कान का कच्चे – संगीता श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“शर्म नहीं आती तुम्हें , इसे छेड़ते  हुए !”गाड़ी से उतर, शैली को एक तरफ खींच दोनों मनचलों को थप्पड़ रसीद दी। “इस बेचारी को सहारा देने के बजाय इसके विकलांगता का फायदा उठा रहे हो?”शैली रोए जा रही थी। भीड़ भी इकट्ठी हो गई। सबके सामने दोनों मनचले माफी मांगे। ‌‌   

हमेशा की तरह शैली ऑफिस से निकल ऑटो रिक्शा का इंतजार कर रही थी।

विशाल उसे अपनी गाड़ी में बैठा उसे घर को पहुंचाया। शैली की मां का पैर छू , विशाल अपना परिचय दिया और सारी घटना बताई।”युग -युग जिओ मेरे बच्चे, तुने इसकी रक्षा की।”शैली की मां  कहते हुए फफक पड़ी। उन्हें चुप कराते हुए विशाल ने कहा,

“आंटी आज के बाद इसे कोई तंग नहीं करेगा। मेरी बहन मेरे साथ रोज आया- जाया करेगी।”

बहन संबोधन सुन मां- बेटी की आंखों में आंसुओं के सैलाब उमड़ पड़े।

एक दिन वैशाली का आमना- सामना शैली और विशाल से हो गया। देखते ही टोका ,”क्यों आज जल्दी निकल रहे हो?”

“हां कुछ काम है।”कहते हुए  विशाल जल्दी से शैली के साथ गाड़ी पार्किंग की ओर चला गया।

वैशाली और विशाल एक ही मोहल्ले में रहते थे और दोनों साथ-साथ पढ़े थे। वैशाली ,विशाल को मन ही मन चाहती थी लेकिन कभी इजहार नहीं किया। विशाल के साथ शैली को देख वह चिढ़ जाती थी। विशाल के ऑफिस के सामने वाले बिल्डिंग में वैशाली का ऑफिस था। कभी-कभार इन लोगों की भेंट हो जाती थी। वैशाली चाहती थी कि किसी तरह दोनों के बीच झगड़ा लगा दे, लेकिन कैसे? सोच सोच कर उसका दिमाग खराब था कि इस लंगडी के साथ इसका अफेयर कैसे हो गया?कैसा जादू कर दिया इस निगोड़ी ने!

एक दिन वैशाली की धड़कन और बढ़ गई जब उसने देखा दोनों हंस रहे थे और विशाल शैली का कान खींच रहा था। वैशाली इसी उधेड़बुन में  रहती थी कैसे दोनों के बीच दरार आ जाए।

आखिरकार उसने रास्ता ढूंढ ही लिया। पहुंच गई संडे को विशाल के घर। अक्सर संडे को विशाल दोस्तों से मिलने चला जाता था।

विशाल की मां से इधर-उधर की बातें करने के बाद अंततः उसने विशाल और शैली के बीच गलत संबंधों को बता डाला।

“ठीक है तुमने मुझे बता दिया। खबर लेती हूं उसकी।”विशाल की मां ने कहा।

विशाल की मां को समझ नहीं आ रहा था  कि कैसे पूछे विशाल से! फिर अपने आप को समझाया,” इतना उतावलापन ठीक नहीं।”

उस दिन रक्षाबंधन  था।विशाल इसी दिन मां को शैली से मिलवाना चाहता था।

विशाल,सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हो निकलने लगा तो मां ने कहा,”सुबह-सुबह तैयार हो कहां निकल गए! नाश्ता तो करके जा!”

“आ के करता हूं।”कहते हुए निकल गया। मां के मन में विशाल के प्रति संदेह तो था ही। वह  लग गई उसके पीछे।

विशाल की गाड़ी एक मकान के पास जाकर रुकी। एक लड़की निकली फिर दोनों अंदर चले गए। मां की धड़कन बढ़ गई। अपने को संयमित कर कुछ देर बाद वह भी घर के अंदर चली गई। पर वहां का नजारा कुछ और ही था। वह लड़की विशाल को राखी बांध रही थी। कुछ देर सुन्न- सा अपलक देखती रही।

मां पर नजर पड़ते ही विशाल ने कहा,”मां तुम….. यहां!”

“हां बेटा। पर यह कौन ? कैसे….? समझ नहीं आ रहा।

विशाल मां को आराम से कुर्सी पर बैठाते हुए बोला,”मां ,यह शैली।”शैली ने मां के पैर छुए।

“और ये आंटी , शैली की मां।”

सारी बातें विशाल ने मां को बताया तो मां की आंखों से आंसू बहने लगे। तब मां ने कहा,”बेटा ,मैं कान की कच्ची कैसे हो गई जो वैशाली की बातों पर विश्वास कर लिया।”

मां ने वैशाली की  बातों को सुनाया और कहा,”मुझे माफ कर दो मेरे बच्चों।”मां का इतना कहना था कि दोनों उनसे लिपट गए। उधर शैली की मां की आंखों से खुशी के आंसू टपकने लगे थे।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित।

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