जीवन का सच – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

सुमन एकटक सामने पड़े पैसे और जेवर को देख रही थी ।पति राघव ने टोका क्या देख रही हो सुमन ये सब तुम्हारे लिए है ।ये जेवर जिसके लिए तुम हमेशा मुझको ताने मारती रहती थी कि कभी तुमने मुझे कुछ दिलाया ही नहीं।और हां किसी दिन चलना बैंक मां के कंगन निकाल लेना उससे तुम्हें जो बनवाना है बनवा लेना अब रखने से क्या फायदा।

और ये रूपए सुमन बोली अरे ये पैसे भी तुम्हारे लिए है इससे मनपसंद साड़ियां खरीद लेना।तुम हमेशा कहती रहती थी न कि इतने बरस बीत गए तुम्हारे साथ रहते रहते कभी किसी मौके बेमौके पर भी तुमने एक साड़ी तक न दिलाई तो आज सारे शौक पूरे कर लो जो अब तक नहीं कर पाई ।शौक पूरे कर लूं इस बुढ़ापे में जब अब कोई शौक रहा ही नहीं और‌न कुछ बचा ही है ।कैसी बात कर रही हो सुमन जो तब नहीं किए तो अब कर लो दे तो रहा हूं  पैसे , नहीं अब मुझे नहीं चाहिए सुमन बोली।तुम लोगों के तो बहुत नखरे है भाई राघव बोला।

                     सुमन सोचने लगी क्या यही जीवन का सच है उस समय सब मिलता है जब कुछ नहीं चाहिए होता है ।जब सबकुछ चाहिए होता है तब क्यूं नहीं । शादी होकर जब इस घर में आई थी तो महज़ 19 साल की उमर थी उसकी।भरे पूरे परिवार से थी वो और यहां ससुराल में पति राघव और बूढ़ी सासू मां ।राघव के दो भाई बड़े थे पर वो अलग रहते थे ।दो लोगों के घर में सुमन को कोई काम ही समझ में नहीं आता था ।दो कमरों का छोटा सा किराए का मकान था ।

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झाड़ने पोंछने को भी कुछ न था ।आधे घंटे में घर का सारा काम हो जाता था।पति राघव सुबह नौ बजे टिफिन लेकर अपने काम पर चले जाते थे फिर सारे दिन करने को कुछ नहीं होता था।समय ही न कटता था सुमन का । हिन्दी साहित्य से पोस्ट ग्रेजुएट थी सुमन। उसने एक दिन राघव से कहा मेरा घर में समय नहीं कटता मैं स्कूल में टीचर की नौकरी कर लूं तो तुम्हें भी मदद मिल जाएंगी और मेरा समय भी कट जाएगा । सुमन की सास सुन रही थी बीच में ही बोल पड़ी हमारे घर की बहुएं बाहर जाकर नौकरी नहीं करती और घर का और राघव का कौन ख्याल रखेगा ।और फिर कमी क्या है घर में तुझको ।कमा तो रहा है राघव और कल के बाद बच्चे होंगे तो उन्हें कौन देखेगा मुझसे न होगा ।

                सुमन सोचने लगी कमी, कमी तो है ही क्या ही कमा लेते हैं राघव ,एक फैक्ट्री में नौकरी ही तो करते हैं ।मन मसोस कर रह गई सुमन । फिर शादी के एक साल बाद सुमन ने एक बेटी को जन्म दिया अब सुमन का दिन भर समय बेटी की देखरेख में निकल जाता । फिर एक साल बाद एक बेटा हुआ ।अब दो दो बच्चों के साथ कब समय बीत जाता है पता ही न चलता ।पर राघव की कमाई से खर्चे पूरे न होते उस पर सास की बीमारी हारी लगी रहती । सुमन 22 साल में दो बच्चों की मां बन चुकी थी।

              जेठानी के बेटे की शादी थी तो सुमन ने राघव से कहा मुझे एक साड़ी दिला दीजिए की सालों से जब भी किसी की शादी पड़ती है वहीं साड़ी पहनती हूं।सास जो दोनों की बातें सुन रही थी बोली बस तूझे तो अपनी साड़ी की पड़ी रहती है ‌‌‌पहले बच्चों के लिए कपड़े खरीद चार लोग पहली बार बच्चों को देखेंगे और राघव को कपड़े बनवाने दे उसे तो बारात में जाना है और तूझे तो घर में ही रहना है पहन लियो वहीं जो तेरी शादी में मिली थी साड़ी ।

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और फिर अभी नई बहू को देने के लिए भी तो कुछ चाहिए कहां से होगा इतना सबकुछ । सुमन मन मारकर रह गई सबके लिए सबकुछ है बस मेरे लिए नहीं है।सास के पास एक जोड़ी कंगन थे शादी के रोज़ सुमन ने सांस से कहा मांजी वो कंगन थे देती तो मैं चूड़ियों के साथ लगाकर पहन लूं ।अरे अपना कंगन तूझे क्यों दूंगी मैं तू अपना पहन । सुमन सोचने लगी अपना कौन सा पहनूं। मेरे मायके के सारे जेवर कम कराकर उसके बदले में नकद पैसे ले लिए थे मां पिताजी से और कहा था बाद में राघव बनवा देगा जेवर ।जो आजतक नहीं बनें जेवर क्या एक साड़ी तक तो दिला न पाएं गहने की क्या ही बात करूं ।

