बीना जी सुबह से ही देख रही थी कि उनकी बड़ी बहू रागिनी काफी उदास है। सावन का महीना चल रहा है। तीज का त्यौहार भी आने वाला है इसलिए वह अपनी दोनों बहुओ को साज श्रृंगार का सामान और साड़ी कपड़े की शॉपिंग कराना चाहती थी। बीना जी का मानना था की बहू बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं। पहन ओढ़ कर ही अच्छी लगती हैं। उनको अपनी बहूओं का रुखा सुखा सा रहना पसंद नहीं आता। खुद भी तो बड़े सलीके से सुबह ही तैयार होकर बैठ जाती हैं। घर पर भी ऐसे रहती हैं की कितनी ही बाहर लोग पूछते थे,”आप कहीं जा रही हैं क्या?
उनका जवाब होता नहीं, मैं कहीं नहीं जा रही। घर पर भी सही तरीके से रहना चाहिए।
उनकी बड़ी बहू रागिनी जब शादी होकर आई थी कितनी चंचल थी। हर वक्त अपनी धुन में मगन रहती थी। लेकिन जब से उसकी मम्मी इस दुनियाँ से गई हैं वह काफी अनमनी सी हो गई है।
दुख भी तो कम नहीं था। एक बेटी ही जानती है माँ के न होने का दुख। माँ से मायका बंधा हुआ होता है उनकी बहू रागिनी के पीहर में उसके दो भाई एक बड़ी भाभी और माता-पिता रहते हैं।
वैसे भैया भी कम अच्छे नहीं थे रागिनी के। लेकिन जब रागिनी के पिताजी इस दुनियाँ को छोड़ गए, तब उसके दोनों भाइयों मे हिस्से बाटी को लेकर कुछ विवाद चला था। खानदान की इज्जत जो इतने बरसों से बनी हुई थी। भाई भाइयों के विवाद में डूब रही थी।
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बीना जी ने बहुत मना किया था अपनी बहू को कि वह भाइयों के विवाद में ना पड़े। लेकिन रागिनी को अपना छोटा भाई ज्यादा ही पसंद था। इसलिए बिना कुछ सुने समझे उसका बीच बचाव करने पहुंच गई। बड़ा भाई और भाभी वैसे तो बहुत इज्जत करते थे रागनी की लेकिन रागिनी द्वारा छोटे भाई का पक्ष लेने के कारण उनकी तरफ से भी मनमुटाव हो गया। वैसे भी कर्तव्य तो अधिकतर बड़े भाई ने ही निभाये थे। छोटा वाला तो केवल अधिकारों की बात ही करता।
5 साल हो गए हैं बहन भाइयों की बिगडे़ हुए। गलती तो दोनों तरफ से ही हुई। पर रिश्ता तो बहन भाइयों का ही खराब हुआ ना। इसलिए जब भी सावन का महीना आता है रागिनी बहुत उदास हो जाती है। माँ के न होने के पश्चात भी उसकी बड़ी भाभी बड़े मन से सिदांरा भेजती थी। लेकिन विवाद ऐसा हुआ की सब कुछ छूट गया।
छोटा भाई तो विदेश में जाकर सेटल हो गया। एक तरीके से मायका छूट सा ही गया उनकी बहू का ।
बीना जी के मायके से तो सावन की ड़लिया अभी तक आती है।
वैसे कोई कमी नहीं है उनके यहां। वीना जी खुद अपनी बहू को सारा सामान दिला देती हैं। लेकिन मायके से आई हुई सावन की ड़लिया की महक कुछ अलग ही होती है क्योंकि उसमें माँ की देहरी की खुशबू होती है।
बीना जी अपनी बहू के पास जाकर अपना हाथ उसके सर पर रखते हुए बोली। बेटी कब तक उदास रहोगी ऐसे। खून के रिश्ते ऐसे नहीं छोड़े जाते हैं। अगर तुम्हारा भाई भाभी तुम्हें मनाने के लिए ना आ रहे तो तुम ही फोन मिला लो। प्यार तो तुम दोनों में बहुत था। केवल बाहरी बातों के कारण मनमुटाव हो गया।
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तुम्हें याद नहीं बीना,”जब तुम्हारी शादी हुई थी तुम्हारा भाई बड़ा वाला कितना रोया था। तुम्हारी भाभी भी हमेशा कितनी इज्जत करती थी सबकी। हमारे यहां से कोई भी चला जाता कितना मान सम्मान किया जाता था तुम्हारे मायके में। यहां तक तुम्हारी माँ के चले जाने के पश्चात भी कोई कसर ना कि तुम्हारे भैया भाभी ने। तुमने ही भाइयों के विवाद में पड़कर अपना रिश्ता खराब किया था। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। हमारे भारत देश में यह तीज त्यौहार इसलिए ही बनाए गए हैं कि यह रिश्ते जुड़े रहे। राखी आने वाली है तुम त्यौहार लेकर चली जाना। कोई मना ना करेगा तुम्हें। जो दर्द तुमने अपने दिल में छुपा कर रख रखा है वह दूर हो जाएगा।
जो भाई बहन हमेशा एक दूसरे को इतना प्यार करते हैं एक समय के बाद ऐसा क्या हो जाता है कि उनमें मनमुटाव पैदा हो जाता है।
अपनी सास की बात सुनकर रागिनी की आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ती है। वह अपनी सास से गले लिपटकर बहुत तेज तेज रोने लगती है मानो जैसे वह एक छोटी बच्ची हो।
आज उसकी सास का सम्मान और भी बढ़ जाता है उसकी नजर में। उसने तो हमेशा से यही सुना था सास की बुराइयां ही की जाती है लेकिन उसकी सास ने तो माँ का स्थान ग्रहण कर लिया था।
बह भी तो चाहती थी अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधना। कितने प्यार से बह रक्षाबंधन का त्योहार करती थी। जब तक अपने भाइयों को राखी ना बांध देती, नाश्ता तक नहीं करती थी।
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कितनी चाहत थी उसकी बुआ शब्द सुनने की। जो उसके मायके जाने पर उसके भतीजे-भतीजी उसको चारों तरफ से घेरे रखते थे।
अब वह अपने अहम को छोड़कर टूटे हुए रिश्तो की डोरी को फिर से जोड़ने का प्रयास करेगी राखी के कच्चे धागों से।
उसने अपने भाई को फोन मिलाया। फोन उठाते ही उसकी आवाज सुनते ही रागिनी के भाई का गला भर आया। दोनों भाई बहन अपने गिले शिकवे कहते रहे। रागिनी की रुलाई फूट गई जब उसके भाई ने कहा कि उसकी सूनी कलाइयां 5 साल से राखी का इंतजार कर रही हैं। रागिनी की भाभी ने भी कहा सावन की ड़लिया भी इंतजार कर रही है तुम्हारा दीदी।
अब सब गिले शिकवे दूर हो गए। रागिनी के भैया भाभी तीज पर सिंदारा देने आ गए। अब रागिनी भी अपनी पसंद की राखियां बड़े मन से खरीद रही थी। कुछ राखी तो उसने अपने हाथ से भी बनाई। 5 साल का सूनापन जो दूर हो रहा था उसकी सास की समझदारी से।
बिगड़ते रिश्तों की नाव को कोई सम्भाल ले तो रिश्ते नहीं टूटे।
#प्राची_अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर