“कितना प्यार है तुम्हें तुम्हारी मौसी से… और वह भी तुम्हें कितना प्यार करती है… बचपन में बूआ जब घर आती थीं तो कितनी खुशी होती थी तुम्हें… आज भी जब मिलती हो तो कितनी बातें करती हो… और मामा जी… चाचा जी… सभी से प्यार है या नहीं है… उनके यहां घूमने जाने का आज भी मन करता है या नहीं… श्वेता बेटा ये सभी रिश्ते… तुम्हें इसलिए मिले क्योंकि मेरे पास भाई-बहन हैं… तुम्हारे पापा के भी भाई थे बहन थे… पर मेरी लाडो तू जो कहती है कि तुझे बस एक ही बेबी चाहिए… तो सोच के आगे जाकर यह रिश्ते कैसे मिलेंगे… तुम दो भाई बहन हो तो देखो वैसे ही मौसी का रिश्ता हो गया ना खत्म… तेरी श्रेया की मौसी कहां है…?”
“मामा जी की बेटी अंकिता… मौसी है ना… कितनी प्यारी मौसी है… आप भी ना मम्मा…!”
“चल ठीक है मान लिया… पर चाचा भी तो नहीं हैं… सुहास के सिर्फ बहन है… तो चाचा भी तो नहीं मिले…!”
“हो गया मां… सब अगल-बगल चाचा ही तो हैं…!”
“तू कितने भी तर्क कर ले बेटा… लेकिन यह सच है… कि रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं… प्यार के रिश्ते… अपनेपन के रिश्ते…अभी तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आ रही… पर देखना आगे यही बात तुम्हें समझ आते… कहीं देर ना हो जाए…!”
” अरे मां इतनी मेहनत से तो श्रेया बड़ी हुई है… और अब तुम लोग चाहते हो कि मैं फिर से वही सब मुसीबत झेलूं …मुझसे नहीं होगा… तुम ही सोचो मां घर… दफ्तर… श्रेया की जिम्मेदारी… ऊपर से एक और बच्चे का टेंशन… कैसे होगा…? नहीं मां पहले वाले में ही मैंने बहुत कुछ झेल लिया…!”
क्या झेल लिया तूने श्वेता… जो हर मां झेलती है वही सब ना… या कुछ ज्यादा…!”
” जो भी हो मां… श्रेया ही बढ़िया पढ़ लिख कर काबिल बन जाए… बस… दूसरा बच्चा हमें नहीं चाहिए…!”
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“सुहास को भी नहीं……?”
“पता नहीं… पर मुझे नहीं चाहिए… वह क्या कहेंगे… उन्हें थोड़े न झेलना पड़ेगा…!”
” पर बेटा……!”
” बस मां छोड़ो ये बात… जल्दी कुछ टेस्टी नाश्ता बनाओ ना… श्रेया… श्रेया कहां गई… देखो ना मां…!” बोलकर श्वेता सोफे पर फैल गई…!
श्वेता की शादी को पांच साल हो गए थे… एक बेटी थी श्रेया… जिसकी उम्र चार साल लगभग हो गई थी… इसलिए मां श्वेता को अलग-अलग तरीके से… हर समय यही बात समझाने की कोशिश करती रहती थी… उन्हें लगता कि श्वेता को… अब दूसरा बच्चा प्लान कर लेना चाहिए.…! पर नौकरीपेशा श्वेता की अपनी परेशानी थी… अब अपनी व्यस्त दिनचर्या में… उसके पास एक और बच्चे को सोचने तक का समय नहीं था…!
सुहास और श्वेता दोनों साथ ही काम करते थे बैंक में… एक ही ब्रांच में साथ जाना… साथ आना… पर काम के घंटे के कारण कई बार ऐसा लगता कि… वह अपनी बच्ची को बिल्कुल भी समय नहीं दे पा रही है… घर में एक फुल टाइम आया लगी हुई थी… वही श्रेया को संभाल रही थी… ऐसे में उसकी बात भी सही थी…!”
सुहास की माता जी का देहांत हो चुका था… और उसकी बहन बहुत दूर रहती थी… श्वेता का मायका थोड़ा पास पड़ता था.… इसलिए अक्सर 2 दिनों की छुट्टी मिलते ही श्वेता भाग कर मां के पास आ जाती थी…!
” आदर्श कहां है मां…!”
” वह कोचिंग गया है ना…!”
” अभी कौन सा कोचिंग है… तुमने बताया नहीं था क्या… कि मैं आ रही हूं….?”
” अरे सब बताया था..…आ ही रहा होगा…!”
“उसके बिना तो मन ही नहीं लग रहा…!
” वाह जी वाह…! खुद को भाई एक घंटे नहीं दिख रहा… तो मैडम का मन ही नहीं लग रहा… और श्रेया… कल को उसका मन कैसे लगेगा… यह सोचा है कभी… आज तो चलो बच्ची है… फिर स्कूल जाएगी… उसके पास भी ढेरों कहानियां होंगी… बातें होंगी… वह किसके साथ शेयर करेगी… किससे बात करेगी……?”
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” मुझसे करेगी…!”
” अभी तो तेरे पास टाइम ही नहीं है… उसे देने को… और कुछ दिनों के बाद टाइम कहां से आ जाएगा…!”
” छोड़ो ना मां… आप फिर उसी टॉपिक पर मत चली जाओ…!”
