जीने के बहाने बहुत है- संगीता अग्रवाल’  : Moral stories in hindi

“माँ पापा कहाँ हैं आप.. ” रोणित ने घर आते ही आवाज़ दी.

” क्या बात है बेटा बड़े खुश नज़र आ रहे हो! ” स्मिता जी (रोणित की माँ) बोली.

” हाँ माँ खबर ही ऐसी है ” 

” अब बताएगा भी क्या खबर है.. ” सागर जी ( रोणित के पिता) बोले.

” पापा मेरा आज का प्रेसेंटेशन सबसे बढ़िया रहा . कंपनी मुझे 2 साल के लिए कनाडा भेज रही है.

” क्या… दो साल??  ” स्मिता जी अचानक से बोली.

” हाँ माँ कितना अच्छा मौका है.. चाहत ( पत्नी ) को भी ले जा सकता हूँ मैं कंपनी ने इज़ाज़त दी है.” रोणित चहक कर बोला.

” पर बेटा दो साल हम कैसे रहेंगे तुम लोगों के बिना.” स्मिता जी बोली.

” अरे माँ दो साल युहीं निकल जायेंगे.” रोणित माँ से बोला.

” सही तो बोल रहा रोणित.. स्मिता हम लोगों को भी अकेले रहने का मौका मिलेगा सारी जिंदगी तो काम और परिवार मे बिता दी.. ” सागर जी बोले.

” आप भी ना एक माँ का दिल नही रखते ना इसलिए… खैर कब जाना है..? ” स्मिता जी उदास हो बोली.

” अगले महीने माँ.. चाहत को मैने फोन पर बता दिया है वो अगले हफ्ते पीहर से आ रही अपने फिर तैयारी करेंगे बस. ” रोणित बोला और अपने कमरे मे चला गया.

” क्यों फिक्र करती है रोणित की माँ मैं हूँ ना तेरे साथ.” स्मिता जी को उदास देख सागर जी बोले.

देखते देखते एक महिना बीत गया और रोणित और चाहत चले गए. हर दूसरे तीसरे दिन वीडियो काल पर बच्चों से बात करते दिन बीतने लगे.

” बेटा दो साल पूरे होने को हैं कब आ रहे तुम लोग.. ” एक दिन बात करते हुए सागर जी ने पूछा.

” वो… पापा.. ” 

” क्या हुआ बेटा क्या बात है.. ? ” स्मिता चिंतित हो बोली.

” कुछ नही माँ.. मेरी नौकरी यहीं पर पक्की हो गई है अब… और आप दादी भी बनने वाली हो.” रोणित बोला.

” क्या… तुम वहीं रहोगे अब हमेशा को….. पर ऐसे मे चाहत को देखभाल की जरूरत है.” स्मिता जी बोली.

” माँ यहाँ सब सुविधाएं हैं चिंता मत करो आप बस अपना ख्याल रखो और हम मिलने तो आते रहेंगे…” ये बोल रोणित ने फोन काट दिया.

फोन कटते ही स्मिता जी रो पड़ी…” कितने अरमानों से रोणित को पढ़ा लिखा बड़ा किया था कि वो हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा पर….! ” 

” ना स्मिता ऐसे जी छोटा मत कर हमने अपने फर्ज निभाए है बस. ” सागर जी बोले.

” पर उसका फर्ज….?? ” स्मिता जी सिसक कर बोली.

” बच्चे को तरक्की मिली है स्मिता साथ ही हमे भी हम दादा दादी बनने वाले है हमे तो खुश होना चाहिए.” सागर जी ने समझाया.

धीरे धीरे रोणित के फोन आने कम हो गए.. सागर जी ने खुद को समझा लिया पर स्मिता जी जैसे हंसना ही भूल गई. 

” बेटा तेरी माँ तुझे बहु और अपने पोते को बहुत याद करती है कुछ दिन को आजा.” एक दिन सागर जी ने रोणित को फोन कर कहा.

” पापा अभी तो बिल्कुल फुर्सत नही .. जिम्मेदारियां बहुत है यहाँ आता हूँ मैं जल्दी ही । ” रोणित बोला.

सागर जी समझ गए बेटा अब आना ही नही चाहता.

” ऐसा कर कुछ दिन को हमे वहाँ बुला ले तू नही आ सकता तो.” सागर जी बोले.

” पापा यहाँ आप लोगों का मन नही लगेगा मैं जल्द कोशिश करूँगा आने की.” ये बोल रोणित ने फोन काट दिया.

सागर जी फैसला कर चुके थे अब उन्हें क्या करना है.. कैसे खुद की और पत्नी की मुस्कान वापिस लानी है.

अगले दिन… 

” ये क्या कर रहे आप सुबह सुबह मिट्टी मे.. ” बगीचे मे सागर जी को देख स्मिता जी बोली.

” इधर आओ स्मिता मेरी मदद करो… ” सागर जी बोले.

स्मिता और सागर जी ने मिल कर वहाँ बहुत सारे पौधे लगाए.

फूलों, फलों सब्जियों के… महीने मे एक बार माली आ जरूरी हिदायत दे जाता बाकी सब दोनो पति पत्नी देखते. दोनो एक एक पौधे को बच्चों की तरह सम्भालते.

” देखो जी कितने सुंदर फूल आ रहे… और वो सब्जियां देखो.. ” स्मिता जी कुछ महीने बाद चहक कर बोली.

” हाँ स्मिता ये हमारी मेहनत का इनाम है.. ” 

” पर हम इतनी सारी सब्जियों का क्या करेंगे.” स्मिता जी बोली.

” चलो पहले सब्जियां तोड़ो फिर बताता हूँ.” 

सागर जी ने जरूरत की सब्जी खुद रखी बाकी गाड़ी मे भर ली और स्मिता जी को गाड़ी मे बैठने को बोला.

” अरे यहाँ क्यो गाड़ी रोकी…. ओह्ह् अब समझी! ” एक ईमारत के बाहर गाडी रुकते देख स्मिता जी बोली।

” हाँ हम ये सब्जियां यहाँ देंगे पर साथ ही एक और काम… ” सागर जी ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा और स्मिता जी को अंदर ले गए. 

” बच्चों देखो आपसे मिलने कौन आया है… ये अंकल आंटी अब आपको रोज़ पढ़ाने आयेंगे.. ” अंदर पहुँचने पर आश्रम संचालिका ने बच्चों से स्मिता जी और सागर जी का परिचय कराते हुए कहा.

असल मे सागर जी स्मिता जी को व्यस्त रखने के लिए पहले ही आश्रम मे बात कर गए थे जिससे स्मिता जी बेटे बहु को याद कर अवसाद मे ना चली जाएं ।

“ये….. ” बच्चे खुशी से  चिल्लाते हुए बोले.

स्मिता जी सागर जी को देख रही थी उनकी आँखों मे सागर जी के फैसले के लिए प्रशंसा तो थी ही साथ ही धन्यवाद भी था जीने का नया मकसद देने के लिए.

दोस्तों जिंदगी जीने के बहुत से मकसद है और खुद को अवसाद मे ले जाने का सिर्फ़ एक बहाना.. क्यों ना ऐसे मकसद की तलाश की जाए जिससे खुद के साथ साथ दूसरे का भी भला हो.

कैसी लगी कहानी बताइयेगा जरूर 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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