समीरा मैने तुमसे कितनी बार कहा है तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है फिर तुम अपने घरवालों से बार बार सलाह क्यों लेती हो कि नौकरी करूं या नही करूं।
मैने बोला ना तुम्हे नौकरी की कोई जरूरत नहीं है। बच्चे बड़े हो रहे हैं अब इन्हें सम्हालो
पर सृजन बच्चे और घर सब आराम से चल रहा है फिर तुम्हे क्या दिक्कत है मेरी नौकरी से।
समीरा मुझे तुमसे कोई बहस नही करनी बस कह दिया न कल रिजाइन दे आना और अपने दोस्त राजीव को भी बता देना अब वो कोई दूसरा पार्टनर ढूंढ ले अपनी बाइक पर बैठाने के लिए।
सृजन का इतना कहना काफी था समीरा को ये समझने के लिए कि वो उसकी नौकरी क्यों छुड़वाना चाहता है। सृजन के मन में शक का कीड़ा जो घुस गया था। समीरा और राजीव अच्छे दोस्त हैं पर सृजन ने उसकी दोस्ती को कुछ और ही समझ लिया जबकि समीरा और सृजन खुद की लव मैरिज थी।
समीरा ने सृजन को समझाने की बहुत कोशिश की पर वो समीरा और राजीव के रिश्ते को गलत नजरिए से देख रहा था आखिर वो दिन आ ही गया जब समीरा ने ये कदम उठा लिया और अपने मायके आ गई।
समीरा लोग क्या कहेंगे बेटा । इतनी सी बात पर कोई इतना बड़ा फैसला थोड़े ना लेता है। एक बार फिर सोच ले कहीं तू गलती तो नही कर रही समीरा की मां बोली
मम्मी पहले तो आप ये कहना छोड़ो कि लोग क्या कहेंगे ? जब मैंने अपनी मर्जी से शादी की तब भी आपका ये ही कहना था कि लोग क्या कहेंगे? और जब मर्जी से अलग हो रही हूं तब भी आपको आपकी बेटी से ज्यादा उन लोगों के कहने की चिंता है समीरा अपनी मां रेवती जी से बोली
समीरा रेवती जी और आलोक जी की इकलौती बेटी थी शुरू से ही बहिर्मुखी , और अपनी जिंदगी अपनी शर्तो पर जीने वाली लड़की रही थी
उसका रहन सहन शुरू से ही उसकी हमउम्र लड़कियों से अलग रहा था। जहां लड़कियां शरमाई, सकुचाई सी सलवार दुपट्टे में सिमटी रहना पसंद करती वहीं वो कॉलर वाला कुर्ता और चूड़ीदार (बिना दुपट्टे के) और कभी कभार तो जींस भी पहन लेती थी। न कोई मेक अप करती ना ही कभी कोई दिखावा यहां तक कि बाल बिलकुल छोटे लड़कों जैसे रखती और कहती अभी पढ़ाई करु या बालों की केयर करूं। उसे बिलकुल सादा सिंपल रहना पसंद था।कोएड कॉलेज में लड़कों के साथ मैथ की प्रोब्लम सॉल्व करती और कॉलेज की पॉपुलर लड़की थी क्योंकि वो ही अकेली बंदी थी जो अपनी बात खुलकर सबके सामने रखती। हर लड़की के लिए स्टैंड लेती थी।
कई लड़के उसे अपना अच्छा दोस्त बनाना चाहते थे पर वो सभी से एक जैसा अपने सहपाठी की तरह ही व्यवहार करती और मस्त रहती। उसकी इसी अदा पर उसके साथ पढ़ने वाला उसका दोस्त सृजन फिदा था , वो मन ही मन उसे चाहता था पर कहने से डरता था।
समीरा का कॉलेज पूरा हो चुका था और वो एम बी ए के लिए बाहर जाना चाहती थी लेकिन उसके पापा उसे बाहर अंजान शहर में भेजने के पक्ष में नहीं थे। फिर उसे पता लगा सृजन भी उसकी पसंद वाले विषय में एमबीए करने बाहर जाने का सोच रहा है
बस फिर क्या था उसने अपने पापा को इस बारे में बताया तो वो सहर्ष तैयार हो गए क्युकी सृजन को वो अच्छे तरीके से जानते थे क्युकी आलोक जी और सृजन के पापा एक ही ऑफिस में थे। सोचा आने जाने का साथ मिल जायेगा और वहां कोई अपना भी रहेगा।