” अच्छा कल के लिए सारी तैयारी करके आई है ना… वहां टाइम लगेगा… फिर मत कहना कि यह भूल गई वह नहीं लाई…!”
” नहीं मां… इस बार ऐसा नहीं होगा…!” तभी श्रेया भागती हुई जाकर श्वेता की गोद में बैठ गई…” मैं भी जाऊंगी ना मां… हां मेरी गुड़िया… हम सब जाएंगे… अंकिता मौसी की सगाई में…!”
श्वेता के मामा जी की बेटी थी अंकिता… अगले दिन सभी लोग सगाई के फंक्शन में मिले… परिवार के लोग श्वेता से जो भी मिलते… कुछ बातों के बाद यह बात पूछ ही लेते…” क्यों श्वेता… आगे का प्लान कब कर रही हो…!” श्वेता सबको एक ही जवाब देते देते थक गई थी… !
घर जाकर पूरी तरह झुंझला उठी… “वाह मां… यह क्या बात हुई… आप लोगों के पास लगता है और कोई टॉपिक ही नहीं है बात करने का… शादी नहीं हुई… तो क्यों नहीं हुई पहले… बच्चे नहीं लिया तो क्यों नहीं लिया… अभी तक क्यों नहीं… इतनी देर क्यों… और जब पहला हो गया तो भी सब… दूसरे के पीछे पड़े पड़ गए…मेरा तो मूड ही खराब हो गया… लगता है अब किसी पार्टी में जाऊं ही ना… पार्टी में क्या अपने लोगों की पार्टी में ही ना… बाकी बाहर कौन किससे इतना पूछता है……!”
मां ने प्यार से उसके सर पर थपकी देते हुए कहा… “बाहर कोई प्यार भी तो नहीं करता तुझे… जो प्यार करता है वही तो पूछेगा… और लोगों को क्या फर्क पड़ता है…!”
मां के बार-बार समझाने पर भी… श्वेता अपनी जिद पर अड़ी रही…!
कुछ सालों के बाद श्रेया स्कूल जाने लगी… पहले तो अपनी ही बदमाशी में लगी रहती थी… पर धीरे-धीरे उसके अंदर समय से पहले ही गंभीरता आ गई… दिन भर गैजेट में उलझी रहती थी श्रेया… स्कूल से आकर मोबाइल देखना… टीवी देखना.… गेम्स खेलना… होमवर्क करना…!
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मां पापा थे कि घर आने के बाद… वे भी अपने में ही व्यस्त रहते थे… थोड़ा बहुत इधर-उधर पूछ लिया… बस हो गया… श्रेया बिल्कुल अकेली हो गई… यह बात श्वेता को तब पता चली जब श्रेया की क्लास टीचर ने उसे बुलाकर बताया… कि “श्रेया ना किसी से दोस्ती करती है… ना किसी से बातें करती है… हमेशा अपने में ही चुपचाप खोई रहती है… और इस बार तो क्लास सेवंथ में… उसके मार्क्स भी बहुत खराब आए हैं…!”
श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे… श्रेया सचमुच एकाकीपन का शिकार हो रही थी…घर में कोई था नहीं… और बाहर वह निकलना ही नहीं चाहती थी… किसी से मिलना जुलना उसे पसंद ही नहीं था…!
आदर्श मामा के बच्चे आते… तो थोड़ी ही देर में कितनी खुश लगने लगती… पर उनके जाते ही वह फिर अपने आप में गुम हो जाती थी… अब श्वेता को एहसास हो रहा था कि… घर में कम से कम दो बच्चे तो होने ही चाहिए… आपस में एक दूसरे की बातें… सुख-दुख… लड़ाई झगड़ा… सब साझा करने के लिए….!
आदर्श के दोनों बच्चे..… आपस में कितनी मस्ती करते थे… पर श्वेता को लगने लगा था की उसके कारण ही श्रेया बिल्कुल अलग-थलग बन गई है.…!
वह लाख कोशिश करती… उसके साथ समय बिताने की… लेकिन उसके लिए समय हो तब तो… आखिर 38 की उम्र में श्वेता ने… फिर से मां बनने का फैसला कर ही लिया…!
मां ने सुना तो हंस पड़ी… “अब कैसे करोगी… जो 10 साल पहले नहीं कर पाई…!”
“अब तो श्रेया भी तेरह की हो गई है ना… वही संभालेगी अपने भाई या बहन को… जो आए…!”
” अच्छा श्रेया संभालेगी…!”
” तो और क्या करूं… देर तो कर दी… पर अब नहीं मां… कहीं और देर ना हो जाए… मुझे अपनी श्रेया को उसका अपना सच्चा साथी देना ही होगा… जिसके पास उसकी बातों को सुनने का समय होगा… और इसे इसी बहाने अब तो एक नया काम भी मिल जाएगा…!”
“और तू… तू कैसे करेगी यह सब…!”
” मैं कैसे करूंगी… सब तो हो ही जाता है किसी न किसी तरह…!”
” अच्छा चल ठीक है… जब तू तैयार है तो मुझे क्या… अब कहीं और देर ना हो जाए…!”
सचमुच घर में नए मेहमान के आ जाने से जैसे घर की रौनक ही बदल गई…कितने जतन और प्यार से श्रेया ने उसे अपनी बाहों में भर लिया…अब कोई अकेलापन नहीं था घर में…!
स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित
रश्मि झा मिश्रा
ये मेरी निजी सोच है…अगर किसी को कोई आपत्ती है तो मैं माफी चाहती हूं…!