अरे आज तो विभु बड़ा मन लगाकर पढ़ाई कर रहा है।
पढ़ाई नहीं कर रहा बुआ जी.. पापा ने यह कविता याद करने को कहा है यह मैंने पूरी याद कर ली, पता है आपको यह कविता पापा को भी बहुत पसंद है और उन्हें पूरी याद भी है।
अच्छा !!!! ऐसी कौन सी कविता है जरा हमें भी तो सुनाओ।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे- धीरे।
अरे वाह!!! यह कविता तो हमारे खानदान में पापा ने सबको रटवाई है.. अब इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है।
जरा मुझे भी तो बताईये दीदी ऐसा क्या है इस कविता में जो आप सबको इससे इतना लगाव है??
क्यों कभी माँ ने या भाई ने नहीं बताया तुम्हें??
नहीं.. पर इस सवाल के साथ ही उनके चेहरे पर उदासी छा जाती है तो फिर मैं भी बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ देती हूँ लेकिन इसके पीछे कोई गहरा राज़ है इतना अवश्य जानती हूँ। आप बताईये न दीदी क्या बात है जो इस कविता से जुड़ी है।
बात यह है शिल्पी कि हमारे खेत में बहुत पुराना एक कदंब का पेड़ है जिस पर हम सबको नाज़ है।
तो फिर इसमें दुःखी होने वाली कौन सी बात है यह तो अच्छी बात है मैंने तो यमुना किनारे कृष्ण लीला में ही इसका जिक्र सुना है कभी देखा नहीं। आप कल मुझे खेत पर दिखाने ले चलेंगी न दीदी।
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यह क्या??? इसका जिक्र छिड़ते ही आपकी आँखें क्यों भीग गई दीदी?
क्योंकि जिस खेत में वह पेड़ था वह अब हमारा नहीं है पापा को बिजनेस में बहुत बड़ा घाटा हो गया था और दिल पर पत्थर रख कर उन्हें यह खेत बेचना पड़ा लेकिन हम सब और पापा भी उसके साथ जुड़ी भावनाओं को आज भी नहीं भूल पा रहे हैं।
ओह!! आज समझ में आया इसका जिक्र आते ही पहले खुशी और बाद में उदासी के भाव एकसाथ क्यों होते हैं सबके चेहरे पर।
इस बात को 15 वर्ष गुजर गये विभु बड़ा होकर जॉब करने लगा मैं भी इन सब बातों को भूल गई। समय की यही सबसे बड़ी खासियत है कि वह सुख और दुख दोनों समय की यादों को धुंधला कर देता है लेकिन कुछ घटनाएं जीवन में ऐसी होती हैं जो हमेशा नश्तर की तरह चुभती रहती हैं जो रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेती हैं।
विनीत और उसके भाई का भी यही हाल था और इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि उनकी पत्नियों को पुरखों की जमीन जाने का सबसे बड़ा अफसोस था कहते हैं न कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता कुछ काम परिवार के सहयोग से सरल हो जाते हैं।
एक दिन सुबह सुबह शिल्पी का फोन आया.. दीदी आपको एक खुशखबरी सुनाऊँ??
अरे नेकी और पूछ- पूछ.. जल्दी बताओ न।
दीदी हमने अपने पुरखों की जायदाद वह कदंब के पेड़ वाला खेत फिर से खरीद लिया है आप सोच भी नहीं सकती दीदी कितनी मुश्किल से कर पाए यह हम.. चाहते तो दूसरा भी ले सकते थे लेकिन हमें वही चाहिए था जिसकी मिट्टी में हमारे पुरखों के खून पसीने की खुशबू समाई हुई थी इसके हम मुँह मांगे दाम देने को तैयार थे.. दीदी आप सोच भी नहीं सकती जब हमने यह बात पापा को बताई तो खुशी से उन्होंने हमें सीने से लगा लिया और माँ के तो आँसू ही नहीं रुक रहे थे।
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शिल्पी आज मेरे भी दिल को बड़ा सुकून मिला यह सुनकर.. तुम लोगों ने जो किया वह अविश्वसनीय ही नहीं अकल्पनीय भी है इतने सालों बाद अपनी ही जमीन को दस गुनी कीमत देकर वापस ले लेना ताकि वह मुस्कान सबके चेहरों पर वापस आ सके वाकई काबिले तारीफ है।
हाँ दीदी अब परिवार में.. कदंब के पेड़.. वाली कविता पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी और चलती रहेगी इस गर्व की अनुभूति कि जो खोया था वह पा लिया हमने सच में दीदी परिवार की खुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं।
#परिवार
स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर