कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन ( अंतिम भाग ) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi

इधर राघव और यशोदा दोनो कुछ देर बाद बैकुंठी गांव पहुंचे और सबसे पूछते हुए रामेश्वर जी घर पहुंचे ….

कौन?

एक अधेड़ वायक्ति उम्र करीब 50,55 के बीच का घर के दरवाजे से ही पूछता है

राघव और यशोदा दोनो इस व्यक्ति को देखकर नमस्ते करते है तो वो व्यक्ति उन दोनो को अंदर आने को कहा उनके लिए चारपाई बिछाता है…

अपनी पुत्री को उनके सतकर करने के लिए पानी मंगवाता है..

रामेश्वर जी कहां है ….राघव कहता है

यही है पास के कमरे में … अधेड़ कहता है

मुझे उनके पास ले चलो जल्दी मैं सब कुछ उनके सामने बताता हूं

लेकिन वो दोनो बात नही करते किसी सीप मुझे ही बताइए…अधेड़ व्यक्ति एक बार दोहराता है

नारायण आप मुझे उनके पास ले चलो आज वो बोलेंगे… यशोदा कहती है

अचानक अधेड़ अपना नाम सुनकर चौंक जाता है और कहता है आपको मेरा नाम कैसे पता?

इतना कह कर वो उठकर दोनो को अपने मां बाप के पास लेकर जाता है

दो वयोवृद्ध शरीर एक दूसरे का हाथ थामे मानो एक दूसरे से अपने मन की पीड़ा मन ही मन बांट रहे हो

शरीर के रूप में केवल हड्डी का ढांचा था

लेकिन आंखे अभी भी स्पष्ट देखने में सक्षम ठिऔर उसका कारण शायद 40 साल पहले गायब हुई पुत्री को देखने की लालसा थी

यशोदा और राघव दोनो उन दोनो वृद्ध आत्माओं को प्रणाम करता है और यशोदा अंबिका जी से कहती है ….आपकी राधिका आपकी रह देख रही है माता

राधिका का नाम जैसे ही उन दोनो वृद्ध के कानो में पड़ा मानो शरीर में एक बिजली दौड़ गई हो और शरीर में एक जान आ गई हो

क्या…?

मेरी बेटी जिंदा है ? (रामेश्वर जी की आंखों में आंसू का सैलाब उमड़ आया )

हां….आपकी राधिका जिंदा है ( राघव कहता है)

कहां है मेरी दीदी …

वो तो 40 साल पहले हमे छोड़कर न जाने कहां चली गई थी साथ में वो ….

साध्वी भी …(नारायण बात पूरा कर पता इससे पहले राघव ने साध्वी का नाम लिया)

नारायण आश्चर्य चकित रह जाता है

आलोग हो कौन ?

आपको कैसे पता है हमारे बारे में?

एक साथ इतने सारे सवाल सुनकर राघव कहता है

अभी इतना समय नहीं है हम सब के पास आप अपने पूरे परिवार के साथ गांव के माता वैष्णो मंदिर में चलिए….

नही तो..

नही तो… नही तो क्या? ( नारायण पूछता है)

नही तो हम फिर से राधिका को को सकते है

नही नही हम चलेंगे मंदिर …( अंबिका जी की बुद्धि आवाजें कहती है)

चलो नारायण ….चलिए जी

और नारायण अपने पूरे परिवार सहित यशोदा और राघव के साथ चल देता है

इतने वर्षो बाद दो वयोवृद्ध को जो अपनी पुत्री के लिए आपने ही गांव वाले से न जाने कितनी गंदी गंदी बातें सुन सुनकर घर से निकलना बंद कर दिया था …

आज कहते हुए जा रहे थे

राधिका आ गई

राधिका आ गई

आज सब सच्चाई पता लग जायेगी….( रामेश्वर जी रट लगाते हुए जा रहे थे)

गांव वाले आश्चर्य से उन सबको जाता देख उनके पीछे पीछे लग जाते है राधिका का नाम सुनकर

मंदिर में पहुंचते ही

राघव ने सारी कहानी सुनानी संक्षेप में सुनानी शुरू कर दी और आज क्या होने वाला है वो भी बताया तथा हिदायत भी दिया की कोई भी व्यक्ति इस मंदिर के प्रांगण से बाहर न निकलेगा चाहे कोई भी परिस्थिति बन जाए….

