ज़िम्मेदारी का एहसास – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

” अरे सिम्मी बुआ आप! आप कब आईं?” कहते हुए काजल ने अपना बैग सोफ़े पर रखकर बुआ को प्रणाम किया और अपनी मम्मी सुनयना से बोली,” मम्मी…बहुत थक गई हूँ।एक कप चाय…।” कहते हुए वह अपने कमरे में जाने लगी तो सिम्मी बुआ आश्चर्य-से बोली,

” काजल तू यहाँ…तुझे तो अपने घर होना चाहिए था अपनी बच्ची के पास…विवाह के तीन बरस हो गये हैं..अब तो मायके का मोह छोड़ दे बिटिया…।” लेकिन काजल उनकी बातों को अनसुना करके चली गई तब सुनयना जी हँसते हुए बोलीं,” क्या सिम्मी…तुम भी क्या मोह की बात लेकर बैठ गई।मायके का मोह कभी छूटता है क्या…।” 

 ” लेकिन भाभी…।” कहकर सिम्मी बुआ चुप हो गईं क्योंकि वो समझ गईं थीं कि इन्हें कहने से कोई फ़ायदा नहीं है।

          सुनयना जी के पति यशवंत प्रसाद शहर के जाने-माने बिजनेसमैन थे।उनके बेटे किशोर से पाँच बरस छोटी थी काजल।किशोर जब स्कूल चला जाता तब नन्हीं काजल अपनी माँ का आँचल पकड़कर उनके पीछे-पीछे घूमती रहती।

कभी उनकी साड़ियों को लपेटती तो कभी उनकी चूड़ियों को अपने हाथों में डालकर खूब हँसती और माता कौशल्या की तरह सुनयना जी भी अपनी बेटी की बाल-क्रिया देखकर पुलकित हो उठती थीं।

     भाई के साथ जब काजल भी स्कूल जाने लगी तो उसे तैयार करने में सुनयना जी अपने बचपन को जीने लगीं थीं।उससे अलग होने की कल्पना से ही वो सिहर उठतीं थीं।पति से अक्सर कहतीं कि मैं तो अपनी बेटी के लिये घर- जवाँई लाऊँगी।सुनकर उनके पति मुस्कुरा देते थे।

        किशोर एमबीए करके अपने पिता के बिजनेस को संभालने लगा।सुनयना जी ने एक संभ्रांत परिवार की सुशील लड़की आशा के साथ उसका विवाह कर दिया।दो साल बाद आशा ने एक पुत्र अंश को जनम दिया।अंश चलने-बोलने लगा तब उसकी गोद में बेटी श्रुति खेलने लगी।

       काजल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रही थी।एक दिन सुनयना जी ने उसे दो-तीन लड़कों की तस्वीरें दिखाते हुए पूछा,” कोई पसंद है तो बता..।” सुनकर वो धीरे-से बोली,” एक बार गौरव से मिल लेती तो…।” 

  ” अच्छा…तो ये बात है।” बेटी की इच्छा जानकर वो मुस्कुराई और बोली,” गौरव को कह दे कि कल हम लोग आ रहें हैं।” 

       गौरव और उसके माता-पिता से मिलकर यशवंत जी बहुत खुश हुए।गौरव को शगुन देते हुए वे उसकी माताजी से इतना ही बोले,” बहन जी…. काजल में ज़रा बचपना है, कोई भूल हो जाये तो..।”

   ” कैसी बातें करते हैं भाईसाहब…काजल हमारी बेटी बनकर रहेगी।” 

       एक शुभ मुहूर्त में काजल और गौरव का विवाह हो गया।बेटी के गले लगकर सुनयना जी बहुत रो रहीं थीं तब उनके पति ने उन्हें दिलासा दिया कि एक ही शहर में तो है…जब चाहो मिल आना।काजल जब अपनी दादी से आशीर्वाद लेने गई तब उन्होंने उसका हाथ गौरव के हाथ में देते हुए कहा,” बेटी…अब से ससुराल ही तेरा घर है,अब तो तू यहाँ की मेहमान है।”

      सास-ससुर से प्यार और देवर सौरभ से स्नेह पाकर काजल बहुत खुश थी।दिनभर में एक बार अपनी मम्मी से फ़ोन ज़रूर कर लेती थी।बेटी से बात करके और उसे खुश देखकर सुनयना जी को भी काफ़ी तसल्ली होती थी।

काजल को रोज अपनी मम्मी से बातें करके देख एक दिन उसकी सास बोली,” ऑफ़िस से आते वक्त अपने मायके चली जाना और अगले दिन आ जाना।” उसी दिन से काजल ने अपना यही रुटीन बना लिया जो यशवंत जी को अच्छा नहीं लगा था। एक दिन गौरव ने काजल को मायके जाने से रोकना चाहा तो ममतामयी सास ने रोक दिया और बेटे से बोलीं,” देखना..नया मेहमान आते ही उसके पैर बँध जायेंगे।”

      ऐसा हुआ भी।प्रेग्नेंसी में काजल को डाॅक्टर ने रेस्ट कहा तो वह घर से ही काम करने लगी।बेटी अनायरा के जन्म के बाद तो मायके जाने की बात उसके ख्याल में भी नहीं रहा।ऑफ़िस से आकर वह अनायरा में व्यस्त हो जाती।

गौरव और उसके सास-ससुर उसके बदले व्यवहार से बहुत खुश थे।यशवंत जी भी यही चाहते थे।

     अनायरा सात महीने की हो रही थी।एक दिन काजल अपनी सास से बोली,” मम्मी जी…बहुत दिन हो गये हैं…ऑफ़िस से आते वक्त मायके हो आऊँ?”

