ सुनी थी जबकि मेरी फ्रेंड सुमी तो मेरे साथ घर आकर रहने के लिए भी रेडी थी| तो देखो, शेखर पिछली बार तुमने मेरा प्लान स्पॉइल किया था| इस बार ननद रानी को बुलाकर मैंने तुम्हारा कर दिया| हिसाब बराबर| यह कह हंसते हुए शिखा चाय लेकर हॉल की ओर चल पड़ी और शेखर उसे मुंहबाएं देखता रह गया और खुद से वादा भी किया “इससे मैं अब कभी भी पंगा नहीं लूंगा नहीं तो यह हर बार मेरी ऐसे ही बैंड बजाएंगी|”

धन्यवाद

साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता #ननद

लेखिका- श्वेता अग्रवाल,

झारखंड।

शीर्षक- कहो कैसी रही?

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