क्योंकि वो परिस्थिति एक छलावा भी हो सकता है…

हाय..

मेरी बेटी

इतने दिनो से उस राक्षस के सामने बिना कपड़ो के पड़ी हुई है और हम यहां एहसास तक नही हुआ…

( कहकर अंबिका जी रोने लगी )

लेकिन मां मेरी बहन एक असुर को मारने के लिए इस पृथ्वी पर आई है क्या ये हमारे लिए सौभाग्य की बात नही है?( नारायण बोला)

आज मुझे अपनी पुत्री पर गर्व हो रहा है ( रामेश्वर जी ने बोला )

तभी सभी ग्रामवासी रामेश्वर जी से तथा अंबिका जी से माफी मांगने लगे और राधिका के लिए उपयोग किए गए गंदे वचन के लिए अपने आपको पापी मैनर लगे …

उधर देवकन्या

वैष्णवी को लेकर नवलासुर के गुफा में पहुंच गई जहां उसने आज से 40 वर्ष पहले अपने आपको उस असुर के हवाले कर दिया था और राधिका के जिस्म पर से सारे कपड़े है दिए थे

लेकिन आज वो साध्वी नही बल्कि देवकन्या बन कर आई थी

नवल…

ओ नवल….

नवल के 1000 ॐ नमः शिवाय के जाप पूरे होने वाले थे और वो प्रत्येक जाप पर मुष्ठ प्रहार किए जा रहा था

तभी उसके कानो में ये जानी पहचानी आवाज टकराई

नवल इधर देखो

मैं तुम्हारी साध्वी

नवल ने जैसे ही साध्वी का नाम सुना उसके होंठो पर एक मुस्कान उभर आई

लेकिन उसने अपने जाप के अंतिम प्रहार से उस अग्नि पूंज को तोड़ने में सफल हो गया

और तभी उसने साध्वी की ओर मुड़कर देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला

आओ

आओ मेरी प्रियतमा

आज फिर तुम्हे इस नवल की याद आ ही गई

मुझे भी तुम्हारी जिस्म की गंध बार बार तुम्हारे साथ बिताए एक एक पल को याद दिलाते रहता था

आज 40 वर्षो का प्यासा हूं मेरी रानी आज फिर से मैं तुम्हारे बदन को अपने अंगों में सिमटा लेना चाहता हूं…..

हु हु हा हा हा हा …….

एक अठहास करता जिसमे बड़ी भयंकर आवाज रहती है

फिर कहता है

लेकिन रुको देवकन्या

तुझे क्या लगा की मैं तुम्हे पहचान नहीं पाऊंगा?

तुम्ही तो मेरी श्राप मुक्ति और अमरत्व के लिए असली कारक हो मेरी प्रियतमा

भला मैं तुझे कैसे भुल सकता हूं?

लेकिन आज मैं तुमसे पहले राधिका के शरीर को अपने शरीर के साथ एक कर लूंगा तभी तुम्हारी बारी आएगी

हु हा हा हा हा…

हु हा हा हा हा… ( एक खतरनाक हंसी से सारा वातावरण गूंज उठता है)

उधर राधिका अब बिना अग्नि पुंज के आवरण के नग्न अवस्था में मूर्छित पड़ी थी लेकिन धीरे धीरे उसे एहसास हो रहा था  उसके कुछ घटित हो रहा है

तभी नवलासुर अपने कपड़े उतारने लग जाता है और धीरे धीरे राधिका के बदन को खा जाने वाली नजर से घूरते हुए देखकर उसकी ओर बढ़ता जाता है

