कभी खुशी कभी गम ! – वर्षा गर्ग

रोहन के वीडियो कॉल से हम दोनों ही बेहद उत्साहित हो गए। बेटे को देखकर कुछ भावुक भी।

  कुछ देर की औपचारिक बातों के बाद “खुशखबरी है पापा मम्मी…,” कहते हुए अपने प्लेसमेंट की खबर दी उसने।

”  सब बहुत अच्छा है, कम्पनी भी और पैकेज भी।”

 ” कब तक ज्वाइन करना है!”

 ” जल्दी ही,जैसे ही वीजा मिल जाए,वैसे उसकी व्यवस्था भी कम्पनी ही करवाएगी।”

 ” ओह….तो नौकरी अपने देश में नहीं मिली?”

  “क्या पापा! अब तो सभी विदेश से ही शुरुआत करना चाहते हैं,आरंभिक अनुभव अच्छा रहा तो यहां की कम्पनी भी हाथोंहाथ लेंगी ।बस कुछ वर्षों की ही बात है।”

 ” पापा ! आप मम्मी को समझा दीजिए।मेरी जिंदगी का सवाल है।”

”  हां बेटा,जाने से पहले घर आओगे ना?”

  ” बिल्कुल आऊंगा,कुछ दिन आपके साथ रहूंगा,मम्मी से कहिए मेरी फेवरेट डिशेज की तैयारी शुरू कर दें।”

  मम्मी भी तो सामने ही है,पर उसे उदास देख बेटा मुझे ही संबोधित करता रहा।

  फोन रखते ही इनके आंसू बह निकले।

”  कितने सालों से हमसे दूर है पर एक संतोष था कि जब चाहे मिल सकते हैं,अब विदेश में जाने से तो ये भी छीन जायेगा।”

  रात गहरा रही थी, मैंने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा।

 ” चलो अब सो जाते हैं,सुबह बात करेंगे।”




  ऐसा कहते हुए मैं भी खुद को कुछ समय देना चाह रहा हूं।

  बारहवीं के बाद से ही हॉस्टल में है बेटा,पहले चार साल ग्रेजुएशन फिर दो साल और आगे की पढ़ाई।

  छुट्टियों में घर आता है तो घर कितना भरा लगता है और ये भी कितनी खुश रहती हैं उन दिनों।

   सुबह चार बजे के करीब नींद खुली मेरी,इन्हें विचारमग्न बिस्तर पर बैठे हुए पाया।

   “क्या हुआ?”

  ” कुछ नहीं,सोच रही थी,अगर यहां रहकर रोहन को अच्छी नौकरी नहीं मिलती तब भी हम दुखी रहते ना।

   इतनी अच्छी नौकरी,वो भी विदेश में,कितने ही बच्चे और अभिभावक सपने देखते हैं ।”

  ” तो तुम्हें दुख नहीं है,इकलौते बेटे के दूर जाने का ?”

 ”  है भी और नहीं भी।”

”   क्या मतलब..?”

  ” वही..कभी खुशी कभी गम..”

 ”  इतने सालों से घर के बाहर ही तो है,अभी भी जब आएगा,वो दिन हमारी खुशियों भरे होंगे ।

   हमेशा पास रहे और नौकरी ढंग की न हो तब भी परेशान होंगे हम।”

  ” फिर उसकी पूरी उम्र है,कैरियर का प्रश्न भी है,खुशी खुशी जायेगा तो वहां अकेला भी खुश रह सकेगा।”

   मैं तो रात भर इनकी प्रतिक्रिया की कल्पना कर रहा था,रोहन को हॉस्टल भेजने के बाद कितनी बीमार हो गईं थीं। इस बार कभी खुशी कभी गम वाली बात से मुझे तो इन मां बेटे ने चित्त ही कर दिया।

  ” लिस्ट दे देना, सुबह बाजार जाऊंगा,और हां थोड़ी देर तक और सोने देना, उठाना मत।”

   कहते हुए करवट लेकर मैं अपनी भीगी आंखे पौंछता




    रहा..

    आंखों के आगे छोटा सा रोहन भिन्न भिन्न रूप में आता रहा। कभी अकेले कमरे में डर जाने वाला रोहन जब हॉस्टल जा रहा था तब हम दोनों को लेकर चिंतित था

    “मम्मी अब ऐसा न हो कि मैं नहीं हूं तो आप रोज पापा को खिचड़ी,पुलाव खिला दो,दोनों समय ढंग का खाना बना कर आप भी ठीक से खाया करना।”

   ” मेरे हॉस्टल में जाने से दूध,फल,मेवे किसी भी चीज में कटौती मत करना।”

    और उन दिनों तो दो चार बार सरप्राइज विजिट सिर्फ इसीलिए दी कि हम कैसे रहते हैं जान सके।

    कुछ महीने ज़रूर लगे फिर धीरे धीरे ही सही हम भी अपने रूटीन में अभ्यस्त हो गए।

    एक बात हमेशा याद रही कि पढ़ाई पूरी होने के बाद हम साथ ही रहेंगे।

    अचानक कुछ बीती बातें और बिसरे चेहरे आंखों के सामने गड्ढ मड होने लगे।

    मैं भी तो गांव छोड़कर शहर में पढ़ने आया था,मेरे मां बाबूजी भी मेरी राह देखते होंगे,पढ़ाई पूरी कर गांव वापस जाने की।उनके पास तो सभी साधन बेहद सीमित ही थे।

    ओह…आज से पहले इस बात का इतनी तीव्रता से कभी अहसास ही नहीं हुआ मुझे।

    मां बाबूजी ने भी खुद को अपनी जिंदगी में व्यस्त कर लिया ,और मेरा गांव धीरे धीरे छूटता रहा।

    अब तो तीज त्यौहार पर भी जाना आना लगभग बंद ही है। कभी कभार फोन पर बात हो जाती है।

        अचानक उठ बैठा मैं।

    आज रोहन की जगह खुद को और अपनी जगह बाबूजी को महसूस कर आंखे भर आईं।

    ये सब जान गई, पता नहीं कैसे…?

    मैंने बस यही सुना , “रोहन के आने से पहले एक बार गांव हो आते हैं, मां बाबूजी को यहीं लिवा लायेंगे,कुछ दिन सब साथ ही रहेंगे।”

    इस बार मुझे भी इन्हीं की तरह मिश्रित अनुभूति हो रही है…वही कभी खुशी कभी गम !

    

    

मौलिक/वर्षा गर्ग

 

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