कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–9) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi

राधिका के शरीर के ऊपर एक तेज रोशनी प्रकाशित हुई और राधिका एक प्रकाश पुंज के आवरण में सुरक्षित हो गई

अब राधिका मूर्छित नही बल्कि उसकी पवित्र आत्मा उसके शरीर से बाहर आ गई थी जिसकी सुरक्षा माता वैष्णो देवी खुद कर रही है…

और शरीर उसी नग्न अवस्था में उस पूंज के आवरण में सुरक्षित हो चुकी थी

अब नवलसुर और राधिका के बीच एक पतले प्रकाश पुंज का आवरण था जिसे भेदना

उस नवलासुर क्या उसके गुरु के वश से भी बाहर था

नवलासुर दहाड़े मार रहा था

जैसे धरती फटती हो

अपनी शरीर को इतना भयंकर बना लिया उसने  की उसे देखकर एक बार मैं भी ये सोचने लगी कि क्या इसी राक्षस ने मेरे शरीर को भोगा

मैं अपने आप से घृणा करने लगी थी

मैं उसके वश में होते हुए भी अब ये चीजें महसूस कर रही थी लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थी

तभी जैसे मुझे कुछ एहसास हुआ

ऐसा लगा जैसे मुझे इस दुनिया से मोहभंग हो रहा हो और अचानक मुझे ध्यान आया

मैं तो देवकन्या हूं

और अपने आप को निर्वस्त्र देखकर सोचने लगी ये किस अवस्था में हू मैं

मैने तुरंत अपनी शक्ति का प्रयोग किया और अपने आपको कपड़ो से ढक लिया

फिर मैं नवलासुर को चीखता हुआ छोड़कर मैने अपने आपको देवलोक के हवाले करने का आहवान करने लगी तभी मैं उस गुफा से अपने आप को बाहर पाया

और सामने वैष्णो माता को साक्षात देखकर मैंने उन्हें प्रणाम किया तथा मैने उनसे अपने आपको देवलोक के हवाले करने का अनुरोध करने लगी..

हे देवकन्या …

एक देवी या देवता का क्या यही कर्तव्य रह गया है की अपने साथ भला करने वालों या अपने भक्तों को विपदा में अकेला छोड़कर भाग जाए?

देवकन्या तुम इस मृत्युलोक से तब तक नही जाएगी जब तक राधिका अपने शरीर में पुनः प्रवेश नही कर जाती…

लेकिन माता

मैं तो शक्तिहीन हूं

मैं भला राधिका की कैसे मदद कर पाऊंगी?

शायद तुमने ध्यान नहीं दिया देवकन्या तुम्हारी शक्ति को मैने वापस कर दिया है लेकिन तुम्हारी मृत्युलोक से वापसी की मुक्ति राधिका की मुक्ति के बाद ही संभव होगी…

लेकिन माता आप भी तो राधिका को मुक्त करा सकती है न अपनी शक्तियों से……( साध्वी बोली)

नहीं…

क्योंकि

नवलासुर का वध एक मनुष्य रुपी छोटी कन्या के हाथों लिखी है

छोटी कन्या?

हां छोटी कन्या…..

उसके जन्म में तुम्ही सहायक होगी

लेकिन ध्यान रहे उस कन्या में कुछ अंश राधिका के होंगे इसलिए उसे उसके उम्र बढ़ने के साथ ही उसकी पिछली जन्म की बातें उसकी स्मृति में आएगी

हो सकता है की वो तुम्हे भी अपने पिछले जन्म के जीवन खोने का कारण मानेगी

और क्योंकि तुम सचमुच एक कारण हो उसके इस हालत का तो तुम्हे उसको मनाना होगा

ये तुम जानो तुम कैसे मनाओगी……

लेकिन माता

मेरा क्या ?

