जीवन का सवेरा (भाग -13 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“सॉरी रोहित.. मैं भी तो खुद से भागने के चक्कर में खुद को खत्म करना चाहती थी। ऐसे तो कभी किसी समस्या का समाधान ना निकले। सामने से समस्या को फेस नहीं करना, ये तो खुद की समस्या को बढ़ाना ही है। अब तो सबको बताती हूँ खुद से भागने से बेहतर है खुद को पाने की कोशिश करना। आधी समस्या तो ऐसे ही खत्म हो जाती है.. बाकी समस्या खुद के साथ मिलकर खत्म करो। 

मैं जानती हूँ यह इतना आसान नहीं है। तूफान के बाद टूटी चीजों को समेटने से बेहतर है बची चीजों को सहेजना। ये मैंने भी इन सब के साथ रहते हुए सीखा।” आरुणि का चेहरा बोलते हुए रक्ताभ हो गया था मानो संघर्ष ने उसे तपा क़र कनक सरीखा बना दिया था।

“जीवन में कई तरह के मोड़ आते हैं। जो उनसे निकलने की ठान लेता है, वही अनुभव से आगे बढ़ता जाता है।” दादी एक गहरी साँस लेती हुई अपने विचारों को व्यक्त करती हैं, उनकी आँखों में अनुभवों की गहराई और समझ दिख रही थी।

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“अब दादी को स्नान ध्यान करने भी दो। बाकी बात बाद में कर लेना।” योगिता अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो कर आई थीं, उन सबसे कहती है।

“मैं निकलती हूँ अभी…आ जाऊँगी जल्दी”.. योगिता पर्स व्यवस्थित करती हुई कहती है।

“और तृप्ति”.. आरुणि पूछती है।

“वो एक घण्टे बाद निकलेगी। मैं भी जल्दी आ जाऊँगी। तुम कैफे कॉल कर लेना।” आरुणि को याद दिलाती हुई योगिता कहती है। 

“मैंने पोहा और समोसा बना दिया है। जब सब नाश्ता करोगी तो कॉफी बना लेना बस।” योगिता आरुणि से कहती है।

“इतना कुछ इतनी जल्दी कैसे बना लिया।” दादी पूछती हैं।

“सब मिल कर करते हैं ना तो हो जाता है दादी। मैं निकलती हूँ दादी।” योगिता दादी के गले लग निकल जाती है। 

“दादी अब आप अब स्नान कर लीजिए। रोहित तुम बच्चों वाला वाॅशरुम यूज कर लो।” आरुणि दोनों से कहती है।

“मैं होटल जा कर रेडी हो जाऊँगा। मेरे कपड़े भी नहीं हैं यहाँ।” रोहित दादी की ओर देखता हुआ कहता है।

“हाँ बेटा.. मेरे भी तो नहीं हैं”.. दादी आरुणि से कहती हैं। 

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“आपके कपड़े ये रहे दादी”.. राधा एक सूट लाकर दादी के हाथों में देती है।

“बहुत प्यारा है… किसका है।” दादी सूट को हाथ में लेकर कहती हैं।

“आपके लिए है दादी। कल रात छत पर जाकर राधा ने अपने हाथों से सिले हैं।” आरुणि राधा की ओर मुस्कुरा क़र देखती बताती है। 

दादी की आँखों में आँसू छलक आए थे। राधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं, “बहुत प्यारी बच्चियाँ हो तुम सब।”

“फिर गंगा, यमुना, सरस्वती मत बन जाना तुम लोग। मेरे लिए भी कुछ है क्या।” रोहित तीनों को छेड़ता हुआ पूछता है।

“मुझे अपनी आँखें खराब नहीं करनी थी।” राधा मुँह बनाकर कहती है।

“तो मुझे होटल जाना होगा। ठीक है मैं रेडी होकर आता हूँ। ख़बरदार मेरे आने तक किसी ने पोहा समोसा को हाथ भी लगाया तो।” रोहित आरुणि और राधा की ओर ऊँगली तानता हुआ कहता है।

“अब बातें ही बनाएगा कि जल्दी जाकर आएगा”.. दादी हँसती हुई कहती हैं। 

“अभी गया अभी आया… गाड़ी ले जाऊँ क्या”.. रोहित पूछता है। 

“हाँ हाँ ले जाओ”… आरुणि कहती है।

“रुको रुको.. मुझे रास्ते में उतारते जाना।” तृप्ति लगभग दौड़ती हुई बाहर आती है।

“अरे नाश्ता तो कर लो”.. तृप्ति को हड़बड़ी में देख़ आरुणि कहती है।

“आती हूँ.. लंच ही करुँगी।” तृप्ति कहती है।

आरुणि गाड़ी की चाभी लाकर देती है और रोहित तृप्ति के साथ निकल जाता है। 

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“मैं भी कुछ देर बुटीक हो आती हूँ”.. कहकर राधा भी अपने कमरे की ओर बढ़ गई। 

