“कही देर ना हो जाए” – कविता भड़ाना : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: “क्या कहूं अब तुमसे जानेमन, मैं तो “आनंद” फिल्म की “राजेश खन्ना” हो गई, वो तीन घंटे की फिल्म थी और मेरी तो जिंदगी ही सिर्फ तीन महीने की रह गई बाबू मोशाय…पति अमित को ऐसा कहकर कनिका ने राजेश खन्ना के स्टाइल में ठहाका लगाया पर इस हसीं में दबा हुआ गम ना छुपा

सकी और आंखों के रास्ते छलक ही गया”… तरह तरह के टेस्टों और हॉस्पिटल के चक्कर लगा कर कनिका शारीरिक रूप से तो टूट ही चुकी थी और अब तो मानसिक पीड़ा ने भी जैसे अपना भरपूर योगदान देने का ठान लिया था।

कुछ समय से चल रही अपनी शारीरिक पीड़ा को मामूली समझकर कनिका ने किसी को कुछ नही बताया, दर्द असहनीय होने पर दर्द निवारक गोली ले लेती और लग जाती अपनी छोटी सी गृहस्थी को संवारने में…

तीन महीने पहले लगातार दस दिनों तक जब कनिका की माहवारी नहीं रुकी तो उसने एक दिन अपनी डॉक्टर को दिखाया, जांच करने के बाद डॉक्टर थोड़ी चिंतित दिखीं तो कनिका ने पूछा..”क्या कोई गंभीर बात है डॉक्टर” 

उसकी बात का जवाब ना देकर उल्टा डॉक्टर ने ही कनिका से पूछा….आपको ये परेशानी कब से है?

 जी चार पांच महीने से कभी कम होते है तो कभी ज्यादा, समय से पहले भी हो जाते पर कोई ज्यादा दिक्कत नही होती थी तो मैंने अधिक ध्यान नहीं दिया, लेकिन इस बार पंद्रह दिन बाद ही डेट आ गई और आज दस दिन हो गए है साथ ही भयंकर पीड़ा भी हो रही है जो कई कई गोली खाकर भी कम नहीं हो रही…

कनिका ने बताया तो डॉक्टर थोड़ी गुस्से से बोली आखिर आप महिलाएं अपने आप को इतना धोखे में क्यों रखती है, क्यों नही समझ आता की आपके शरीर को सही देखभाल और समय पर डॉक्टर को दिखाना भी जरूरी होता है,

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खुद ही घरेलू इलाज और दवाइयां खाकर अपना इलाज कर लेती है जो कितना घातक हो सकता है आप सोच भी नही सकती… खैर कल सभी टेस्टों की रिपोर्ट आ जायेगी तो तभी मैं आपका इलाज कर पाऊंगी, अभी के लिए ये इंजेक्शन दे रही हूं इससे आपको दर्द में आराम आ जायेगा और हां कल अपने पति को भी साथ लेकर आए, उनसे भी कुछ बात करनी है…

 कनिका जब घर पहुंची तो दोनों बच्चे उसकी राह देख रहे थे…अरे मम्मा आप कहा थी इतनी देर से? दसवीं में पढ़ने वाली बड़ी बेटी सिया बोली तो छोटा बेटा जो अभी छठी कक्षा में है बोला, मम्मा आप के बिना दीदी मुझे बहुत डांटती है और शिकायत करता हुआ कनिका से जा चिपका, कनिका ने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और किसी अनहोनी की कल्पना से कांप सी उठी…

शाम को पति अमित के घर आने पर कनिका ने डॉक्टर की कही सारी बात बताई तो वह भी चिंतित हो गया… अगले दिन बच्चो को स्कूल भेजकर कनिका अमित के साथ डॉक्टर के पास पहुंची तो उसने दोनों को बैठने का इशारा किया और बोली सभी टेस्टों की रिपोर्ट आ चुकी है और मुझे ये बताते हुए खेद है कि कनिका को बच्चेदानी का कैंसर हुआ है, वो भी लास्ट स्टेज पर है,

जोकि अब इनके पूरे शरीर में फैलता जा रहा है जिसका असर इनके दूसरे सभी ऑर्गन पर पड़ चुका है, ऐसा सुनकर अमित और कनिका सकते में आ गए अरे अभी तो चालीस भी पूरे नही हुए और ऐसी खतरनाक बीमारी कैसे???…. 

 डॉक्टर ने बताया की अगर आपने शुरू के महीनों में ही ध्यान दिया होता, डॉक्टर से सलाह ली होती तो शायद आपकी बीमारी इतनी बढ़ती ही नहीं, हम बच्चेदानी को निकाल देते तो कैंसर दूसरे ऑर्गन तक शायद अपना असर नहीं कर पाता लेकिन अब देर हो चुकी है आप चाहे तो दूसरे डॉक्टर की भी सलाह ले सकते है पर आपके पास अब तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बचा है….

 सुख से कट रहे जीवन की बरसात में दुःख के इस रेगिस्तान के आ जानें से हंसता खेलता परिवार आज उजड़ चुका था.. इसके बाद के सफर में कनिका और अमित के जीवन में बहुत परीक्षाएं आई, बच्चों को देख देख कर बीमार कनिका का कलेजा चीत्कार कर उठता, कहीं कोई आस ना थी, 

फिर भी अपने बच्चों और पति की खातिर कनिका दर्द भरी चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजरी की शायद कोई दवा असर कर जाए लेकिन काल के क्रूर हाथों से बच ना पाई और दो महीने में ही दुनियां को अलविदा कह दिया… वो तो चली गई पर एक मां की आत्मा अपने बेजान पड़े शरीर पर बिलखते हुए अपने बच्चों को

देखकर तड़प रही थी वही कोने में चेतना विहीन पति को देख एक ही सवाल उसे झंझोड रहा था के काश थोड़ा अपना भी ध्यान रख लिया होता तो आज उसका परिवार ऐसे उजड़ता नही और संताप करती हुई सफ़ेद पुंज में समा गई।

 स्वरचित, मौलिक रचना

 #सुख दुःख

 कविता भड़ाना

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