जो मेरे साथ हुआ वह तेरे साथ नहीं होने देंगे – मनीषा  सिंह  : Moral stories in hindi

आज सुबह-सुबह संदीप चाय के कप के साथ अखबार के पन्नों में खोया था, कि तभी वह चौंक उठा ।

 जब उसने कोटा में हो रहे बच्चों की सुसाइड वाली घटना को पढ़ा । संदीप एक बैंक कर्मी था और पत्नी शैली होम मेकर। इनके दो बच्चें बेटा अभिराज और बेटी नव्या जो कक्षा सात की छात्रा थी।

 अभी कुछ ही महीने गुजरे थे बेटा अभिराज को उसने आईआईटी की तैयारी के लिए कोटा (राजस्थान ) भेजा था ।

कोटा में हो रहे इस तरह की घटना को पढ़ते-पढ़ते वह अपने अतीत में खो गया ।

” पापा मैं इंजीनियरिंग नहीं करना चाहता हूं ।”प्लीज मुझे नहीं  बनना इंजीनियर।”

 मैं टीचिंग लाइन में ही जाना चाहूंगा ।कहते हुए प्रदीप, अशोक जी, जो संदीप और प्रदीप के पिता थे उनसे लिपट गया। ” पर बेटा मेरी ख्वाहिश है कि तू एक इंजीनियर बने” क्या मेरी इस  ख्वाहिश को  पूरा नहीं करेगा ? और बेटे के कंधे पर प्यार से  थपथपाया ।

 अब चुकी प्रदीप जो संदीप से बड़ा था इसलिए अशोक जी ने अपनी ख्वाहिश उस पर थोपने की कोशिश की।

बेचारा प्रदीप न चाहते हुए भी” बलि का बकरा” बनने को तैयार हो गया ।

 बच्चों की परवरिश अशोक जी ने अकेले ही कि थी ।

जब संदीप 5 साल का था, तब उसकी मां का निधन कैंसर से हो गया । पत्नी के मरने के कुछ महीने बाद ही से पारिवारिक दबाव, दूसरी शादी के लिए, बढ़ने लगा पर इसके बावजूद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की । बच्चों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ा। 

 शायद पिता के इस बलिदान के कारण प्रदीप कुछ बोल नहीं पाया। । उसके12वीं के बाद अशोक जी ने महाराष्ट्र के अमरावती इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवा दिया ।वह कहते हैं ना कि “जहां चाह वहां राह” अगर नहीं मिले तो जिंदगी तबाह।

 आठ महीने गुजर गए  प्रदीप को गए।

 वह हर दिन रात के 9:00 बजे अशोक जी को कॉल किया करता था। और उसके फोन का इंतजार अशोक जी को हर रात 9:00 बजे रहता ।

अचानक एक रात” पापा प्लीज अभी भी टाइम है मुझे इंजीनियरिंग में कोई इंटरेस्ट नहीं है क्या मैं घर वापस आ जाऊं”? अगर आप इजाजत दे तो!

 प्रदीप के आवाज में काफी दर्द था और एक घबराहट सी थी। 

“बेटा तुम ऐसा नहीं कर सकते मेरे सपनों को ऐसे नहीं तोड़ सकते।

 अरे अभी शुरू- शुरू में तुम्हें थोड़ी दिक्कत तो होगी बाद में तुम्हें इसमें इंटरेस्ट भी आने लगेगा ऐसा मेरा वादा है!”

 अशोक जी ने प्रदीप को समझाते हुए कहा।

 धीरे-धीरे फर्स्ट सेमेस्टर एग्जाम  शुरू हो गया।

 अशोक जी हर रोज प्रदीप से पूछते रहते बेटा एग्जाम सही से जा तो रहा है ना! 

“हां पापा ” प्रदीप का जवाब रहता ।

समय का चक्र चलाता गया। एक दिन रिजल्ट भी आ गया ।

आज अशोक जी सुबह से ही काफी एक्साइटेड थे कि प्रदीप  की सोच आज से बदल जाएगी। “पापा आप सही थे”! ऐसा वह जरुर बोलेगा।

 रात 11:00 बज चुके थे प्रदीप का फोन अब तक नहीं आया था शायद आज रिजल्ट आने की खुशी में सभी बच्चों के साथ जश्न जो मना रहा होगा।

इसी उधेड़बुन में थे  कि तभी अचानक फोन की घंटी बजी । “क्या अशोक वर्मा जी से बात हो रही है”

 हां जी मैं अशोक वर्मा बोल रहा हूं”

” प्रदीप आपका ही बेटा है ना*

 हां जी! क्या हुआ उसको?

“मैं प्रदीप का रूममेट बोल रहा हूं”

 आप फौरन फ्लाइट की टिकट ले,अमरावती आ जाइए ,प्रदीप ने सुसाइड करने की कोशिश की है।

 इतना सुनते ही अशोक जी के ‘पांव जमीन तले खिसक गए’ हालात जान वह जैसे तैसे अमरावती पहुंचे।

 तब तक कहानी खत्म हो चुकी थी।

 प्रदीप इस दुनिया से जा चुका था पहले सेमेस्टर में फेल होना तथा पिता की ख्वाहिश को पूरा ना कर पाना इन सब उधेड़बुन में  उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।

 सारी जानकारी से अवगत हो, अशोक जी को अपने फैसले पर, बहुत पछतावा हुआ ।पर एक कहावत है ना कि” पछता क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत”

 अरे आप अभी तक अखबार में खोए रहेंगे या ऑफिस भी जाएंगे।

 शैली अखबार, हाथ से खींचते हुए बोल पड़ी ।

चलिए आप फटाफट तैयार हो जाओ मैं आपके लिए नाश्ता लगती हूं!

 संदीप अब वर्तमान में लौट चुका था ।

अरे जाना हैं ना!  कहते हुए झटपट  ऑफिस के लिए तैयार होने लगा।

आज उसने 

 मन ही मन में यह फैसला भी ले  लिया कि ऑफिस से आते ही, पहले ” मैं,”अभी” से एक पिता की तरह नहीं, बल्कि एक दोस्त की तरह बात करूंगा ।

क्योंकि यह वक्त है  “खुद को समझाने का और दूसरों को समझने का”।

 मैं नहीं चाहता कि जो हम सब के साथ हुआ वह मेरे बेटे के साथ हो।

 आजकल बच्चों में संवेदनशीलता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है इसलिए हमें सोच समझकर  ही कोई  निर्णय लेनी चाहिए ।

धन्यवाद!

मनीषा  सिंह

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!