लावण्या अपने कमरे में सो रही थी कहने के बदले कह सकते हैं कि वह आँखें मूँदकर लेटी हुई थी । उसके तीनों बच्चे दूसरे कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे उन्हें लगा कि माँ को कुछ सुनाई नहीं देगा इसलिए जोर ज़ोर से अपने विचार एक दूसरे के सामने रख रहे थे ।
बेटी सुजाता कह रही थी कि भैया आपने माँ को वालेंटरी रिटायरमेंट क्यों लेने दे रहे हैं अभी तो उनकी पाँच साल की सर्विस है ।
विजय जो बड़ा बेटा था कह रहा था कि माँ ने ही कहा है कि मुझे अब आराम करना है मैं वालेंटरी रिटायरमेंट लेना चाहती हूँ । मैं भी मान गया क्योंकि मुझे भी एक घर लेना है । जिसके डाऊन पेमेंट के लिए इधर-उधर भटक रहा था अब माँ के रिटायर होने के बाद आने वाले पैसों से डाउन पेमेंट कर दूँगा सोच रहा हूँ ।
वाहहह भाई आप तो बड़े चंट निकले । हम दोनों को उन रुपयों में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा क्या यह कैसा न्याय है । अजय की तरफ़ मुड़कर कहा अजय भैया आप कुछ बोलते क्यों नहीं हैं ।
अजय ने कहा कि देख बहना मुझे माँ के पैसों से कोई मोह नहीं है । बड़े भाई ने कहा था कि मैं माँ को अपने साथ ही रख लेता हूँ मैं ख़ुश हो गया था क्योंकि तुम्हारी भाभी माँ को साथ रखना नहीं चाहती है तो उन्हें अपने साथ ले जाकर रोज झगड़ों में क्यों पड़ूँ । इसलिए मैंने हाँ कर दी है अब तुम दोनों ही फ़ैसला कर लो मुझे इस झमेले में मत घसीटो कहते हुए फोन में कु देखने लगा ।
विजय ने कहा वैसे भी बहना माँ के सारे गहने तुम्हें ही तो मिलेंगे । हाँ अगर तुम माँ के पैसों में हिस्सा चाहती हो या उनका पेंशन चाहती हो तो माँ को अपने साथ अपने घर में रख लो मैं अपना इंतज़ाम कहीं और कर लूँगा ।
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यह सुनते सुजाता ने कहा कि बाप रे यह आपने सोच भी कैसे लिया है कि मैं माँ को अपने साथ ले जाऊँगी । मेरे साथ मेरी सास रहती है । मैं उन्हें घर से कैसे भगाऊँ यही सोच रही हूँ तो इन्हें ले जाकर अपने सिर पर मुसीबत क्यों मोल लूँगी । मेरे पति भी इन्हें अपने साथ ले जाने के लिए नहीं मानेंगे ।
अंदर कमरे में आँखें मूँदकर भी जाग रही लावण्या को बच्चों की बातें सुनकर दिल में दर्द हो रहा था ।
वह सोचने लगी थी कि एक स्त्री को बचपन से लेकर बुढ़ापे तक कितने कष्ट सहने पड़ते हैं । वह अपने विचारों के ज़रिये पुराने दिनों को याद करने लगी थी।
उसकी आँखों के सामने उसके अपने बचपन के दिनों की यादें आकर हलचल मचाने लगी थी । वह उन दिनों को फिर से जीने लगी थी ।
वह घर की सबसे बड़ी बेटी थी । उसके बाद उसकी दो बहनें और एक भाई था । पिताजी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे । इतने बड़े परिवार को सँभालने के लिए उन्हें दिक़्क़तों का सामना तो करना पड़ता था ।
माँ ही है जो थोड़े में भी हम लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करतीं थीं ।
मुझे अच्छे से वह दिन याद है जब मैं छोटी सी थी और स्कूल से आते ही माँ से कहने लगी थी कि माँ इस बार के मेरे जन्मदिन पर मुझे भी मेरी सहेली दीपा के जैसी फ्रिलवाली फ्राक चाहिए है ।
