कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–2) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi

बैकुंठी गांव में अपनी पुत्री को ले जाओ और गांव के बिलकुल सड़क के किनारे माता वैष्णो देवी का मंदिर हैं वहां ले जाकर अपनी पुत्री को माता के दरबार में माथा टीका देना और तुरंत वहां से लौट आना ..

परंतु ध्यान रहे किसी भी ग्रामवासी कi नजर तुम सब पर न पड़े खास कर तुम्हारी पुत्री पर , और अगर ऐसा हुआ तो तुम अपनी पुत्री को वापस नही ला पाओगे वहां से।

पर माता जी (राघव ने टोका)

अगर किसी दूसरे के गांव में जा रहे है तो हम उन्हे वहां आने जाने से कैसे रोक सकते है?

तुम्हारी बात ठीक है पुत्र… बुढिया ने कहा

और अपनी आंचल के किनारे को फाड़ते हुए अपने माथे से लगाकर राघव के हाथ में पकड़ते हुए हिदायत देते हुए कहती है की अगर कोई गांव वाला सामने आ जाए तो तुम ये साड़ी का किनारा अपनी पुत्री के माथे पर लगा कर तबतक रखना जब तक तुम गांव वालो की नजरों से ओझल न हो जाओ….

और एक बात और तुम दोनो पति पत्नी साथ में जरूर जाना नहीं तो फिर अनर्थ होगा तुम्हारे लिए

पर माता तुम ये सब करने के लिए क्यों कह रही हो ?

तुम कौन हो मां?

कहां रहती हो?

एक साथ कई  सवालों के साथ यशोदा बोलती जाती है ..

पिछली बार 5 वर्ष पहले मेरी गोद भरने का उपाय बताकर बिलकुल गायब हो गई थी और दोबारा कही नही दिखी जबकि मैं कितने ही दिनों तक तुम्हारा इंतजार करती रही थी।

और आज फिर से मेरी बच्ची के साथ ये जो घटना घट रही है तुम फिर से मेरे घर आई हो …. जैसे तुम्हे हमारे बारे में सब पता है

तुम कौन हो मां मुझे बताओ

बेटी तुमने मुझे खाना खिलाया क्या मैं तुम्हारे लिए इतना भी नही कर सकती?

मैं तो एक गरीब ब्राह्मण घर की बेटी हूं जिसका सारा परिवार अब इस दुनिया में नही है तो मुझे मांग मांग कर खाना पड़ता है इसलिए मैं कभी इस गांव तो कभी इस गांव चली जाती हूं।

बेटा अब एक बुढिया को कौन अपने घर में रखकर बिठाकर खाना खिलाता रहेगा ?

मैं भी अब था जाती हूं इधर उधर चलते चलते

क्या मेरा मन नहीं करता की मैं भी आराम करूं लेकिन इस पापी पेट के चलते ये तो करना ही पड़ेगा ना मेरी बच्ची…

अब मैं चलती हूं

तुम्हे जो बताया है वो आज के आज ही कर आ

लेकिन मां अब तुम दोबारा कब आओगी?….यशोदा ने पूछा

अब मैं इसी गांव में मंदिर के बाहर रहूंगी ..

माताजी ….अगर आपको बुरा न लगे तो आप मेरे घर में रह  सकती है

नही नही बेटा

एक दो मुलाकात में हुई जान पहचान कभी कभी मुसीबत पैदा करती है इसलिए मुझे अपने घर में रखना क्या तुम्हारे मन में मेरे लिए शंका पैदा नही करेगा

माता आप के ऊपर शंका का अब तो सवाल ही नहीं उठता है

आप के ही कारण मेरी बेटी वैष्णवी मेरे घर में आई …

नही तो हम दोनो तो बिलकुल निराश हो चुके थे और आज मेरे घर में संकट की घड़ी आई है तो आज फिर तुमने ही उपाय बताया है माता , तो क्या मैं इतना गया गुजरा हूं की जिसने हमें खुशियां दी हो उसी पे शक करूं

नही मत नही..

आप मेरे घर में ही रुको

नही पुत्र मेरी बात मानो मेरा यहां रुकना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा

क्यों ठीक नही होगा माता

भला आप किसी को नुकसान पहुंचा सकते हो क्या….. यशोदा बोली

ऐसा ही समझो मेरी बच्ची

जब मैं अपने पूरे परिवार को खा कर अभी तक जिंदा हूं तो समझो मैं कैसी हूं जिसे मौत भी नही आती..

नही माता आप ऐसा न कहो और आप विस्तार से बताओ आप कौन हो..?

हा हा हा…..

चल जा अभी जो मैने काम बोला है वो करो कल मैं आऊंगा तो अपने बारे में जरूर बताऊंगी

लेकिन पुत्री..

लेकिन क्या मां?

छोड़ो रहने दो

नही मां बताओ… लेकिन क्या?

वो पुत्री मैं कह रही थी की

वर्षों बीत गए मुझे खीर खाए हुए…

क्या तुम कल मुझे खीर खिलाओगी?

यशोदा के दिल में जैसे उस बुढ़िया के लिए ममता का भाव जाग गया और यशोदा बुढिया को गले से लगा कर सिसकने लगी…

बुढिया के आंखों में आसूं आ गए

जरूर मां मैं तुझे खीर पुड़ी और हलवा खिलाऊंगी कल

सदा सुहागन रहो मेरी बच्ची

पुतो फलो

कह कर बुढिया चली गई

अब राघव बैंकुठी गांव जाने की तैयारी करने लगा और साथ में यशोदा भी..

लेकिन ये क्या

वैष्णवी अब फिर से भाई को राखी बांधनी है चलो ना मम्मी….

चलो ना मम्मी…

करने लगी..

राघव जल्दी से तैयार होकर यशोदा और वैष्णवी के साथ बकुंठी गांव पहुंचा

जैसे जैसे वो गांव के नजदीक पहुंच रहे थे वैष्णवी की हरकत में अलग तरह का बदलाव आ रहा था

वैष्णवी बिलकुल 18 से 20 वर्ष के युवती की तरह व्यवहार करने लग गई थी

वो उस गांव को देखकर बिलकुल योवनावस्था के साथ चंचलता लिए हुए एक सम्पूर्ण लड़की की तरह भाव भंगिमा लेकर बिलकुल खुश दिखाई दे रही थी।

पापा मुझे गोद से उतारो …पापा

पापा मुझे लाज आ रही है

गोद से उतारो ना पापा….

मम्मी मैं अब छोटी बच्ची नही हूं पापा को बोलो न गोद से उतारने के लिए

यशोदा अब और घबरा गई

राघव अलग घबरा गया

इन्हे लगा जैसे कोई आत्मा इसमें प्रवेश कर गई हो..

लेकिन राघव हिम्मत बांधकर वैष्णवी को गोद में लिए हुए मंदिर में प्रवेश कर गया

और माता के चरणों में वैष्णवी के माथे को लगा दिया ।

अब वैष्णवी शांत थी

बिलकुल शांत …

मंदिर से निकलने के क्रम में एक गांव वाले की नजर उन सभी पर पड़ी

अचानक वैष्णवी उठी और उस आदमी को देखते हुए बोली

मोहन काका….

अगला भाग

कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–3) – शशिकांत कुमार   : Moral Stories in Hindi

क्या है वैष्णवी का रहस्य ?

क्या है रिश्ता वैष्णवी का इस गांव से?

कौन है वो बुढिया?

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