सुधा कितने वर्षों बाद आज गांव आई थी। बड़े पापा का पचहत्तरवां जन्मदिन जो था! आखिर बड़े पापा ने ही सारे परिवार को एक सूत्र में बांध रखा था। पूरा परिवार इक्ट्ठा हुआ था। पूरे बयालीस लोगों का परिवार! हर तरफ हंसी ठठे की आवाज़, छोटे छोटे बच्चों को खेलता देखकर सुधा को अपना बचपन याद आ गया।
याद आया कैसे मुन्ना भैया, पुनम दी , नंदन के साथ वो मेले जाती थी। मेले में नंदन उसका हाथ पकड़कर उसे घुमाता था, मुन्ना भैया की सख्त हिदायत थी,” नंदु सुधी का हाथ बिल्कुल मत छोड़ना। वो खो गई तो तेरी खैर नहीं!”
कितनी अजीब बात है ना, वो तो नहीं खोई, नंदु खो गया। नंदु ….………..
नंदु सुधी के बड़े पापा के दोस्त का बेटा था।एक ही बड़े से मकान में रहने वाले दो पड़ोसी किराएदार जो एक ही परिवार जैसे थे।
सुधी और नंदु हमउम्र थे साथ साथ खेलते पढ़ते बढ़े हो रहे थे। कुछ समय पश्चात सुधी का परिवार अपने कारोबार के लिए दूसरे शहर चला गया।
कुछ समय खतों का सिलसिला चला फिर संपर्क टूट गए क्योंकि उस समय मोबाइल तो थे नहीं कि संपर्क आसान होता।
समय बीतने के साथ नई पीढ़ी बड़ी हो गई और सब अपने जीवन में व्यस्त हो गए।
इंटरनेट आ जाने से और सोशल साइट्स की सहायता से अब संपर्क में रहना आसान हो गया था।
सुधा भी अपने भूले बिसरे दोस्तों को खोजकर खोए हुए रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में थी। ऐसे खोजते खोजते उसे एक दिन नंदन की बहन राशि सोशल साइट पर मिली।
आपस में बातचीत हुई और सब फिर संपर्क में आ गए।
पता चला कि वह सब अब एक ही शहर में रहते है ।
पारिवारिक मिलन का सुअवसर प्राप्त हुआ तो सब सुधा के घर एकत्र हुए।
हँसी ठहाकों के बीच सुधा का ध्यान अपने बचपन के दोस्त नंदन पर था जो सब के बीच होकर भी जैसे वहाँ नहीं था।
बातों बातों में पता चला कि नंदन की पत्नी बेटी को लेकर हमेशा के लिए मायके चली गई है।
यह शादी उसकी मर्जी के बिना हुई थी और अक्सर वह इसी तरह घर छोड़कर चली जाती थी ।नंदन हर बार उसके मायकों वालों के उसे यहाँ छोड़कर जाने और माफी मांगने पर उसे माफ कर देता था।
पर अब उसकी पत्नी ने ना सिर्फ यहाँ आने से मना कर दिया था वरन् उसके और परिवार के खिलाफ केस भी कर दिया था। रिश्तेदार और समाज भी उनके खिलाफ हो गए थे।
परिवार और नंदन को सबूतों के आधार पर केस से छुटकारा तो मिल गया पर रिश्तों में कड़वाहट घुल गई। ऊपर से उसकी पत्नी ने केस कर के उसकी बेटी से मिलने पर कोर्ट की पाबंदी लगवा दी थी।तलाक का केस भी पिछले 5 साल से चल रहा था।
मानसिक तनाव के चलते नंदन जो बचपन से ही धीर गंभीर कम बोलने वाला इंसान था वह ओर भी चुप हो गया। और धीरे धीरे एक होनहार इंजीनियर डिप्रेशन का शिकार होकर कई बार अपनी जान लेने की कोशिश कर चुका था।
एक इंसान की गलती और स्वार्थपरकता ने ना सिर्फ नंदन अपितु पूरे परिवार के साथ गलत कर उन्हें अविश्वास और कड़वाहट से भर दिया था।
एक भले इंसान की जिदंगी खराब कर दी थी जिसका शायद उसे कोई अफसोस भी नहीं था।
यह सब सुन सब सकते में थे।सुधा अपने दोस्त की हालत देखकर दुःखी थी। उसकी आँखों में आँसु थे।पर नंदु सबसे बेखबर गुमनामी में खो चुका था।
नंदु को देखकर सुधा के दिमाग में एक ही ख्याल आ रहा था कि——-
हमेशा गलत लड़कों को ही कहा जाता है कि उत्पीड़न सिर्फ लड़कों द्वारा किया जाता है और सिर्फ लड़कियाँ सहती है पर यह पूरा सच नहीं । अनेक लड़के भी उत्पीड़न के शिकार होते है , महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग कर बहुत सी लड़कियाँ लड़कों के जीवन को बर्बाद कर देती है।
तो फिर सजा तो उन्हें भी मिलनी चाहिए ना । आखिर
गलत दोनों में से चाहे जो भी करे है तो गुनाह ही ना ।
स्वरचित
स्वाती जितेश राठी