कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–8) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi

माता आप तो देवकन्या है फिर आप पर उस राक्षस का असर कैसे हुआ ……. (राघव ने बुढिया से पूछा)

हा माता ….और आप भी तो माता वैष्णो देवी की एक भक्त ही थी फिर राधिका पर उस राक्षस का असर क्यों नहीं हुआ और आप पर ही क्यों हुआ? ….(यशोदा बोली)

हां मुझ पर ही असर हुआ क्योंकि मैं एक देवकन्या होकर मनुष्यों के बराबरी करने चली थी और मैं मनुष्यों को मूर्ख समझती थी क्योंकि मुझे लगता था की कैसे कोई व्यक्ति धन, संपति, काम ,क्रोध,  लोभ, मद के चक्कर में आकर अपने लोगों के साथ गलत कर लेता है..

ये सब सवाल मेरे मन में थे ही इसलिए माता वैष्णो ने मुझे बिना किसी मदद के इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में भेजा …

इसलिए जब नवल यानी नवलासुर राधिका को छूने का प्रयास भी करता तो उसकी रक्षा माता कर रही थी लेकिन मैं बिना मदद के थी

लेकिन माता वैष्णो देवी राधिका को केवल मंदिर के प्रांगण में संरक्षण दे रही थी ना?…. फिर नवलासुर ने उसे बाहर पकड़ने की चेष्टा क्यूं नही किया था? …. (यशोदा बोली)

क्योंकि

वो डर गया था राधिका का मंदिर के अंदर वाले रूप को देखकर…

फिर आगे क्या है माता?…….(राघव ने सवाल किया)

सुनो

उस रात के अगले दिन मेरी यानी साध्वी को बस एक ही ख्याल रहने लगा

राधिका को नवल के पास कैसे ले जाऊं

रक्षा बंधन के यानी पूर्णिमा के एक दिन पहले राधिका मंदिर में जाकर मत वैष्णो देवी को रक्षा बंधन बांधती थी और अपने तथा अपने भाई और परिवार के लिए मत से सुरक्षा का वचन लेती थी अपने भाव में…

उस दिन भी राधिका ने यही किया…

माता को रक्षा सूत्र बांधकर अपने तथा अपने परिवार जिसमे वो इस बार मुझे भी रख रही थी के लिए अपने भाव में ही सुरक्षा का वचन ले ली

वो कहते है न आप दिल से और सच्चे मन से अपने इष्ट से कुछ भी मांगो आपको जरूर मिलता है

साध्वी अपने होश हवास में नही थी इसलिए नवल के इशारों पर काम कर रही थी

नवल के इशारे मिलते ही पूर्णिमा के दिन राधिका के साथ साध्वी मंदिर जाने लगती है और राधिका का भाई नारायण चहकते हुए बोलता है

दीदी जल्दी आना

मैं राखी बंधवाने का इंतजार कर रहा हूं

अच्छा बाबू मैं आ रही हूं……

वो दिन और आज का दिन राधिका कभी अपने भाई को राखी बांधने अपने घर नही पहुंची……

बुढिया के आंखों से अश्रुधारा बह निकलती है और वो एकटक से वैष्णवी को देखते रहती है…

ऐसा क्या हुआ माता?  …….राघव ने पूछा

अनर्थ हुआ

मेरे ही हाथों से अनर्थ हुआ

मैने राधिका को जिद करके मंदिर में पूजा करने से पहले ही नवल से मिलने का जिद कर बैठी और उसे भी अपने साथ चलने का जिद कर बैठी ….

बस इसी समय का हजारों वर्षों से उस दैत्य को इंतजार था…

उसने मेरे ही हाथों राधिका को बंधक बनवाया और मुझे और अधिक को एक सुनसान गुफा में लेकर गया जो बैंकुठ गांव के आसपास तो नही थी कम से कम

वहां ले जाकर उसने  राधिका को पर मंत्र पढ़कर एक धुएं जैसा गुब्बार छिड़का जिससे राधिका वही मूर्छित हो गई

फिर उसने मूझसे ही राधिका को उस हवनकुंड के आगे लिटवा दिया …

इसके बाद उसने मेरी ओर देखा

मेरे अंदर एकाएक कामोतेजना बढ़ गई और एक एक करके मैंने अपने सारे कपड़े उस राक्षस के सामने उतार दिए ….

फिर उसने हैं कुंड के सामने हीं  मुझे अपने आलिंगन में लेकर वो सबकुछ किया जो पिछले कुछ महीनों से करता आ रहा था

करीब एक पहर बाद उसने अपनी आत्मा को तृप्त करके मुझे अपने आलिंगन से ऐसा झिड़का जैसे मेरा और उसका अब कोई संबंध ही नही था

फिर उसने मेरी आंखों में आंखे डालकर कुछ इशारा किया जिसके बाद मैं राधिका की ओर मुड़कर उसके सारे कपड़े उतारने लगी और एक समय ऐसा आया जब राधिका के जिस्म बिना कपड़ो के था …

नवलासुर ने राधिका के पूरे जिस्म को अपनी वहशी आंखो से ऊपर से नीचे तक झांका और एक कुटिल मुस्कान के साथ उसने हवन कुंड में हवन करना शुरू कर दिया…

राधिका बेचारी मूर्छित अवस्था में थी  मेरे कारण ….(बुढिया सुबकते हुए)

उधर नारायण राधिका का भाई राखी बंधवाने के लिए परेशान था और उसके मां और पिताजी उसे ढूंढने में …

इस तरह से राधिका और साध्वी दोनो का गायब हो जाने से उसके पिताजी को रूपसपुर वाली घटना याद हो आई और वो सहम गए…

पूरे दिन गुजर गए

सारे गांव वाले मिलकर साध्वी और राधिका को मिलकर ढूंढने का संपूर्ण प्रयास कर लिया लेकिन उन दोनो का कुछ पता नहीं चला…

गांव वाले भी अलग अलग बातें बनाने लगे

कोई कह रहा था

अनजान लोगों को घर में रखने का नतीजा है ये

कोई कह रहा था ..

लक्षण खराब होंगे दोनो के इसलिए किसी के साथ भाग गई होगी

अलग अलग लोग अलग अलग बातें

इधर जैसे जैसे रात हो रही थी नवालासुर हवन खतम करने के करीब था

और एक बार जैसे ही हवन खतम हुई

नवालसुर

राधिका को अपने आलिंगन में लेने के लिए अपने जिस्म के सारे कपड़े उतार फेंके और राधिका की ओर बढ़ा…

तभी

अचानक……

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