जो समझदार , वही जिम्मेदार – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

ट्रिन… ट्रिन…. ट्रिन…. ट्रिन….

 नंदिनी _ हैलो 

 दीदी, कैसी हो आप? बहुत दिनों बाद याद आई अपनी छोटी भाभी की। आप लोकल ही रहती हो पर कभी ये नही कि मिलने आ जाओ

 रश्मि_ अरे घर के काम ही खतम नही होते ,सोचती हूं आने का तो कुछ न कुछ काम आ ही जाता है

  नंदिनी _ ये घर के काम और हम ग्रहिणियों की जिम्मेदारियां कभी खत्म होती हैं भला

   इनके चक्कर में रहे तो जीना ही भूल जायेंगे किसी दिन 

   रश्मि_ हां आज आने का सोच रही थी, तुम फ्री हो तो बताओ आ जाऊं?

    नंदिनी_ नेकी और पूछ पूछ

     आ जाओ दीदी , दोनो गपशप करेंगे ….. जिम्मेदारियों का क्या है ये तो कभी खत्म ही नही होंगी

     रश्मि_ चल आती हूं फिर शाम तक। ओके बाय….

     नंदिनी_ बाय दीदी

       नंदिनी अपनी ननद रश्मि के आने की खबर से बहुत खुश हो गई। वैसे तो उसका काफी काम पड़ा था आज। उसको आलमारियां साफ करनी थी, कपड़े प्रेस करने थे ,हरी सब्जियां लाई थी वो भी साफ करनी थी पर वो सारे काम किनारे कर अपनी ननद के आने की तैयारियां करने लगी। 

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                    ननद के आने से पहले उसने उसकी पसंद का वेज मंचूरियन और हक्का नूडल्स बनाकर तैयार कर लिया ताकि बाद में उनको टाइम दे सके।

                    वैसे उसका स्वभाव शुरू से ऐसा ही था।जब भी उसके यहां कोई मेहमान आते वो अपने काम छोड़ उनके साथ समय बिताना ज्यादा जरूरी समझती थी। उसका सारा घर फैल जाता पर वो सारा सामान स्टोर रूम में रख आती बोलती बाद में काम ही तो करना है, मेहमान कौनसे रोज़ आते हैं। और कामों का क्या है ये तो हमारे जीते जी कभी खत्म नहीं होते 

                    (कहने को तो वो सबसे छोटी बहु थी घर की पर जिम्मेदारियां सारी उसी पर थी क्युकी वो सास ससुर के साथ रहती थी जबकि उसकी दो जेठानियां नौकरी करती थी और अलग अलग घरों में रहती थी। इसलिए आए गए सब उसी के यहां आते थे। नंदिनी समझदार थी ।जब उसकी मां या कोई और उसको बोलता कि तू क्यों बेगारी करती है सबकी ?क्या तेरी जेठानियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती सास ससुर और परिवार के लिए? वो तो आराम से मस्त रहती हैं और आ जाती हैं कभी कभार मेहमान बनकर। पिसती तो तू है ना घर की जिम्मेदारियों और कामों में

                     तब वो कहती ” मां घर मेरा है तो जिम्मेदारी भी तो मेरी होंगी न। अब वो नही समझती तो न सही…. समझे तो जिम्मेदारी और न समझे तो बेगारी

और ये तो जीवन का सत्य है भले ही कड़वा हो पर सही है कि जो समझदार है वही जिम्मेदार है अब वो चाहे छोटा हो या बड़ा”

“और वैसे भी मां मेरी दोनो बड़ी बहने भी तो घर की सबसे छोटी बहू हैं फिर भी वो ही जिम्मेदारी निभाती हैं न क्योंकि वो ही समझती हैं” और सबकी बोलती बंद हो जाती)

                    

                     थोड़ी देर बाद…..