“अब जल्दी से तैयार हो जाया जाए दादी, तब तक रोहित भी आ जाएगा।” आरुणि दादी से कहती है।

“बच्चियों ने नाश्ता कर लिया।” दादी अपने पैरों में चप्पल डालती हुई पूछती हैं।

“जी दादी… योगिता उन्हें नाश्ता करा कर ही जाती है। उसके बाद अगर किसी की कुछ इच्छा हुई तो बना लेती है।” आरुणि बताती है।

“जब से मैं आई हूँ.. नीचे ही हूँ। रोहित जब तक आता है, मुझे हवेली दिखा देना। रोहित बहुत तारीफ कर रहा था। दादी सिर ऊपर क़र हवेली को निहारती हुई कहती हैं।

दादी के स्नानघर में जाते ही आरुणि खुद भी तैयार होने चली जाती है। 

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दोनों साथ साथ ही तैयार होकर आँगन में आती हैं।

आरुणि दादी को देखती है, फिर बंद दरवाजे की ओर देखती हुई कहती है,  “अभी तक रोहित आया नहीं है दादी। चलिए हवेली दिखाती हूँ आपको।”

दादी पूरी हवेली देखकर खुश हो गईं थीं। कमरे में आते हुए दादी प्रशंसा भरे स्वर में कहती हैं, “सच में बहुत ही खूबसूरती से तुम्हारी माँ ने हवेली को सजाया है। एक एक चीज़ पर बारीकी से ध्यान दिया था। उतनी ही खूबसूरती से तुम इंसानों को सँवार रही हो बेटा।”

कमरे में आकर दादी बिछावन पर बैठ जाती हैं और आरुणि को अपने पास बिठा लेती हैं, “आरुणि बेटा मुझे तुमसे कुछ पूछना है।” दादी का स्वर गंभीरता का पुट लिए हुए था, जिसे महसूस कर आरुणि चौंक कर दादी की ओर नजर उठाती है।

“देख मेरी बात का गलत मतलब मत निकालना। आज ना कल सभी को शादी के बंधन में बँधना है। मेरी इच्छा थी कि मेरे रोहित की शादी तुझसे हो।” दादी आरुणि का हाथ अपने हाथ में लेकर थोड़ी सकुचाती हुई कहती हैं।

आरुणि ये सुन कर एक पल के लिए भौचक्की सी रह गई, “ये आप क्या कह रही हैं दादी। मैंने अपना पूरा जीवन “जीवन का सवेरा” के नाम कर दिया है। मेरा यह जीवन इसे ही अर्पित है दादी। प्रकृति ने मुझे बहुत कुछ दिया था। अब प्रकृति ने मुझे जो कार्य सौंपा है, उसे पूरी जिम्मेदारी से करना ही मेरा फर्ज है।” आरुणि दादी से कहती है।

“मैं समझती हूँ बेटा, पर रोहित से शादी के बाद भी तुझपर कोई बंधन नहीं होगा। जैसे करती है.. वैसे ही करती रहना।” दादी की आवाज़ में प्यार और मनुहार दोनों का भाव मिश्रित था।

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“शादी की बात कहाँ से आ गई दादी।” रोहित जिसने अभी अभी कमरे में प्रवेश किया था और दादी के मुँह से शादी की बात सुनकर प्रतिक्रिया देता है।

“कभी ना कभी तो करनी ही है ना तो तुमदोनों ही क्यूँ नहीं। तू कब आया.. गाड़ी की आवाज तो नहीं आई।” दादी रोहित को आया हुआ देख़ कहती हैं।

“गेट के बाहर ही खड़ी की है.. बच्चों को लेने भी तो जाऊँगा और मेरी प्यारी दादी कहाँ तो मैं इसकी शादी में नाचना चाह रहा हूँ और आप इसे ही मुझे नचाने का आमंत्रण दे रही हैं।” रोहित आरुणि की ओर देख़ हँसता हुआ कहता है।

आरुणि जो कि अपने काम के प्रति पूर्णतः समर्पित थी.. उसे समझ नहीं आ रहा था कि दादी से क्या कहे क्यूँकि वो दादी का दिल भी दुखाना नहीं चाहती थी और ना ही उन्हें किसी मुगालते में रखना चाहती थी। 

बहुत सोच समझकर आरुणि कहती है, “दादी मैंने मम्मी को बेज़ान कैनवास पर प्रकृति के रंग भरते देखा है। लेकिन मुझे तो प्रकृति ने जीवंतता लिए कैनवास दे दिया है। मैं ताउम्र प्रकृति के दिए जीवंत कैनवास के साथ अपने जीवन में रंग भरना चाहती हूँ। जरूरी तो नहीं है ना दादी कि जीवन का लक्ष्य सिर्फ गृहस्थी ही हो। मैं ये नहीं कहती कि इसमें कोई बुराई है.. पूर्णता हो सकती है ये जीवन की… लेकिन सबके जीवन की अलग अलग प्राथमिकताएँ हो सकती है ना दादी। मेरा तो इनसे ही दिल की रिश्ता जुड़ा हुआ है दादी।” 

