महिमा बचपन से देखती आ रही थी कि उनके घर में सिर्फ़ पिताजी ही बोलते हैं। इस घर में राघवेंद्र जी का राज ही चलता रहा ।
माँ सवित्री जी ने कभी भी अपना मुँह पिताजी के सामने खोला ही नहीं था। उनके घर पर जो भी आते थे उन्हें ऐसा लगता था कि माँ गूँगी है ।
पिताजी ही नहीं किसी और को भी यह बात नहीं मालूम था कि माँ उसे बैठाकर बहुत सारी बातें करती थी ।
अपनी इच्छाओं के बारे में बताती थी कि उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था परंतु उनके पिताजी ने उन्हें पढ़ने नहीं दिया था और उम्र में उससे दस साल बड़े व्यक्ति के साथ उसका ब्याह कराया और अपनी ज़िम्मेदारी से छुटकारा पा लिया था । यहाँ ससुराल में पति की ही चलती है उनके माता-पिता भी उनके सामने मुँह नहीं खोल सकते थे । इसलिए वह किस खेत की मूली थी तो वह भी गूँगी बनकर जीने लगी थी ।
महिमा को हमेशा यह सीख देती थी कि बिटिया तुम अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ना मैं तुम्हारा साथ जरूर दूँगी ।माता-पिता के रिश्ते को देखने के बाद शादी के नाम से ही उसके मन में एक कड़वाहट सी आ गई थी । महिमा ने मन ही मन यह तय कर लिया था कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके रहूँगी । माँ ने भी मन में सोच लिया था कि महिमा के साथ ऐसा नहीं होने दूँगी ।
महिमा पढ़ने में बहुत ही होशियार थी । अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आती थी इससे भी पिताजी खुश नहीं रहते थे ।
दसवीं की परीक्षा फल निकला और महिमा ने स्टेट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था ।
वह खुश होकर माँ को अपना परीक्षा फल सुनाने के लिए घर पहुँची । माँ ने खुशी
से उसकी कामयाबी पर बधाई दी और उसे गले लगाया ।
वे दोनों ने अभी अपनी ख़ुशी को ठीक से मनाभी नहीं सके थे कि पिताजी ने हड़बड़ा कर घर में घुसकर कहा कि सावित्री महिमा को तैयार करो उसे देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं।
सावित्री का माथा ठनका लेकिन पति के सामने उसकी ज़ुबान खुलती नहीं थी । इसलिए बेमन से उसने महिमा को तैयार किया परंतु मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि महिमा को वे लोग पसंद ना करें ।
ईश्वर से प्रार्थना का कोई असर नहीं पड़ा और महिमा की शादी उससे भी पंद्रह साल बड़े राजेश से हो गई थी ।
राजेश उम्र में ही नहीं बल्कि शारीरिक रूप से भी महिमा का पिता लगता था । एक बार वे दोनों सिनेमा देखने गए थे तो राजेश के किसी पहचान वाले ने पूछा अरे राजेश बिटिया को साथ लेकर सिनेमा देखने आए हो यह तो बहुत बड़ी हो गई है ।
उस दिन के बाद से राजेश महिमा को लेकर बाहर नहीं गया । यहाँ तक तो ठीक था पर उसने महिमा को किसी से बात करने भी नहीं देता था ।
एक दिन महिमा की बुआ का लड़का आया था । महिमा उसके साथ हँसकर बातें करती है और उसे चाय नाश्ता कराती है । वह उसे भैया करके ही बुला भी रही थी फिर भी यह राजेश को पसंद नहीं आया और उसने उस लडके के जाने के बाद महिमा की बेल्ट से खूब पिटाई की थी ।
महिमा के दिल को बहुत ठेस पहुँची और
रात को राजेश को सोते हुए छोड़कर थोड़े से कपड़े बैग में रख कर वह घर से बाहर आ गई और अपनी माँ को डरते हुए फोन किया वह डर रही थी कि माँ की जगह पिताजी ने फ़ोन उठाया तो क्या करूँगी ।
