नैतिक और नव्या की शादी को आज 10 वर्ष पूरे हो गए। नैतिक नव्या को प्रेम से विश करना चाहता है परंतु नव्या का मूड कुछ उखड़ा हुआ सा है।
मध्यम वर्गीय परिवार की भागम भाग की जिंदगी, सीमित साधनों में गुजारा करने से नव्या असंतुष्ट सी है। नैतिक प्राइवेट फर्म में काम करता है। गुजारे लायक कमा लेता है।
इनके दो प्यारे प्यारे बच्चे रौनक और हरिका है। नैतिक के माता पिता कस्बे में अपने पुश्तैनी मकान में रहते हैं। नैतिक के पिता एक छोटी सी किराना दुकान चलाकर अपना गुजारा कर लेते हैं। वह बच्चों से कोई भी आर्थिक सहायता नहीं लेते।
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नैतिक की पत्नी नव्या स्वयं भी कोई बड़े घर से नहीं है।लेकिन उसके ख्वाब बहुत ऊंचे हैं। वैसे तो उनका वैवाहिक जीवन ठीक-ठाक चल रहा है लेकिन नव्या हमेशा सोचती की अगर उसकी शादी बड़े घर में हो गई होती तो वह भी राज राजती।
नव्या कभी नैतिक की कद्र नहीं करती। बात-बात पर ताना मार ती “तुम कमाते ही क्या हो? एक दो कमरे का घर भी नहीं बना सके अभी तक।”
उसे नहीं पता कि घर से निकलने के बाद पुरुषों को कमाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। बॉस की कितनी जी हजूरी की जाती है जब जाकर पूरा महीना काम करने के बाद तनख्वाह हाथ में आती है।
नैतिक अपनी पूरी तनख्वाह नव्या के हाथ में देता जिसे नव्या अपने हिसाब से ही खर्च करती हैं। फिर भी मन से संतुष्ट नहीं हो पाती नव्या।
नव्या ख्यालों की दुनिया में अधिक जीती है। शाम को नैतिक ऑफिस से भी जल्दी आ जाता है अपने परिवार को घुमा कर लाने के लिए। क्योंकि उसके लिए आज विशेष दिन था। नैतिक नव्या को हर हाल में खुश रखना चाहता था।
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एक दिन नव्या को फेसबुक पर अपनी कुछ पुरानी फ्रेंड मिल जाती है। बातों बातों में पता चलता है कि वह इसी शहर में रहती है। सहेलियों द्वारा रेस्टोरेंट में मिलने का प्रोग्राम रखा जाता है। नव्या भी अच्छी तरह तैयार होकर रेस्टोरेंट्स चली जाती है। सहेलियों से मुलाकात होती है लेकिन उनके रहन-सहन और स्टैंडर्ड को देखकर स्वयं को कमतर महसूस करती है।
उसकी सहेलियां उसे किटी पार्टीज के विषय में बताती है कि महीने में सब लोग अमाउंट जमा करते हैं और एक व्यक्ति को सारे पैसे मिल जाते हैं,एक बार में। अब नव्या नैतिक को किटी पार्टी ज्वाइन करने के लिए मनाती हैं।
किटी ज्वाइन करते ही मानो नव्या की सपनों को पंख लग गए हो। इत्तेफाक यह होता है कि उसकी किटी शुरू में ही खुल जाती है। और कुछ भी हाथ में ₹200000 रुपए नगद जाते हैं। अब तो नव्या का पैर जमीन पर नहीं है।
शॉपिंग मैं नव्या का रूझान अधिक बढ़ गया। पार्टी अटेंड करने के लिए स्टैंडर्ड भी तो मेंटेन करना पड़ता है।
वह बच्चों से भी उपेक्षित व्यवहार करने लगी।
20 किलोमीटर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से नैतिक रोज सफर करता। कितनी जगह ऑटो बदलने पड़ते। कुछ रास्ता पैदल ही तय करता। ऑफिस भी तो तीसरे माले पर चढ़कर था। लेकिन नव्या को कहां दिखाई देती थी नैतिक की यह तकलीफें।वह सोचती नैतिक पुरुष है, “और पुरुष का तो काम ही है कमाना।”
जबकि सच्चाई यही है कि पुरुष कभी अपने लिए नहीं कमाते। वह तो ओढ़ते है चोला जिम्मेदारियों का। परिवार की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए नैतिक स्वयं कपड़े भी कहां बनाता था। नव्या और बच्चों के खर्चे पूरे करने के बाद उसके हिस्से में बचता ही क्या था?
लेकिन फिर भी नैतिक संतुष्ट था। अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियांँ निष्ठा से निभा रहा था। ऑफिस से आने के बाद बच्चों का भी ख्याल खुद ही रखता। कभी घोड़ा बनता तो कभी मां भी बनना पड़ता।
नव्या किटी और क्लब में अधिक व्यस्त रहने लगी। कभी किसी सहेली के यहां पार्टी, कभी कही। अब तो नव्या ने कई किटी ज्वाइन कर ली। लेकिन फजीता तब हुआ जब नव्या की किटी नहीं खुली। अब नव्या लॉटरी की किस्त कहां से चुकायें।
सहेलियों के आगे हाथ भी फैलाए। पर किसी ने उसकी मदद ना करी।
अब ले देकर उसका जीवन साथी नैतिक ही मात्र सहारा था। शाम को जब नैतिक ऑफिस से थका हारा घर आया, तब नव्या फफक फफक कर रोते हुए उसके गले से लिपट गई। इस तरह नव्या को रोते देखकर नैतिक घबरा गया। तब नव्या ने पूरी बात बताई।
नैतिक गंभीर सोचने की मुद्रा में विचार विमर्श करने लगा। ऑफिस में कुछ लोगों से बात की ,थोड़े पैसों का इंतजाम किया। नैतिक अब रोज ओवरटाइम करता । कुछ पैसे बॉस से हाथ जोड़कर भी मांगे।
धीरे-धीरे नव्या ने लॉटरी की सब किस्त चुकायी। नव्या का भ्रम जाल टूट गया। उसे एहसास हुआ कि उसका पति नैतिक उससे कितना प्यार करता है।
परिवार की ढ़ाल होते हैं पुरुष। कोई ईंट पत्थर के नहीं हांड मांस के ही बने होते हैं। आवरण ओढ़ते है कठोरता का। पर अंदर से बड़े नाजुक होते हैं। तभी तो जिम्मेदारियों का बोझ सहते सहते सबसे ज्यादा हदयघात का शिकार होते हैं पुरुष।
#पुरुष
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश
अति सुन्दर संदेशपरक कहानी