दादी का हाथ अपने हाथ में समेटती हुई आरुणि बोलती है, “मुझे माफ़ कर दीजिए दादी। मैंने तो रोहित को परेशान देख उसकी मदद करनी चाही थी बस और कभी कोई ख्याल नहीं आया।”

“बिल्कुल दादी…आरुणि ने मुझे जो “जीवन का सवेरा” की राह से मिलवाया है.. उस पर ही चलना चाहता हूँ मैं दादी। आरुणि की दोस्ती ने ही मुझे सिखाया और दिखाया कि दुनिया में कितने गम हैं. अपना गम फिर भी कम है.. शायराना अंदाज में रोहित कहता है।” ये कहते हुए चोर नजरों से आरुणि को देखते हुए रोहित  के चेहरे पऱ कई भाव आकर चले गए, जिसे दादी की पारखी निगाहों ने भाँप लिया था।

दादी हँसते हुए कहती हैं… “हो गया शुरू तू, देख आरुणि के साथ ने तुझे कितना बदल दिया। एक दूसरे के संग एक दूसरे की मजबूती बनकर एक दूसरे के काम में और ज्यादा सहयोग कर सकते हो” .. दादी रोहित के चेहरे पर लहरा गए भाव को समझ क़र फिर से दोनों का मन बदलने की कोशिश करती हैं। 

“हम तो एक दूसरे का पूरा सहयोग करेंगे हम दादी। लेकिन आप बताइए दादी ये तो कोई बात नहीं हुई ना कि अगर एक लड़का और एक लड़की आपस में बात कर लें.. एक दूसरे की मदद करें तो वो किसी बंधन के मोहताज हो जाए। क्या सिर्फ मानवीय मूल्यों को समझते हुए दोस्त की तरह एक दूसरे की मदद नहीं किया जा सकता है?” रोहित दादी के बगल में बैठता हुआ कहता है।

“क्यूँ नहीं कर सकते हैं, बिल्कुल कर सकते हैं।” दादी ना चाहते हुए भी सहमति देती हैं।

तो दादी आप भी अपने आशीर्वाद से हमारा साथ दीजिए। अब मेरा यही ध्येय होगा दादी और कभी ऐसा लगा कि आरुणि से या किसी और के साथ मैं अपना जीवन बाँटना चाहता हूँ तो जरूर बताऊँगा” .. रोहित के कंधे पर सिर रखता हुआ रोहित कहता है। 

आरुणि भी रोहित की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती है, “मैं भी दादी..सबसे पहले आपसे ही कहूँगी… पक्का दादी”.. कहकर दादी के गले से लिपट जाती है। 

तुम्हारी पीढ़ी की सबसे अच्छी बात यही है कि बिना ऊहापोह के अपना मार्ग, अपना लक्ष्य बनाते हैं और उस पर हमेशा सार्थक कदम रखते हैं। हमने तो कभी ये सब सोचा भी नहीं था”… दादी भावविभोर हो कर कहती हैं। “जैसी तुम दोनों की इच्छा बच्चों .. ईश्वर तुम दोनों के कार्य में हमेशा तुम दोनों को राह दिखाए।”

 

रोहित कंधे पर सिर रखे-रखे अत्यंत गंभीरता से कहता है, “मेरी मदर इंडिया पोहा और समोसा का तो आज बैंड बज गया.. सोच रहे होंगे बिल्कुल ठंडे हो गए हम तो और अभी तक उदरस्थ क्यूँ नहीं किया गया है। अब खा लिया जाए दादी।”

“तू ना ऐसी आवाज़ में बोल क़र बिल्कुल डरा ही देता है।” दादी एक हल्की चपत रोहित के गाल पर लगाती हुई कहती हैं।

“और आप इस डरावने इंसान से मेरा विवाह करवा रही हैं दादी।” आरुणि आँखें मटकाती हुई कहती है।

“ओह, हो देखिए, बातों बातों में मैं कैफे कॉल करना भूल गई… कॉल करके ले आती हूँ।” आरुणि दादी के कुछ कहने से पहले ही मोबाइल हाथ में लेती हुई कहती है।

“तुम कॉल करो.. मैं रसोई से सब कुछ ले आता हूँ।” रोहित कहता है। 

“ठीक है.. कॉल करके मैं कॉफी बना लेती हूँ”… कहती हुई आरुणि कैफे कॉल लगाने लगती है।

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आरती झा आद्या

दिल्ली

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