सृजन के भरोसे ही सही समीरा का एमबीए हो गया। दोनो साथ पढ़े , मिलते जुलते भी थे तो दोनो में प्यार हो गया और दोनो ने एम बी ए करने के बाद एक ही कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली।
उन दोनों में प्यार भले ही था पर उन्होंने कभी अपनी हद पार नहीं की । समीरा और सृजन घरवालों की सहमति के बाद ही शादी करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने अपने परिवार में इस बारे में बात की।
समीरा की और सृजन की मम्मी पहले तो लोगों के डर से तैयार नही हुई ये सोचकर कि गैर बिरादरी में शादी होगी तो लोग क्या कहेंगे पर उन्हें अपने बच्चों के प्यार और विश्वास ने जीत लिया और वो भी मान गए
पर समीरा के माता पिता इतना जरुर पूछते थे “इस बात की क्या गारंटी है कि तुम उसके साथ हमेशा खुश रहोगी “और वो कहती “हमेशा खुश रहने की गारंटी किसी भी शादी में नही होती, लेकिन अभी तो ये पता है कि हम साथ में खुश रहेंगे। मेरे लिए शादी के रिश्ते की एकमात्र शर्त प्रेम है। जब एक व्यक्ति से प्रेम किया तो उसी से विवाह करना है किसी और से कैसे करू?”
समीरा के ये कहना उन दोनो को उसके जीवन और खुशियों के प्रति आश्वस्त कर देता।
समीरा और सृजन शादी के बंधन में बंध गए बिना लोगों की परवाह किए हुए
सब कुछ ठीक था समीरा और सृजन भी खुश थे अपने वैवाहिक जीवन में और दो बच्चो के माता पिता भी बन चुके थे।
पर धीरे धीरे उनके रिश्ते बदलने लगे। उन दोनों की सोच एक ही छत के नीचे रहकर भी बदल चुकी थी।उनकी प्राथमिकताएं बदल गई । सृजन समीरा को अपने अधीन रखना चाहता था बात बात पर उससे कहता तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है किसी और से बात की या कोई संबंध रखा तो फिर मुझे भूल जाना। ऑफिस में पुरुष सहकर्मी के साथ समीरा का हंसना बोलना अब सृजन को खटकने लगा था
या कह सकते हैं दो लोग हमेशा एक ही शिद्दत से प्यार नही कर सकते और शादी का रिश्ता बिना प्यार के निभाया नही जा सकता इसलिए समीरा ने सृजन से अपने दोनो बच्चों के साथ अलग होने का फैसला ले लिया था।
और समीरा और रेवती जी इसके बारे में ही बात कर रही थी और समीरा को तलाक नहीं लेने का सुझाव दे रही थी पर समीरा शुरू से ही अपनी जिंदगी अपने तरीके से, अपनी शर्तो पर जीने वाली लड़की थी। उस पर उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कोई अधिकार जमाए ये उसे कतई पसंद नहीं था इसलिए लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह न तो उसने कभी पहले की थी न ही कभी करना चाहती थी।
पर बेटा तू समझती क्यों नही अभी तेरी शादी को 15 साल हो चुके हैं जैसे अब तक निभाया , वैसे आगे भी निभा ले लोगों को कहने का मौका क्यों देना चाहती है रेवती जी बोली
मां जब मैने प्रेम विवाह किया था तब भी लोगों ने तो कहा ही था पर मैं अपने प्यार के साथ गई और मैने अपना जीवन भरपूर जीया भी है। मुझे अभी भी सृजन के साथ की कई तस्वीरें पसंद है। मै अब भी उसका जिक्र प्यार के साथ करना पसंद करूंगी उसके साथ जो शिकायतें हैं वो अपनी जगह हैं।