  ” हाँ-हाँ बेटी…मन करे तो रुक जाना।अनायरा को मैं संभाल लूँगी।” उस दिन वो मायके गई।रात को सास को फ़ोन करके रुक गयी और मम्मी से ढ़ेर सारी बातें की।फिर तो उसका यही रुटीन बन गया।पाँच दिन अपने ससुराल रहती

और छुट्टी का दिन अपनी माँ और भाभी के बच्चों के साथ बिताती।उसकी सिम्मी बुआ अपने बेटी-दामाद से मिलने आई थी तो भैया-भाभी से भी मिलने आ गई और जब काजल को देखा तो बोल दिया।            रात को सुनयना जी पति के सामने बड़बड़ाने लगीं कि काजल का घर है ये..जब चाहे आये-जाये…सिम्मी को तकलीफ़ क्यों होती है?” 

    यशवंत जी बोले, ” नाराज़ क्यों होती हो भाग्यवान…सिम्मी ने कुछ गलत तो नहीं कहा।याद है…तुम भी तो हर पंद्रह दिन पर अपने मायके दौड़ जाती थी।मेरी अम्मा तो कुछ नहीं कहती लेकिन एक दिन तुम्हारी माँ ने ही तुम्हें समझाया था

कि विवाह के बाद बार-बार मायके आना शोभा नहीं देता है बेटी, अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान है..।काजल को समझ नहीं है तो तुम्हें तो अपनी बेटी को अपने ससुराल और परिवार की अहमियत समझाना चाहिये था।गौरव और उसके माता-पिता को कितना बुरा…अरे! तुम तो रोने लगी।”

      ” रोऊँ नहीं तो क्या करुँ…यही बात आपने मुझसे पहले क्यों नहीं कही..।”

 ” हा-हा..तुम तो अपनी बेटी के मोह में ऐसे फँसी हुई थी कि..।” कहते हुए यशवंत जी हँसने लगे।

       अगली सुबह काजल ने सास को फ़ोन करके कह दिया कि मम्मी जी, कल आऊँगी और भाभी को ‘एक कप काॅफ़ी’ कहकर अंश और श्रुति के साथ खेलने लगी।तब सुनयना जी उसके पास आकर कहती हैं,” काजल बेटी…हर बेटी को अपने माता-पिता से स्नेह होता है

लेकिन विवाह के बाद वह अपने मायके में एक मेहमान की तरह होती है जहाँ कभी-कभी ही जाना उचित रहता है।विवाह के बाद उसे बहू, पत्नी,भाभी और एक माँ का कर्तव्य निभाना पड़ता है जैसे कि तेरी भाभी निभाती है।

इसी शहर में उसका भी मायका है लेकिन…।” उनकी बात पूरी होने से पहले ही काजल उठ खड़ी हुई और अपना बैग लेकर कार निकालने लगी।पीछे से उसकी भाभी काॅफ़ी पीने के लिये पुकारती रह गईं तब तक तो वो जा चुकी थी।

      बहू को अचानक देखकर सास ने पूछ लिया,” तुम तो कल आने वाली थी ना काजल…, सब ठीक तो है ना..।”  

  ” हाँ मम्मी..सब ठीक है।” अपना बैग सोफ़े पर रखकर उसने अनायरा को अपनी गोद में ले लिया और सास से बोली,” मैं इसे रखती हूँ..आप मंदिर चले जाइये।” उसकी सास के लिये यह शुभ दिन था।मन ही मन भगवान को धन्यवाद देकर वो मंदिर चलीं गईं।

तब तक काजल ने कामवाली की मदद लेकर सबके पसंद का लंच तैयार करवा लिया।

       रात को सबने एक साथ डिनर किया।इधर-उधर की बातें भी हुईं।सौरभ अपनी भतीजी के साथ खेलने लगा तब काजल ने अपनी मम्मी को फ़ोन किया और बोली,” थैंक्स मम्मी..मुझे अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाने के लिये।अंश को कहियेगा…।

” काजल हँस-हँसकर अपनी मम्मी से बातें किये जा रही थी।उसे देखकर गौरव और उसके माता-पिता की आँखें खुशी-से भर आईं।आज काजल पूरे मन से अपने मायके का मोह त्याग कर अपने ससुराल की हो गई थी।

                        विभा गुप्ता 

                         स्वरचित 

# बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान

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