कभी खुशी कभी गम – डाॅ संजु झा

डाॅक्टर  अजय  के जीवन  में खुशियों का मेला  लगा रहता था।नियति के खेल से अनभिज्ञ  वह अपने परिवार के लिए सुखद भविष्य  के सपनों  का जाल बुनने में तल्लीन  था। अचानक  से नियति के प्रहार  से उसकी जिन्दगी अस्त-व्यस्त  हो गई।उसे दुखी देखकर उसके पिता  समझाते हुए कहते हैं -” बेटा! मनुष्य  का जीवन  तो सुख-दुख के मिलन से ही परिपूर्ण होता है।कवि सुमित्रानंदन पंत ने भी कहा है-सुख-दुख के मिलन से जीवन हो परिपूरण।जो व्यक्ति दुख के समय में भी विचलित  न होकर धैर्य के साथ परिस्थितियों का सामना करता है,उसे ही  फिर खुशियाँ वापस मिलती हैं।”

पिता की  सान्त्वनापूर्ण  बातों से भी उसे तसल्ली नहीं मिलती है।वह पिता के कंधे से लगकर फूट-फूटकर रो पड़ा।कुछ देर बाद  अजय अपनी चार दिन की बच्ची को सीने से लगाए बिस्तर पर आ जाता है। बगल में आकर उसका चार वर्षीय  मासूम बेटा भी   उससे चिपकाकर सो जाता है।दोनों बच्चे सो जाते हैं,परन्तु अजय की आँखों में गम के आँसू भरे हुए  हैं।अभी तो उसकी जिन्दगी ढ़ंग से शुरु भी नहीं हुई  थी,अचानक से इतना बड़ा बज्राघात उसे सहन करना पड़ रहा है।नियति के खेल भी निराले हैं।कभी-कभी हँसते-खेलते मनुष्य की जिन्दगी के साथ ऐसा क्रूर मजाक करती है,जिसका एहसास उसे सपने में भी नहीं होता है।

डाॅक्टर अजय की आँखों के सामने पत्नी उषा के साथ बिताए हुए पल चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूमने लगते हैं।अजय और उषा बचपन के दोस्त थे।दोनों के परिवार  में दोस्ताना सम्बन्ध थे।उषा और अजय का बचपन साथ-साथ बीता।पढ़ाई-लिखाई भी साथ-साथ हुई।बचपन के बालसखा जवानी के दोस्त बन गए। ऐसा संयोग बना कि मेडिकल की तैयारी के लिए  दोनों कोटा शहर चले गए। मेडिकल की तैयारी करते हुए  दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए। उनकी जिन्दगी में खुशियों ने दस्तक देनी शुरु की।दोनों का चयन एक ही मेडिकल काॅलेज में हो गया।पढ़ाई के साथ-साथ  दोनों में प्यार पनपने लगा,परन्तु पढ़ाई के कारण दोनों इजहार करने से बचते थे।

अजय और उषा जब मेडिकल पढ़ाई के तृतीय वर्ष में आ गए, तो एक दिन अजय ने उषा से कहा-“उषा!आज शाम काॅलेज से बाहर  चाय पीने चलते हैं?”

उषा ने मजाक करते हुए पूछा -“क्यों,यहाँ की चाय में क्या खराबी है?”

अजय ने मुस्कराकर कहा -” उषा!तुमसे कोई खास बात करनी है!”

अजय और उषा दोनों बाहर चाय पीने के बाद एक पार्क में आकर बैठ गए। मार्च के महीने में शाम में हल्की ठंढ़ी-ठंढ़ी हवाएँ दोनों के तन-मन को प्रफुल्लित कर रही थीं।चारों तरफ रंग-बिरंगे  झूमते हुए  पुष्प  अजय को अपने दिल की बात कहने को उकसा रहे थे।अजय ने पार्क  में चारों तरफ नजरें दौड़ाई। आस-पास किसी को न देखकर एकाएक उषा का हाथ अपने हाथों में लेकर  पूछताछ बैठा -” उषा!क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”




उषा को अजय के प्यार का एहसास  तो था,परन्तु वह पढ़ाई  के बीच में शादी नहीं करना चाहती थी।

अजय ने उसे प्यार  से मनाते हुए  कहा-“देखो उषा!मैं  तुमसे बहुत  प्यार  करता हूँ।अब मुझसे इंतजार नहीं होता है।मेडिकल की लम्बी पढ़ाई  तक मैं इंतजार नहीं कर सकता हूँ।हम शादी भी करेंगे और पढ़ाई  भी साथ-साथ। “

उषा के मन में भी अजय के प्यार की खुमारी छाई हुई  थी।परिवार की सहमति से दोनों ने शादी कर ली।अब दोनों की जिन्दगी की व्यस्तताएं बढ़ गईं।पढ़ाई के साथ-साथ  दोनों जिन्दगी का भी भरपूर आनंद उठा रहे थे।एक दिन उषा ने अजय से कहा-” अजय!मैं माँ बननेवाली हूँ!”