शादी और तलाक मेरा अपना फैसला है इसमें लोग क्या कहेंगे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। लोगों के लिए शादी के रिश्तें में सिंदूर, चूड़ी, बिंदी महत्व रखती होगी पर मेरे लिए शादी में सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान की दरकार होती है।
कभी कभी प्यार और सम्मान साथ रहकर नही , अलग होकर बेहतर व्यक्त किया जा सकता है। मै चाहती हूं की बच्चे जाने की रिश्तों की नींव प्यार होती है। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें आपस में एक छत के नीचे लड़ते झगड़ते मम्मी पापा नही बल्कि दो अलग अलग और अपने जीवन से खुश लोगों के हाथों परवरिश मिले।
समीरा को बस अपने माता पिता के सोचने से फर्क पड़ता था क्युकी वो उसके जन्मदाता थे और जब वो सहमत हो गए तो समीरा और सृजन खुशी खुशी अलग हो गए और अब भी एक दोस्त बनकर एक दूसरे का साथ देते थे। बच्चों को भी अब दोनो का बराबर प्यार मिल रहा था।
समीरा अब तलाकशुदा थी पर ये कहने से कतई नहीं कतराती थी बल्कि सबके सामने अपने तलाकशुदा होने का कारण बताती । वो कहती थी कि शादी और तलाक में कोई उतना ही अपमानित कर सकता है, दुख पहुंचा सकता है जितना आप करने की छूट देते हो।
उसका मानना था लड़कियां सड़ चुके रिश्तों की लाश ढोने के बजाय, किसी और के अधिकार के अधीन रहने के बजाय आगे बढ़े, अपने फैसले करे। जीवन किसी भी तरह आसान नहीं ।
मुश्किलें अगर अपनी चुनी हुई होती है तो जीना अच्छा लगता है। जीने का अपना अलग मजा है।
दोस्तों हमारा समाज सहज ही ये मान लेता है कि किसी महिला के लिए तलाक का मतलब है उसके जीवन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ना पर कभी कभी महिला अपने आत्मसम्मान के लिए भी तो ये फैसला ले सकती है । उसके अधिकारों का हनन हो उससे बेहतर है वो अपने अधिकारों का सही उपयोग करे और अपनी जिंदगी को मन मुताबिक जीए
हमारे इर्द गिर्द ऐसी कई महिलाएं हैं जो लोग क्या कहेंगे इस डर से ये कदम नहीं उठा पाती जबकि वो भली भांति जानती है कि उनके पति के किसी और औरत से संबंध है।फिर भी उनके साथ रहती हैं। पति झूठ बोलता है फिर भी बरसों बरस वह उस झूठ को निभाती है। वह रोती है , घुटन में जीती है , झगड़ा करती हैं पर तलाक़ नही ले सकती।यहां तक कि शिक्षित आत्मनिर्भर महिलाएं भी कई कई साल इसी उधेड़बुन में बिता देती है कि इस त्रास से बाहर कैसे आएं।
पर एक बात जो मुझे लगती है कि पति पत्नी के बीच आपसी संवाद है,आपसी समझदारी है तो वे जैसे चाहे रहें ये उनका निजी फैसला है। पर एक दूसरे पर अपना अनावश्यक अधिकार जताना और अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगाना भी तो गलत है चाहे बात लड़के की हो या लड़की की।
ये मेरे निजी विचार हैं। आप सहमत है तो अपने विचार जरूर बताएं और कहानी को कहानी की तरह पढ़ें अन्यथा न लें।
धन्यवाद
निशा जैन
VERY NICE STORY
SUPERB
बहुत अच्छी कहानी है। काश ऐसा हमारे भारतीय परिवेश में हो पाता की शादी से पहले और शादी के बाद एक स्त्री अपने लिए खड़ी हो पाती।