जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होंगी बस समय को चुराना पड़ेगा – निशा जैन  : Moral stories in hindi

बधाई हो शशि जी अब तो तीनों बच्चों की शादी हो गई,( दो बेटा और एक बेटी) सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई आप। देखते हैं सुलोचना जी जिम्मेदारी से मुक्त हुई हूं या जिम्मेदारी बढ़ेगी समय के साथ…

अरे भाग्यवान अब कौनसी जिम्मेदारी बढ़ेगी तुम्हारी? अब तो मेरे साथ चारधाम की यात्रा पर चलो…. पति सुभाष जी बोले

हां जी जरूर चलेंगे बस एक बार पोते पोतियों का मुंह देख लूं… हां क्यों नही ताकि उनकी जिम्मेदारी भी निभाओ… श्रीमती जी जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होंगी बस हमे इनसे कभी कभार दूरी बनाकर खुद के लिए समय निकालना जरूरी है… ये मेरी नसीहत है तुम्हारे लिए ध्यान रखना जब मैं नही रहूं…. तभी शशि जी उनके मुंह पर हाथ रखकर बोली…. शुभ शुभ बोलिए जी आप क्यों नही रहेंगे….भला

अरे मैं कह रहा हूं जब मैं चारधाम पर चला जाऊंगा तब तुम मेरी नसीहत याद करोगी क्योंकि तुम तो मेरे साथ चलने से रही…. छोड़िए जी ये आपके मजाक करने की आदत किसी दिन जान ले लेगी मेरी

समय अपनी गति से चलता रहा और शशि जी की जिम्मेदारियां भी….

दोनों बेटों की एक ही मंडप में शादी कराई थी तो दोनों बहुएं एक साथ चार महिनों के अंतर में खुश खबरी सुनाने वाली थीं। अब तक तो वो खुद ही एक बहु थी क्यूंकि कुछ ही महीनों पहले उनकी सास का स्वर्गवास हुआ था और उनकी जिम्मेदारी भी उन्ही पर थी। सोचा बहुएं आएंगी तो कुछ जिम्मेदारियां कम होंगी पर बहु भी नौकरी वाली आ गई जो अपने अपने पतियों के साथ शहर में रहती थीं । यदा कदा ससुराल आती थीं वो भी मेहमान बनकर जिनको घर के न सामान का पता न बर्तन भांडे का। बस काम के नाम पर सिर्फ आपा पूर्ति करती थीं

बाकी सारी जिम्मेदारियां शशि जी और सुभाष जी पर थी जो बेटे बहु के आने की तैयारियों में लगे रहते ।

बेटे बहु कभी शहर आने को बोलते तो दो चार दिन रहकर वापस आ जाते क्युकी वहां उनका मन नही लगता था

पर अब बहुएं गर्भवती थीं तो जाना जरूरी था। बड़ी बहु अपने मायके में डिलीवरी करवाना चाहती थी क्योंकि वहां उसकी मां संभालने वाली थी और उसकी नौकरी वही पर थी जबकि छोटी बहू के मां नही थी तो उसकी जिम्मेदारी शशि जी पर थी। जिसका उन्होंने बखूबी निर्वाह किया और जल्दी ही वो एक पोते और पोती की दादी बन गई।

बड़ी बहु तो अपने मायके में ही रच बस गई और बड़े बेटे ने भी अपना ट्रांसफर वहीं करवा लिया। शशि जी और सुभाष जी अपनी जिम्मेदारियों से भले ही मुक्त न हुए हों पर बेटा बहु जरूर मुक्त हो गए। कभी कभार आते थे बस औपचारिकता निभाने….(.दोनो आपस में बतियाते थे… ना जाने कैसा  जमाना आ गया है बहु बेटे तो मस्ती में मस्त होकर रह रहे हैं और हम बूढ़े बुढ़िया अब भी इस उम्र में इनकी चाकरी कर रहे हैं। सोचा था बहु आने पर सेवा करेगी पर यहां तो खुद ही उनकी सेवा में लगना पड़ रहा है। )

छोटे बेटे का जरूर मां पापा से मोह था तो वो उनसे अपने पास रहने की जिद किया करता था। अब सुभाष जी का स्वास्थ्य भी कुछ नाजुक बना रहता तो उन्होंने बेटे बहु के पास ही रहना उचित समझा और उनको भी अपने बच्चे की देखभाल के लिए किसी बड़े की आवश्यकता थी तो शशि जी और सुभाष जी शहर आ गए । उनकी जिम्मेदारियां बढ़ गई थी क्योंकि बच्चे के लालन पालन की जिम्मेदारी भी अब उनके हिस्से आ गई । जहां उनकी उम्र को देखते हुए उनको किसी सहायक की जरूरत थी वहां वो बहु बेटे के सहायक बन बच्चे की देखरेख कर रहे थे। 