तभी

रुको नवलासुर

जरा इससे भी तो मिल लो…( देवकन्या ने वैष्णवी को आगे कर दिया)

इससे पहले की नवलासुर कुछ समझ पाता उसने जैसे ही वैष्णवी पर अपनी नजर डाला एक बिजली सी चमकती चकाचौंध ने उसे हवा में उड़ा दिया…

नवलासुर दूसरी ओर जाकर गिरा और चीखा

कहां मिली ये तुझे

मैं इसको अब नहीं छोडूंगा

और इतना कहकर उसने देवकन्या की ओर झप्पटा मारा लेकिन देवकन्या सतर्क थी उसने वैष्णवी को उसके हमले से दूर किया जिससे नवलासुर फिर दूर जाकर गिरा…

इस बार नवलासुर ने वैष्णवी पर हम के बहाने एक मंतर का उच्चारण कर जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया एक पारदर्शी दीवार उभार आई जिसके एक और नवलसूर और राधिका तथा दूसरी ओर देवकन्या और वैष्णवी थी

देवकन्या उस दीवार को तोड़ने की कोशिश करने लगी लेकिन दीवार टूट ही नही रही थी

अब नवलासुर और राधिका के बीच में कोई बड़ा नहीं था इसलिए नवलासुर देवकन्या की ओर ध्यान न देकर राधिका की ओर बढ़ा उसने अपने अंतिम वस्त्र भी उतार फेंके ( क्योंकि 40 वर्ष पहले उसने साध्वी के साथ सम्भोग कर लिया था इसलिए देवकन्या का वरण तो उसने कर लिया था लेकिन जो अंतिम भोग करना था वो था सबसे बड़ी  भक्त के शरीर के साथ सम्होग की क्रिया और वो राधिका के साथ होने वाला था)

अब नवलासुर

राधिका के शरीर के पास जाकर खड़ा हो गया और एक मंतर की बुदबुदाहट करने लगा

मंत्र पूरा होने के बाद  जैसे ही उस राक्षस ने राधिका के शरीर को पकड़ना चाहा

देवकन्या ने बिना कोई देर किए हुए माता द्वारा दिए हुए त्रिशूल को उस पारदर्शी दीवार की ओर फेंका और दीवार के परखच्चे उड़ गए

और राधिका की आंखे खुल गई जिसमे उसने सामने नवलासुर को बिलकुल नग्न अवस्था में अपने ऊपर झुकता हुआ देखकर उसने खुद को उसके नीचे से अलग किया

आज इतने वर्षों के बाद राधिका के शरीर में हलचल हुई थी ..

राधिका अपने आपको भी निर्वस्त्र देखकर उसके मुख मंडल पर एक लज्जा उभर आई

तभी देवकन्या ने अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए राधिका को पूरी तरह से एक देवशक्ति से युक्त कपड़ा पहना दिया

राधिका उस कपड़े में बिलकुल देवी की अवतार लग रही थी

देवकन्या और राधिका एक दूसरे को देख रहे थे

तभी नवलासुर मौका पाकर उसने वैष्णवी को अपने हाथों में ले लिया और उसे लेकर उसने देवकन्या और राधिका को अपने मन की करवाना चाहा लेकिन राधिका ने हवनकुंड में से आग के एक टुकड़े को जल्दी से उठाकर नवलासुर पर फेंका जिससे नवलासुर संभलने के लिए हाथ आगे बढ़ाया इसी क्रम में वैष्णवी उसके  हाथों से छूट गई और मौका पाकर राधिका ने वैष्णवी को पकड़ा लिया उधर देवकन्या ने अपने साथ नवल के रूप में किए हुए दुर्व्यवहार को याद कर अपने अंदर के पूरे गुस्से को जगाकर नवलासुर के पीछे से एक जोरदार प्रहार किया जिससे नवलासुर राधिका के पैरों के आगे गिर पड़ा तभी देवकन्या ने माता द्वारा दिए त्रिशूल को निकाल कर राधिका और वैष्णवी के हाथों में पकड़ाकर कहा

राधिका तुम दोनो मिलकर इस त्रिशूल को इसके माथे पर मारो जल्दी..