अब चौंकने की बारी अजय की थी।अजय ने कहा-“उषा!अभी हमें बच्चे की जरुरत  नहीं है।पढ़ाई के बाद  बच्चे के बारे में सोचेंगे।”

पर उषा को न जाने क्यों सभी चीजों की जल्दी थी।वह मातृत्व के एहसास  से मरहूम नहीं होना चाहती थी।उसने अपनी माँ से कहा -” माँ !मैं क्या करूँ?मैं अपने बच्चे को जन्म देना चाहती हूँ।”

उषा की माँ ने उसके जज्बातों का ख्याल  रखते हुए कहा -” बेटी!तुम चिन्ता मत करो।मैं और तुम्हारी छोटी बहन निशा मिलकर बच्चे को सँभाल  लेंगे।”

उषा की छोटी बहन बचपन में ही पोलियो की शिकार हो गई  थी।उसका एक पैर खराब हो गया था,फिर भी वह लाचार  नहीं थी।खुद के पैरों पर चलती थी और ग्रेजुएशन भी कर चुकी थी।

 




अब अजय और उषा काॅलेज के हाॅस्टल से निकलकर  किराए का घर लेकर रहने लगें।समय पूर्ण  होने पर उषा ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म  दिया।बच्चे को पाकर उनकी जिन्दगी में खुशियों की बहार आ गई। बिना माँगे ही ईश्वर  ने उनकी झोली खुशियों से भर दी। कुछ दिन रहने के बाद उषा की माँ ने निशा को उनके पास छोड़ते हुए कहा-“बेटी उषा!मैं तो अपने घर जा रही हूँ।निशा अब तुम्हारे बच्चे की अच्छे से देखभाल करेगी।तुम आराम से अपनी पढ़ाई करना।”

सचमुच निशा ने बच्चे को अच्छी तरह सँभाल लिया था,जिसके कारण दोनों अपनी पढ़ाई सुचारु रुप से कर रहे थे।अब दोनों की पढ़ाई  पूरी होनेवाली थी।अजय और उषा  ने अपने सुनहरे भविष्य के सपने बुनने शुरु कर दिए थे।मेडिकल की डिग्री मिलते ही उषा दूसरी बार  माँ बननेवाली थी।अब दोनों काफी खुश थे।उषा हमेशा अजय से कहती -” अगर इस बार हमारी बेटी हो जाएँ,तो हमारा परिवार  पूर्ण  हो जाएगा।फिर हम दोनों  अपना एक बड़ा-सा नर्सिंग होम खोलेंगे,जिसमें गरीबों का भी कम पैसों में इलाज करेंगे।”

अजय भी मजाक की मुद्रा में कहता “बालिके!तथास्तु।”

दूसरे बच्चे के जन्म के समय उषा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब रहने लगी। सभी को लगता कि डिलीवरी के बाद  उसकी तबीयत  ठीक  हो जाएगी।निशा जी-जान से उषाऔर उसके बेटे की सेवा करती।डिलीवरी  के समय अचानक  से उषा की तबीयत अत्यधिक खराब  हो गई। आनन-फानन में ऑपरेशन  द्वारा बच्ची को बाहर निकाला गया।बच्ची तो पूर्णतः स्वस्थ  थी,परन्तु उषा की तबीयत में कोई  सुधार  नहीं थी।उषा के स्वास्थ्य को लेकर  डाक्टरों के मन में कई शंकाएं थीं।उषा के सभी तरह के जाँच कराएँ गए। डाक्टरों की शंका सही थी।अजय को डाॅक्टर  ने कहा -” अजय!रिपोर्ट  बहुत  दुखद है।तुम्हारी पत्नी का कैंसर  अंतिम चरण में पहुँच चुका है ,वह कुछ ही दिनों की मेहमान है!”

डाॅक्टर के वाक्य सुनकर अजय तो मानो सन्न रह गया।वह खुद को कोस रहा था -“मैं डाॅक्टर होकर  भी उसकी बीमारी को क्यों नहीं पहचान पाया!”




उषा की चेतना धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी।उस अवस्था में भी उसने बेटी को देखने की इच्छा जताई। उसकी बहन निशा बच्ची लेकर उसके पास आई।उषा ने लेटे-लेटे ही बच्ची को स्पर्श किया,और उसे सीने से लगाया।कुछ देर तक सीने से लगाए अपनी बच्ची के वात्सल्य रस में भींगी रही।उसकी आँखों के कोर से लगातार आँसू निकल रहे थे।देखते-देखते उसके प्राण पखेरु अनन्त यात्रा में लीन हो गए।

अजय की तो मानो दुनियाँ ही उजड़ गई।  निशा बिना माँ के बच्चों की माँ बनकर उन्हें सँभाल  रही थी। बच्ची की आवाज  से अजय  वर्त्तमान  में लौट आया।उसने देखा कि निशा रात में बैठकर बच्ची को बोतल  में बड़े प्यार  से दूध पिला रही है।अजय यह सोचकर  परेशान  है कि वह अकेले दोनों बच्चे का लालन-पालन  किस तरह कर पाएगा!

अजय की माँ ने गाँव जाते हुए कहा -“बेटा!अब मैं कितने दिन  यहाँ रहूँगी?तुम्हारे पिताजी की भी तबीयत  खराब  है।मेरी मानो तो निशा से शादी कर लो।बच्चों को भी माँ मिल जाएगी।”

 परन्तु अजय निशा को पत्नी के रुप  में स्वीकार  नहीं कर पा रहा था।उसे हमेशा एहसास  होता था कि वह निशा के साथ  शादी कर उसके साथ  कहीं नाइंसाफी नहीं कर दे।

आखिर  बच्चों की सही परवरिश के कारण एक दिन अजय ने  याचना भरी निगाहों से पूछा -” निशा!क्या तुम मेरे दोनों बच्चों की माँ बनोगे?”

निशा ने भी मूक नजरों से सहमति जताते हुए कहा-“दोनों बच्चों की माँ तो मैं पहले ही बन चुकी हूँ।क्या मैं विकलांग होकर भी एक डाॅक्टर की जीवनसंगिनी बन सकती हूँ?”

 अजय ने खुशी से निशा और दोनों बच्चों को अपने आलिंगन  में समेट लिया।

सचमुच  ही कुदरत के खेल निराले हैं।प्रत्येक  व्यक्ति के जीवन में कभी खुशी तो कभी गम आते ही रहते हैं।

समाप्त। 

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

लेखिका-डाॅ संजु झा।

 

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