कामिनी देवी घर की मुखिया थी।उनका हंसता खेलता परिवार था।पति केशवदासजी बड़े सुलझे हुए इंसान थे।जो कानपुर शहर के बहुत बड़े बिजनेसमैन थे।वे रेडीमेड पोशाकें सभी वर्गो के लिए बनाते थे। कामिनी देवी के सरल स्वभाव के कारण जो भी उनके शोरूम मे आता दो तीन पोशाकें अवश्य खरीद कर जाता था क्योंकि केशवदासजी मार्केटिंग का काम देखते और कामिनी देवी शोरूम की मेनेजर होने के साथ साथ घर की जिम्मेदारी भी उठाती। उनके तीन बेटे थे। जिनके नाम किशोर, कुमार और कुंदन थे।
बड़े दोनों बेटे कामिनी देवी पर गये थे। दोनों बड़े ही समझदार थे। कामिनी देवी काम पर जाते समय उन्हें जो भी जिम्मेदारी देती उसे भी पूरा करते और अपनी पढ़ाई भी करते थे। अपनी अपनी कक्षा मे किशोर और कुमार हमेशा प्रथम स्थान ही पाते थे।
इसके विपरीत कुंदन का मन ना तो काम मे लगता था और ना ही पढ़ाई मे लगता था।एक तो देर से उठना और देर से सोना उसकी रोज की आदत थी।देर से उठने के कारण ना तो जलपान कर पाता और विद्यालय में देरी से पहुंचता और प्रिंसिपल से रोज सजा मिलती।
घर में गलती करने पर बड़ा भाई किशोर उसे बचा लेता था।उनकी इसी आदतों के कारण ही उसका नाम कामचोर पड़ गया चला जाता था। कामिनी जी किशोर से कहती -सारा जीवन तुम उसका साथ थोड़ा ही दोगे उसे अपना काम करने की आदत डालने दो।
किशोर और कुमार दोनों ही साफ्टवेयर इंजीनियर बनकर अच्छी अच्छी विदेशी कंपनियों मे जाब कर रहे थे।
एक दिन जब केशवदासजी टूर से वापस आए तो उन्होंने कामिनी को बताया कि दो दिनों से पेट में दर्द हो रहा है। कामिनी जी तुरन्त उन्हें लेकर सीटी अस्पताल ले गई। डाक्टर ने कुछ टेस्ट करवाने के लिए कहा था।
दो दिनों बाद रिपोर्ट मिली डाक्टर को जो संदेह था वहीं निकला और उन्होंने बतलाया केशवदासजी लो को लीवर कैंसर वो भी अन्तिम स्टेज पर है अधिक से अधिक सात दिन ही इनके बचे है।
उस समय उनके दोनों बड़े बेटे विदेश मे थे।कुछ दिन पहले तों जाब लगी थी। कामिनी जी सोच रही थी मै अकेले कैसे सब संभाल सकती हूं।
कुंदन तो नासमझ है उसे तो कुछ भी नही पता। मां को दुखी देखकर कुंदन आया और चुपचाप जमीन पर बैठकर उनका माथा सहलाने लगा।जिस कुंदन को वह कामचोर समझ रही थी आज उसने अकेले ही मां को तौ संभाल लिया साथ ही व्यापार को भी संभाल लिया।
। आखिर वह दिन आ ही गया जब केशवदासजी जी ने आखरी सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह अनन्त की यात्रा पर गए चल दिए। किशोर और कुमार कुछ दिन की छुट्टी लेकर आ गये।आज किशोर ने कहा -कि पिताजी को मुखाग्नि देने का हक आज केवल इस कामचोर का ही है जिसने दुख के समय मां पापा दोनों को संभाला।हम दोनों तो इनकी जरूरत के समय कोई सेवा नही कर पाए।
कुंदन ने कहा -नही बड़ा बेटा ही मुखाग्नि देता है इसलिए किशोर भैया ही करेंगे?
कामिनी जी ने कहा -तुम तीनों मिलकर ही मुखाग्नि दो?
आज कामिनी बहुत खुश थी कि उसके तीनों बेटे ने मिलकर अपने माता-पिता की इस बगिया को अपनी एकता से महका दिया।
किशोर और कुमार तो चले गये और बाकी सारे काम कुंदन को ही पूरे करने पड़े। पंडित जी ने जो जो इंतजाम करने को कहा था किशोर और कुमार सारी व्यवस्था और सामान तथा ब्राह्मण भोज मे देने की दान दक्षिणा की राशि भी दे गये थे।
कुंदन को तो अब अपने हाथों से सभी ब्राह्मणों को भोज करवा कर दान दक्षिणा देनी थी।
सारी व्यवस्था शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गयी। ब्राह्मण भी सबको आशीष देकर चले गये।अब कुंदन हर पल कामिनी जीके साथ रहता उनकी देखभाल करता। उनके कहे अनुसार उसने काम को भी संभाल लिया था।
जब किशोर भारत वापस आया तो कामिनी जी ने कहा -किशोर मै चाहती हं तुम अब यहां आकर किसी विदेशी कंपनी मे काम करना शुरू करो अब मैं थक गई घर और बाहर के दायित्व को निभाते हुए,अब मुझे मेरी जिम्मेदारी से आजाद कर दो?
जब भी मेरी सलाह की जरूरत होगी मै अवश्य दूंगी और मै आराम करना घाहती हूं। मुझे बहुएं लाकर दो ?
किशोर ने बताया कि उसने अपने साथ काम करने वाली किरण को पसंद किया है।
कुमार ने कहा -उसने कविता को और कुदन ने बताया उसे वर्मा सर की बेटी कुसुम बहुत पसंद है।
कामिनी जी ने कहा -मैने तों कुसुम को तो बहुत पहले ही कूंदन के लिए पसंद कर लिया था।
तीनों बेटों का विवाह होते ही कामिनी जी अयोध्या राम लला के दर्शन करने सपरिवार गई।
इति स्वरचित
आर कान्ता नागी