माँ ने ही उसका फ़ोन उठाया और कहा कि महिमा तुमने बहुत ही अच्छा कदम उठाया है । मैं तुम्हारे इस फ़ैसले से खुश हूँ बेटा । तुम खूब पढ़ाई करो और अपनी जैसी औरतों के लिए मिसाल बनो । मैं तुम्हें हौसले के अलावा कुछ नहीं दे सकती हूँ ।
तुम मेरी मजबूरी को समझती ही हो ना बेटा । महिमा ने कहा कि आपका हौसला ही मेरे लिए बहुत है मैं अपने आप को सँभाल लूँगी आप मेरी फ़िक्र मत करना । मैं आपको फ़ोन करती रहूँगी ।
महिमा एक कपड़े की दुकान में सेल्स गर्ल की नौकरी करने लगी । वह बहुत मेहनती थी धीरे-धीरे उस शाप का नाम होने लगा था । उस शाप के मालिक नारायण सिंह जी ने सभी कर्मचारियों को बोनस दिया तो महिमा ने उनसे कहा कि आप मुझे यह पैसे मत दीजिए परंतु रात को यहाँ शाप में ही रहने की इजाज़त दे दीजिए । उन्होंने कहा कि अब तक कहाँ रहती थी ।
आज तक मैं सहेली के घर पर रह रही थी उसके पति टूर पर गए हुए थे पर आज उसका पति कैंप से वापस आ गया है । मैं सोच रही थी कि कहाँ जाऊँ । नारायण सिंह जी भले मानस थे । उन्होंने महिमा को वहाँ रहने की इजाज़त दे दी ।
एक दिन बातों बातों में उन्हें पता चला कि महिमा रात को इंटर की परीक्षा की पढ़ाई की तैयारी कर रही है । उसकी पढ़ाई पर निष्ठा देखते हुए उन्होंने उसे पढ़ने के लिए सारी सहूलियतें दीं साथ ही उससे कहा कि वकालत की पढ़ाई करो मैं तुम्हारी मदद करूँगा ।
यह सब एक दो महीनों में नहीं हुआ । उसने वकालत की पढ़ाई समाप्त की एक बड़े वकील के साथ असिस्टेंट का काम करने लगी थी । वहीं पर काम करते हुए उसे एक केस लड़ने का मौक़ा मिला था ।
वह एक ऐसी महिला के लिए था जिसने अपने ही पति का खून बड़ी ही बेदर्दी से कर दिया था ।
उसका केस कोई लड़ना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि यह केस बहुत वीक है इसे लड़ना ना लड़ने के बराबर है ज़बरदस्ती में नाम ख़राब हो जाएगा ।
महिमा ने इस केस को चैलेंज के रूप में लिया और उस औरत को जिसका नाम मंजू था उसे इंसाफ़ भी दिलाया था मजे की बात यह थी कि मंजू ने जिस व्यक्ति को मारा था वह महिमा का पति ही था ।
महिमा के घर से भागने के बाद उसने मंजू से शादी कर ली थी । महिमा को जिस तरह से सताया था वैसे ही मंजू को भी सताया करता था । एक दिन उसकी मार से तंग आकर ग़ुस्से में आकर उसने राजेश को मार दिया था महिमा ने अपने अनुभवों को भी जोड़कर मंजू को इंसाफ़ की केस लड़ी और दिलाने में सफल हो गई थी ।
उस केस के बाद महिमा का फ़ोटो पेपर में देखकर आश्चर्य चकित हुआ और उसने सावित्री को फ़ोटो दिखाकर पूछा कि यह देख रही हो तुम्हारी बेटी क्या गुल खिला रही है । मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा है । उन्होंने सोचा था कि सावित्री को भी आश्चर्य होगा परंतु उन्होंने पहली बार पति के सामने मुँह खोला और कहा मुझे सब कुछ मालूम है ।
मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ आपको साथ आना है तो आइए वरना मैं चली । पिताजी को मजबूर होकर उसके हाँ में हाँ मिलानी पड़ी ।
किसी भी लड़की को चाहे वह गरीब घर से ही क्यों ना हो उसे मारने का अधिकार किसी को भी नहीं है । इस तरह की गृह हिंसा से ही लड़कियों के दिल में शादी के नाम से ही कड़वाहट भर जाती है ।
उन्हें पता होना चाहिए कि इस तरह से पत्नी पर अत्याचार करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलती है बस थोड़ी सी हिम्मत करके आगे आएँ । कड़वाहट भरे हादसों से निकलने के लिए खुद प्रेरित होकर दूसरों के लिए भी प्रर के स्रोत बनं तो उन्हें मुँह तोड़ जवाब मिले।
के कामेश्वरी