जीने का मकसद (भाग -2) : लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

अशक्त मां शक्तिमान सी पास ही खड़ी थी उसके स्नेहिल हाथों का स्पर्श उसे अपने बालों पर कंधों पर महसूस हो रहा था … मां कह उसकी ओर मुड़ा ही था कि हॉस्पिटल बेड पर अपने कमर के नीचे की रिक्तता की पीड़ा से स्तब्ध हो उठा … दोनों पैर नहीं थे अपनी जगह पर … उस एक पल में जैसे सारी धरती घूम गई थी और वह जड़ हो गया था..होश आया तो मां के हाथों में चेहरा छुपा कर बिलख उठा था..!

बेटा तू सलामत है मेरे सामने है ईश्वर ने तुझे जीवित बचा लिया मेरे लिए यही बहुत है … उस भीषण दुर्घटना में तुझे बचाना दुसह्य हो रहा था डॉक्टर्स ने तेरे दोनों पैर काटना ही एकमात्र इलाज बताया था तेरी जिंदगी बचाने के लिए…स्वर को भरसक सामान्य रखने की असफल कोशिश करती मां भी  अपने जवान पुत्र के बिलखने पर तड़प उठी थी और उसके साथ ही बिलख बिलख उठी थी।

क्यों बचाया मुझे मां ..ऐसे जीवन का क्या अर्थ मां … लाचार अपंग बनकर मैं जीवित नहीं रहना चाहता मुझे मर जाने दे मुझे मर जाने दे….. ऐसा औचित्यहीन जीवन पराश्रित जिंदगी जीकर मैं क्या करूंगा ये जीना नहीं होगा मां हर पल हर दिन मरना होगा…. निराशा का घटाघोप अंधकार प्रत्यूष को लीलता जा रहा था जिसमे उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था सुझाई नहीं दे रहा था….!!

दिल में अथाह दुख और पीड़ा दबाए ऊपर से शेरनी बनी मां अडिग हिम्मत से अपने डगमगाते पुत्र को संभाले घर ले आई थी…. हर दिन हर पल अपने पुत्र के मन के अंधेरे में आशा के हजारों सूरज प्रज्वलित करने की जद्दोजहद जारी थी उसकी..!!

प्रत्यूष क्या करे उसके सोचने समझने की शक्ति निष्प्राण हो चुकी थी ….. भविष्य के नाम पर एक लंबी अनंत वीरानगी ही दिख रही थी उसे…. मां पिता के लिए कुछ कर सकने का उसका हौसला टुकड़े टुकड़े होकर अशक्त अस्वस्थ मां के निर्बल हाथों पर संपूर्णता से आश्रित हो चुका था ….निरर्थक निरूपाय वह स्वयं को जिंदा लाश मान चुका था…!!

प्रतिदिन की भांति उस दिन भी वह बोझिल सुबह में आंसू बहाता अपनी जिंदगी को कोस रहा था.. तभी उसके कानों में कुछ आवाजें सुनाई पड़ने लगीं थीं…”.. अरे प्रत्यूष की मां तू भी बड़ी हतभागी है री… पति भी तुझे छोड़ परलोक वासी हो गए और बुढ़ापे का सहारा ये पुत्र बचा था तो तेरी फूटी किस्मत इसे भी जीते जी मृतप्राय बना गई है ..

दीदी धीरे बोलिए प्रतु सुन लेगा और दुखी हो जायेगा ईश्वर ने इसे कुछ सोच कर ही बचाया है दीदी कहते हैं ईश्वर एक दरवाजा बंद करते हैं तो दूसरा खोल भी देते हैं मेरे बेटे को अपनी व्यथा और कुंठा में अभी वह दूसरा दरवाजा नहीं दिख रहा है लेकिन मुझे अपने पुत्र पर पूरा भरोसा है वह शीघ्र ही कुछ उपाय ढूंढ निकलेगा

हद है तुम्हारी अभी भी तुम अपने इस अपंग बेटे से अपेक्षा कर रही हो देखना इसका करते करते तुम मर जाओगी एक दिन फिर क्या होगा नाते संबंधी तो अभी ही किनारा किए बैठे है तेरी किस्मत कैसी है री…!

