काश ऐसी सास सबको नसीब हो – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ माँ आप रो क्यों रही है…. क्या आपको भी मैं ही गलत नजर आ रही हूँ ?” नित्या अपनी सास सुशीला जी से उदास स्वर में बोली

“ नहीं बहू मुझे तो अपनी बेटी पर ग़ुस्सा आ रहा है….. पर अच्छा हुआ अब वो चली गई…. उम्मीद करूँगी अब जब वो आए तो फिर से ऐसा कोई व्यवहार ना करें ।” सुशीला जी ये कह कर अपने कमरे की ओर बढ़ गई और कमरे का दरवाज़ा हलके से बंद करते हुए बोली ,” बहू कुछ देर मुझे आराम करने देना…. देखना कुश ( पोते के लिए) कमरे  में आकर मुझे परेशान ना करे।”

 नित्या जानती थी उसकी सास आज बहुत परेशान है और ऐसे में वो किसी से भी बात करना पसंद नहीं करती ना जाने क्यों आज उसे एहसास हो रहा था जैसे मुझे मेरी सास मिली काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हो ।

उधर सुशीला जी कमरे में आकर अपने पति की तस्वीर देखते हुए कहने लगी,” कहती थी ना बेटी को सिर पर मत चढ़ाओ….उसकी मनमानी देखो शादी के बाद भी नहीं बदली…. काश आप उस वक़्त ही थोड़ी लगाम कसते तो वो  स्वच्छंद ना होती … पर आज मुझे आपकी बेटी को डाँटना पड़ा….. बहुत दिल को रोका पर उसकी हरकत देख सच में खुद को रोक ना पाई…।” कहते कहते सुशीला जी रोने लगी

राशि और रोहित दो बच्चों की माँ पर पति महेश जी सदैव बेटी की हर गलती नज़रअंदाज़ करते रहे और रोहित बेचारा बेवजह पिता की डांट का भागी बनता रहा पर छोटी बहन से उसे भी बहुत प्यार था इसलिए वो सबकुछ बर्दाश्त करता रहा…… शादी के बाद भी राशि जब तब घर आती और अपनी पसंद से जो मन करता ख़रीद लिया

करती महेश जी भी बिटिया को कभी कुछ नहीं कहते पर पाँच साल पहले पिता के गुजर जाने के बाद भी राशि जब आती माँ और रोहित पहले की तरह उसकी पसंद का पूरा ख़्याल रखते …..रोहित की शादी को अभी तीन साल ही हुआ था और राशि जब भी आती महसूस करती अब उसकी माँ बहू को उससे ज़्यादा मान देने लगी है…..

हर वक़्त उसकी मदद करने में लगी रहती और राशि को वक़्त कम देती थी…. इस बार जब राशि आई तो कुछ दिनों बाद ही नित्या का जन्मदिन आने वाला था….. माँ ने रोहित से कह नित्या के लिए डायमंड का खूबसूरत सा  कान के लिए कुछ लाने को कहा ताकि वो उसे तोहफ़े में दे सकें…

नित्या जब जन्मदिन की सुबह पूजा अर्चना कर सासु माँ को प्रणाम कर आशीर्वाद लेने आई तो सुशीला जी उसे एक डिब्बा पकड़ाते हुए बोली,“ बहू ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफ़ा…. खोल कर देखो कैसा है…. पसंद नहीं आए तो रोहित के साथ जाकर बदलवा लेना ।”

नित्या जब कानों के टॉप्स देखी तो सासु माँ के गले लगती बोली,“थैंक्यू माँ बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत है…. अभी पहन कर आपको दिखाती हूँ..।” नित्या कानों में पहन कर जब दिखा ही रही थी रोहित भी आ गया और बोला,“ बहुत अच्छा लग रहा है पहनी रहो..।”

नित्या बड़े प्रेम से पहन कर काम निपटाने लगी… जब राशि की नज़र उनपर तो वो बोल उठी,“ क्या बात है भाभी आपके टॉप्स तो बहुत सुन्दर लग रहे हैं…. मैं भी सोच रही थी ऐसा लेने का… कितने का आया?”