इतना सुनते ही राधिका ने वैष्णवी के हटने त्रिशूल पकड़ाया और स्वयं उस त्रिशूल को पकड़कर सीधा नवलासुर के माथे पर दे मारा

नवलासुर के गर्जन से एक बार तो पूरा असुर समाज राधिका और वैष्णवी को खा जाना चाह रहे थे लेकिन गुरु शुक्राचार्य के सख्त आदेश की अगर किसी ने भी हस्तक्षेप करने किस कोशिश की तो मैं असुर समाज को बचाने में असमर्थ हो जाऊंगा इसलिए एक की खातिर पूरे  असुर समाज को दाव पे नहीं लगाया जा सकता , इस आदेश के बाद सारे असुर समाज पीछे हट गए

और इस तरह से नवल अर्थात नवलासुर का अंत हो गया

माता वैष्णो देवी स्वयं उपस्थित होकर राधिका और वैष्णवी को दर्शन देकर बैकुंठी गांव के मंदिर में आने को कहा और अंतर्ध्यान हो गई

देवकन्या साध्वी के रूप में आई जिसे देखकर राधिका दंग रह गई उसने कहा …

साध्वी ये कैसे संभव है?

हा राधिका मैं एक देवकन्या हूं जो इसी असुर का वध होने का कारण बनकर तुम्हारा साथ देने माता वैष्णो की कृपा से आई थी इस पृथ्वी पर…

और आज तुम मुझसे 40 वर्षो बाद मिल रही हो

क्या ? ( राधिका आश्चर्य में)

और मेरे माता पिता और मेरा भाई

मैं तो रक्षाबंधन पर पूजा करने आई थी मंदिर में ..

हां आई थी लेकिन उस बात को 40 वर्ष बीत गए

वो तुम्हारी ही प्रतीक्षा में अपने शरीर को त्याग नही पा रहे है और सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे वैष्णो मंदिर में

और ये बच्ची? …( राधिका ने वैष्णवी की ओर इशारा करके बोली)

ये तुम्हारे ही प्राणों का एक अंश है राधिका इसलिए उस राक्षस का अंत तुम दोनो के हाथों हो पाया

वैष्णवी राधिका को देखकर मुस्कुराई और राधिका वैष्णवी को देखकर..

चलो अब तुम्हारे माता पिता और भाई साब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं….

देवकन्या उन दोनो को अपने हाथों से पकड़कर वहां से गायब हो गई और मंदिर के प्रांगण के बाहर आ खड़ी हुई

अब वो तीनो

राधिका, साध्वी ( देवकन्या के रूप में नही) , और वैष्णवी मंदिर की ओर बढ़े

मंदिर के द्वार पर जैसे ही राधिका पहुंची नारायण दौड़ कर राधिका के चरणों में बैठ गया

दीदी …

मुझे बिना राखी बांधे कहां चली गई थी तुम

राधिका आश्चर्य से नारायण को देखे जा रही थी तभी उसे ध्यान आया कि वो 40 वर्ष के बाद पाने लोगो से मिल रहा है तो जरूर ये मेरा भाई नारायण है

और वो नारायण से लिपट कर रोने लगी

तभी उसके माता पिता उसके करीब आए और वो दोनो अपनी राधिका को पकड़कर बेजार  होकर रोए जा रहे थे

उन्हे इस तरह से मिलता हुआ देख राघव और यशोदा भी इस आत्मीय मिलन में इस कदर खो गई की उन दोनो को उनके खुद की बच्ची का ख्याल भी नही आया

तभी साध्वी वैष्णवी को लेकर उसके माता पिता के पास पहुंची और बोली

यशोदा मेरी बच्ची ये रही तुम्हारी लाडो तुम्हारे हवाले

राघव मेरे बेटे मैं तुम दोनो को एक पुत्र रत्न का आर्शीवाद देती हूं जो  दैवीय गुणों से संपन्न होगा

