नई नवेली विभा गुमसुम सी अपने कमरे में बैठी हुई थी उस की शादी को अभी 4 दिन ही हुए थे धूमधाम से उसकी शादी एक कंपनी में मैनेजर की जॉब करने वाले वैभव के साथ हुई थी अभी वह शादी की खुशियां ठीक से मना भी नहीं पाई थी कि एक दिन घर में कुछ काम करते वक्त उसकी सास लाजवंती को दिल का दौरा पड़ गया था।
तब उसके पति वैभव और ननंद पूजा उसकी सास को तुरंत अस्पताल ले गए थे सांस की हालत देखकर डॉक्टर ने तुरंत उन्हें आई.सी.यू. में भर्ती कर दिया था और उनका इलाज करना आरंभ कर दिया।
अपनी सास के बारे में सोच कर बेचारी विभा की सारी खुशियां गम में बदल गई थी। उस दौरान उसकी मुंह दिखाई करने के लिए आई कई औरतें विभाग की तरफ देखकर आपस में बातें करते हुए कह रही थी कि ‘कैसी बहू आई है? आते ही सास अस्पताल पहुंच गई। बड़ी ही निर्भाग है यह तो। घर में कदम पड़ते ही सास बीमार हो गई।’
उन औरतों की बात सुनकर विभा का मन बैठा जा रहा था। वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि उसकी सास ठीक हो कर घर आ जाए।
उधर अस्पताल में डॉक्टर अच्छी तरह से लाजवंती का उपचार कर रहे थे। विवाह में ज्यादा तला हुआ भोजन खाने के कारण उसका रक्तचाप बेहद बढ़ा हुआ था जिसकी, वजह से उसे दिल का दौरा पड़ा था। डॉक्टर ने उपचार करके दवाइयों के द्वारा बीमारी पर नियंत्रण पा लिया था।
जब कुछ दिन बाद लाजवंती की तबीयत ठीक हो गई तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। लाजवंती के ठीक हो कर घर आने पर विभा बेहद खुश हुई थी परंतु, उन औरतों के द्वारा कही बातें उसके मन को कचोट रही थी।
विभा अपनी सासू मां के पास बैठकर उनका हाल चाल पूछ रही थी कि तभी वे सब औरतें उसकी सासू मां को देखने आ गई जो उसे ताना मार रही थी।
विभा उनके लिए चाय लेने गई तो वे औरतें फिर से वही बात करने लगी और विभा की तरफ अपेक्षा भरी दृष्टि से देखते हुए लाजवंती से नीलम नाम की एक औरत बोली ‘तुम्हारी बहू के कदम ठीक नहीं है। उसके आते ही तुम बीमार पड़ गई।’
नीलम की सुनकर लाजवंती को बहुत बुरा लगा वह उन्हें समझाते हुए बोली ‘तुम्हारी सोच गलत है। मेरी बहू तो बड़ी भाग्यवान है आज उसकी वजह से ही मेरे प्राण बचे हैं। नहीं तो मैं मर भी सकती थी मेरी बहू के बारे में आज के बाद तुम ऐसी कोई बात नहीं कहोगी मेरी बहू के कदम मेरे लिए शुभ है अशुभ नहीं तभी तो मैं ठीक होकर घर आ गई।’
विभा जब चाय लेकर आई तो उसने अपनी सासू मां की बात सुन ली थी। अपनी सासू मां की बात सुनकर विभा की आंखों में आंसू आ गए। जब वह चाय लेकर उन औरतों के पास गई तो विभा को देखकर उनकी बोलती बंद हो गई थी।
आंखों में आंसू भरकर विभा अपनी सास के पैरों में झुक गई थी तब लाजवंती ने उसे अपने दोनों हाथों से उठाकर प्यार से अपने पास बिठाया और उन औरतों से कहा ‘सुख-दुख तो हमारे जीवन का अंग है और बीमारी तो शरीर में लगी ही रहती है। उसके लिए हम किसी और को दोष क्यों दें?’
विभा के मन में अपनी सासू मां के लिए बेहद सम्मान बढ़ गया था और उसके मन की गलानी भी मिट चुकी थी। लाजवंती की बात सुनकर वे सब औरतें चुपचाप मुंह नीचा करके घर से बाहर चली गई।
दोस्तों जीवन में सुख-दुख तो लगे ही रहते हैं। इसके लिए किसी को दोषी ठहराना गलत बात है। किसी के कदम बुरे नहीं होते बुरी तो लोगों की सोच होती है जिसके कारण वह किसी भी निरपराध को दोषी ठहरा देते हैं इसके बारे में आपकी क्या राय है? कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
बीना शर्मा