hindi stories with moral : पापा… जब भी मेरी याद आए, मेरी गुड़िया से बातें कर लेना कविता अपनी विदाई की घड़ी में अपने पापा अशोक जी से कहती है…
अशोक जी: बेटा तू जिस तरह इस घर में खुशियां बिखेरती थी, अपने उसे घर में भी इसी तरह खुशियां बिखेरना… अशोक जी के इतना कहते ही कविता बीच में ही बोल पड़ती है… हां हां जानती हूं अब तो आप यह कहेंगे, कि अब वही घर मेरा असली घर है, उसकी जिम्मेदारियां पहले निभाना…
अशोक जी: नहीं मैंने ऐसा कब कहा तुझे..?
कविता: हां आपने नहीं कहा, पर दादी मम्मी जब से शादी तय हुई है यही तो कहते आई है, फिर आप भी तो वही कहोगे ना..?
अशोक जी: बेटा आज तुझे मैं जीवन की एक सबसे बड़ी सच्चाई बताना चाहता हूं, खास कर यह बातें तुम लड़कियों के लिए ही है, और शायद ही आज से पहले कोई पिता ने अपनी बेटी से ऐसी बात कही होगी… बेटा, तुम अपने जीवन में सबके लिए बहुत कुछ करोगी, आज तक तुम बेटी और बहन थी, अब तुम पत्नी बहू का किरदार निभाओगी.. काफी सारे रिश्ते नए बनेंगे और मिलेगा नया घर परिवार, पर फिर भी वह तुम्हारा घर नहीं कहलाएगा, इसे तुम्हारा मायका और उसे तुम्हारा ससुराल ही कहा जाएगा,
कभी जो तुमसे कोई गलती हुई तो वह कहेंगे यह तुम्हारा घर नहीं है जो यह सब यहां चलेगा, तब तुम्हें इस घर की याद आएगी, पर तुम यहां आने से पहले भी संकोच करोगी, क्योंकि तुम्हें लगेगा यहां सभी परेशान होंगे… बेशक बेटा, अपने रिश्ते अपने घर परिवार को सबसे ऊपर का दर्जा देना और उसे निभाने में कोई कसर मत छोड़ना… पर बात अपने आत्म सम्मान तक ठेस न पहुंचे, तब तक ही अपने झुकने की गुंजाइश रखना
कविता: पर पापा आप कहना क्या चाह रहे हैं..? जरा खुलकर बताइए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..
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अशोक जी: बेटा मैंने तुम्हें पढ़ लिख कर इस काबिल तो बना दिया कि तुम अब अपने दम पर अपना एक घर ले पाओ, जो तुम्हारा हो, कभी जो सुकून की दो पल चाहो, तो किसी से भी संकोच करने की जरूरत ना पड़े…
कविता अपने पापा के इस बात को जहन में रख अपने ससुराल चली जाती है… पर वह इस बात की गहराई को समझ नहीं पाती, उसने अपनी शादी से पहले कई परीक्षाएं दी थी नौकरी की, तो उसका एक नौकरी में चुनाव भी हो जाता है, इस बात से उसका पूरा परिवार बड़ा खुश होता है
फिर धीरे-धीरे वह नौकरी और घर दोनों संभालने लगती है, वह अपने जीवन में इतनी व्यस्त हो जाती है कि उसे अपने मायके जाने तक की फुर्सत नहीं थी… एक दिन उसके ऑफिस से लौटने में देर हो गई और जब वह आए तो देखा किसी ने भी उसका इंतजार नहीं किया… सब खा पीकर मजे से टीवी देख रहे थे.. वह इतनी थकी थी कि बस फ्रेश होकर लेटी ही थी कि उसकी आंख लग गई और जब आंख खुली तो सुबह हो चुकी थी और उसका पति रवि ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था
कविता: अरे आपने मुझे जगाया नहीं..? कल रात मुझे तेज भूख लगी थी पर मैं सो गई, पर आप तो मुझे जगा सकते थे ना..?
रवि: तुम्हें अपनी भूख, अपनी नौकरी बस इन सब की ही परवाह है ना..? कभी इस घर की जिम्मेदारियों की भी परवाह कर लिया करो… वह क्यों करोगी..? उसके लिए तो है ना मेरी मम्मी…
कविता: रवि, आप ऐसे-कैसे बोल सकते हो..? मैं क्या घर के लिए कुछ नहीं करती..? अरे यह घर मेरा भी तो है, मुझे भी इसकी परवाह है..
रवि: गलत, यह घर मेरा है और इसलिए मैंने अब तय किया है कि इस घर में जो मैं कहूंगा वहीं सबको करना पड़ेगा… तुम्हें भी, तुम यह नौकरी छोड़ सिर्फ घर की जिम्मेदारियां निभाओ और जो नौकरी करनी है तो घर के सारे कामों के साथ
रवि के इतना कहते ही कविता को अपने पापा की बात याद आ गई, और उसने सोचा मेरे दिमाग से पापा की वह बात निकल कैसे गई..? पर अभी भी देर नहीं हुई है, यह सोचने के बाद कविता कहती है, ठीक है मैं नौकरी के साथ पूरे घर की जिम्मेदारी भी संभालूंगी… उसके बाद से कविता सुबह चिड़ियों के साथ जगती और रात पूरी दुनिया के सोने के बाद सोती, इसी दौरान उसने अपना फ्लैट ले लिया, पर इस बात की खबर उसने किसी को भी नहीं दी… एक रोज कविता ऑफिस से लौटते हुए सबके लिए होटल से खाना लेकर आती है,
ताकि उसे घर जाकर खाना बनाना ना पड़े, क्योंकी एक तो वह बीमार थी और दूसरा उसे लौटने में लेट हो गया था.. उसके घर आते ही रवि उसे पर बरस कर कहता है… क्या कहा था मैंने..? तुम्हें घर की जिम्मेदारी पहले रखनी होगी आज तुम्हें अपनी नौकरी और इस घर में से एक का चुनाव करना पड़ेगा
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कविता की सास: अब दफ्तर वाले तो रखेंगे नहीं, घर ही चुनेगी तुझे तो उसी दिन इसकी नौकरी छुड़ा देनी थी… भगवान के दया से तू अच्छा कमा लेता है, फिर इस महारानी को बन ठन कर काम पर जाने की क्या जरूरत.?
कविता: सही कहा मम्मी आपने… रवि तो अच्छा कमा लेते हैं फिर मुझसे पैसे मांगने की क्यों जरूरत पड़ती..? घर का राशन हो या आपका किसी को तोहफा देना, मुझसे पैसे मांगने की क्या जरूरत..? यह तो अच्छा कमा ही लेते हैं और एक बात मेरे पास घर चुनने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है… पर वह यह घर नहीं, मेरा घर होगा
रवि: हां जिस मायके पर इतना इतरा रही हो ना..? वहां तुम्हारे भैया भाभी 2 दिन में ही तुम्हें भगा देंगे… शादी के बाद लड़की का असली घर उसका ससुराल ही होता है, जो उसे वहां जगह नहीं मिली तो कहीं भी जगह नहीं मिलती.. यह मत भूलना..
कविता: मैंने कब कहा कि मुझे मेरे मायके जाना है..? पता है मेरे पापा ने मेरी विदाई पर कहा था, कि बेटा एक लड़की को हमेशा ही यह सुनना पड़ता है कि वह दूसरे घर से आई है और यह तो दूसरे घर की अमानत है.. उसका पूरा जीवन दे देने के बावजूद उसका कोई घर अपना नहीं होता और इसी बात को सोचते हुए उन्होंने
हमेशा मुझे अपने दम पर एक घर ले लेने को प्रेरित किया… यह इसलिए नहीं कि उन्हें आप लोगों के बारे में पता था और ना ही वह मेरा घर तोड़ना चाहते थे, बल्कि इसलिए कि जो कभी आज जैसा दिन आए तो मैं सर उठाकर अपने खरीदे हुए घर पर जाकर चैन की नींद ले पांऊ…
रवि: क्या कहना क्या चाहती हो तुम..?
कविता: यही कि मैं अपने फ्लैट में जा रही हूं और अब आपको चुनाव करना है मुझमें और अपनी सोच में… बेशक यह घर आपका है, पर परिवार हम दोनों का.. अगर मैं आर्थिक तौर पर आपकी मदद कर रही हूं तो आप घर के कामों में मेरी मदद क्यों नहीं कर सकते..? जब औरत पैसे कमा सकती है तो पुरुष बर्तन क्यों नहीं मांझ सकता..? आज मैं अपने घर में जा रही हूं.. आपका फैसला जो भी हो बता देना..
कविता वहां से जाते हुए अपने पापा को सलाम कर रही थी कि जहां आजकल कई बाप अपनी बेटी के पैदा होने पर रोते हैं, वही एक ऐसे पिता भी है जो बेटी को ऐसे सशक्त बनाते रहे…
रोनिता कुंडु
धन्यवाद
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