माँ ने कम से कम मेरा मन रखने के लिए भी नहीं कहा कि ठीक है दिला दूँगी । उन्होंने मुझे जोर से डाँटते हुए कहा कि तुम सिर्फ़ अपने ही बारे में सोच रही हो तुमसे छोटे तुम्हारे पीछे दो बहनें और एक भाई भी हैं । उनके बारे में भी तुम्हें सोचना चाहिए हमारे लिए तुम अकेली बच्ची नहीं हो ।
इस तरह से बचपन में माता-पिता मेरी छोटी छोटी इच्छाओं को भी यह कहकर दबा देते थे कि सिर्फ़ अपने बारे में नहीं सबके बारे में सोचना सीखो ।
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मैंने दसवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की थी । मैं बहुत खुश थी। मेरे टीचर्स और सहेलियों ने भी मेरी बहुत तारीफ़ की थी । मैंने अपनी ख़ुशी अभी ठीक से मनाई भी नहीं थी कि एक दिन पिताजी मेरे लिए एक रिश्ता लेकर आ गए ।
शास्त्री जी पिताजी से कह रहे थे कि उन लोगों को आपकी बिटिया पसंद आ गई है वे शादी की तारीख़ तय करने और दहेज की बातें करने के लिए आपको बुला रहे हैं ।
उनकी बातों को सुनकर मैंने माँ को अलग से बुलाया कि मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ ।
माँ ने ग़ुस्से से कहा क्या बात है दिखाई नहीं दे रहा है हम वहाँ बातें कर रहे हैं । ठीक है जल्दी से बता क्या कहना है ।
मैंने डरते हुए अटक अटक कर कहा कि माँ मुझे और आगे पढ़ना है अभी से मैं शादी नहीं करना चाहती हूँ । मेरे स्कूल में भी सब कहते हैं कि दसवीं में तुम्हारे अच्छे अंक आए हैं ।
तुम्हें मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लेने के लिए परीक्षा देनी चाहिए तुम्हें ज़रूर मेडिकल कॉलेज में दाख़िला मिल जाएगा । माँ मैं भी डॉक्टर पढ़ना चाहती हूँ ।
उसी समय पिताजी आए और अंदर आते ही कहने लगे क्या हो गया है ? क्यों बच्ची को डाँट रही हो । माँ ने कहा कि आपकी लाड़ली शादी नहीं करना चाहती है डाक्टर की पढ़ाई पढ़ना चाहती है ।
पिताजी ने कहा कि देख बेटा जितनी चादर उतना ही पैर फैलाना चाहिए । तुम जानती हो तुम्हारे बाद तुम्हारी दो बहनें हैं मुझे उनकी भी शादी करनी है । मैं सोच रहा हूँ कि मेरे रिटायर होने के पहले ही तुम तीनों बहनों की शादियाँ करा दूँ ताकि बेटे के ऊपर कोई बोझ ना पड़े । उनकी बातों को सुनने के बाद उनकी बातों को मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था ।
इस तरह से प्रताप से मेरी शादी हो गई थी । प्रताप की तनख़्वाह कम थी और घर में सास ससुर देवर एक ननंद थी । इसलिए मैंने भी प्राइवेट कंपनी में नौकरी ढूँढ ली थी ।
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ऑफिस का काम घर के काम के कारण मैं व्यस्त हो गई थी इस बीच हमारे भी तीन बच्चे हो गए थे । ऑफिस में किसी ने कहा कि यहाँ पर कांम्पिटेटिव परीक्षा लिखें तो प्रमोशन आसानी से मिलते हैं । मुझे पढ़ाई पसंद तो थी ही तो मैंने पति से कहा कि मैं परीक्षा लिख लेती हूँ तो उन्होंने कहा कि यह क्या है लावण्या अपने बारे में सोचना बंद करो तीन बच्चे हैं हमारे उनके बारे में सोचो ।
मैं चुप हो गई और बिना प्रमोशन लिए ही नौकरी करने लगी थी । इस बीच देवर की शादी ननंद की शादी भी हो गई सास ससुर भी दुनिया से चले गए थे ।
ईश्वर को मेरी ख़ुशियाँ बर्दाश्त नहीं हुई और मैं चालीस साल की उम्र में ही विधवा हो गई थी । पति की मृत्यु के बाद जो भी पैसे आए थे उनसे मैंने एक घर खरीद लिया था ताकि बच्चों को लेकर किराए के मकानों में रहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ।