  ना जाने कैसा जमाना आ गया है जहां जिम्मेदारियां खत्म होने का नाम ही नही ले रही हैं। खुद के लिए समय निकालना तक भारी हो रहा है। पहले भी सारे काम होते थे पर आराम का समय भी मिल जाता था और घर के ढेरों फालतू काम भी हो जाते थे पर अब देखो काम हैं कि खत्म होने का नाम ही नही लेते।

आपने सही नसीहत दी थी कि.. समय को ,इन जिम्मेदारियों से हमे चुराना पड़ेगा वरना हमारा जीवन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबता ही जाएगा। शशि जी दुखी होते हुए बोली

 अरे इतना दुखी क्यों होती हो श्रीमती जी ….. इतनी चिंता क्यों लेती हो इन जिम्मेदारियों की….गृहस्थ जीवन है तो जिम्मेदारियां भी होंगी ही …. और हम जैसे लोग जो बच्चों की फिक्र में ही सारा जीवन लुटा देते हैं उनके लिए जिम्मेदारियां आगे चलकर चिंता का विषय बन जाती है इसलिए कहता हूं समय रहते इन जिम्मेदारियों से दूरी बना लो और बेटे बहु को भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होने दो।।उनको भी तो पता चले बच्चा पालना कितना मुश्किल है और तुम मेरे साथ सुबह वॉक पर चला करो।

 अजी आप भी कैसी बाते करते हो। उनपर क्या कोई कम जिम्मेदारी है। वो भी तो दिन रात ऑफिस के काम की जिम्मेदारियों में उलझे हुए हैं

 मुझे तो लगता है आजकल कोई विरला ही होगा जो जिम्मेदारियों की चिंता से मुक्त होगा बस हमारे अंशु( उनका पोता) के अलावा । देखो इसको कितना मस्त होकर खेल रहा है

 अरे भाग्यवान एक बार इसका स्कूल शुरू हो जाने दो फिर देखो ये भी जिम्मेदार बन जायेगा

 ये क्या कह रहे हैं जी आप….

 और क्या सुबह जब वॉक पर जाता हूं तो हर आयु वर्ग के लोगों को देखता हूं और महसूस करता हूं कि…..ना जाने कैसा जमाना आ गया है.. जिसे देखो वो ज़िंदगी की आपाधापी में उलझा पड़ा है।

 आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में कोई विरला ही होगा जो चैन की जिंदगी बसर कर रहा होगा ।नही तो छोटे बच्चे से लेकर किशोर, युवा, वृद्ध जन सभी की लाइफ जिम्मेदारियां या यूं कहे कि चिंता से भरी हुई होती है तो गलत नहीं होगा

 बच्चों का बचपन भारी भारी स्कूल बैग और किताब कॉपियों ने छीन लिया, उनके खेलने कूदने मस्त रहने के दिनों में स्कूल के होम वर्क की जिम्मेदारी की चिंता सताने लगी, भारी भारी स्कूल बैग लेकर जाने से शारीरिक बोझ की चिंता सताने लगी, पोषक आहार नही लेने से सेहत की चिंता और तो और स्क्रीन टाइम बढ़ने से चश्मे का नंबर बढ़ने की चिंता, बाप रे बाप इतनी सी जान और इतना काम

 किशोरों को देखो तो पढ़ाई में अव्वल आने की जिम्मेदारी तो कहीं करियर की जिम्मेदारी

 युवाओं को अपनी शादी की चिंता, नौकरी की चिन्ता, और तो और एक अच्छे जीवनसाथी की तलाश भी एक चिंता बन गई है आजकल तो

 गृहस्थ जीवन तो चिंता का ही दूसरा नाम है शायद… क्युकी जिम्मेदारियां बहुत होती है और जहां जिम्मेदारियां होंगी वहां चिंता होना स्वाभाविक है।

बच्चों की चिंता, मां बाप की चिंता, पति को पत्नी की चिंता, पत्नी को पति की चिंता, घर चलाने की चिंता, आमदनी बढ़ाने की चिंता, खर्चे घटाने की चिंता, प्रमोशन की चिंता जिसको देखो वो बस टेंशन में ही नजर आता है

 हम जैसे बूढ़े लोगों के लिए अपने बुढ़ापा में अपने सहारे की चिंता, बीमारियों की चिंता, बहु बेटे की चिंता, पेंशन की चिंता, डायबिटीज की , बीपी की, थायराइड की , कोलेस्ट्रॉल की गोली ली या नही ये भी एक चिंता। ये सब बीमारियां होने की जड़ भी है ये चिंता……