                        अरे दीदी आ गई आप नंदिनी रश्मि के पैर छूते हुए बोली

                         हां आज तो सारी जिम्मेदारियां और काम छोड़ आ ही गई अपनी प्यारी भाभी से मिलने

                          रश्मि नंदिनी को गले लगाते हुए बोली।

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हां तो इसमें गलत क्या है? कभी कभी हमे खुद के लिए समय निकालना बहुत जरूरी है। जिम्मेदारियां तो समय के साथ बढ़ती जाएंगी पर समय हमारे लिए कम होता जायेगा इसलिए समय रहते जिंदगी का मजा ले लेना चाहिए। है की नही………

अभी तो हमारे हंसने बोलने के दिन हैं। बाद में बच्चे बड़े हो जायेंगे तो वैसे ही हमको जिम्मेदार बनना पड़ेगा।

   हां नंदिनी ये तो सही है रश्मि बोली।

     मुझे इसलिए तेरी याद आ जाती है एक तुम ही तो हो जिसके साथ बाते करके मन हल्का हो जाता है वरना दोनो भाभियों के यहां जाती हूं तो वो अपने काम में लगी रहती हैं और मैं अकेली बैठी बोर होती रहती हूं। उनको तो हमारी आवभगत करना बेगारी लगती है।

       अब उनकी बात छोड़ो दीदी…. मन को मत दुखाओ आप तो मंचूरियन खाओ, आपके लिए बनाया है नंदिनी बोली

       अरे वाह तुमने बना भी लिया इतनी जल्दी। कितना काम फैलाती हो तुम भी ना…. बहुत टेस्टी मजा आ गया 

       खाने के बाद……. रश्मि बोली

       लाओ मैं बर्तन साफ कर दूं पूरी सिंक भरी पड़ी है तुम्हारी 

       अरे दीदी बर्तन कौनसे भागे जा रहे हैं, काम करने वाली मैं, अभी करु या बाद में ……करना मुझे ही है तो फिर अपनी इच्छा से करूं तो बेहतर है ना। आप तो बैठो बस। आप भी मम्मी जी की तरह बाते कर रही हो आज

 जब मैं नई नई आई थी ससुराल तो खाना खाने के बाद अपनी प्लेट हाथो हाथ नहीं माजती थी सोचती चाय के बरतनों के साथ ही माज दूंगी पर मम्मी जी को सिंक बिलकुल साफ चाहिए होती फिर उनके डर के मारे माज देती थी। वरना ..….

  और आप या बुआजी छुट्टियों मे घर आते तो लगता मैं भी सारा काम छोड़ आपके साथ हंसी मजाक , बाते करूं पर घर की जिम्मेदारियों और काम के आगे कभी अपने मन की इच्छा पूरी नहीं कर पाई

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   अब मम्मी जी नही हैं तो अपने मन का कर लेती हूं। मुझे लिखने का शौक है तो काम को किनारे कर पहले लिखने बैठ जाती हूं। मन को जो संतुष्टि मिलती है फिर उसके बाद दुगुनी ऊर्जा से काम करने का मजा ही कुछ और होता है

    सच नंदिनी तुम्हारे रहते मां की कमी महसूस नहीं होती। मायके का सुख मुझे तुम्हारे यहां आने से ही मिलता है। तुमने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है

    सच दीदी …तो फिर पक्का रहा …. अब से हर महीने एक हफ्ते में एक बार मैं आपसे मिलने आऊंगी और अगले हफ्ते आप आओगे नंदिनी ने सुझाव दिया

    पर हम करेंगे क्या ? रश्मि बोली

    साथ बैठेंगे, चाय पियेंगे,गप्पे मारेंगे और क्या….

    वरना जिम्मेदारियों का क्या है वो तो कभी खतम ही नही होंगी ये जीवन का दूसरा कड़वा सच

    दोनो हंसते हुए एक साथ बोली।

दोस्तों अक्सर ऐसा होता है…. हमारे काम का एक निश्चित रूटीन बन जाता है।और हम उसी जिम्मेदारी के इर्द गिर्द अपना जीवन जीते रहते हैं। कभी कभी एक सा जीवन जीने से भी जिंदगी में नीरसता आ जाती है और हम अपने आपको अंदर से कमजोर महसूस करने लगते हैं

        पर यकीन मानिए कभी इन कामों को या जिम्मेदारियों को ऐसे ही पड़े रहने दीजिए और अपनी इच्छा का कुछ काम करके देखिए , अपने लिए थोड़ा टाइम निकालिए फिर देखिए आप कितनी सकारात्मक ऊर्जा से भर जाओगे

         मै तो ऐसे ही करती हूं काम बचा है तो कोई नही । मै अपने शौक के लिए समय जरूर निकलती हूं। अब चाहे लिखूं, डांस करूं या एक्सरसाइज या वॉक जो भी मेरा मन करे।

          काम जब मुझे ही करने है, जिम्मेदार मैं ही हूं तो फिर जल्दी काहे की

मेरी ये सलाह आपको कैसी लगी बताना मत भूलिएगा।

निशा जैन

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