फिर वो राधिका के माता पिता के पास जाती है जिसे देखकर राधिका के माता पिता उसे पानी बाहों में अपनी पुत्री राधिका की तरह लेकर फफक पड़ते है

उधर नारायण भी साध्वी के पैरों गिर जाता है और दीदी दीदी कहकर रोने लग जाता है

यही साध्वी जो कुछ समय पहले इस पृथ्वीलोक ae वापस जाना चाह रही थी आज वह मनुष्य के लिए बने परिवार और मोह माया के बंधन में बंध गई और

तभी

माता वैष्णो देवी वहां प्रकट होती है

राधिका

वैष्णवी

कैसी हो मेरी बच्ची

वहां मौजूद सभी लोगों को माता के साक्षात दर्शन हो रहे थे

माता ने राधिका को उसके असली उम्र में यानी लगभग 60 साल के रूप में ला दिया

रामेश्वर और अंबिका तुम दोनो धन्य हो जो राधिका जैसी पुत्री पाई

तुम्हारी आयु पूरी हो चुकी है इस पृथ्वी से और अब तुम दोनों को जन्म और बंधन के मोह माया से मुक्ति मिलती है अब तुम दोनो  राधिका के प्रताप से स्वयं श्री हरी विष्णु के अंश में समा जाओगे ताकि अब मोह माया के जाल में जन्म न हो

लेकिन चुकी तुम दोनो अपनी पुत्री के गम में इतने वर्षो बाद उससे मिले हो तो स्वयं भगवान महादेव ने यमराज को ये आदेश दिया है की अगले श्रावण के पहले दिन पूरे मान सम्मान के साथ  उन दोनो को एक साथ श्री हरी विष्णु के धाम छोड़ने जायेंगे

कल्याण हो वत्स

वैष्णवी मेरी बच्ची

मैं तुम्हे आशीर्वाद देती हूं तुम जहां भी रहोगी तुम्हारे आसपास भक्ति के आवरण फैले रहेंगे

राघव और यशोदा तुम दोनो को भी मैं आशीर्वाद देती हूं तुम दोनो जब भी इस धरा पर से देवलोक को प्रस्थान करोगे तुम दोनो साथ में ही प्रस्थान करोगे और तुम दोनो को भी बैकुंठ की प्राप्ति होगी

राधिका

तुमने बहुत कष्ट सही है मेरी बच्ची

कुछ मांग मुझसे

माता आपके दर्शन हो गए यही मेरे लिए सौभाग्य की बात है अब मुझे कुछ नही चाहिए

नही मेरी बच्ची तुम्हारे कष्ट के लिए मैं तुझे कुछ दिन चाहती हूं

तुझे जो भी मांगना है मांग

मां अगर देना ही है तो  मेरे गांव में किसी भी घर में किसी अकाल मृत्यु न हो ऐसा आशीर्वाद दीजिए

माता वैष्णो ने

ब्रह्मा ,विष्णु और महेश सीन ही मन आदेश लिया और भोलेनाथ ने यमराज को इस आशीर्वाद से सूचित कर दिया

माता ने आंखे खोलते ही कहा

तथा अस्तु

और ये आशीर्वाद तुम्हारे साथ साथ वैष्णवी को भी मिल रही है क्योंकि वो भी तुम्हारी प्राणों की एक अंश है

साध्वी

साध्वी के मन में चल रही हलचल को माता ने भांप लिया था इसलिए माता ने साध्वी को अगले 11 दिनो बाद देवलोक लौट जाने का आशीर्वाद देकर  अंतर्ध्यान हो गई

समाप्त

भाइयों और बहनों

आपको ये कहानी कैसी लगी?

अगर अच्छी लगी तो प्रोत्साहन जरूर दें ताकि आगे भी आपके लिए लिख सकूं

बहुत बहुत आभार इस कहानी को पढ़ने के लिए

2 thoughts on “कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन ( अंतिम भाग ) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!