जीवन का सच – संगीता त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

 हर माँ की तरह माला को भी अपने बच्चों पर बहुत गर्व था। प्रभात जी से झगड़ा होने पर अक्सर इतरा कर बोलती, “मेरे बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जायेंगे तो मैं उनके साथ रहूंगी आपके साथ नहीं “

प्रभात जी बोलते,”देखता हूँ तुम्हारे बच्चे कितना करते है “

  सुनते ही माला गर्व से कहती “देख लेना, मेरे बेटे तो नौकरी लगते ही मुझे साथ ले जायेंगे “

 इसी तरह खट्टी -मीठी नोंक -झोंक के बीच बच्चे बड़े होने लगे।पहले बड़ा बेटा अरुण इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर एम. एस. करने अमेरिका चला गया, “मैं पढ़ कर जॉब करने लगूंगा माँ तो आप मेरे साथ रहना “का आश्वासन दे चला गया।

कुछ समय बाद छोटा बेटा तरुण भी बड़े भाई का अनुसरण करके अमेरिका चला गया।रह गई माला जी और उनके सपने….।

प्रभात जी की सीमित आय में माला जी के ख्वाहिशों को पँख नहीं मिल पाता था, अतः उन्हें इंतजार था, बच्चों के जॉब का,जब उनकी ख्वाहिशे बच्चे पूरे करेंगे।

अरुण की पढ़ाई पूरी हो गई, वहीं उसकी जॉब लग गई, जिस दिन अरुण ने ये खुशखबरी दी, माला की खुशी देखने लायक थी। ढेरों रिश्ते आना शुरु हो गया, और माला जब तक लड़कियाँ छांटती, तभी 

 अरुण ने माला को फोन पर बताया उसे अपने साथ काम करने वाली अलका पसंद है।

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 प्रभात और माला ने फिर कुछ ना सोचा और धूमधाम से शादी की। शादी के बाद अरुण अपनी पत्नी के साथ अमेरिका वापस चला गया, 

    

माला को उम्मीद थी बेटा -बहू उसे भी साथ चलने को कहेंगे,लेकिन दोनों ने एक बाऱ भी उन्हें चलने को नहीं बोला, माला मन मसोस कर रह गई,।

      अब तरुण की बारी थी, जॉब लगते ही उसने साथ पढ़ने वाली लीसा से शादी करने की इच्छा व्यक्त की। विदेशी लड़की हमारे परिवार में नहीं ढल पायेगी, माला के तमाम विरोधो को दरकिनार कर तरुण ने जिद्द पकड़ ली। प्रभात जी के समझाने पर,”वो हमें बिना बताये शादी कर लेता तो…”माला ने अनुमति दे दी।

    . बस शर्त रखी विवाह भारत में ही होगा। नियत समय पर तरुण, लीसा और उसके माता -पिता के साथ भारत आया, प्रभात जी ने सारा इंतजाम कर रखा था, धूमधाम से शादी हो गई, विवाह का सारा खर्च प्रभात जी को उठाना पड़ा। शादी के बाद तरुण लीसा और उसके माता -पिता को भारत भ्रमण पर ले गया, वापस आ अगले दिन अमेरिका चला गया, माँ के गले लग कर ढेरों प्यार जताया, जाने के समय बेटे ने तो नहीं हाँ लीसा ने जरूर उसे अमेरिका आने का निमंत्रण दिया।

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        . बेटे -बहू अपनी गृहस्थी में मगन हो गये, हाँ हर सन्डे दोनों नियम से वीडियो कॉल करते…, प्रभात जी तो खुश होते पर माला दिनों दिन बुझी सी रहने लगी। एक दिन रसोई में काम करते चक्कर खा गिर पड़ी। इत्तफाक से उस दिन इतवार था, प्रभात जी घर पर ही थे, तुरंत मेडिकल सहायता मिलने से माला जी बच गई। हार्ट सर्जरी कुछ दिन बाद होनी थी, माला को उम्मीद थी माँ की बीमारी सुन दोनों बेटे भागे आयेंगे,।

      दोनों बेटे चिंता से व्याकुल हुये लेकिन आने में असमर्थता व्यक्त की, पिता को ढेरों नसीहत और कुछ डॉलर भेज दोनों ने कर्तव्य की इतश्री कर ली।

        माला के दिल की बात समझ प्रभात जी ने माला का हाथ अपने हाथों में ले समझाया, “माला जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ तुम्हे परेशान होने की जरूरत नहीं, पति -पत्नी का अटूट बंधन होता है,बच्चों की अपनी दुनिया हो गई, उसमें हमारे लिये स्थान नहीं है…उनसे तुम ज्यादा उम्मीद नहीं रखोगी तो दुख भी नहीं होगा….., एक चिड़िया से सीख लो जो तिनके -तिनका जोड़ कर अपना घोंसला बनाती है, नन्हे बच्चों को सुरक्षित रखने के लिये, उनके खाने के लिये दूर दूर से खाना लाती, वहीं बच्चे जब उड़ना सीख जाते तो एक दिन माँ को छोड़ घोसलें से उड़ जाते,..अपनी नई जिंदगी जीने को.., उड़ान को कोई कभी रोक नहीं सका…,”

      माला भी समझ गई पति ठीक बोल रहे, “ये आज के जीवन का सच है “…

       “पर मैं तो आपको हमेशा ताना देती थी, मेरे बच्चे कमाने लगेंगे तो मैं आप को छोड़ दूंगी, आपको कितना दुख होता होगा “,

        ” माला ये सब ताने भी जिंदगी है.., एक माँ का गर्व है…..,तुम्हारे बगैर मैं अपूर्ण हूँ,माना मैंने नौकरी की आपा -धापी में तुम्हे समय नहीं दिया पर इसका ये मतलब नहीं की मैं तुम्हे प्यार नहीं करता,तुम ठीक हो जाओ हम अपने जीवन के इस अध्याय को और खूबसूरती से जीयेंगे “

        . अगली सुबह ऑपरेशन के जाते समय माला तनाव रहित थी, जानती थी उसका जीवनसाथी उसके साथ है,डॉक्टर ने जब बाहर आ बताया “ऑपरेशन सफल हुआ “प्रभात जी ने हाथ जोड़ ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

                    —–संगीता त्रिपाठी 

“ये जीवन का सच है “

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