जूते या पैर – ऋतु गुप्ता

दस वर्ष का शुभम इस बार अपनी मां से अपने जन्मदिन पर महंगें स्पोर्ट्स शूज दिलाने की जिद कर रहा था। शुभम की मां पारुल उसे समझाती है कि बेटा जितनी चादर हो उतने ही पांव फैलाने चाहिए। वो शुभम से कहती है बेटा जब तुम्हारे पास अभी जूते हैं और वो भी सही हालत में, तो नये जूतों की क्या जरूरत है?

जब कभी जरूरत होगी, तब जरूर ले लेंगे। लेकिन शुभम कहां मानने वाला था, जिद करता रहा।तब पारुल ने कहा ठीक है जन्मदिन वाले दिन अनाथ आश्रम के बच्चों को जब गिफ्ट देने जाएंगे तब आते समय मै तुम्हें जूते दिला दूंगी।

शुभम बहुत खुश था और जन्मदिन का इंतजार करने लगा।

जन्मदिन वाले दिन जब वो अपनी मां के साथ अनाथ आश्रम पहुंचा तो उसे एक बच्चा दिखाई दिया जिसका एक ही पैर था। शुभम ने उससे पूछा कि तुम्हें दुख नहीं होता तुम्हारे एक ही पैर है तुम कैसे चल पाते हो।इस पर उस बच्चे ने कहा नहीं मुझे कोई दुख नहीं बल्कि मैं ईश्वर का धन्यवाद करता हूं कि उसने मुझे कम से कम एक पैर तो दिया है।

शुभम को एहसास होता है कि एक वह बच्चा है जो एक पैर के के साथ भी खुश है ,और एक वो खुद है जो दोनों पैर और जूते दोनों होते हुए  भी नये जूतों के लिए जिद कर रहा है।वो अपनी मां से कहता है, मां मुझे जूते नहीं चाहिए, भगवान ने मुझे दोनों पैर दिए है, मैं उसके लिए भगवान का धन्यवाद करता हूं। जब जरूरत होगी ,हम तब ले लेंगे न‌ये जूते।

माला भी खुश है कि यहां आकर  शुभम ने जिंदगी का कम से कम एक छोटा सा सबक तो सीख लिया।

 

ऋतु गुप्ता

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