 ये चिंताएं कभी पीछा छोड़ेगी या नही समझ नही आता । जीवन की कौनसी अवस्था है जिसमे कोई चिंता नही है सिवाय शिशु अवस्था के। व्यक्ति की समझदारी शुरू होने के साथ ही उसकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती है और चिंताएं भी शुरू हो जाती हैं जिनसे पीछा छुड़ाने के लिए शायद अगले जन्म का इंतजार करना पड़े या अपने जीने का ढंग बदलना पड़े… सुभाष जी बोले ही जा रहे थे तभी पीछे से आवाज आई..

 मुझे लगता है पापा अपने जीने का ढंग ही बदलना पड़ेगा….. अचानक अपने बेटे की आवाज सुनकर दोनो चौंक पड़े और बोले… बेटा तू कब आया, पता ही नही चला

 हां आप दोनो अपनी चिंताओं में इतने डूबे थे कि मैं कब से आपकी बाते सुन रहा हूं आपको पता ही नही चला

 असल में मैं ऑफिस के कुछ काम से कागज लेने घर आया तो आपकी बाते सुनी और अपनी गलती का एहसास भी हुआ कि मैने और बरखा ने अपनी जिम्मेदारियां आप पर डाल रखी हैं जो उचित नही है। जिस उम्र में हमे आपकी सेवा करनी चाहिए वहां आप हमारी सेवा में लगे हुए हो

 अरे बेटा ऐसा नही है तेरे पापा तो ऐसे ही ….. शशि जी बोली

 नही मां ,पापा ठीक नसीहत दे रहे हैं हमे अपने जीने का ढंग बदलना होगा और जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ना होगा

 कल से मैं अंशु के लिए पूरे दिन के लिए मेड रखूंगा जो आपकी हर जिम्मेदारी में आपका हाथ बंटाए और आप भी कल से पापा के साथ वॉक पर जाएंगी और रही बात घर और बाकी जिम्मेदारियों की तो वो हम सब मिलकर सम्हाल लेंगे … हैं ना पापा

 हां बेटा … बल्कि मैं तो कहता हूं कि तुम और बहु भी अपने काम की जिम्मेदारियों से थोड़ा आराम लेकर हमे चारधाम की यात्रा करवा आओ नही तो जिम्मेदारियां तो कभी खत्म नहीं होंगी बल्कि दिनों दिन बढ़ेंगी ही।

 हां पापा ये भी सही है । कब से ही हम आउटिंग पर नही गए । चलो मैं अभी बात करता हूं छुट्टी के लिए और बरखा को भी फोन कर बता दूंगा।

 अब मैं चलता हूं अपनी जिम्मेदारी निभाने हंसते हुए नमन निकल जाता है ।

 शशि जी और सुभाष जी भी आज अपने बेटे की बातों को सुनकर बड़ा हल्का महसूस कर रहे थे। सही कहा है जब मन खुश हो तो जीने का मजा आ जाता है और दोनो पति पत्नी आज खुश मन से अपने पोते को खिलाने लगे

 सात दिन बाद……

शशि जी, सुभाष जी अपने पोते को खिलाने में मस्त थे और बरखा और नमन चारधाम की यात्रा पर जाने की तैयारियां पूरी करने में व्यस्त थे क्योंकि अगले दिन उन्हें निकलना जो था।सबने अपनी अपनी जिम्मेदारी संभाल ली थी क्योंकि जीते जी जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होती……

 दोस्तो मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि मेरे सभी प्रियजनों का जीवन चाहे लाख जिम्मेदारियां वाला हो पर चिंता मुक्त जीवन हो जिसे सब मजे लेकर जी सकें । क्योंकि जिम्मेदारियों से तो हम मुंह मोड़ नही सकते पर कुछ समय तो अपने लिए चुरा ही सकते है…… ना की जिंदगी की आपाधापी में ही अपने बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के एहसास को भुला दें

 और अगर जिंदगी जीनी है तो जिंदगी का सबका एक ही फलसफा होना चाहिए……

 जिम्मेदारियों की चिंता ना करना कभी

 बाहर निशा हो या सवेरा हो

 फिक्र बस इतनी हो कि , अंतर्मन में ना अंधेरा हो, अंतर्मन में ना अंधेरा हो.”…..

 मेरे विचारों से सहमत है तो कृपया कमेंट करके बताना नही भूलें और मेरा उत्साहवर्धन हमेशा की तरह यूं ही करते रहे

 धन्यवाद

निशा जैन

दिल्ली

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