मैं भी तो अपवित्र हो चुकी हूं

हां …

अब शायद तुम्हे कलयुग की शक्ति का अंदाजा हो गया होगा  और इसलिए मनुष्य कलयुग में अपने चाहने वाले इष्ट के नाम जप से ही वो भगवान के बड़े भक्त बन सकते है क्योंकि मनुष्यों को कलयुग के प्रभाव में रहकर भक्ति करना

सतयुग में लाखो वर्षों के तप करने के बराबर फल देती है….

हा माता मैं समझ गई…

मनुष्य होना इतना आसान नहीं है….(साध्वी बोली)

परंतु जबतक तुम मनुष्य रूप में हो तबतक तुम्हारे ऊपर ये पाप के मेल लगे रहेंगे

लेकिन जैसे ही नवलासुर का वध होगा तुम देवकन्या के रूप में परिवर्तित होकर बिलकुल पहले की तरह शुद्ध और निर्मल कया के साथ देवलोक लौटोगी…..

क्योंकि ये सब तुमने अपनी मर्जी से नही करा है ये सब विधि के विधान के अनुसार हो रहा है इसलिए नवलासुर के वध में तुम्हारा भी एक महत्वपूर्ण योगदान होगा

इसलिए तुम देवकन्या के रूप में आते ही पापमुक्त हो जाओगी

और मुझे जाते ही तुम्हारा रूप एक बुढिया के रूप में परिवर्तित हो जाएगा जो उस राक्षस के वध के बाद ही बदलेगा

तुम्हारे पास सारी शक्तियां होगी केवल रूप बदलने और वध से पहले देवलोक लौटने के अलावा

और इस तरह माता अंतर्ध्यान हो गई

मैं अपनी भावना पे काबू रख राधिका के लिए मन में श्रद्धा रखते हुए दर दर भटकने लगी इस इंतजार में की कब राधिका पुनः इस लोक में आएगी और कब मैं मुक्त हो जाऊंगी

उधर राधिका के माता पिता और भाई नारायण का अपनी बहन और साध्वी दोनो के लिए रो रोकर बुरा हाल हो चुका था ।

कई दिन महीने साल बीत गए लेकिन उन दोनो का लौटना नहीं हुआ

रामेश्वर जी अपनी पुत्री के बारे में गलत गलत बातें सुन सुनकर कमजोर पड़ गए उनकी पत्नी की वही स्थिति थी जबकि भाई धीरे धीरे बड़ा होता गया और अपने मन को समझा लिया की अब उसकी बहन कभी नहीं लौटेगी…

राधिका और साध्वी के हाथों राखी बंधवाने के लिए जिस राखी को लेकर नारायण उन दोनो का इंतजार कर रहा था उस राखी को नारायण ने सदा के लिए एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया और प्रत्येक रक्षाबंधन पर नारायण उस राखी को देखकर अपनी बहन को याद करता और रो पड़ता…..

और वो ऐसा अभी भी करता है….

आज भी राधिका के माता पिता जीवित है उनकी उम्र करीब 92 तथा 90 वर्षो की है

नारायण की उमर लगभग 52 वर्षो की है और राधिका अगर  होती तो वो अपने नाती पोतों के साथ खेल रही होती उसकी भी करीब 60 वर्ष की होती…

आज भी ये सभी यहां तक की राधिका भी  अपने लोगो से मिलने के लिए उतने ही व्याकुल रहते है जैसे राधिका के गायब होने वाले दिन थे ….

(बुढ़िया, राघव ,यशोदा और यह तक की वैष्णवी की आंखों में आंसू के सैलाब भरे पड़े थे राधिका की कहानी सुनकर)

अब तो

राधिका की मुक्ति

साध्वी की मुक्ति और

नवलासुर की मुक्ति

सभी की मुक्ति अब बस एक ही हाथ में हैं…….

किसके हाथ में माता?……..( राघव और यशोदा एक साथ पूछा)

वैष्णवी के हाथ में……….

अगला भाग

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