नमन सुबह से मुँह फुलाए बैठा था.! माँ संगीता के लाख कहने पर भी वह न तो कुछ खा रहा था और ना ही पी रहा था बस जिद्द पर अड़ा एक ही रट लगाए था कि…
मुझे नये जूते ला दो.!
मुझे नये जूते ला दो.!!
माँ बेचारी कहे जा रही थी..!
बेटा अभी दो महीने पहले ही तो तुम्हारे पापा ने तुम्हारे जन्मदिन पर नई साईकिल लाकर दिए हैं और अभी तो उसके एवज में ऑफिस से लिए कर्ज भी पूरे नहीं हुए और फिर….??
जानता हूँ माँ..
पर जूते भी तो जरूरी हैं..!
लेकिन जूते तो हैं न तुम्हारे पास..?
तुमने तो ठीक से पहना भी नहीं उन्हें अभी.!
नहीं माँ..तुम नहीं समझती वो पुराने स्टाईल के हैं,मेरे स्कूल के सभी दोस्तों के पास नये स्टाईल के और मंहगे जूते हैं,पर मेरे पुराने हैं और देखो इनमें दाग भी आ गयें..!
अच्छा बेटा कुछ दिन पहन लो फिर पापा से कहकर नये जूते मंगवा दूंगी
अभी कुछ कहूँगी तो शायद गुस्सा हो…
पर नमन…! कहाँ मानने वाला था
खैर शाम को जब सिन्हा जी घर आएं तो उन्हें उनकी पत्नि ने सारी वस्तु स्थिति से अवगत कराया,वो चुप चाप सुनते रहें,पत्नि की सारी बातें सुनकर बेटे नमन को पास बुलाया और उसे समझाने की कोशिश की पर नमन मानो कुछ सुनने या समझने को तैयार ही नहीं था,उसे तो बस अपने नये जूते की पड़ी थी,उसके पिता की माली हालत से उसे कुछ लेना देना नहीं था.!
मैं कुछ नहीं जानता मुझे नये जूते चाहिए बस..कहता हुआ बाहर चला गया.!
इधर सिन्हा जी पास पड़ी चारपाई पर लेटे लेटे सो गयें लेकिन उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रहीं थी.!
अगले दिन चिंता करने की बारी उनकी पत्नी की थी,शाम हो चली थी पर अभी तक सिन्हा जी घर नहीं आएं थे वो बार बार चौराहे की ओर देख रही थी,बेटा भी घर पर नहीं था कि उसे देखने को कहती..
कि तभी मोहल्ले का एक बच्चा चिल्लाता हुआ आया..!!
आंटी…आंटी. वो…अंकल जी..!!
क्या हुआ अंकल जी को..??
संगीता घबराहट भरे स्वर में उस बच्चे से पूछने लगी..!
जी..वो अंकल जी को…..!!
उस बच्चे ने जो कहा उसे सुनकर संगीता रोए जा रही थी और आगे भागी अगले ही पल उस बच्चे के साथ वह अस्पताल में थी.!
जहां सिन्हा जी ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थें.! डॉक्टर अपनी हर संभव कोशिश कर रहें थे.!!
पीछे उनका बेटा नमन भी दौड़ा दौड़ा हॉस्पिटल आ गया था शायद उसे भी कहीं से पता चल गया था या किसी ने उसे बताया हो.!
वह हांफ भी रहा था और रो भी रहा था
उसकी माँ और मुहल्ले वाले सभी सिन्हा जी को घेरे खड़े थे..!!
हुआ यूँ था कि उस शाम ही मुहल्ले में बिजली की इक तार गिर गई थी,मुहल्ले वालों ने विभाग वालों को खबर भी कर दिया था पर बिजली विभाग से कोई अभी तक आया नहीं था और सिन्हा जी,जो हर रोज ही उस रास्ते से आया जाया करते थे, उनकी नज़र तार पर नहीं पड़ी और उनके जूते के घिसे तलों के फटे चमड़े की बीच छेद होने के कारण उनके नंगे पांव तार को छू गएं थे
जिससे उनको बिजली का जोर झटका लगा था और वो दूर जा गिरें थे,पर ये संयोग था कि मुहल्ले के कुछ लोगों ने यह देख लिया और जल्दी से पास के ही एक प्राथमिक अस्पताल में ले आएं थे और उस बच्चे को उनके घर खबर करने को कह दिया था.!
खैर ईश्वर का शुक्र,डॉक्टरों की मेहनत रंग लाने लगी थी और अब सिन्हा जी को हल्का हल्का होश आने लगा था,जहां थोड़ी देर पहले सबके चेहरों पर दु:ख और मायूसी छायी थी अगले ही पल हल्की ही सही पर इक खुशी की झलक दिख रही थी.!
सिन्हा जी ने एक नज़र पत्नी फिर बेटे नमन को देखा जो कोने में खड़ा आँसू बहा रहा था जो शायद दु:ख के कम और पश्चाताप के ज्यादा थे,क्योंकि उसकी नज़र पास पड़े दो जोड़ी जूतों पर पड़ चुकी थी.!
“एक बिल्कुल नई और दूसरी फटी पुरानी”
जिन्हें शायद किसी ने सिन्हा जी को अस्पताल लाते वक्त रास्ते से उठा ला उनके बेड के पास रख दिए थे.!
नमन के आँसू थमने के नाम नहीं ले रहें थे..!!
वो तेजी से दौड़ा अपने पिता के गले से लिपट गया उसकी माँ भी उनके पास आ गयी थी और शायद तीनों ही बिना कुछ कहे एक दूसरे को कुछ न कुछ कह रहे थे एवं एक दूसरे की अनकही बातों को समझ रहें थे.!
और पास पड़े नये पुराने दोनों ही जूते एक दूसरे से मुह चुरा रहे थे.! जबकि दोनों को ही स्वयं का हकीकत पता था जहां नये जूते नमन की नयी दुनिया या यूँ कहें शीशे के पार की दुनिया की फ़ंतासी मात्र थे,तो पुराने जूतों ने सिन्हा जी के साथ कदम-दर-कदम साथ चलकर पूरी दुनिया नापी थी और चखा था उनके पैरों का नमकीन स्वाद,उनके सफर का तमाम पसीना,जो अभी भी दफ़्न थे उधड़े अस्तरों में जूते के उनके.!
विनोद सिन्हा “सुदामा”