कहीं ये वो तो नहीं पार्ट – 2 :लतिका श्रीवास्तव 

अहा यही तो है मेरा पर्स मेरा लकी पर्स खुशी से चीख पड़ी रचना।झपट कर पर्स को दोनों हाथों में उठा गले से लगा लिया।

पर्स पर ही पूरा प्यार लुटा दीजिएगा या पर्स आपको देने वाले के लिए भी कुछ बचाएगा तल्लीनता से आनंदित होती रचना को देख वह युवक मुखर हो उठा।

खुशी की आंधी में बहती रचना अचानक शर्मा गई।

ओह थैंक यू वेरी मच आप समझ नहीं सकता कितना बड़ा उपकार आपने मुझ पर किया है रचना की विनीत मुद्रा देख उसने इत्मीनान से अपने दोनों पैर सीट पर पालथी मुद्रा में रख लिए और हंसकर कहने लगा अब तो ये सीट मेरी हो गई मै दिल्ली तक बैठ सकता हूं पर्स दिलाने का इतना मेहनताना तो मिलेगा ही … क्यों ठीक कहा ना उसने फिर से नोवेल उठाते हुए रचना की तरफ देखा।

अबकी बार नाराज होने के बजाय रचना खिलखिलाकर हंस पड़ी थी।

…. बस फिर तो जैसे रुकी हुई ट्रेन चल पड़ी थी।

उस युवक का नाम विराज था।वह भी दिल्ली जा रहा था अपने पिता की आंखों की दवा लेने।

विराज ने बहुत मायूस हो बताया कि उसके पिता की आंखों से अचानक दिखाई पड़ना बंद होने लगा। पहले तो वे समझ ही नहीं पाए धीरे से उन्हें समझ में आया कि चीजें धुंधली दिखाई देने लगीं हैं।

डॉक्टर के पास तुरंत ले गए तो डॉक्टर ने जो दवाएं लिखीं वे दिल्ली में मिलती थीं।मेडिकल शॉप वाले मंगवाने की बात कह रहे थे लेकिन विराज को तो तुरंत इलाज चाहिए था ।सो उसने स्वयं ही तत्काल ट्रेन से दिल्ली आकर दवा लाना ज्यादा सही समझा ।कल की ही ट्रेन से उसकी वापिसी भी थी।

उसकी कहानी सुनकर रचना भावुक हो गई।उसकी नजरों में विराज एक बेहद संवेदन शील बेटा था।जिसे अपने पिता की इतनी फिकर थी।

आपका इंटरव्यू कल ही है विराज ने रचना से पूछा।

हां कल सुबह ही है रचना ने कहा।

तो इंटरव्यू के बाद तो आप भी वापिस आएंगी।चलिए फिर से आपका साथ मिलेगा विराज ने हंस कर कह रहा था।

रचना का प्रोग्राम दिल्ली में अपनी सहेली प्रज्ञा के घर रुकने का था।कुछ दिन दिल्ली घूमने की सोची थी उसने।प्रज्ञा बहुत उत्साह में थी उसे दिल्ली घुमाने को लेकर।लेकिन जाने क्यों विराज का सान्निध्य फिर से पाने की लालसा उसके मन में बलवती हो गई।

जी हां इंटरव्यू के बाद मुझे भी वापिस लौटना है ना जाने उसके मुंह से यही निकल गया।

फिर तो एकदम सही रहेगा ।आपके साथ पिता की परेशानी और यात्रा की थकान में सुकून मिल जाएगा विराज ने खुश होकर अनोखे अंदाज में कहा तो रचना भीतर तक भीग गई।

सुबह इंटरव्यू के लिए विराज ने ढेर सारी शुभकामनाएं दीं और उत्साहित  किया जो रचना को बेहद अच्छा लगा।

अब तो आपका लकी पर्स आपके साथ है किसी बला की क्या मजाल जो आपका बाल भी बांका कर पाए विराज ने पर्स की तरफ इशारा करते हुए हंस कर कहा तो रचना को बहुत हंसी आ गई।

इंटरव्यू के बाद प्रज्ञा को किसी तरह समझा बुझा कर कि मां की तबीयत्थीक नहीं है मुझे तुरंत लौटना है कह वह शाम को वापिस स्टेशन पर पहुंच गई और धड़कते दिल से विराज का इंतजार करने लगी।

ट्रेन के आते ही विराज आ गया।

क्रमशः

लतिका श्रीवास्तव 

Latika Shrivastava

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