पड़ोसी आंटी कांता और अपनी मां का ये वार्तालाप सुनकर तो जैसे प्रत्यूष के दिमाग में कुछ हलचल सी मच गई थी।मुसीबत का पहाड़ मुझ पर नहीं मेरी मासूम मां पर गिर पड़ा है मैं तो अपनी खुदगर्जी में सिर्फ अपना दुख दर्द लिए पड़ा था मां की तरफ तो कभी देखा ही नहीं सोचा ही नहीं।दूसरे दरवाजे की तरफ देखने का विचार तक नहीं आया मैं तो बस अपने आपको चारो तरफ से  पूरी तरह से बंद करके निष्प्राण था …. लेकिन इस स्थिति में मैं क्या कुछ कर सकता हूं..!!

आज पहली बार विचारो का झंझावात पूरी गति से प्रवाहित हो रहा था मां की स्थिति घर की स्थिति अपनी स्थिति आगे कुछ कर पाने के विकल्पों की आंधी ने कुछ समय के लिए प्रत्यूष को वर्तमान हताशा से बाहर निकाल दिया था..!

बेटा आज देर हो गई ले ये दूध जल्दी से पी जा मेरा राजा बेटा… उमंग और विश्वास से भरा मां का स्वर कुछ देर पहले की चर्चा को जाने कहां फेंक आया था दुलार भरा हाथ अपने सिर के बालों पर महसूस करता प्रत्यूष जैसे जी उठा था मुझे कुछ कर दिखाना है पिता भी कहते थे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता रह अभी तो मैने कोई कोशिश ही नही की सिर्फ अपनी जिंदगी को लानत भेजता रहा मुझे मां के लिए कुछ करना होगा मेरी मां हतभागी नहीं है मेरी मां किस्मत की धनी है पूरे परिवार और समाज के बीच मुझे यह सिद्ध करना होगा .. मैं अकेला नहीं हूं मां हर क्षण हर प्रयास में मेरे साथ खड़ी है …! मां मेरेलिए लड़ रही है  अब मुझे भी लड़ना है उसके लिए…जीने का एक मकसद उसे मिल गया था….अभी मेरा दिमाग मेरे हाथ सलामत हैं दूसरे दरवाजे हैं मेरे पास ….सारी निराशा दिमाग से लुप्त हो गई थी।

मां मेरा लैपटॉप देना जरा और मुझे थोड़ा सहारा दे तो बैठ जाऊं मां का हाथ पकड़ कर उसने कहा तो हादसे के बाद पहली बार अपने बेटे का आशावादी स्वर सुन मां की आंखों से  अश्रुधार बह निकली थी।

बिना कुछ कहे तत्काल वह बेटे का लैपटॉप ले आई।

होनहार प्रत्यूष ने ऑनलाइन वर्क फ्रॉम होम के लिए कई जगह आवेदन किया अपनी स्थिति से अवगत भी कराया।

… चार महीने हो गए हैं प्रत्यूष को वर्क फ्रॉम होम करते हुए… मेहनती कुशाग्र समर्पित प्रत्यूष की कार्य निपुणता के कारण उसकी कम्पनी ने उसके लिए कृत्रिम पैर लगवाने का पूरा खर्च उठाने का फैसला लिया है ..!

आज एक बार फिर प्रत्यूष अपने पैरों पर खड़ा था लेकिन जो उसके असली पैर थे वो तो उसकी मां ही थी जो आज भी अपने बेटे के साथ पूरे विश्वास के साथ मुस्कुराती खड़ी थी..!!  

लतिका श्रीवास्तव

2 thoughts on “जीने का मकसद (भाग -2) : लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi”

  1. हिम्मत मददे मददे खुदा। बड़े से बड़े संकट में धीरज रखने और सोच को सकारात्मक रखने से कोई न कोई रास्ता निकल आता है।

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