रात्रि की कालिमा विदा ले रही थी ।रात भर चांद के साथ गुफ्तगू होती रही । चांद विनम्रता से कालिमा को दूर जाने और रात्रि को आलोकित करने का आग्रह करता रहा ।कालिमा की हठधर्मिता ने कई बार चांद को भी अपना शिकार बनाने का क्रम निरंतर गतिमान रहा तभी सूरज के आने की आहट होने लगी ।अब कालिमा विवश हो गई…।
अभी तो सुबह भी ठीक से हुई नहीं थी कि रचना का मोबाइल जोर से बजने लगा।देर रात तक प्रोजेक्ट की तैयारी करती रचना नींद में बेसुध थी।पहली बार तो मोबाइल की आवाज उसके कानों में जाकर भी गई नहीं थी।दूसरी बार गई तो उसे लगा अलार्म बज रहा है।तीसरी बार भी बजने पर वह खीझ
उठी।झिड़कने के इरादे से बिस्तर से उठकर तेजी से मोबाइल की तरफ उसका बढ़ता हाथ कॉल करने वाले के नाम के डिस्प्ले को देख सहम सा गया।अचानक उसके पैरों तले धरती खिसक गई सिर घूमता सा प्रतीत होने लगा।पूरा शरीर पसीने से नहा गया।उसके हाथ ठिठक गए।अगर पास में कुर्सी ना रखी हुई होती तो वह जमीन पर गिर पड़ी होती।
दीदी जी क्या हुआ मेड शांति की आवाज से वह होश में आई।
कुछ नहीं शांति ऐसे ही सिर घूम गया था उसने जबरदस्ती की मुस्कान ओढ़ते हुए प्रत्युत्तर दिया लेकिन शांति सब कुछ समझ गई थी।
वह तुरंत फ्रिज का ठंडा पानी लेकर आ गई।
लीजिए दीदी जी पानी पी लीजिए मैं अभी आपके लिए इलायची वाली स्ट्रांग चाय बना लाती हूं बहुत स्नेह से उसने कहा तो जाने क्यों आज उसका स्नेह पा रचना का मन भीग गया।
नहीं शांति स्ट्रांग कॉफी चाहिए सुनते ही शांति मुस्कुरा कर हामी भरती पानी कागिलास समेट किचेन की तरफ बढ़ गई।
शांति समझ गई थी कि आज फिर वही डर सामने दिख गया होगा जिसे इन पांच वर्षों में कुचलने की पुरजोर कोशिशें दीदी जी लगातार करती आ रही हैं।
वह डर जिसका नाम विराज था रचना के जेहन से जाता ही नहीं था।ऐसा नाम जिसने उसकी मानसिक शांति को लकवाग्रस्त कर दिया था।जो उसकी जिंदगी में राहु बनकर ग्रहण लगाता रहता था।
आज से पांच बरस पहले रचना एक इंटरव्यू के सिलसिले में दिल्ली जा रही थी।ट्रेन में भीड़ बहुत ज्यादा थी चोरी की वारदातों की खबर से चौकन्नी उसने आरामदेह बर्थ होते हुए भी सामान चोरी के खतरे की आशंका से नहीं सोने का इरादा किया और अपने बैग से एक नोवेल निकाल पढ़ने लगी।
लेकिन नींद को रोकने में वह नोवेल भी असफल रही और बचाते बचाते भी नींद का ऐसा जोरदार झोंका आया कि रचना गहरी नींद में डूब गई थी।
मारो पकड़ो पुलिस को बुलाओ के तेज शोर से वह एक झटके से जाग गई देखा तो बगल में रखा उसका कीमती पर्स गायब था।
वह बहुत कीमती पर्स था रचना के लिए।कीमती इसलिए नहीं कि उसकी बाजार कीमत बहुत ज्यादा थी या किसी बाहर देश का था ।कीमती इसलिए क्योंकि वह पर्स उसकी मां ने अपने हाथों से बनाया था खूबसूरत मोती और मनकों से बुना हुआ और रचना को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट किया था।तब से वह पर्स रचना का लकी पर्स बन गया था।