            शादी में सबके एक से एक जेवर कपड़े देखकर सुमन मन ही मन सोचने रही थी काश मैं भी कुछ खरीद पाती । तभी बीच में जेठानी ने आकर टोंक दिया अरे सुमन तुमने तो वहीं पुरानी साड़ी पहन ली एक नया ही खरीद लेती । उन्हें कैसे बताएं मन का हाल सुमन । नहीं वो भाभी ये साड़ी भी तो अच्छी है अभी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है इस लिए पहन ली । ऐसे ही किसी मौके पर बस सुमन की मन की मन में ही रह जाती है।

                अब बच्चे बड़े हो रहे थे तो स्कूल की पढ़ाई लिखाई किताबें यूनिफॉर्म  इन्हीं में उलझ कर रह। गई और सुमन की इच्छाएं सब मन में ही दबी रह गई।अब सुमन की सास नहीं रही तो जेवरों का बंटवारा हुआ सुमन सोच रही थी कि कंगन मुझे मिल जाए लेकिन जब उनका बक्सा खोला गया तो उसमें एक जोड़ी कंगन ,एक मांग टीका और एक सोने की चेन निकली ।मांग टीका तो ननद को दे दिया गया और चेन सबसे बड़ी जेठानी को और एक कंगन दूसरी जेठानी को और एक कंगन सुमन को दिया गया।

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              जब राघव ने सुमन को कंगन दिया तो सुमन ने चिढ़कर कहा आजतक तुम्हारे घर से तो एक अंगुठी तक न मिलीं और शादी के समय जो जेवर मुझे चढ़ाएं गए थे वो भी ससुराल आते ही मुझसे ले लिया गया और वो आजतक मुझे दिखाई नहीं दिए ।अरे वो जेवर तो बड़ी भाभी के थे इसलिए उनके थे तो उन्होंने ले लिए ।तो मेरा कुछ नहीं था सुमन बोली ,अब ये कंगन मुझे दे दो तो तुड़वा कर मैं अपने लिए कुछ बनवा दूं कुछ तो हसरत पूरी कर लूं अपनी। अच्छा अच्छा ले लेना अभी लाकर मे रख देते हैं घर में चार लोग हैं बाद में ले लेना।

           उसके बाद जब भी सुमन कंगन के लिए कहती तो राघव टाल जाता अच्छा ला दूंगा ,ला दूंगा यही कहता और लाकर न देता। बच्चे बड़े हो रहे थे उनकी पढ़ाई लिखाई का खर्चा बढता जा रहा था ।और सुमन के अरमान जिम्मेदारी यों के नीचे दबाते जा रहे थे।अब बच्चे पढ़-लिख गए तो शादी ब्याह का समय आ गया।अब पैसे और जेवर जोड़े जाने लगे ।अब जब भी कंगन सुमन ने मांगे तो राघव बोले बेटी बड़ी हो गई है शादी करना है रखें रहने दो काम आएंगे उसके बाद से सुमन ने फिर कभी नहीं मांगे कंगन।

                        फिर हंसी खुशी बच्चों की शादी कर दी गई।और सुमन खाली की खाली नकली जेवर पहनकर काम चला लिए हां साड़ी जरूर खरीद ली थी।पर जेवर की हुलास मन में बनी रही । इसी तरह सुमन की उम्र 62 के पार हो गई ।रही सही कसर भी करोना ने आकर पूरी कर दी अब न कहीं जाने को यह गया न आने को । धीरे धीरे मन ने भी विरक्ति ओढ़ ली ।अब क्या करें जेवर कपड़ा खरीद के जो है बस ठीक है अब मन में इच्छा ही न यह गई।

               आज घर में सबकुछ है ,अब चाहे जो खरीद लो लेकिन अब कुछ भी लेने का मन नहीं है । सुमन सोचने लगी गीता में भगवान कृष्ण ने सही बात कही है कि जब इच्छाएं होगी तो उनको पूरा करने को आपके पास धन नहीं होगा और जब धन होगा तो इच्छाएं नहीं होगी वो मन से जा चुकी होगी।शायद यही जिंदगी का सच है ।

             आज राघव एक सोने की चेन लाकेट के साथ और एक इयररिंग्स लेकर आए हैं और दस हजार रुपए भी दे रही है कि अपनी पसंद की साड़ी ले आओ । लेकिन क्या करुंगी अब लेकर । उम्र के इस पड़ाव पर सब इच्छाएं समाप्त होने लगी है अब तो हरिभजन का समय आ गया है अब उनका बुलावा आ जाएगा पता नहीं । क्या करना सबकुछ लेकर जो है बस वही ठीक है । हां यही जीवन का सच है ।

दोस्तों आप क्या कहते हैं क्या मेरी बात सच है बताइएगा।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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