“ आपको अच्छे लग रहे हैं तो रख लीजिए…. वैसे भी मैं डायमंड के कहाँ पहनती हूँ इतने महँगे होते हैं कि खोने के डर से लेती ही नहीं… वो तो माँ ने…।” बात पूरी करती उससे पहले सुशीला जी वहाँ पर आ गई और राशि से बोली,“ अरे आज तेरी भाभी का जन्मदिन है उसे बधाई तो दे दे… और देख ये तोहफ़ा मैंने दिया है अच्छे लग रहे ना…?” 

“ वाह माँ मैं यहाँ आई मुझे तो कुछ नहीं दिया …. भाभी को डायमंड का कान का खरीद रही हो…. मुझे भी ऐसे ही चाहिए मँगवा दो ना….।” राशि ने कहा 

“ आप ये रख लीजिए दीदी…. मैं तो वैसे भी एक छोटे से सोने के टॉप्स में काम चला लेती हूँ मुझे गहनों का ज़्यादा शौक़ भी नहीं है ।” कह नित्या कानों से टॉप्स उतारने लगी

“ ये क्या कर रही है बहू…. ,ये तेरे जन्मदिन का तोहफ़ा है राशि को फिर कभी दे दूँगी… वैसे भी तेरे लिए पहली बार तो कुछ ऐसा तोहफ़ा मँगवाया है वो भी तू रखना नहीं चाहती…..

और ये क्यों बोल रही तुम्हें पसंद नहीं मैं दो महीने पहले ही सुनी थी जब तुम रोहित से कह रही थी….. इस बार पैसे जमा कर डायमंड ईयररिंग्स लेना है…. बस तभी मैं सोच रखी थी इस बार पेंशन जमा कर तुम्हें तुम्हारी पसंद का तोहफ़ा दूँगी…ये अपने पास रखो … राशि समझदार है समझ जाएगी क्यों बेटा..?” सुशीला जी ने कहा 

“ पहली बार देख रही हूँ माँ बेटी से ज़्यादा बहू के लिए फ़िक्रमंद हो रही….मुझे बाद में दे सकती पर बहू को तो अभी ही देना है… नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा कोई तोहफ़ा….काश आज पापा होते तो मुझे कभी मना नहीं करते पर तुम …।” ग़ुस्से में पैर पटकतीं राशि वहाँ से  अपने कमरे में जा कमरा बंद कर को बैठ गई 

कुछ देर बाद अपने सामान के साथ बाहर निकली और बोली,“ पहली बार एहसास हुआ बहू के आते मायका बेटी के लिए कितना पराया हो जाता…. पहले मैं जो बोलती थी तुम सब पूरा कर देती थी पर आज तो तुम्हें बहू ज़्यादा प्यारी हो गई….. बेटी के लिए जरा भी ना सोचती हो…मैं जा रही हूँ माँ अब यहाँ कभी नहीं आऊँगी….

. और भाभी आपने तो तीस साल के रिश्ते में तीन साल में अपनी जगह खूब अच्छी तरह बना ली…. मेरी माँ भी मेरी ना रही…काश आज पापा होते तो ….।”

“ ये तू क्या कह रही है राशि अरे कब तुम्हें किसी चीज़ के लिए मना किया है…. ना मैंने… ना रोहित ने … फिर आज तेरी भाभी का जन्मदिन था तो उसको ही तोहफ़ा दूँगी इसमें गलत क्या है …. तुम्हें भी दे दूँगी मना कब किया है ….अब यूँ ग़ुस्सा होकर जाने की बात मत कर।” सुशीला जी समझाते हुए बोली 

“ आप ये टॉप्स रख लीजिए राशि दी मैं तो खुद ही आपको दे रही हूँ…. प्लीज़ ऐसे नाराज़ होकर मत जाइए….मैं भी किसी की ननद हूँ और जानती हूँ मायके जाने पर अपनी जगह किसी और को देखना अच्छा नहीं लगता

वो घर उसका भी है और सारे हक भी…. मैं तो चाहती हूँ आप यहाँ जब भी आए आपको कोई कमी ना हो ये पहली बार हुआ कि आप ऐसे वक़्त पर आई और संजोग से मेरा जन्मदिन… और ये तोहफ़ा आपको दुखी कर गया ।” नित्या कहते कहते कानों से टॉप्स निकाल कर राशि के हाथ में रख दी