पता नहीं उस पर्स में शायद मां की दुआएं भरी हुईं थीं।जहां भी रचना उसे लेकर जाती उसके काम बन जाते।इसीलिए रचना उस पर्स को अपनी जान से ज्यादा संभाल कर रखती थी और बेहद खास मौकों पर ही लेकर जाती थी।
मां यह देख कर बहुत हंसती और मीठी झिड़की देकर कहा करती थी
” ये क्या फितूर तेरे दिमाग में पलने लगा है।अरे काम तेरी मेहनत और योग्यता से बनते जाते है बेटा इसमें पर्स का क्या रोल है।ये सब तेरे दिमाग का वहम है।इतनी पढ़ी लिखी समझदार होकर भी ऐसे वहम क्या शोभा देते हैं।मैं और पर्स बना दूंगी तेरे लिए।
लेकिन रचना को कोई दूसरा नहीं वही पर्स प्यारा था।वह हंस दिया करती थी।
“नहीं मां इसमें कुछ खास है तेरे हाथ का विशेष जादू इस पर्स में है।जाने कौन सा मंत्र तूने फूंका है इसमें मेरे लिए यह बेहद लकी है।मैं इसे कभी गुमने नही दूंगी।
मां क्या कहतीं हंस कर रह जाती थीं पागल है पूरी मेरी बेटी।
मां जानती थीं उस पर्स को बनाने में कितनी मेहनत लगी थी।और अब शायद ही वैसा कोई दूसरा पर्स उनके कमजोर हो चुके हाथ बना पाएंगे।
एक दिन सीढियां चढ़ने के दौरान उनका पैर फिसल गया था और वह अपने आपको संभाल नहीं पाईं हाथ के बल ही जमीन पर गिर गईं थीं तभी से उनका दाहिना हाथ बहुत कमजोर हो गया था।वह बखूबी समझती थीं।बेटी का पर्स के प्रति अंधप्रेम और विश्वास अपनी मां के प्रति दिली प्रेम की उपज है।पर्स में उसे मां का आशीर्वाद लिपटा महसूस होता है।
आज भी जब दिल्ली में इंटरव्यू कॉल आया जो उसकी जिंदगी का पहला इंटरव्यू था।यह इंटरव्यू उसकी जॉब के लिए था जिसकी उसे सख्त आवश्यकता थी।इतना खास इंटरव्यू था तो खास पर्स तो साथ ले जाना ही था।
उसी पर्स को नदारद देख रचना की तो सांस अटक गई।
“मेरा पर्स मेरा पर्स चोरी हो गया मेरा लकी पर्स अब मुझे ये नौकरी भी नहीं मिलेगी चिल्लाती वह बदहवास सी अपनी सीट से उठकर दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी थी जहां से वह चोर कूदकर लुप्त हो गया था।
तभी दो मजबूत हाथों ने उसे मजबूती से पकड़ लिया था।
“पागल हो गईं हैं क्या आप ।एक पर्स के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने जा रही हैं।वह एक शातिर चोर हैं उसे पकड़ना पुलिस के बस के बाहर है आप कैसे पकड़ लेंगी “भारी सी आवाज और हाथों की मजबूत जकड़न से रचना थम सी गई नजरें ऊपर उठीं तो दो अपलक ताकती नजरों से टकरा कर वे भी थम सी गईं।
जाने उन नजरों में और हाथों की स्नेहिल जकड़न में क्या था जिसने बदहवास रचना को शांत कर दिया ।
जल्दी से खुद को उस जकड़न से छुड़ाती वह वापिस अपनी सीट की तरफ बढ़ने की कोशिश में थी लेकिन उन मजबूत हाथों ने उसे मुक्त नहीं किया बल्कि आहिस्ता से संभाल कर उसकी सीट तक लाकर बिठा दिया।
सीट पर बैठते ही और स्नेहिल जकड़न से मुक्त होते ही रचना को फिर से अपना पर्स याद आ गया।उसकी आँखें डबडबा आईं।जल्दी से खिड़की की तरफ मुंह घुमा वह अपनी दिल की अनकही व्यथा अभिव्यक्त कर रहे आंसुओं को छिपाने हेतु प्रयत्नशील हो गई।
इसका मतलब वह पर्स आपको बहुत अजीज था कहता वह अजनबी रचना के बगल में उसकी सीट पर ही बैठ गया।
लीजिए अपने इन कीमती आंसुओं को मेरे इस साधारण रुमाल में समेट इसे भी कीमती होने का मौका दीजिए कहते हुए उसने एक बेहद खूबसूरत रुमाल निकाल रचना की सिमटी हथेलियों में जबरदस्ती थमा दिया।
ऐसी धृष्टता रचना के लिए आश्चर्यचकित करने वाली थी।वह एक शांत और अंतर्मुखी लड़की थी।
आपका बहुत धन्यवाद मुझे किसी रुमाल की कोई आवश्यकता नहीं है।पर्स मेरा था नुकसान मेरा हुआ है आपको क्या। प्लीज आप अपनी सीट पर जाएं।मुझे अपना ख्याल खुद रखना आता है रचना ने वह रुमाल तेजी से उसको वापिस करते हुए कहा।
अच्छा वाह आपको अपना ख्याल रखना आता है ये तो बखूबी दिख चुका है जब थोड़ी ही देर पहले आप एक मामूली पर्स के लिए अपनी इतनी कीमती जान गंवाने दौड़ पड़ीं थीं अबकी उस युवक ने मुस्कुराते हुए कहा तो रचना का खून खौल गया।
मामूली पर्स आपके लिए होगा मेरी तो वह जिंदगी ही था।खैर आपको क्या करना है ।मेरी खिल्ली उड़ाने की जरूरत नहीं है आप अपनी सीट पर जाएं रचना ने इस बार तल्खी से कहा।
अगर मैं आपसे कहूं कि मेरी कोई सीट ही नहीं है मै तो अभी पिछले स्टेशन पर ही ट्रेन में चढ़ा हूं इमरजेंसी में दिल्ली जाना पड़ रहा है रिजर्वेशन नहीं करवा पाया हूं तो क्या मैं यहीं आपकी सीट पर बैठ सकता हूं कोमल स्वर था उसका।
नहीं नहीं मुझे अभी सोना है दिल्ली तो सुबह आएगा आप टीटी से कह किसी सीट की व्यवस्था कर लीजिए रचना ने उसे भगाने के लिए बहुत जोर से कहा लेकिन उस युवक पर कोई असर नहीं हुआ वह और भी इत्मीनान से उसके बगल में बैठ गया।
हां आपकी राय एकदम सटीक है।जब तक टीटी नहीं आता तब तक तो मैं यही बैठा हूं आने दीजिए टीटी को कहते हुए उसने बेहद बेतकल्लुफी से रचना की नोवेल उठा ली और पढ़ना शुरू कर दिया।
रचना उसकी धृष्टता देख कर दंग थी। तिलमिला कर उसने आस पास देखा लेकिन सभी यात्री अपनी सीट पर आराम करते नजर आए किसी को रचना की परेशानी से कोई सरोकार नहीं था। विवश सी बह चुप होकर बैठ गई।
एक तो मेरा पर्स चला गया ऊपर से ये बदमाश जाने कौन है आकर सिर पर बैठ गया हे भगवान रक्षा करो सोचती वह रोने ही लग गई।
ओहो आप तो फिर से अपने पर्स को याद करने लगीं वह युवक नोवेल के पीछे से रचना को देखते हुए बोलने लगा।
बताइए ऐसा भी क्या खास था उस पर्स में ।क्या आपका सारा धन उसी में था।क्या आपके कुछ जेवर भी उसमें थे या कोई जरूरी दस्तावेज थे नोवेल परे रखता वह जानने को अधीर हो उठा।
आपको क्या करना है।मै अपनी व्यक्तिगत बातें किसी को क्यों बताऊं डपट कर रचना ने कहा।
मत बताइए रखे रहिए अपने मन में।घुलते रहिए रोते रहिए उसने भी चिढ़ कर कहा तो रचना को गुस्सा आ गया।
क्या करेंगे जानकार।पर्स तो चला गया आपको बताने से वापिस तो आ नहीं जाएगा तमक कर रचना ने कहा।
क्यों नहीं आएगा जरूर आपके पास वापिस आएगा।आपका पर्स है मेरे पास क्यों रहेगा ये लीजिए यही है ना आपका जान से प्यारा पर्स कहते उस युवक ने रचना का पर्स निकाल कर उसके सामने रख दिया …..।
क्रमश:
सीरीज प्रथम भाग
लतिका श्रीवास्तव