कच्चे धागे से बुने रिश्ते – संजय मृदुल : Moral Stories in Hindi

सुनो अखिल! अब तुम्हें मेरा हालचाल पूछने के लिए आने की जरूरत नहीं है, तुम्हारे पापा है मुझे सम्हालने के लिए। जब हमें तुम्हारी जरूरत थी, तब तुम्हे नहीं लगा कि यहां होना चाहिए तुम्हें, तो अब रोज यूँ आकर दिखावा मत करो।

अखिल ने कुछ कहना चाहा, पर माँ ने चादर ओढ़ कर करवट बदल ली। अखिल चुपचाप बाहर आ गया। पिछले दिनों जब कांति को दिल का दौरा पड़ा और आधी रात में अस्पताल ले जाना पड़ा, तब नीरज ने बड़ी हिम्मत से काम लिया। पड़ोसी को कॉल करके बुलाया, दोनों ने मिलकर कांति को कार में बिठाया और अस्पताल ले गए।

एडमिट कराया और सारी औपचारिकताएं पूरी की। नीरज या कांति को  अस्पताल में भर्ती होने और भागदौड़ करने का कभी मौका नहीं लगा था। नीरज भीतर ही भीतर बहुत घबराए हुए थे, मगर हिम्मत दिखा रहे थे। उन्हें लग रहा था कांति के सामने कमजोर न पड़ें। कांति पूरे समय होश में थी, उसे भी खुद से ज्यादा फिक्र नीरज की हो रही थी।

ईश्वर न करे कुछ ऊंच नीच हो गई, तो अकेले कैसे रहेंगे नीरज। ईश्वर की कृपा थी की हल्का सा अटैक आया था। दो ब्लॉकेज थे जिनमें स्टंट डाल कर ठीक कर दिया था डाक्टरों ने।

जब यह घटना हुई, अखिल तब ससुराल में था, अपने साले के नए घर की पूजा के लिए वो सपरिवार वहां गया था। सुबह नीरज ने फोन कर उसे बताया लेकिन वो नहीं आया, “दो दिन बाद पूजा है पापाजी, बहुत सारा काम है यहां, फिर आप अस्पताल तो ले ही गए हैं। मैं सब निपटा कर जल्दी आता हूँ।” इतना कहकर फोन काट दिया।

नीरज ने फिर उसे कॉल नहीं किया चुपचाप सब कुछ स्माहलते रहे। दो दिन आईसीयू में रहकर कांति कमरे में आ गई।

आजकल के अस्पताल इतने सुविधाजनक हो गए हैं की सारी व्यवस्थाएं वहीं हो जाती हैं। न मरीज या अटेंडेंट के खाने की चिंता न रुकने की फिक्र। 

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पांच दिन में हालत काफी सुधर गयी कांति की। इस बीच थोड़ी देर के लिए एक बार आकर उन्हें देख कर अखिल वापस ससुराल चला गया।

बिस्तर में पड़ी कांति सोच रही थी, उसकी परवरिश में कहां कमी रह गई। दो बेटियों के बाद जन्मे अखिल ने जो चाहा वो सब उसे दिया गया। ग्रेजुएशन के बाद उसकी जिद पर एमबीए भी कराया। नीरज को लगा चलो पढ़ाई कर लेगा तो उनके व्यवसाय में फायदा ही होगा। लेकिन पढ़ाई के बाद उसने नीरज के शो रूम में बैठने से मना कर दिया

तो उसके लिए नई दुकान खोल कर दी। शादी के बाद अखिल ऊपर की मंजिल पर रहता है, उसकी अपनी अलग गृहस्ती है। उसकी पत्नी की पटरी बैठी नहीं कांति से, आये दिन की झकझक से परेशान होकर नीरज ने ये निर्णय लिया।

एक दिन अखिल ने कहा उसका बिजनेस अच्छे से नहीं चल रहा तो वो नीरज के शो रूम में बैठना चाहता है। नीरज ने मना किया तो आसमान सर पर उठा लिया पति पत्नी ने। हारकर नीरज उसकी दुकान में जाने लगे और वो नीरज की।

नई दुकान, नया काम अनुभव भी नहीं, फिर भी नीरज ने मेहनत की, दुकान जमाई।

किसी से सुना था कभी कांति ने कि “पूत कपूत तो क्या धन संचय, पूत सपूत तो क्या धन संचय।” अस्पताल से सात दिन के बाद घर आने के पर ये महसूस हो रहा कांति को, की एक समय के बाद बच्चों की प्राथमिकता बदल जाती है, माँ बाप से ज्यादा उनका परिवार जरूरी हो जाता है। बेटियां तो पराई होती हैं

ससुराल में उन्हें सबसे अनुसार चलना पड़ता है, लेकिन बेटे? हमारे देश में पुत्र को कितना स्नेह दिया जाता है, बेटियों से ज्यादा किया जाता है उसके लिए फिर भी एक समय के बाद सब कुछ बदल जाता है।

अखिल की पत्नी दो बहनें थीं। पर गृह प्रवेश में सारी जिम्मेदारी अखिल पर थी, पूजा होने के बाद सब समेटते, मेहमानों के रवाना होने के बाद अस्पताल कांति को देखने आया था वह। इत्तेफ़ाक़ से जब कांति अस्पताल से घर पहुंची उसी समय अखिल का आना हुआ। कांति को लग रहा था जल्दी वापस आ जाता तो उसके साथ वापस आती घर।

लेकिन उसने आते ही कहा- मामा ससुर का घर रास्ते में पड़ता है, उन्होनें बहुत ज़िद की थी रुकते हुए जाएं, इसलिए दो दिन और देर हो गयी। नीरज और कुंती ने कुछ नहीं कहा। जब मुसीबत के समय उसने साथ नहीं दिया तो अब क्या करना।

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अखिल को मना कर के कांति को सुकून का अहसास हो रहा है। एक कच्चा धागे का जोड़ था उनके बीच जो उसने आज तोड़ दिया है। ऐसे रिश्ते किस काम के, भले ही वो अपने खून के क्यों न हो।

©संजय मृदुल

#रिश्तों में बढ़ती दूरियां

VM

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