“ रहने दो ये दिल दरिया का नाटक ….. मन ही मन गाली देकर मेरे हाथ में रख रही हो….।” कहते हुए राशि टॉप्स वही टेबल पर रख बाहर निकल गई सामने कैब खड़ी थी और वो चली गई ।

“ माँ …. आप सो गई क्या…?” बाहर दरवाज़े पर दस्तक कर नित्या की आवाज़ से सुशीला जी वर्तमान में लौट आई

“ आ जाओ बहू..।” जैसे ही सुशीला जी ने कहा नित्या दरवाज़ा खोल अंदर आ गई… साथ में रोहित और राशि भी थे

“ माँ आज मैंने बहुत बुरा बर्ताव किया ना… इसके लिए मुझे माफ कर देना ।” कहते हुए राशि सुशीला जी को पकड़ कर रोने लगी 

“ क्या हुआ राशि तू रो क्यों रही है…. कोई बात नहीं बेटा हम जानते हैं तेरा बचपना…. ।” सुशीला जी राशि को चुप कराते बोली 

” माँ जब मैं घर से जा रही थी तो रोहित भैया को सुनार की दुकान पर देखी …. वो किसी से हाथ जोड़कर कुछ बात कर रहे थे ….मुझे समझ नहीं आया … मैं कार से उतर बात सुनने की कोशिश करने लगी… पता भैया कह रहे थे वैसा ही कान का मुझे एक और दे दीजिए….. पैसे धीरे धीरे चुका दूँगा….

. मैं समझ गई वो मेरे लिए बात कर रहे हैं ….. मैं भैया का हाथ पकड़कर बाहर ले आई और उनकी आँखों में आँसू देख पूछने लगी उधार लेने की ज़रूरत क्यों पड़ रही… क्या बहन को देने के लिए इतने पैसे भी नहीं है….भैया रोने लगे बोले अभी पैसों की थोड़ी दिक़्क़त है…. माँ का पेंशन हम नहीं लेते ……

मेरी तनख़्वाह से इतना बचत नहीं होता कि अचानक कुछ खर्च कर सकूँ… आज तेरी बात सुन कर लगा कि बहन को एक कान का टॉप्स भी नहीं दे सकता …. मैं कैसा बड़ा भाई हूँ…मुझे रोना आ गया माँ मुझे नहीं चाहिए ऐसा कुछ भी जो मेरे भाई को उधार लेकर मुझे देना पड़े …मैं  वहाँ से चुपचाप भैया को यहाँ ले आई..।”राशि हिचकियों के साथ कह रही थी 

“ माँ अब मैं कभी किसी चीज की ज़िद्द नहीं करूँगी….. मेरी कोई ननद नहीं है अगर होती और वो भी ऐसा ही करती तो हमारा क्या होता…. सच माँ तुम्हें बहू बहुत अच्छी मिली है….

काश मेरी कोई ननद होती … वो घर आती  तो शायद मैं सब समझ पाती … मैं तो हमेशा ही इस घर में अपनी धाक समझती रही पर असली मायने में घर पर धाक तो भाभी का होना चाहिए मेरा नहीं…. मेरी धाक तो मेरे ससुराल में होगी ना यहाँ तो मैं बचपना कर के प्यार पाने आ सकूँ बस मुझे यही ख़्वाहिश रखनी है ।” राशि कह कर माँ से लिपट गई 

नित्या को आज अपनी ननद पर गुमान हो रहा था वक़्त रहते उसकी ननद को मायके की तकलीफ़ समझ आ गई थी और अपनी सास पर नाज़ कर रही थी कि उन्होंने बेटी बहू को बराबर समझा ।

दो दिन बाद राशि चली गई पर अब जब भी आती है अपनी मनमानी नहीं करती …. भाभी और माँ संग घंटो बातें करती साथ ही  नित्या को छेड़ते हुए कहती ,”आप बहुत लकी हो भाभी जो आपको मेरी माँ जैसी सास मिली ये ख़्वाहिश तो हर बहू रखती हैं कि ऐसी सास सब घर में हो पर सबका नसीब आपके जैसा नहीं।”

ये सुन कर नित्या हँसते हुए सास के गले लग कर कहा करती,”ये बात तो सही कही आपने राशि दी।”

मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

#काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हो ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!