अपनी नौकरी के बल पर ही मैंने तीनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाया । अजय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके बहुत बड़ी कंपनी में अच्छे ओहदे पर है । विजय ने एम बीए की पढ़ाई की और वह बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त है । दोनों की पत्नियाँ भी सॉफ़्टवेयर कंपनियों में ही नौकरी करतीं हैं ।
सुजाता ने भी एम सी तक पढ़ाई की थी परंतु उसे नौकरी करने की ज़रूरत नहीं है उसकी शादी बहुत ही अच्छे धनी परिवार में हुई है ।
बच्चे बड़े हो गए हैं। मैं आज बच्चों की बातों को सुनकर सोच में पड़ गई थी कि जो रिश्ते विपत्ति बाँटने के लिए बनाया जाता है वह खुद संपत्ति बाँटने के चक्कर में बँट रहे थे । इनमें से किसी को भी मेरे पैसों की ज़रूरत नहीं है फिर भी पैसों के लिए लड़ते हुए अपने संबंधों को बिगाड़ने में लगे हुए हैं ।
बच्चों ने लावण्या से कहा कि माँ कल हम सब जा रहे हैं । आप थोड़े दिन यहीं रहिए। हम आकर आपको ले जाएँगे कहते हुए तीनों अपने अपने कमरों में चले गए।
बच्चों को वापस जाकर दो महीने हो गए थे । किसी ने भी माँ की ख़बर नहीं ली थी । सब अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे । इस बीच लावण्या ने भी मन ही मन एक निर्णय ले लिया था । उसने अपना सामान पैक किया और बच्चों के नाम पत्र लिखा कि
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मेरे प्यारे बच्चों
आशीर्वाद
मेरा आशीर्वाद आप सबके साथ सदा रहेगा । उस दिन जब तुम लोग बातें कर रहे थे तब मैंने सब कुछ सुन लिया है । मैंने बचपन से ही माता-पिता पति और बच्चों के लिए ही सोचा था । आज मैं अपने बारे में सोचना चाहती हूँ ।
मेरी इच्छा तीर्थ यात्रा पर जाने की है । इसलिए मैं सब जगह घूमना चाहती हूँ । मेरे पास पैसे तो हैं ही साथ ही मुझे पेंशन भी मिलता है । जब घूमने से मेरा मन ऊब जाएगा तब किसी वृद्धाश्रम में जाकर वहाँ के लोगों के साथ ही रहना चाहती हूँ ।
मेरा यहाँ से जाने का मतलब यह नहीं है कि मैं तुम लोगों को भूल जाऊँगी । मेरा जब भी मन करेगा तुम लोगों के पास आकर मिलते रहूँगी ।
उस समय मुझे घमंडी और पैसों के लिए लालची मत समझना । बेटा तुम लोग बहुत ही सक्षम हो तुम लोगों को मेरे पैसों की ज़रूरत नहीं है । पैसों के लिए अपने रिश्तों को ख़राब मत करो । तुम लोगों को मैं एक सीख देना चाहती हूँ तुम उनका पालन करो या ना करो यह तुम लोगों की मर्ज़ी है । बेटे रिश्ते विपत्ति बाँटने के लिए बनाया जाता है आज तुम सब मेरी छोटी सी संपत्ति के लिए आपस में भिड़ पड़े हो ।
तुम सब ख़ुश रहो एक दूसरे का सहारा बनो । मैं हमेशा आप लोगों के साथ हूँ । मैं कल यहाँ से निकल रही हूँ । ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि आप लोगों से कभी मुलाक़ात हो जाएगी ।
तुम्हारी माँ
लावण्या ट्रेन में सफ़र करते हुए सोच रही थी कि बच्चे मेरे पत्र को मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे । मैं अपना जीवन अपने तरीक़े से जीना चाहती हूँ । इसलिए आज हिम्मत करके घर से निकली हूँ ।
दोस्तों पैसे ही सब नहीं होता है । हमें हमारे जीवन में एक बात गाँठ बाँध लेना है कि माता-पिता के पैसों से नहीं उनके प्यार को समझना ज़रूरी है ।
के कामेश्वरी